शिमला: पूर्व आईएएस अधिकारी व भाजपा के टिकट पर दूसरी बार चुनाव जीते जेआर कटवाल ने सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू द्वारा पेश सरकारी कर्मियों की भर्ती व सेवा शर्तें विधेयक का विरोध किया. हालांकि ये बिल अब सदन में पास हो गया है, लेकिन ये जानना दिलचस्प है कि विरोधी पक्ष भाजपा ने इस पर सदन में विरोध में क्या तर्क रखे. जेआर कटवाल ने बिल पर जो संशोधन प्रस्तावित किए थे, उनमें से दो बिंदुओं पर अपनी बात रखी. यहां विधानसभा की कार्यवाही के आधार पर जेआर कटवाल की तरफ से रखे गए बिंदुओं की जानकारी दी जा रही है.
बिल के रेट्रोस्पेक्टिव डेट से लागू होने पर जेआर कटवाल ने कहा कि सरकार को इसके यानी रेट्रोस्पेक्टिविटी के बार में विचार करना चाहिए. जेआर कटवाल ने आगे अंग्रेजी ने कहा-रेट्रोस्पेक्टिव इन्फोर्समेंट ऑफ एनी प्रोविजन इज नॉट गुड इन दि आईज ऑफ लॉ एक्सेप्ट बट फॉर वेरी स्पेसिफिक सरकमस्टांसिज इफ देयर आर, इट इज इन केस ऑफ पॉजिटिविटी. किसी के लिए पॉजिटिव मैनर में रेट्रोस्पेक्टिविटी का कोई प्रावधान हो तो वो लागू होता है. सामान्यत यह उसमें करटेल करना मुझे मुश्किल लगता है. इसमें सुप्रीम कोर्ट की रूलिंग भी है.
जेआर कटवाल ने फिर सेक्शन छह का हवाला दिया और कहा कि इसमें नियुक्ति की तिथि से सीनियोरिटी का प्रावधान है न कि नियमित होने की तिथि से. कटवाल ने कहा कि कॉन्ट्रैक्ट और बाकी सब्सिक्वेंट प्रोविजिन हैं, उसके अनुसार सीनियोरिटी नियुक्ति की तिथि से दी जाती है. कटवाल ने अहम बिंदु उठाते हुए कहा कि नियुक्ति किसी पोस्ट वेकेंसी के अगेंस्ट करते हैं. साथ ही नियुक्ति के सोर्सिज भी डिफरेंट होते हैं.
आगे कटवाल ने अंग्रेजी भाषा का उपयोग करते हुए कहा-समटाइम इट इज बाई प्रमोशन एंड समटाइम इट इज बाई लेटरल एंट्री. दि पर्संज हू आर आलरेडी इन दि गवर्नमेंट जॉब और इसकी इंटर-सी सीनियोरिटी किसी रेशो में होती है. सरकारी क्षेत्र में एक एफआर-49 का प्रावधान होता है. इसमें कहा गया है कि-नो जूनियर कैन ड्रॉ हायर पे एंड अलाउंसिज दैन टू हिज इमीडिएट सीनियर पर्सन. सरकार को इस बात को भी ध्यान में रखना चाहिए. ऐसे में प्रतीत होता है कि एक्ट के पास होने से ये चीजें आगे कन्फ्रंट तो करेंगी ही.
जीतराम कटवाल ने कहा कि वैसे भी लिखा हुआ है कि 12 दिसंबर 2003 के बाद जितनी भी रेगुलराइजेशन हुई हैं, जितनी भी वेकेंसिज फिल-अप हुई हैं या अप्वाइंटमेंट हुई हैं, इसी एक्ट के प्रावधान के अंतर्गत उनको कंसीडर किया जाएगा या रेगुलराइज किया जाएगा. उन सभी को एडमिनिस्टर्ड करने का जो तरीका होगा तो वह इस एक्ट में होगा. वैसे भी दो-तीन प्रीपोजिशन आती हैं, ऑब्सेशन होता है, ऑफिशिएटिंग उसको नहीं मानते हैं. अगर वह बिना रुकावट चलता रहे और किसी वेकेंसी के अगेंस्ट है तो उसकी अप्वाइंटमेंट रेगुलर मानी जाती है. इन मामलों में अलग-अलग अदालतों से सरकार को आदेश आते रहते हैं. कहीं-न-कहीं कोई कमी या लकुना रहता है और सरकार को करेक्ट करने के निर्देश मिलते हैं.
कटवाल का मानना था कि इस एक्ट के ऊपर गवर्नमेंट के कंप्लशन हो सकते हैं, फाइनेंशियल सिचुएशन सत्ता पक्ष व विपक्ष सभी को ध्यान रखनी पड़ती है. बेसिकली जो आदमी वोट देता है उसका भी पैसे के ऊपर अधिकार है. वोटर्स सरकार से उम्मीदें रखते हैं. प्रदेश के विकास में सरकारी कर्मचारियों का भी एक बहुत बड़ा रोल होता है. कर्मचारी अपने जीवन का बहुत अच्छा पीरियड सरकार की सेवा में लगा कर इस प्रदेश का विकास करने व मॉडल स्टेट के रूप में विकसित करने में योगदान देता है. ऐसे में रेट्रोस्पेक्टिव प्रोविजन लागू होने से उनको नुकसान न हो जो आदमी पहले से लाभ ले रहे हैं.
कटवाल का कहना था कि बिल के पास होने के बाद बहुत ज्यादा लिटिगेशन बढ़ेगी. लोगों को पैसे मिलते हैं, सैलरी मिलती है और कोर्ट में अपना पक्ष रखने के लिए उन्हें कोई ज्यादा देर नहीं लगती. जेआर कटवाल ने 1990 में महाराष्ट्र के एक केस का उदाहरण दिया और बताया कि कैसे इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच का फैसला हिमाचल में भी कोट होता आया है. कटवाल ने सेक्शन छह व आठ की रेट्रोस्पेक्टिविटी के बारे में विचार करने की बात कही थी.
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