गिरिडीह: निरोग संतान के जन्म लेने पर एक पिता ने 3500 किमी पदयात्रा की दूरी तय की है. इतनी दूरी तय करने में उन्हें साढ़े पांच महीने का समय लगा. इस बीच उन्होंने बाबा अमरनाथ, मां वैष्णो देवी, श्रीराम जन्म भूमि अयोध्या, काशी एवं वृंदावन पहुंचकर भगवान के चरणों में मत्था टेका और फिर इसके बाद अपने घर वापस लौट आए. घर लौटने पर ग्रामीणों ने व्यक्ति का फूलमाला पहनाकर भव्य स्वागत किया. इसके बाद व्यक्ति ने घर में धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किया और फिर महाभंडारा का आयोजन किया, जिसमें सैकड़ों लोगों ने प्रसाद ग्रहण किया. जिस शख्स की बात की जा रही है उसका नाम विजय मंडल है और वह बगोदर के निकट स्थित बरांय पंचायत अंतर्गत नावाडीह गांव का रहने वाला है.
पिता ने बेटियों के लिए मांगी मन्नत
दरअसल विजय मंडल की चार बेटियां है. इस बीच उनके तीन बेटों का भी जन्म हुआ लेकिन जन्म लेने के ठीक दो साल बाद ही दिव्यांग हो जाता था और फिर चार साल के अंदर उनकी मौत हो जाती थी. एक दिव्यांग बेटा का तो उन्होंने वेल्लोर में इलाज कराया. जहां इलाज के दौरान ही उनकी भी मौत हो गई थी. यह सब देखते हुए डाक्टरों ने उन्हें कह दिया था कि अब आपको अपनी बेटियों को ही बेटा मानना है. बतौर विजय मंडल बताते हैं कि सावन महीने में जब रक्षाबंधन का त्योहार आता था और उनकी बेटियों को अपने भाई की कलाई में राखी बांधने का मलाल खटकता था तो उन्हें बहुत तकलीफ होती थी.
निरोग संतान होने के बाद शुरू की पदयात्रा
इसके चलते उन्होंने एक दिन नदी में स्नान करते हुए भगवान से मन्नतें मांगी कि अगर निरोग बेटे का जन्म होता है तब वे सुल्तानगंज से बाबा अमरनाथ तक का पदयात्रा करेंगे. इस बीच उन्हें बेटे की प्राप्ति भी हुई और जब बेटा सात साल का हो गया और पूरी तरह से चंगा देखा तब उन्होंने अपनी मन्नतें पूरी करने के लिए पदयात्रा पर निकल पड़े. उन्होंने इसी साल के फरवरी महीने में सुल्तानगंज से जल उठाकर पदयात्रा के लिए निकल पड़े थे. इस बीच उन्होंने बैष्णो देवी, बाबा अमरनाथ, अयोध्या, काशी एवं वृंदावन तक की पदयात्रा की और फिर मंदिरों में मत्था टेका.
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