जोधपुर : मारवाड़ में इन दिनों पोलो चल रहा है, जिसमें देश दुनिया के बड़े नाम भाग ले रहे हैं. इस खेल में मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों का उपयोग नहीं के बराबर हो रहा है. इतनी उन्नत नस्ल होने के बावजूद खेल से दूरी की वजह है इनका गर्म स्वभाव और ट्रेनर की कमी. इसके चलते विदेशी थोरोब्रिड नस्ल के घोड़े ज्यादा उपयोग में आते हैं. दोनो नस्लों की तुलना की जाए तो मारवाड़ी नस्ल का कोई सानी नहीं है. जोधपुर व आस पास के क्षेत्रों में इस नस्ल को संरक्षित किया जा रहा है. इतना ही नहीं यह घोड़े अब एक्सपोर्ट भी हो रहे हैं, लेकिन भारत में खेलों में इनका उपयोग बहुत कम हो रहा है. जोधपुर हॉर्स क्लब के कोषाध्यक्ष और ऑल इंडिया मारवाड़ी हॉर्स सोसाइटी के सदस्य प्रशांत कच्छवाह का कहना है कि मारवाड़ी हॉर्स एंड्रूस रेस सहित अन्य स्पोर्ट्स एक्टिविटीज में शामिल हो रहे हैं. रेस में थोरोब्रीड को पछाड़ रहे हैं. पोलो के लिए विशिष्ट ट्रेनर होने पर इनका उपयोग हो सकेगा.
गर्म स्वभाव के चलते उपयोग नहीं करते : देश के जाने माने पोलो प्लेयर सिमरन शेरगिल बताते हैं कि मारवाड़ी नस्ल का घोड़ा काफी अच्छा होता है, लेकिन उसका स्वभाव काफी गर्म होता है, इसलिए पोलो में उपयोग नहीं करते हैं. पोलो के लिए अर्जेंटीना सहित अन्य जगह से थोरोब्रीड नस्ल के घोड़े मंगवाते हैं. शेरगिल ने बताया कि वह खुद 20 साल से जोधपुर में पोलो खेलने आ रहे हैं. यहां पोलो को लेकर बहुत संभावनाएं हैं. जानकारों का कहना है कि पोलो का एक चक्कर 7 मिनट का होता है. मारवाड़ी हॉर्स बहुत तेजी से हाइपर होता हैं. ऐसे में सात मिनट में उसे नियंत्रित करना आसान नहीं होता है, जबकि थोरोब्रीड कोल्ड ब्लड का होने से आसानी से नियंत्रित होता है.
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मारवाड़ी नस्ल के घोड़े की विशेषता : मारवाड़ी घोड़े की पहचान इनके कानों से होती है. इनके कान अंदर की ओर मुड़े होते हैं. कुछ के तो कान इतने मुड़े हुए होते हैं कि उनके सिरे एक दूसरे को टच करते हैं. पतले पैर, मजबूत खुर की वजह से यह तेज रफ्तार से दूरी तय करते हैं. इनकी कंधे की हड्डियां अन्य नस्लों की तुलना में कम तिरछी होती हैं. मारवाड़ी घोड़े वफ़ादारी, बहादुरी और समझदारी के लिए जाने जाते हैं. ज्यादातर इनका उपयोग हॉर्स राइडिंग के रूप में किया जाता है. हालांकि, आजकल कुछ स्पोर्ट्स एक्टिविटी में भी ये काम आने लगे हैं.
मालानी है मारवाड़ी नस्ल का घर : मारवाड़ी नस्ल का घोड़ा मालानी क्षेत्र का कहलाता है, जो मारवाड़ के बाड़मेर, जालौर सहित अन्य इलाकों तक फैला हुआ है. मारवाड़ी घोड़ों का मध्यकालीन के युद्ध क्षेत्रों में काफी उत्कृष्ट प्रदर्शन इतिहास में दर्ज है. इसके पैर व खुर की मजबूती से यह लंबी दूरी की यात्रा करने के लिए जाने जाते रहे हैं. मालानी नमक क्षेत्र के गांव नागर, गुढ़ा, जसोल, सिणधरी, बखासर, पोसाना, बड़गांव, दासपां और जालौर जिले की सांचोर तहसील के कुछ इलाके और उत्तरी गुजरात के कुछ क्षेत्र परंपरागत रूप से मारवाड़ी घोड़े का घर कहा जाता है. मारवाड़ी घोड़ों के शौकीन अन्य लोग इस नस्ल को उदयपुर, जयपुर, अजमेर और यहां तक कि गुजरात और काठियावाड़ और अन्य राज्यों में भी ले गए हैं. आजकल एक्सपोर्ट भी होने लगे हैं.
साहित्य में मारवाड़ी अश्व को जगह : राजस्थान के भाट साहित्य में मारवाड़ी घोड़ों की बहुत प्रशंसा की गई है. उनके वीरतापूर्ण कारनामों, हाथियों के हौदे पर छलांग लगाने और शहरों और किलों की ऊंची दीवारों को लांघने की कहानियां मिलती हैं. कुछ प्रसिद्ध घोड़े जैसे महाराणा प्रताप का 'चेतक', अमर सिंह राठौर का 'उदल', जो आगरा किले की दीवारों को लांघ गया, लोक देवता पाबूजी का 'केसर कलमी' और वीर दुर्गा दास का 'अर्बुद' का जिक्र इतिहास में दर्ज है.
हर साल होता है हॉर्स शो : जोधपुर हॉर्स क्लब के प्रशांत कच्छवाह बताते हैं कि मारवाड़ी नस्ल के घोड़े की बहुत डिमांड है. हम इनको ट्रेड करते हैं. लोगों में इनके प्रति आकर्षण बनाने के लिए हर साल जोधपुर में हॉर्स शो का आयोजन करते हैं. इसके अलावा राइडिंग के लिए भी युवाओं को प्रेरित करते हैं. अगर हमारे पास अच्छे ट्रेनर उपलब्ध हो जाएं तो इनका उपयोग भी धीरे धीरे खेलों में बढ़ सकता है.