लखनऊ: राजधानी में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर और डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में बुधवार को इंडियन सोसाइटी ऑफ रिमोट सेंसिंग और इंडियन सोसाइटी ऑफ जियोमेटिक्स की वार्षिक राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई.
रिमोट सेन्सिंग फॉर सस्टेनेबल फ्यूचर: ए रोडमैप टूवार्डस् विकसित भारत का आगाज हुआ. 11 से 13 दिसंबर तक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय में आयोजित संगोष्ठी में उत्तर प्रदेश सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री अनिल कुमार उपस्थित रहे. संगोष्ठी में देश-विदेश के 1000 से अधिक वैज्ञानिक, प्रोफेसर, अधिकारी और शोध छात्र हिस्सा ले रहे हैं. राष्ट्रीय संगोष्ठी में देश के प्रमुख वैज्ञानिक संस्थानों इसरो, बेंगलुरु, अंतरिक्ष उपयोग केंद्र, अहमदाबाद; नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर, हैदराबाद और नॉर्थ-ईस्ट स्पेस एप्लीकेशन सेंटर, शिलांग के प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पहुंचे हैं.
कैबिनेट मंत्री ने की तकनीक की प्रशंसा: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री अनिल कुमार ने कहा कि यह तकनीक न केवल जल, वायु और थल संसाधनों के समुचित प्रबंधन में सहायक है, बल्कि कृषि, वानिकी, आपदा प्रबंधन और स्मार्ट सिटी प्रबंधन में भी इसका अनुप्रयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है. रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर, प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों की खोज और उनके प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है. इसके माध्यम से नवीनतम आंकड़ों का सृजन किया गया है, जिससे जल, वायु और थल जैसे क्षेत्रों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मॉनिटरिंग और प्रबंधन को सुदृढ़ किया गया है.
उन्होंने वैज्ञानिकों के प्रयासों की सराहना करते हुए भारत को नई ऊंचाइयों पर ले जाने का आह्वान किया. कहा कि इस संगोष्ठी का उद्देश्य प्रधानमंत्री के विकसित भारत के लक्ष्य को बल देकर उनके विकसित भारत के सपने को साकार करना है. इसके साथ ही उत्तर प्रदेश को एक ट्रिलियन डॉलर अर्थव्यवस्था बनाने के प्रयासों में सहयोग मिलेगा.
ग्रामीण क्षेत्रों में भी असरदार है तकनीक: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख सचिव पंधारी यादव ने कहा कि यह गौरव का क्षण है कि 32 वर्षों बाद लखनऊ में यह संगोष्ठी हो रही है. उन्होंने रिमोट सेंसिंग और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में तालाबों, खेतों और जंगलों की डिजिटल मॉनिटरिंग की सराहना करते हुए इसे प्रदेश की जनता के लिए लाभकारी बताया.
उन्होंने कहा कि इस संगोष्ठी के माध्यम से प्रदेश के युवाओं और शोधकर्ताओं में विज्ञान के प्रति रुचि बढ़ाने और नवीनतम तकनीकों को समझने का अवसर मिलेगा. यह आयोजन प्रदेश के विकास के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है और यह सुनिश्चित करेगा कि उत्तर प्रदेश विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी राज्य बने.
विशेष सचिव एवं रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर शीलधर सिंह यादव ने कहा कि विकसित भारत का सपना, विकसित उत्तर प्रदेश के बिना अधूरा है. प्रदेश में वैज्ञानिक सोच और तकनीकी अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए सरकार प्रयासरत है. रिमोट सेंसिंग तकनीक ने प्रदेश के प्राकृतिक संसाधनों की खोज और प्रबंधन को एक नई दिशा दी है. यह आयोजन प्रदेश के वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास में एक नयी दिशा प्रदान करेगा.
इन वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को मिला सम्मान: राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान इंडियन सोसाइटी ऑफ रिमोट सेंसिंग ने अपने वार्षिक पुरस्कार भी प्रदान किए. फेलो ऑफ इंडियन सोसाइटी ऑफ रिमोट सेंसिंग का सम्मान शांतनु भटावडेकर, डॉ. आरपी सिंह, डॉ. राजकुमार, प्रोफेसर डॉ. वाईएस राव, और डॉ. पीपी नागेश्वर राव को प्रदान किया गया. भास्कर अवार्ड डॉ. प्रकाश चौहान को प्रदान किया गया. सतीश धवन अवार्ड प्रोफेसर डॉ. अंजना व्यास को प्रदान किया गया. नेशनल जियोस्पेशियल अवार्ड फॉर एक्सीलेंस डॉ. अनिल कुमार लोहानी और डॉ. राजश्री बोथाले को प्रदान किया गया.
आईएसआरएस के 6,300 सदस्य: राष्ट्रीय संगोष्ठी के अयोजक सचिव डॉक्टर एमएस यादव ने कहा कि आईएसआरएस की स्थापना 1969 में हुई थी और वर्तमान में इसके 6,300 सदस्य हैं, जिनमें वैज्ञानिक, प्रोफेसर एवं शोधकर्ता शामिल हैं. संगठन का उद्देश्य अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग कर मानवता की सेवा करना है.
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