रांची: हेमंत सोरेन सरकार की नजर में मंईयां सम्मान योजना की क्या अहमियत है, इसकी झलक 6 जनवरी को पूरा देश देख चुका है. नामकुम के खोजाटोली में आयोजित कार्यक्रम में सीएम हेमंत सोरेन ने लाभुक महिलाओं के बीच 2500 रु ट्रांसफर करते हुए फूलों की बारिश की थी. उन्होंने 'जो कहा, सो किया, अब हर बहना को हर साल 30 हजार रुपए' का नारा भी दिया था. लेकिन अब इस योजना का साइड इफेक्ट भी दिखने लगा है. इसकी वजह से झारखंड के सभी सरकारी स्कूलों में मिड डे मील वितरण पर खतरा मंडराने लगा है.
यह कहां का इंसाफ-रसोइया संघ
झारखंड राज्य विद्यालय रसोइया संघ का कहना है कि एक तरफ राज्य सरकार 18 साल से 50 साल तक की महिलाओं को घर बैठे 2500 रुपए प्रतिमाह दे रही है. वहीं सभी सरकारी स्कूलों में कक्षा 1 से 8वीं तक के बच्चों को मिड मील पकाने से लेकर खिलाने तक का काम करने वाली रसोइया को मानदेय के रूप में सिर्फ 2000 रुपए दिए जा रहे हैं. 'यह कहां का इंसाफ है'.
मंईयां को सम्मान और रसोइया का अपमान- संघ
संघ की प्रदेश महासचिव गीता मंडल और प्रदेश सचिव मनोज कुमार कुशवाहा ने ईटीवी भारत को बताया है कि विधानसभा चुनाव के ठीक पहले रसोइयों के मानदेय को 2000 रुपए से बढ़ाकर 3000 रुपए किया गया था. कैबिनेट में प्रस्ताव पारित भी हो चुका है. लेकिन आज तक इसको लागू नहीं किया गया. लिहाजा, उनकी तकलीफ पर गौर नहीं किया गया तो 'मिड डे मील सिस्टम संभाल रहीं सभी 81,000 रसोइया अपने पद से सामूहिक इस्तीफा देकर मंईयां सम्मान योजना के लिए आवेदन देंगी'.
रसोइया की समस्याओं का करें समाधान- संघ
संघ का कहना है कि स्कूलों में मिड डे मील को संचालित करने के लिए सभी रसोइयों को सुबह 8 बजे से काम पर लगना पड़ता है. बच्चों को खिलाने और बर्तन की साफ-सफाई करते शाम के 5 बज जाते हैं. नियम के मुताबिक 25 बच्चों पर एक रसोइया होनी चाहिए. लेकिन ज्यादातर स्कूलों में 3 से 4 रसोइया के कंधों पर 300 से ज्यादा बच्चों को मिड डे मील देने की जिम्मेदारी है. ऊपर से 60 साल की उम्र पूरा होते ही उनको काम से हटा दिया जाता है. रिक्त जगहों पर बहाली भी नहीं हो रही है. एमडीएम बनाने के दौरान किसी तरह की दुर्घटना होने पर दुर्घटना बीमा या मुआवजा देने की भी गारंटी नहीं है.
संयोजिका को मिलना चाहिए मानदेय- संघ
संघ का यह भी कहना है कि हर स्कूल में मिड डे मील व्यवस्था के संचालन के लिए संयोजिका को स्थानीय स्तर पर नामित किया जाता है. लेकिन संयोजिका को मानदेय के रूप में फूटी कौड़ी भी नहीं दी जाती है. संघ के प्रदेश सचिव मनोज कुमार कुशवाहा का कहना है कि 24 फरवरी से झारखंड का बजट सत्र शुरु होने जा रहा है. इस दौरान सरकार को रसोइया की समस्याओं से दोबारा अवगत कराने की कोशिश की जाएगी. अगर सरकार नहीं मानती है तो सभी रसोइयां काम छोड़कर मंईयां सम्मान योजना का आवेदन भरेंगी.
आपको बता दें कि 2021 तक रसोइया को मानदेय के रूप में 1500 रुपए मिलते थे. लगातार आंदोलन करने पर 2021 में मानदेय को बढ़ाकर 2000 रुपए किया गया. 2024 में चुनाव पूर्व मानदेय को 3000 रुपए करने का फैसला लिया जा चुका है, लेकिन अभी तक बढ़ी हुई राशि नहीं दी गई है. खास बात है कि मंईयां सम्मान योजना के तहत लाभुकों को 2500 रुपए प्रतिमाह के हिसाब से साल में 30,000 रुपए मिलेंगे. जबकि रसोइया को सिर्फ 10 माह का मानदेय मिलता है. उन्हे काम करने के बावजूद एक साल में सिर्फ 20,000 रुपए मिलते हैं. संघ की ओर से बताया गया कि जब मंईयां सम्मान योजना के तहत 1000 रुपए दिए जा रहे थे, तब कई रसोइयों ने अप्लाई किया था. उन्हें एक-माह के पैसे भी मिले. अब पैसे आने बंद हो गये. साथ ही मंईयां की सम्मान राशि 1000 रुपए से बढ़ाकर 2500 रुपए कर दी गई. लेकिन रसोइया बनकर वर्षों से नौनिहालों का पेट भरने के बावजूद उनकी तकलीफ नहीं सुनी गई.
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