लखनऊ : किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) में डाॅक्टर भर्ती मामले की जांच के लिए शासन ने तीन सदस्यीय जांच कमेटी गठित की गई थी. यह कमेटी आरक्षण के नियमों की अनदेखी के आरोपों की जांच करने के लिए बनाई गई थी. दो सप्ताह के भीतर कमेटी को जांच सौंपनी थी. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक कमेटी में शामिल सदस्यों ने उच्च अधिकारियों के दबाव से बचने के लिए पल्ला झाड़ लिया है. सदस्य कमेटी से बाहर हो गए हैं. जिसके चलते कमेटी की जांच ही पूरी नहीं हो पाई. अब फिर नए सिरे से कमेटी गठित की होगी.
बता दें कि केजीएमयू में 4000 बेड हैं. इनमें ज्यादातर बेड हमेशा भरे रहते हैं. प्रतिदिन ओपीडी में सात से आठ हजार मरीज आ रहे हैं. मरीजों के इलाज के लिए करीब 500 डॉक्टर हैं. इन पर मरीजों के इलाज शोध और मेडिकल छात्रों को पढ़ाने की जिम्मेदारी है. काम के हिसाब से डॉक्टरों की कमी है. डॉक्टरों के खाली पदों को भरने की कवायद शुरू की गई. गुजरे साल जुलाई में 141 पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला गया था. इसके साथ ही आरक्षण और रोस्टर को लेकर विवाद शुरू हो गया. आरोप है कि विज्ञापन में आरक्षित पदों को बैकलॉग से भरने के बजाय सामान्य रूप से भरा जा रहा है. इसकी वजह से आरक्षित वर्ग के हितों की अनदेखी हो रही है. विधानसभा सत्र के दौरान यह मामला विधानसभा में उठा था. इसके बाद साक्षात्कार के बावजूद लिफाफे नहीं खोले गए. सांसद ब्रजलाल के पत्र पर डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने जांच के आदेश दिया था.
बीते पांच फरवरी को डिप्टी सीएम के आदेश के बाद चिकित्सा शिक्षा विभाग के सचिव पवन कुमार ने भर्ती मामले की जांच के लिए कमेटी गठित कर दी थी. इसमें चिकित्सा शिक्षा विभाग की महानिदेशक को अध्यक्ष बनाया गया था. जबकि लोहिया संस्थान की एक्जीक्यूटिव रजिस्ट्रार डॉ. ज्योत्सना अग्रवाल और लोहिया संस्थान में पैथोलॉजी विभाग की डॉ. निधि आनंद को सदस्य नियुक्त किया गया था. वहीं इस पूरे मामले को लेकर केजीएमयू के प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह ने कुछ बोलने से इनकार कर दिया.
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