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'प्राइवेट सिक्योरिटी' के हाथों में है दिल्ली के बड़े अस्पतालों की सुरक्षा, मेटल डिटेक्टर और CCTV से रखी जाती है नजर - Delhi hospitals Security

दिल्ली के बड़े अस्पतालों में मेटल डिटेक्टर व सीसीटीवी कैमरों की मदद से नजर रखी जाती है. इसके अलावा प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसियों के हजारों सुरक्षाकर्मी वहां की सुरक्षा में तैनात रहते हैं.

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Jul 16, 2024, 7:20 PM IST

Updated : Jul 17, 2024, 6:36 AM IST

नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली के एक बड़े अस्पताल जीटीबी में रविवार को गोली मारकर भर्ती मरीज की हत्या के बाद अन्य अस्पतालों की सुरक्षा व्यवस्था भी चर्चा में आ गई है. दिल्ली के अन्य बड़े अस्पतालों मसलन एम्स, सफदरजंग, लोकनायक और आरएमएल में किस तरह मरीज व अन्य लोगों को सुरक्षा दी जाती है एवं उन पर कैसे निगरानी रखी जाती है, यह चर्चा का विषय बन गया है.

प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसियों के जिम्मे है दिल्ली के बड़े अस्पतालों की सुरक्षा

दिल्ली के सभी बड़े सरकारी अस्पतालों में प्रतिदिन मरीजों की भारी भीड़ उमड़ती है. ऐसे में उनको नियंत्रित रखने के लिए सिक्योरिटी गार्ड्स बड़ी भूमिका निभाते हैं. सभी अस्पतालों में एक बात कॉमन है कि सभी की सुरक्षा व्यवस्था प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसीज के पास ही है. एम्स सुरक्षा विभाग से मिली जानकारी के अनुसार एम्स में सुरक्षा व्यवस्था के लिए 3200 सुरक्षाकर्मी आठ-आठ घंटे की तीन शिफ्ट में तैनात रहते हैं. हर वार्ड में करीब 12 गार्ड्स की ड्यूटी रहती है.

ड्यूटी के दौरान इन गार्ड्स का काम वार्ड में भर्ती मरीजों से मिलने आने वाले हर व्यक्ति की जांच करना होता है. तीमारदार का पास अस्पताल द्वारा जारी पास होना आवश्यक है. बिना पास के मरीज के पास किसी भी परिजन को प्रवेश नहीं दिया जाता है. इन गार्ड्स को हैंडल करने के लिए एम्स ने एक कर्नल रैंक के अधिकारी दिग्विजय सिंह को मुख्य सुरक्षा अधिकारी की पोस्ट पर तैनात किया है. इसके अलावा सेना से रिटायर्ड कई जवानों को सुपरवाइजर के तौर पर भी रखा गया है.

ये भी पढ़ें: 'पेशे से डेंट‍िस्‍ट थे पति, नहीं थी क‍िसी से दुश्‍मनी, दूसरे मरीज के भ्रम में मारी गोली', पत्‍नी का दावा

इनके साथ ही 2845 सीसीटीवी कैमरे भी एम्स में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए लगाए गए हैं. इसी तरह सफदरजंग अस्पताल में 1198 सुरक्षाकर्मी, आरएमएल अस्पताल में 478 और लोकनायक में 200 से ज्यादा सुरक्षाकर्मी दिन और रात के समय तैनात रहते हैं. इनमें महिला और पुरुष दोनों सुरक्षाकर्मी शामिल हैं.

अटेंडेंट के लिए जारी पास से ही मिलता है वार्ड में प्रवेश
इन सुरक्षा कर्मियों के ऊपर अस्पताल में भर्ती होने के लिए आने वाले मरीज, उनके तीमारदारों और ओपीडी में आने वाले मरीजों से लेकर अस्पताल में आने वाले हर व्यक्ति पर नजर रखने की जिम्मेदारी होती है. इन अस्पतालों के वार्ड में भर्ती मरीज के तीमारदारों को एक पास जारी किया जाता है. पास को दिखाने पर ही तीमारदार को वार्ड में अपने मरीज के पास जाने के लिए प्रवेश मिलता है. यह पास हर बार तीमारदार के वार्ड में जाने के दौरान सिक्योरिटी गार्ड द्वारा चेक किया जाता है.

पास न होने की स्थिति में सिक्योरिटी गार्ड तीमारदार को अंदर नहीं जाने देते, उसे बाहर भेज देते हैं. पास खो जाने पर भर्ती मरीज का रिकॉर्ड दिखाने पर दूसरा पास भी इश्यू किया जाता है. इसके अलावा मरीज से मिलने आने वालों के लिए सुबह और शाम दो बार मिलने का समय निर्धारित है. शाम को 4 से 6 और सुबह 8 से 10 बजे का समय मरीज के रिश्तेदारों के मिलने के लिए निर्धारित है.

ये भी पढ़ें: जीटीबी अस्पताल के डॉक्टरों और नर्सेज हड़ताल पर, चरमरायी स्वास्थ्य सेवा

इसी समय अवधि में आकर के कोई रिश्तेदार पास लेकर मरीज से मिल सकता है. इसके अलावा अस्पतालों के मुख्य द्वार पर आने वाले लोगों की मेटल डिटेक्टर से भी जांच की जाती है. जीटीबी अस्पताल आरडीए के अध्यक्ष डॉक्टर नितेश का कहना है कि लगभग सभी अस्पतालों में सुरक्षा जांच का मिलाजुला पैटर्न ही है.

लेकिन, अभी जीटीबी अस्पताल में गार्ड्स की कम संख्या होने वार्ड में आने वाले लोगों की सख्ती से जांच न करने की वजह से हत्या की घटना घटित हुई है. ज़ीटीबी में भी अन्य अस्पतालों की तरह ही गार्ड्स को सजग और उनकी संख्या बढ़ाने की जरूरत है. अगर अस्पताल में डॉक्टर, नर्स एवं अन्य कर्मचारी सुरक्षित महसूस नहीं करेंगे तो वे अपना 100 फ़ीसदी देकर मरीजों का इलाज नहीं कर पाएंगे.

ये भी पढ़ें: GTB में मरीज की हत्या के बाद भड़के डॉक्टर्स और नर्स हड़ताल पर; OPD सेवाएं ठप, इमरजेंसी आज रहेगी चालू, कल से बंद

नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली के एक बड़े अस्पताल जीटीबी में रविवार को गोली मारकर भर्ती मरीज की हत्या के बाद अन्य अस्पतालों की सुरक्षा व्यवस्था भी चर्चा में आ गई है. दिल्ली के अन्य बड़े अस्पतालों मसलन एम्स, सफदरजंग, लोकनायक और आरएमएल में किस तरह मरीज व अन्य लोगों को सुरक्षा दी जाती है एवं उन पर कैसे निगरानी रखी जाती है, यह चर्चा का विषय बन गया है.

प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसियों के जिम्मे है दिल्ली के बड़े अस्पतालों की सुरक्षा

दिल्ली के सभी बड़े सरकारी अस्पतालों में प्रतिदिन मरीजों की भारी भीड़ उमड़ती है. ऐसे में उनको नियंत्रित रखने के लिए सिक्योरिटी गार्ड्स बड़ी भूमिका निभाते हैं. सभी अस्पतालों में एक बात कॉमन है कि सभी की सुरक्षा व्यवस्था प्राइवेट सिक्योरिटी एजेंसीज के पास ही है. एम्स सुरक्षा विभाग से मिली जानकारी के अनुसार एम्स में सुरक्षा व्यवस्था के लिए 3200 सुरक्षाकर्मी आठ-आठ घंटे की तीन शिफ्ट में तैनात रहते हैं. हर वार्ड में करीब 12 गार्ड्स की ड्यूटी रहती है.

ड्यूटी के दौरान इन गार्ड्स का काम वार्ड में भर्ती मरीजों से मिलने आने वाले हर व्यक्ति की जांच करना होता है. तीमारदार का पास अस्पताल द्वारा जारी पास होना आवश्यक है. बिना पास के मरीज के पास किसी भी परिजन को प्रवेश नहीं दिया जाता है. इन गार्ड्स को हैंडल करने के लिए एम्स ने एक कर्नल रैंक के अधिकारी दिग्विजय सिंह को मुख्य सुरक्षा अधिकारी की पोस्ट पर तैनात किया है. इसके अलावा सेना से रिटायर्ड कई जवानों को सुपरवाइजर के तौर पर भी रखा गया है.

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इनके साथ ही 2845 सीसीटीवी कैमरे भी एम्स में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए लगाए गए हैं. इसी तरह सफदरजंग अस्पताल में 1198 सुरक्षाकर्मी, आरएमएल अस्पताल में 478 और लोकनायक में 200 से ज्यादा सुरक्षाकर्मी दिन और रात के समय तैनात रहते हैं. इनमें महिला और पुरुष दोनों सुरक्षाकर्मी शामिल हैं.

अटेंडेंट के लिए जारी पास से ही मिलता है वार्ड में प्रवेश
इन सुरक्षा कर्मियों के ऊपर अस्पताल में भर्ती होने के लिए आने वाले मरीज, उनके तीमारदारों और ओपीडी में आने वाले मरीजों से लेकर अस्पताल में आने वाले हर व्यक्ति पर नजर रखने की जिम्मेदारी होती है. इन अस्पतालों के वार्ड में भर्ती मरीज के तीमारदारों को एक पास जारी किया जाता है. पास को दिखाने पर ही तीमारदार को वार्ड में अपने मरीज के पास जाने के लिए प्रवेश मिलता है. यह पास हर बार तीमारदार के वार्ड में जाने के दौरान सिक्योरिटी गार्ड द्वारा चेक किया जाता है.

पास न होने की स्थिति में सिक्योरिटी गार्ड तीमारदार को अंदर नहीं जाने देते, उसे बाहर भेज देते हैं. पास खो जाने पर भर्ती मरीज का रिकॉर्ड दिखाने पर दूसरा पास भी इश्यू किया जाता है. इसके अलावा मरीज से मिलने आने वालों के लिए सुबह और शाम दो बार मिलने का समय निर्धारित है. शाम को 4 से 6 और सुबह 8 से 10 बजे का समय मरीज के रिश्तेदारों के मिलने के लिए निर्धारित है.

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इसी समय अवधि में आकर के कोई रिश्तेदार पास लेकर मरीज से मिल सकता है. इसके अलावा अस्पतालों के मुख्य द्वार पर आने वाले लोगों की मेटल डिटेक्टर से भी जांच की जाती है. जीटीबी अस्पताल आरडीए के अध्यक्ष डॉक्टर नितेश का कहना है कि लगभग सभी अस्पतालों में सुरक्षा जांच का मिलाजुला पैटर्न ही है.

लेकिन, अभी जीटीबी अस्पताल में गार्ड्स की कम संख्या होने वार्ड में आने वाले लोगों की सख्ती से जांच न करने की वजह से हत्या की घटना घटित हुई है. ज़ीटीबी में भी अन्य अस्पतालों की तरह ही गार्ड्स को सजग और उनकी संख्या बढ़ाने की जरूरत है. अगर अस्पताल में डॉक्टर, नर्स एवं अन्य कर्मचारी सुरक्षित महसूस नहीं करेंगे तो वे अपना 100 फ़ीसदी देकर मरीजों का इलाज नहीं कर पाएंगे.

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Last Updated : Jul 17, 2024, 6:36 AM IST
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