रांची: पूर्व सीएम रघुवर दास ने अपने हालिया फैसले से झारखंड की राजनीति में एक ऐसी लकीर खींच दी है जिसे शायद ही कोई लांघ पाए. वह राज्य के पहले ऐसे शख्स हैं जिन्होंने पार्टी की सेवा का हवाला देकर राज्यपाल का पद छोड़ दिया. झारखंड के राजनीतिक गलियारे में उनके इस फैसले की खूब चर्चा हो रही है. लोग जानना चाह रहे हैं कि क्या कोई किसी पार्टी का दोबारा कार्यकर्ता बनने के लिए राज्यपाल का पद छोड़ सकता है. आखिर इसके क्या मायने हो सकते हैं. रघुवर दास के इस फैसले को राजनीति के जानकार किस रूप में देख रहे हैं?
वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्र का दो टूक कहना है कि रघुवर दास को प्रदेश भाजपा की कमान देने के लिए ही सारी कवायद की गई है. क्योंकि बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व की परीक्षा हो गई है. उनका यह भी कहना है कि बाबूलाल मरांडी को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी मिल सकती है. लेकिन वे नेता प्रतिपक्ष के रूप में प्रभावी साबित होंगे, इसपर भी संदेह है. क्योंकि इस पद के लिए विधायी कार्य का बारीक ज्ञान होना जरूरी है. बैजनाथ मिश्र के मुताबिक इस पद के लिए सी.पी. सिंह सबसे सटीक हैं लेकिन उन्हें यह जिम्मेदारी मिलेगी, ऐसा नहीं दिख रहा है. बहुत होगा तो सी.पी.सिंह को सचेतक या उपनेता बना दिया जाएगा.
यह पूछने पर कि सीएम रहते रघुवर दास के नेतृत्व में पार्टी की 2019 चुनाव में करारी हार हुई थी. फिर उनपर भरोसे की क्या वजह हो सकती है. इस पर वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्र का कहना है कि उस हार के पीछे सीएनटी एक्ट में संशोधन एक बड़ा कारण बना था. साथ ही प्रोजेक्ट भवन में कार्यकर्ताओं की एंट्री पर रोक लगाकर उन्होंने बड़ी नाराजगी मोल ली थी. फिलहाल, पार्टी के पास कोई विकल्प नहीं है. हेमंत सोरेन 40 प्रतिशत वोट बैंक साध चुके हैं. उनके पॉकेट में आदिवासी, मुस्लिम और ईसाई वोट बैंक है. इसको ओबीसी वोट बैंक से ही भाजपा काउंटर कर सकती है. इस काम को साधने के लिए रघुवर दास से बेहतर विकल्प कोई नहीं है.
बैजनाथ मिश्र का कहना है कि रघुवर दास एक स्ट्रॉंग प्रशासक हैं. बाबूलाल मरांडी की तुलना में मजबूत हैं. बाबूलाल मरांडी 14 साल तक जेवीएम बनाकर भाजपा को कोसते रहे हैं. लेकिन रघुवर ऑरिजिनल भाजपाई हैं. साफ है कि भाजपा को अब बैकवर्ड पॉलिटिक्स खेलना पड़ेगा. सारी कवायद इसी दिशा में चल रही है.
राज्यपाल से भाजपा कार्यकर्ता बने रघुवर
18 अक्टूबर 2023 को रघुवर दास ओडिशा के राज्यपाल नियुक्त किए गये थे. उन्होंने 31 अक्टूबर 2023 को ओडिशा के 26वें राज्यपाल के रूप में शपथ ली थी. 26 अक्टूबर 2023 को राज्यपाल पद की शपथ लेने से पूर्व पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मिलकर पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा सौंपा था. फिर 24 दिसंबर 2024 को राज्यपाल पद से इस्तीफा दे दिया. उसी दिन राष्ट्रपति ने इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया. उसी दिन से रघुवर के भाजपा में पुनर्वापसी की चर्चा तेज हो गई.
10 जनवरी को भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने के बाद रघुवर दास ने कहा था कि "हम फिर वापस आएंगे, वी विल कम बैक सून". उन्होंने भावुक लफ्जों में कहा था कि "अपने राज्य की भूमि पर अपनी भूमिका में वापस लौटकर ऐसा लग रहा है जैसे मां के आंचल तले वापस आए हों. राज्यपाल होना गरीमा की बात होती है लेकिन संगठन का दास होना गर्व की बात होती है".
रघुवर दास का पॉलिटिकल करियर
रघुवर दास 1995 से 2014 तक लगातार पांच बार जमशेदपुर पूर्वी सीट से विधानसभा चुनाव जीतते रहे हैं. 2019 में सीएम रहते सरयू राय से चुनाव हार गये थे. लेकिन 2024 में सक्रिय राजनीति से दूर रहने के बावजूद जमशेदपुर पूर्वी सीट पर उनकी बहू पूर्णिमा दास साहू की जीत हुई. यह बताता है कि इस सीट पर रघुवर दास की कितनी मजबूत पकड़ रही है. वह दो बार भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुके हैं. दो बार झारखंड भाजपा के अध्यक्ष के अलावा झारखंड में मंत्री, उपमुख्यमंत्री और पहला गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बनने का गौरव भी उन्हें प्राप्त है. वे पहले शख्स हैं जिन्होंने बकौल झारखंड के सीएम रूप में पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है. यह रिकॉर्ड आज तक कायम है.
रघुवर और बाबूलाल के बीच 14 का संयोग
बाबूलाल मरांडी और रघुवर दास के बीच 14 अंक का एक संयोग बैठा है. दोनों की पार्टी में दोबारा वापसी हुई है. फर्क इतना भर है कि बाबूलाल मरांडी को भाजपा में दोबारा आने में 14 साल लग गये तो रघुवर दास सिर्फ 14 माह में वापस आ गये. 2006 में बाबूलाल मरांडी ने भाजपा से नाता तोड़कर जेवीएम यानी झारखंड विकास मोर्चा बना लिया था. फिर 14 साल बाद फरवरी 2020 में अपनी पार्टी का भाजपा में विलय कराकर यहां तक कह दिया कि मैं तो कुतुब मीनार से कूद गया था लेकिन पार्टी ने बचा लिया. लेकिन दोनों की दोबारा वापसी में एक बड़ा अंतर दिखा है.
बाबूलाल मरांडी की वापसी कराने खुद अमित शाह रांची आए थे. प्रभात तारा मैदान में एक बड़ा कार्यक्रम हुआ था. लेकिन रघुवर दास की वापसी में ऐसा कुछ नहीं हुआ. अलबत्ता, वे करीब सवा घंटा विलंब से पार्टी की सदस्यता ग्रहण करने भाजपा ऑफिस पहुंचे थे.
रघुवर के नेतृत्व में पार्टी का कैसा रहा है परफॉर्मेंस
रघुवर दास दो बार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं. पहली बार जुलाई 2004 से मई 2005 तक पार्टी की कमान उनके हाथ में थी. झारखंड राज्य बनने के बाद पहला चुनाव फरवरी 2005 में हुआ था. 27 फरवरी 2005 को नतीजे घोषित हुए थे. उस वक्त प्रदेश भाजपा की कमान रघुवर दास के पास थी. उस चुनाव में भाजपा की 30 सीटों पर जीत हुई थी. जबकि एकीकृत बिहार में हुए साल 2000 के चुनाव में झारखंड क्षेत्र की 36 सीटों पर भाजपा की जीत हुई थी.
रघुवर दास को दूसरी बार 19 जनवरी 2009 से 25 सितंबर 2010 तक प्रदेश भाजपा की जिम्मेदारी मिली थी. लेकिन नवंबर-दिसंबर 2009 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सिर्फ 18 सीटें जीत पाई थी. इसी चुनाव में झामुमो ने 18 सीटों पर जीत के साथ भाजपा की बराबरी कर ली थी. 2019 में रघुवर दास के सीएम रहते पार्टी 25 सीटों पर सिमट गई थी.
आंकड़े बताते हैं कि रघुवर दास के नेतृत्व में पार्टी का परफॉर्मेंस अच्छा नहीं रहा है. लेकिन राजनीति के जानकारों का मानना है कि हार-जीत के पीछे कई कारण होते हैं. फिलहाल, भाजपा के पास रघुवर दास एकमात्र ऐसे नेता हैं जो सरकार को घेरने के लिए सड़क से सीएम आवास तक भीड़ मोबिलाइज करने की ताकत रखते हैं.
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