इंदौर. बीते 5 सालों में सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने वाले और ऑफिस में लैपटॉप पर काम करने वाले युवाओं की संख्या 10 गुना बढ़ चुकी है. हर किसी की जिंदगी का अहम हिस्सा बन चुका मोबाइल और सोशल मीडिया अब उपयोग करने वालों को शारीरिक रूप से भी कमजोर बना रहा है. आपको जानकर हैरानी होगी कि मोबाइल-लैपटॉप का ज्यादा इस्तेमाल करने वाले लोगों को केवल आंखों की नहीं बल्कि रीढ़ की हड्डी की भी घातक बीमारियां (Backbone problems) हो रही हैं.
तेजी से बढ़ रही रीढ़ की हड्डी की बीमारी
दरअसल, वर्तमान में रीढ़ की हड्डी से जुड़ी बीमारियों के जो मरीज अस्पताल पहुंच रहे हैं वे कहीं न कहीं मोबाइल को गर्दन झुकाकर देखने और लैपटॉप पर इसी तरह काम करने वाले प्रोफेशनल हैं. कई कई घंटे गर्दन झुकाकर बैठे रहने के कारण लोगों को रीढ़ की हड्डी की बीमारियां हो रही हैं या यूं कहें कि लोग मोबाइल लैपटॉप की वजह से समय से पहले बूढ़े हो रहे हैं.
इन वजहों से भी बैकबोन को हो रहा नुकसान
मोबाइल-लैपटॉप्स को झुककर इस्तेमाल करने से साथ बैठने के तरीके, ड्राइविंग के दौरान लगने वाले झटके और गाड़ी पर बैठने के तरीके की वजह से भी रीढ़ की हड्डी की समस्या तेजी से बढ़ रही हैं. इंदौर में अपोलो हॉस्पिटल के न्यूरो सर्जन डॉक्टर ऋषि गुप्ता कहते हैं, ' बीते 5 साल में रीढ़ की हड्डी के ऑपरेशन वाले मरीजों की संख्या 10 गुना हो चुकी है. पहले जहां स्पाइन सर्जरी कराने वाले दो मरीज आते थे, तो वहीं अब प्रतिदिन 12 से 13 मरीज आ रहे हैं.
रीढ़ की समस्या से जूझ रहे अधिकांश युवा
डॉक्टर ऋषि गुप्ता बताते हैं कि इसमें चौंकाने वाली स्थिति यह है कि अधिकांश मरीजों की उम्र 20 से 30 साल है, जो सोशल मीडिया पर या लैपटॉप आदि पर काम करते हैं. डॉक्टर के मुताबिक गर्दन को झुकाकर बैठने और काम करने पर रीढ़ की हड्डी पर ओवरलोड पड़ता है. वहीं मरीज को इसमें दर्द की शिकायत बनी रहती है. यही स्थिति बैठने को लेकर भी है, जिसमें बैठने का तरीका अक्सर गलत होता है.
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गलत ड्राइविंग से भी रीढ़ की हड्डी पर असर
डॉक्टर ने आगे बताया कि दोपहिया वाहनों पर चलते हुए स्पीड बेकार और गड्डों के कारण भी बैकबोन पर झटका लगता है. इससे भी बैकबोन को नुकसान पहुंचता है. हालांकि, राहत भरी बात यह है कि समस्या बढ़ने के साथ मेडिकल साइंस और सर्जरी के विकसित होने के कारण अब ऑपरेशन भी सुविधाजनक तरीके से हो पा रहे हैं. पहले रीढ़ की हड्डी के ऑपरेशन में 8 से 10 फीसदी तक कॉम्प्लिकेशन और साइड इफेक्ट के मामले सामने आते थे जिनकी दर अब एक परसेंट हो चुकी है. वहीं पूर्व की तुलना में मरीजों को अस्पताल से जल्दी डिस्चार्ज किया जा रहा है.