पूर्णिया: बिहार में जहां अभी भी गरीबी, लैंगिक असमानता और बेरोजगारी ने जीवन को जकड़ रखा है. वहीं ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं को मिलेट दीदी आत्मनिर्भर बना रही है. मिलेट दीदी पूजा महिलाओं को रागी, ज्वार और बाजरा जैसे पोशाक अनाज से लड्डू, ब्रेड, ठेकुआ, पापड़ और मिक्सचर बनाना सिखा रही हैं. आजकल मार्केट में ऐसे पौष्टिक व्यंजन मांग की जा रही है.
कौन है मिलेट दीदी: डॉ. पूजा कुमारी मिलेट्स यानि कि रागी, ज्वार, बाजरा और अन्य पोषक अनाज से काफी बदलाव लेकर आई हैं. वो बायोटेक्नोलॉजी में पीएचडी और मिलेट प्रसंस्करण की मास्टर ट्रेनर हैं. जिन्होंने अपनी जिंदगी महिलाओं को सशक्त बनाने और मिलेट्स के महत्व को प्रचारित करने में समर्पित कर दी है.
मिलेट दीदी ने 2,000 महिलाओं को दिया पशिक्षण: पूजा ने किसी निजी नौकरी में न जाकर, अपना पूरा समय इस मिशन को समर्पित किया है. वे स्वतंत्र रूप से ग्रामीण इलाकों में मिलेट परियोजना पर काम कर रही हैं. अब तक वे लगभग 2,000 महिलाओं को बिहार-झारखंड में मिलेट प्रसंस्करण और उद्यमिता का प्रशिक्षण दे चुकी हैं. उनके प्रशिक्षण में महिलाएं कुकीज, बन, लड्डू, ब्रेड, ठेकुआ, पापड़ और मिक्सचर जैसे पौष्टिक और बाजार में बिकने वाले उत्पाद बनाना सीखती हैं.
मिलेट मिशन से महिलाएं बन रही आत्मनिर्भर: इस पहल के माध्यम से वो महिलाओं को केवल अपने परिवार के स्वास्थ्य में सुधार करने का तरीका ही नहीं, बल्कि छोटे व्यवसाय शुरू करने और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने का भी अवसर प्रदान कर रही हैं. ट्रेनिंग ले रही महिला रश्मि कुमारी ने बताया कि ग्रामीण बिहार में महिलाएं सीमित नौकरी के अवसरों और सामाजिक बंधनों के कारण अनेक चुनौतियों का सामना करती हैं. वहीं ये मिशन महिलाओं के लिए आत्मनिर्भरता की राह खोल सकता है. उन्हें इस वर्कशॉप में बहुत कुछ सीखने को मिलता अब वो रागी से कई तरह के व्यंजन बना सकती हैं.
"पहले हमें मिलेट से मिलने वाले पोषक तत्वों के बारे में ज्यादा मालूम नहीं था. हालांकि मिलेट मिशन के तहत हमने इससे बहुत कुछ बनाना सीखा है और अब हमें इससे मिलने वाले हेल्थ लाभ के बारे में पता है." -रश्मि कुमारी, ट्रेंनिग ले रही युवती
ग्रामीण महिलाओं को देती हैं पशिक्षण: बता दें कि पूजा का मिशन आसान नहीं है. वे सबसे दूरस्थ और वंचित गांवों में जाकर काम करती हैं. उनक वर्कशॉप अक्सर साधारण सामुदायिक हॉलों या खुले आसमान के नीचे आयोजित होता है. इनमें वे मिलेट्स के स्वास्थ्य लाभ और इससे जुड़े आर्थिक अवसरों के बारे में जागरूकता फैलाती हैं. वहीं इन ग्रामीण क्षेत्रों में चुनौतिया कई है. कई महिलाएं पारंपरिक पूर्वाग्रहों, शिक्षा की कमी और घरेलू जिम्मेदारियों के कारण प्रशिक्षण में भाग लेने से हिचकिचाती हैं.
पूजा कर रही महिलाओं को सशक्त बनाने की कोशिश: पूजा कहती हैं कि कुछ महिलाएं केवल नोटबुक या भोजन जैसी सामग्री लाभ के लिए वर्कशॉप में आती हैं. इन बाधाओं के बावजूद पूजा सभी महिलाओं में आत्मविश्वास और आशा जगाने की कोशिश करती हैं. डॉ. पूजा का सपना केवल बिहार तक सीमित नहीं है. वे अपने प्रयासों को पूरे भारत में विस्तारित करना चाहती हैं. वो खास तौर पर पिछड़े क्षेत्रों की महिलाओं को सशक्त बनाने की सबसे अधिक कोशिश कर रही हैं.
मिलेट खाने से मिलेगा ये लाभ: मिलेट के कई स्वास्थ्य लाभ हैं, जिनमें आपके ब्लड शुगर और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करना शामिल है. वे ग्लूटेन फ्री भी हैं, इसलिए सीलिएक रोग या ग्लूटेन संवेदनशीलता वाले लोग भी इसका आनंद ले सकते हैं.
मिलेट देता है सतत कृषि को बढ़ावा: पूजा का काम सतत विकास, स्वास्थ्य सुधार और महिला सशक्तिकरण के व्यापक लक्ष्यों के साथ मेल खाता है. मिलेट्स जो सूखा प्रतिरोधी और पौष्टिक होते हैं, वो सतत कृषि को भी बढ़ावा देते हैं. पूजा अपनी मेहनत और लगन से महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए काम कर रही हैं. वो सरकार, एनजीओ और निजी संगठनों से अधिक समर्थन की मांग करती हैं.
“महिलाओं को सशक्त बनाना केवल उन्हें कौशल सिखाने के बारे में नहीं है, यह उन्हें सपने देखने और उन सपनों को पूरा करने के उपकरण देने के बारे में है. हर प्रशिक्षण, हर उत्पाद और हर कहानी में यह साबित होता है कि जब महिलाएं परिवर्तन की अगुवाई करती हैं, तो बदलाव जरूर होता है."-डॉ. पूजा, मिलेट दीदी
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