वाराणसी : कहते हैं काशी के कण-कण में शंकर हैं. बात सावन में काशी की हो तो इस शहर और यहां मौजूद शिवालयों की महिमा और भी ज्यादा बढ़ जाती है. यूं तो काशी में अनेक शिवालय हैं जिनकी अपनी अलग मान्यताएं हैं, लेकिन इनमें एक अनोखा शिवालय भी है. जिसकी अपनी अलग कहानी है. यह शिवालय भिक्षा लेने के साथ तैयार किया गया. बड़ी बात यह है कि यहां पर बाबा को मिठाई नहीं बल्कि दवाई का भोग लगाया जाता है.
जी हां, वाराणसी के काशी हिंदू विश्वविद्यालय के आयुर्वेद संकाय के रस शास्त्र विभाग में यह शिवालय मौजूद है. जिसका नाम है रसेश्वर महादेव मंदिर. यह मंदिर इसलिए बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. यहीं पर साधना के जरिए आयुर्वेद संकाय में तमाम दवाइयों को तैयार किया जाता है और जन सामान्य के लिए उपलब्ध कराया जाता है. खास बात यह है कि इन दवाओं को तैयार करने से पहले और तैयार करने के बाद प्रभु को यहां भोग लगाने की परंपरा है.
भिक्षाटन के साथ हुआ मंदिर निर्माण : इस बारे में मंदिर को तैयार करने वाले रस शास्त्र विभाग के प्रोफेसर आनंद चौधरी बताते हैं कि रस शास्त्र में भगवान भोलेनाथ की साधना का विशेष महत्व है. हम जब भी भस्म या कोई दवाई तैयार करते हैं तो सबसे पहले भोलेनाथ को अर्पित करते हैं और इसी परंपरा का हम लगातार निर्वहन करते आए हैं. इसी क्रम में जब रस शास्त्र विभाग स्थापित किया गया तो यहां पर रसेश्वर महादेव को भी स्थापित किया गया, इनके स्थापना मालवीय वृति के अनुसार भिक्षाटन लेने के साथ की गई है.
मंदिर में दवाइयों का भगवान को लगता है भोग : वह कहते हैं कि, इस विभाग में जो भी औषधि तैयार की जाती है उसे सबसे पहले भगवान भोलेनाथ और उसके बाद भगवान धन्वंतरि को समर्पित किया जाता है. रसेश्वर महादेव व्याधि और रोगों को दूर करने के देवता हैं और हम यह प्रार्थना करते हैं कि हम जिन भी व्याधियों को दूर करने के लिए इस अनुष्ठान को शुरू करने जा रहे हैं यह उन्हें संपन्न करें और वर्तमान समय में भी हम इसी मान्यता को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि कोविड के समय में भी जब देश में महामारी फैली हुई थी तो उस दौरान भी हम लोगों ने जो काढ़ा बनाया था. उसे भी सबसे पहले भोलेनाथ को समर्पित किया था जिसने लोगों को जीवनदान देने का काम किया था.
मंदिर का परिसर है ओपन लाइब्रेरी : वह बताते हैं कि, इस मंदिर परिसर का भी अपना अलग महत्व है. यह परिसर विद्यार्थियों के लिए एक ओपन लाइब्रेरी की तरह है, जहां 24 घंटे प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले विद्यार्थी आकर पढ़ाई करते हैं. यहां का शांत वातावरण और यहां की सकारात्मक ऊर्जा विद्यार्थियों को पढ़ने की प्रेरणा भी देती है. बड़ी बात यह है की तैयारी करने वाले युवाओं में एक लंबी संख्या उन युवाओं की भी है, जो यहां तैयारी करके किसी न किसी प्रतियोगी परीक्षा को पास कर वर्तमान समय में नौकरी कर रहे हैं.
छात्रा ने अपनी दवाइयों को किया अर्पित : वहीं इस दौरान भगवान विशेश्वर को अपनी औषधि अर्पित करने आई विभाग की शोध छात्रा वैशाली गुप्ता ने बताया कि, हम एक नए क्रीम पर शोध करने जा रहे हैं. इसे लेकर के आज हम भगवान को वह अर्पित करने आए हैं, ताकि हमारे शोध में किसी तरीके के दिक्कत ना हो और जब यह क्रीम तैयार हो जाएगी तो हम फिर इसे बनाने के बाद भी भगवान को इसे अर्पित करेंगे. उन्होंने बताया कि इसके अतिरिक्त अलग-अलग भस्म, चूर्ण, काढ़ा व अन्य दवाइयों का भोग प्रभु को लगाया जाता है.
बेहद पुराना है विश्वविद्यालय का आयुर्वेद संकाय : गौरतलब है कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय का आयुर्वेद चिकित्सा संस्थान बेहद प्राचीन चिकित्सा संस्थान माना जाता है. 1922 में महामना ने आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को आगे बढ़ाने के लिए इस संकाय की स्थापना की थी. पुराने भवन में पहले से मौजूद शिव मंदिर में इन भस्म को चढ़ाए जाने की परंपरा थी, लेकिन जब 2012 में इस विभाग को दूसरी जगह शिफ्ट किया गया तो वहां प्रभु की साधना के लिए 2016 में इस मंदिर का निर्माण कराया गया है. जहां आज भी कोई सामान्य कर्मकांड नहीं किया जाता, बल्कि औषधीय के लिए प्रभु की साधना की जाती है.