रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव से ठीक पहले सिंगापुर की कंपनी मैनहर्ट का वह जिन्न बाहर आ गया है, जिसे विधायक सरयू राय वर्षों से कानून की बोतल में बंद करने की कोशिश करते आ रहे हैं. मैनहर्ट कंपनी ने सरयू राय के खिलाफ रांची के सिविल कोर्ट में 100 करोड़ की मानहानि का दावा करते हुए मुकदमा दायर किया है. याचिका में कहा गया है कि सरयू राय, मेसर्स मैनहर्ट सिंगापुर प्रा.लि. कंपनी की छवि धूमिल कर रहे हैं. पूरा मामला वर्ष 2005-06 में रांची के सीवरेज-ड्रेनेज से जुड़ा है.
इस मामले पर सरयू राय ने कहा है कि वह मुकदमे का मुंहतोड़ जवाब देंगे. कंपनी ने मुझे एक मौका दिया है कि झारखंड में राज्यहित और जनहित के विरुद्ध काम करने वालों के चेहरे से नकाब हटा सकूं. इस बारे में सरयू राय ने ईटीवी भारत को बताया कि उन्हें खुशी है कि उन्हें इस साजिश को बेनकाब करने का मौका मिला है. उन्होंने बताया कि इस मामले में 11 जुलाई को डोरंडा थाना में प्राथमिकी का आवेदन दिया था. थाने में प्राथमिकी भी दर्ज हो गई है. उनसे पूछा गया कि इतने वर्षों बाद मैनहर्ट कंपनी द्वारा मानहानि का मुकदमा दायर करने के पीछे क्या मकसद हो सकता है. जवाब में उन्होंने कहा कि कारण कई हो सकते हैं. फिलहाल वह इसे एक बड़ी साजिश पर से पर्दा उठाने के अवसर के रूप में देख रहे हैं.
इस मसले पर मैनहर्ट कंपनी के वेबसाइट पर दर्ज भारत के बेंगलुरु, चेन्नई और नोएडा ऑफिस के लैंडलाइन नंबरों पर संपर्क करने की कोशिश की गई. लेकिन कहीं भी फोन कनेक्ट नहीं हुआ. आपको बता दें कि मैनहर्ट कंपनी का कॉर्पोरेट ऑफिस सिंगापुर में है. यह कंपनी अलग-अलग सेक्टर के लिए प्लान और डिजाइन तैयार करती है. इसका कारोबार साउथ ईस्ट एशिया, यूरोप, मिडिल ईस्ट, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और साउथ एशिया में फैला हुआ है.
वरिष्ठ पत्रकार मधुकर के मुताबिक पूरे मामले में सिर्फ और सिर्फ राजनीति हो रही है. दूसरी बात यह है कि रघुवर दास और सरयू राय की कभी नहीं बनी. क्योंकि सरयू राय इस मामले को हमेशा उठाते रहे हैं. फिर भी मजबूरी में रघुवर दास ने 2014 में बनी सरकार में सरयू राय को मंत्री बनाया था. इस मामले की जांच के लिए विधानसभा की कमेटी भी बनी लेकिन निष्कर्ष नहीं निकला. किसी भी सरकार ने इस मामले में जानबूझ कर कार्रवाई नहीं की. यह विवाद इस कदर बढ़ा कि 2019 में सरयू राय को टिकट नहीं मिला. भाजपा ने उनके लिए दरवाजे बंद कर लिए. लेकिन अब सरयू राय जदयू में शामिल होकर बैकडोर से एनडीए के फोल्डर में आ गये हैं. अब उनको रोकने के लिए भाजपा के पास भी विकल्प नहीं बचा है. क्योंकि मौजूदा हालात में नीतीश कुमार भाजपा की जरुरत हैं. ऐसे में कंपनी द्वारा अचानक सामने आकर मानहानि का दावा ठोकना, बताता है कि कुछ खिचड़ी पक रही है. लिहाजा, पूरा मामला राजनीति से जुड़ा है.
मैनहर्ट ने सरयू पर क्यों ठोका है मानहानि का दावा
कंपनी की दलील रही है कि साल 2005-06 में रांची में सीवरेज-ड्रेनेज की कंसल्टेंसी तय करने के लिए कैबिनेट और सक्षम स्तर पर फैसले लिए गये थे. शुरू में ओआरजी कंपनी को यह काम मिला था. उस कंपनी का काम संतोषप्रद नहीं होने पर कार्यादेश निरस्त कर मैनहर्ट को काम दिया गया था. लेकिन सरयू राय बार-बार झूठे आरोप लगाकर विवाद पैदा करते रहे. इसकी जांच विभाग और एक्सपर्ट कमेटी के स्तर से भी हुई. महाधिवक्ता ने भी अपना मंतव्य दिया. विधानसभा की एक कमेटी ने भी जांच की. बाद में कमेटी की रिपोर्ट और हाईकोर्ट के फैसले के बाद सरकार ने मैनहर्ट को काम करने और भुगतान का निर्देश दिया.
मैनहर्ट पर सरयू राय का क्या है आरोप
मैनहर्ट कंपनी ने याचिका में जिन बातों का जिक्र किया है, उन बातों का जिक्र करते हुए सरयू राय कहते रहे हैं कि गलत तरीके से मैनहर्ट को ना सिर्फ परामर्शी बनाया गया बल्कि भुगतान भी कर दिया गया. उन्होंने इसके लिए तत्कालीन सरकार के नगर विकास विभाग के मंत्री पर मिलीभगत के आरोप लगाए. वह इस मामले को लेकर हाईकोर्ट भी गये. उनकी रिट याचिका संख्या W.P.(C.r.) No. 376/2022 को हाईकोर्ट ने खारिज करते हुए किसी पुलिस थाना में प्राथमिकी दायर करने या किसी सक्षम कोर्ट में मुकदमा दायर करने को कहा.
मैनहर्ट के खिलाफ डोरंडा थाने में FIR का आवेदन
झारखंड हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए सरयू राय ने 11 जुलाई 2024 को रांची के डोरंडा थाना में प्राथमिकी दर्ज करने का आवेदन भी दिया. उन्होंने विस्तार से आरोपों को पेश किया है-
- रांची में सीवरेज-ड्रेनेज के लिए परामर्शी चयन की निविदा विश्व बैंक की QBS (क्वालिटी बेस्ड सिस्टम) पर आमंत्रित की गई. इस सिस्टम में वित्तीय दर में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होती है. तकनीकी दृष्टि से उत्कृष्ट निविदादाता का ही लिफाफा खुलता है.
- मूल्यांकन में सभी निविदादाता अयोग्य पाए गये. विभाग के सचिव ने दिनांक 12.08.2005 को प्रस्ताव दिया कि निविदा को रद्द कर QCBS (क्वालिटी एंड कॉस्ट बेस्ड सिस्टम) पर निविदा निकाली. विभागीय मंत्री ने प्रस्ताव खारिज कर दिया और 17.08.2005 को इसी निविदा के आधार पर आगे की कार्रवाई करने को कह दिया.
- उसी दिन निविदा शर्तों में बदलाव कर षडयंत्र के तहत मैनहर्ट को नियुक्त करने के लिए कह दिया गया.
- परिवर्तित शर्तों पर निविदा का मूल्यांकन आरंभ हुआ तो निविदा में अंकित योग्यता की शर्त पर मैनहर्ट अयोग्य हो गया. फिर भी मूल्यांकन समिति को मजबूर किया गया.
- अयोग्य होने के बाद भी मैनहर्ट का तकनीकी लिफाफा खोला गया और मूल्यांकन में उसे तकनीकी पैमाना पर सर्वोत्कृष्ट घोषित कर दिया गया.
- तकनीकी रूप से सर्वोत्कृष्ट घोषित हो जाने के बाद केवल मैनहर्ट का ही वित्तीय लिफाफा खुला. निगरानी विभाग के तकनीकी परीक्षण कोषांग ने अपनी जांच में साबित कर दिया है कि किस भांति मैनहर्ट का चयन अधिक दर पर अनुचित तरीके से किया गया.
- मैनहर्ट की नियुक्ति में अनियमितता का मामला झारखंड विधानसभा में उठा. इसे लेकर तीन दिन तक (दिनांक 07.03.2006 से 09.03.2006 तक) विधान सभा बाधित रही. लेकिन विभागीय मंत्री ने सदन में झूठा वक्तव्य दिया.
- विधान सभा अध्यक्ष ने मैनहर्ट नियुक्ति प्रकरण की जांच के लिए विधान सभा की विशेष समिति गठित कर दी. लेकिन समिति के समक्ष नगर विकास विभाग ने प्रासंगिक दस्तावेज नहीं रखा.
- विधान सभा की विशेष जांच समिति की अनुशंसा पर नगर विकास विभाग के ही एक अन्य अंग ‘आरआरडीए’ के मुख्य अभियंता के को-ऑर्डिनेशन में तीन सदस्यीय तकनीकी समिति गठित कर दी. एक साजिश के तहत समिति ने मैनहर्ट की नियुक्ति को सही ठहरा दिया.
- फिर विधानसभा की कार्यान्वयन समिति ने मामले की गहन जांच की और पाया कि मैनहर्ट की नियुक्ति अवैध है. समिति ने मैनहर्ट को दिये गये कार्यादेश को रद्द करने की अनुशंसा की.
- कार्यान्वयन समिति की अनुशंसाओं की जांच पांच अभियंता प्रमुखों की टीम ने की. सभी ने माना कि निविदा की शर्तों के तकनीकी आधार पर मैनहर्ट अयोग्य था.
- निगरानी विभाग के तत्कालीन आरक्षी निरीक्षक एमवी राव ने जांच की अनुमति के लिए निगरानी आयुक्त रहीं राजबाला वर्मा को पांच पत्र लिखे. लेकिन जांच की स्वीकृति नहीं मिली.
- निगरानी आयुक्त राजबाला वर्मा ने निगरानी ब्यूरो की जगह निगरानी विभाग के तकनीकी परीक्षण कोषांग को जांच का आदेश दिया. कोषांग ने मैनहर्ट की नियुक्ति में पक्षपात साबित कर दिया और मैनहर्ट को अयोग्य बताया.
- मैनहर्ट ने निविदा के साथ ‘बिंटान रिसोर्ट’ के जिस लेटर पैड पर 2005 में अनुभव प्रमाण पत्र दिया गया था, उस लेटर पैड का उपयोग वर्ष 2000 से ही कंपनी ने बंद कर दिया था.
- अवैध रूप से नियुक्त किए जाने के बाद सरकार, रांची नगर निगम और मैनहर्ट के बीच ऐसा त्रुटिपूर्ण समझौता हुआ, जिसके कारण मैनहर्ट पूरा भुगतान लेकर और काम अधूरा छोड़ कर निकल गया.
- विधानसभा में सरयू राय के प्रश्न के उत्तर में 23.02.2020 को सरकार ने स्वीकार किया कि इस बारे में भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा पीई दर्ज की गई है. फिर भी कार्रवाई लंबित है.
सरयू राय इस मामले को लेकर इस कदर गंभीर रहे हैं कि उन्होंने अपनी पुस्तक 'लम्हों की ख़ता' में पूरे घटनाक्रम का जिक्र किया है. अब कंपनी के सामने आने से निकट भविष्य में तमाम सवालों के जवाब मिलने का आसार जग गये हैं. क्योंकि सरयू राय का दावा है कि उनके पास सच साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत मौजूद है.
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