लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा यूपी मदरसा बोर्ड एक्ट 2004 को असंवैधानिक करार देने के बाद राजधानी के मुस्लिम धर्म गुरुओं ने मुसलमानों की शिक्षा और रोजगार पर गहरी चिंता व्यक्त की है. मौलानाओं ने कहा कि मदरसों में सिर्फ धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाती, बल्कि सभी विषय की पढ़ाई होती है.
मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस-आईपीएस भी बनते हैं. मदरसों के बच्चे हर कंप्टीशन में भाग ले रहे हैं और सफल भी हो रहे हैं. ऐसे में इस एक्ट को असंवैधानिक करार देने के बाद मुस्लिम समुदाय में शिक्षा और रोजगार पर बहुत असर पड़ेगा.
इस्लामिक सेंटर के चेयरमैन और ऐशबाग ईदगाह के इमाम मौलाना खालिद रशीद ने कहा कि मदरसों के अलावा सरकार कई अन्य समुदाय की संस्थाओं को ग्रांट देती है, जिसमें वो अपनी भाषा और कल्चर पर खर्च करते हैं. मदरसा एक्ट को खत्म करना ठीक नहीं होगा.
आर्टिकल 30 के अनुसार हम लोगों को धार्मिक और अपने कल्चर को बढ़ाने और मेंटेन करने की आजादी है. मदरसों के अलावा सरकार दूसरे मजहबी इदारों, पाठशाला, विद्यापीठ में भी ग्रांट देती है. ऐसे में मदरसा बोर्ड एक्ट को खत्म करने से शिक्षा में रुकावट पैदा होगी.
मदरसों में पढ़े हुए बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस आईपीएस अफसर समेत विभिन्न क्षेत्रों में अहम भूमिका निभा रहे हैं. इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया जाएगा. वहीं मुफ्ती इरफान मियां फिरंगी महली ने बताया कि हाईकोर्ट के आदेश से मुस्लिम समुदाय को बड़ा झटका लगा है. मदरसों में लाखों बच्चे पढ़ते हैं, हजारों शिक्षक पढ़ाते हैं. ऐसे में शिक्षा के साथ रोजगार पर भी गहरा असर पड़ेगा.
यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पारित एक कानून था, जो राज्य में मदरसों की शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए बनाया गया था. इस कानून के तहत, मदरसों को बोर्ड से मान्यता प्राप्त करने के लिए कुछ न्यूनतम मानकों को पूरा करना आवश्यक था. बोर्ड मदरसों को पाठ्यक्रम, शिक्षण सामग्री, और शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए भी दिशा निर्देश प्रदान करता था.
यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 के उद्देश्यों में मदरसों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना, मदरसों को आधुनिक शिक्षा प्रणाली से जोड़ना और मदरसा छात्रों को रोजगार के बेहतर अवसर प्रदान करना है.
हालांकि, इस कानून को लेकर कुछ आलोचनाएं भी थीं. जैसे कुछ लोगों का मानना था कि यह कानून मदरसों की स्वायत्तता को कम करता है, कुछ लोगों का मानना था कि यह कानून मदरसों को धर्मनिरपेक्ष शिक्षा प्रदान करने से रोकता है. अब इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट इस कानून असवैंधानिक बताते हुए रद्द कर दिया है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट डबल बेंच के फैसले के बाद अब सभी अनुदानित मदरसे के अनुदान यानी सरकार की तरफ से मिलने वाली सहायता राशि बंद हो जाएगी और अनुदानित मदरसे खत्म हो जाएंगे. जांच में पाया गया है कि सरकार के पैसे से मदरसों से धार्मिक शिक्षा दी जा रही थी. कोर्ट ने इसे धर्मनिरपेक्षता के बुनियादी सिद्धांतों के विपरीत माना है.
ये भी पढ़ेंः इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला- यूपी मदरसा बोर्ड कानून असंवैधानिक