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अब बिहार को टक्कर देगा UP, बढ़ेगी मखाने की पैदावार, फसल को पहली बार प्रमोट कर रही योगी सरकार, 25 किसान दरभंगा में लेंगे ट्रेनिंग - Makhana farming Yogi government - MAKHANA FARMING YOGI GOVERNMENT

बिहार के बाद अब यूपी में भी बड़े पैमाने पर मखाने की खेती होगी. योगी सरकार पहली बार इस फसल को प्रमोट कर रही है. इसके तहत किसानों कई तरह की सहूलियत मिल सकेगी. जल्द ही पूर्वांचल के जागरूक किसानों को ट्रेनिंग के लिए बिहार भेजा जाएगा.

यूपी के किसान बिहार जाकर जानेंगे मखाने की खेती का तरीका.
यूपी के किसान बिहार जाकर जानेंगे मखाने की खेती का तरीका. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 31, 2024, 9:09 AM IST

उद्यान विभाग किसानों को अनुदान की सुविधा देगा. (Video Credit; ETV Bharat)

वाराणसी : आमदनी बढ़ाकर तरक्की के रास्ते पर चलने के लिए किसान लगातार नए प्रयोग कर रहे हैं. गेहूं, चावल, सब्जी उगाने के साथ वह नई फसलों पर भी जोर दे रहे हैं. इसके लिए सरकार से भी उन्हें सहयोग मिल रहा है. इसकी वजह से कश्मीर और हिमाचल में होने वाली फसलें अब यूपी के खेतों में भी लहलहाने लगीं हैं. पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से जल्द ही पूरे पूर्वांचल को बड़ी सौगात मिलने वाली है. यहां से पहली बार यूपी सरकार मखाने की खेती को प्रमोट करने जा रही है. इस मामले में यूपी अब सीधे बिहार को टक्कर देगा. इसके तहत पूर्वांचल के किसानों को बिहार में प्रशिक्षण दिया जाएगा.

यूपी के कई जिलों में मखाने की खेती की शुरुआत पहले ही हो चुकी है, लेकिन पूर्वांचल में इसका विस्तार नहीं हो पाया था. इस खेती को बढ़ावा देने के लिए उद्यान विभाग पूर्वांचल के किसानों को पहली बार तैयार करने जा रहा है. पूरे भारत में मखाने की खेती का लगभग 80% हिस्सा तैयार करने वाले बिहार के दरभंगा जिले में यूपी के 25 किसानों को विशेष ट्रेनिंग के लिए भेजने की तैयारी है. यानी यूपी के कुछ शहरों में ही होने वाली मखाने की खेती को अब पूर्वांचल में विस्तारित किया जाएगा.

दरभंगा में सबसे ज्यादा होती है मखाने की खेती : जिला उद्यान विभाग के वरिष्ठ उद्यान निरीक्षक ज्योति कुमार सिंह ने बताया कि बिहार का दरभंगा और उससे सटे कुछ जिले मखाने की खेती के लिए सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं. भारत में सबसे ज्यादा मखाने की खेती होती है. इसकी लगभग 80% खेती अकेले बिहार के दरभंगा में की जाती है. यहां के ट्रेंड किसान और तालाबों की मौजूदगी इस खेती के लिए सबसे उपयोगी साबित होती है. अभी प्रोफेशनली तरीके से यूपी के किसी भी जिले में मखाने की खेती नहीं होती है. देवरिया, हरदोई के कुछ किसान मखाने की खेती के लिए प्रयास कर चुके हैं. यूपी में करीब 5 से 7 प्रतिशत ही अभी मखाने की पैदावार हो रही है.

सरकार ने मखाने की पैदावार बढ़ाने के लिए खास रणनीति तैयार की है.
सरकार ने मखाने की पैदावार बढ़ाने के लिए खास रणनीति तैयार की है. (Photo Credit; ETV Bharat)

अब किसानों के पास होंगे दो विकल्प : उत्तर प्रदेश में भी बीते कुछ सालों में तालाबों में मछली पालन करने वाले किसानों की संख्या काफी तेजी से बढ़ी है. मत्स्य पालन की तरफ अग्रसर हो रहे किसानों के सामने एक बड़ा संकट यह रहता है कि मानसून के दौरान जनवरी-फरवरी तक तालाबों के भरने के पश्चात किसान बेहतर काम कर पाते हैं, लेकिन गर्मी आने पर इनके सूखने की वजह से स्थिति बिगड़ने लगती है और गर्मी में किसानों का फायदा नुकसान में बदल जाता है, लेकिन अब किसानों के सामने एक साथ दो विकल्प हैं. वे मछली पालन के साथ मखाने की खेती भी कर सकते हैं.

सरकार प्रति हेक्टेयर इतना देगी अनुदान : ज्योति कुमार सिंह ने बताया कि यूपी के कुछ जिलों में मखाने की खेती अपने स्तर पर किसानों ने शुरू की थी, लेकिन सरकारी सहयोग का प्रावधान उस समय नहीं था. पहली बार यूपी में सरकार की तरफ से 40 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर के हिसाब से अनुदान राशि देने का फैसला किया गया है. किसानों को यह बताया जा रहा है कि मखाने की खेती का कितना बड़ा फायदा है. बिहार के अलावा असम, मेघालय और ओडिशा राज्यों में भी मखाने की खेती होती है, लेकिन बिहार इनमें नंबर वन है.

पूर्वांचल के किसान ट्रेनिंग के लिए जाएंगे दरभंगा : ज्योति कुमार सिंह का कहना है कि इसके लिए एक हेक्टेयर या उससे ज्यादा तालाब की जरूरत होगी. कोई भी किसान जो मखाने की खेती करना चाहता है, वह अपने संबंधित जिले के उद्यान विभाग से संपर्क कर सकता है. इसके अलावा सिंघाड़े की खेती पर भी हम जोर दे रहे हैं. यह पहला मौका है जब सरकार मखाने की खेती को प्रमोट करने जा रही है. अभी तक मखाने की खेती बिहार के दरभंगा जिले में सबसे ज्यादा होता चला आ रहा है. यहां के किसान कई सालों से मोटा मुनाफा कमा रहे हैं. यही वजह है कि हमने पूर्वांचल के 25 किसानों को तैयार किया है. इनके चयन की प्रक्रिया लगभग पूरी हो गई है. सिंतबर में उन्हें दरभंगा में विशेष ट्रेनिंग के लिए भेजा जा सकता है. ट्रेनिंग का पूरा खर्च उद्यान विभाग उठाएगा.

धान की तरह मखाने के पौधे की भी रोपाई की जाती है.
धान की तरह मखाने के पौधे की भी रोपाई की जाती है. (Photo Credit; ETV Bharat)

सिंघाड़े की खेती पर भी जोर : किसान यहां मखाने की खेती के तरीके और उत्तम लाभ पाने के लिए किन तरीकों को अपनाना होगा, इन सबके बारे में प्रशिक्षण लेंगे. प्रशिक्षित होने के बाद किसान दूसरे किसानों को भी जागरूक कर सकते हैं. इसके लिए सरकार अनुदान राशि तो देगी साथ ही साथ सिंघाड़े की खेती के लिए भी 30000 रुपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से अनुदान राशि दी जाएगी. इस खेती के लिए किसान भी रुचि दिखा रहे हैं.

किसानों की आय होगी चार गुना : एडवांस टेक्नोलॉजी के संग खेती बारी करने वाले पवन सिंह का कहना है कि यह एक अच्छा प्रयास है. गेहूं, जौ, बाजरा या फिर सब्जियों से अलग अगर मखाने और सिंघाड़े की खेती को सरकार प्रमोट कर रही है तो किसानों की आय दोगनी नहीं चौगुनी होगी. सबसे बढ़िया बात यह है कि हम मत्स्य पालन के साथ ही यह कार्य कर सकते हैं. मछली पालने के साथ अगर इस तालाब में मखाने की खेती की जाएगी तो मछलियों को ऑर्गेनिक व प्राकृतिक भोजन भी मिलेगा और हमारा डबल फायदा होगा.

यह है खेती का तरीका : उद्यान निरीक्षक ने बताया कि पहले खेत में ही धान की तरह मखाने की नर्सरी तैयार की जाती है. चिकनी एवं चिकनी दोमट मिट्टी इसके लिए सही रहती है. नर्सरी नवंबर से दिसंबर तक की जाती है. जनवरी से फरवरी महीने में भी यह प्रक्रिया की जाती है. नर्सरी डालने से पूर्व 2 से 3 बार खेत की गहरी जुताई करनी जरूरी है. खेत में करीब डेढ़ से दो फीट तक पानी भरना रहता है. अप्रैल तक पौधों की रोपाई की डाती है. मखाने का पौधा जब प्लेट जैसा नजर आने लगे तो इसे रोपाई के लिए उपयुक्त माना जाता है. स्वस्थ पौधे की जड़ को मिट्टी के अंदर दबाया जाता है. कली को पानी के अंदर होना चाहिए. रोपाई में पंक्ति से पंक्ति और पौधों से पौधों के बीच की दूरी करीब 1.20 जरूरी है.

पांच महीने में तैयारी हो जाती है फसल.
पांच महीने में तैयारी हो जाती है फसल. (Photo Credit; ETV Bharat)

इसकी फसल करीब 5 महीने में तैयार होती है. प्रति हेक्टेयर करीब 80 किलोग्राम मखाने के बीज की बुवाई की जाती है. फल आने से पहले नील कमल खिल जाता है. इसके बाद यह दो महीने में यह फलों में बदल जाता है. हर फल में करीब 20 बीज निकलते हैं. इसके बाद करीब 40 दिन बाद फल पक कर फूट जाता है. इसके बाद गुरिया नीचे बैठ जाते हैं. फिर बीज की कटाई की जाती है. बीज को गर्म करने के बाद इसे ठंडा किया जाता है. इसमें एक से दो दिन लगते हैं. इसके बाद गुरिया से यह मखाना बन जाता है.

मखाना में होते हैं ये पोषक तत्व : मखाना सेहतमंद बनाने में काफी कारगर माना जाता है. मखाने में फाइबर सबसे अधिक होता है. सोडियम कम मात्रा में होता है. पोटेशियम, मैंगनीज, थियामिन, प्रोटीन और मैग्नीशियम के अलावा फास्फोरस भी होता है. हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार रोजाना मखाना खाने से डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर के अलावा दिल संबंधी बीमारियों में भी राहत मिलती है. कई मामलों में यह दवा का काम करता है. वजन और स्वास्थ्य के कंडीशन के मद्देनजर चिकित्सक की सलाह से इसका सेवन काफी फायदेमंद साबित हो सकता है.

यह भी पढ़ें : यूपी रोडवेज की इलेक्ट्रिक बस की पहली झलक, 41 शानदार सीटें, AC समेत कई खूबियां, नवंबर तक आ जाएंगी 100 बसें

उद्यान विभाग किसानों को अनुदान की सुविधा देगा. (Video Credit; ETV Bharat)

वाराणसी : आमदनी बढ़ाकर तरक्की के रास्ते पर चलने के लिए किसान लगातार नए प्रयोग कर रहे हैं. गेहूं, चावल, सब्जी उगाने के साथ वह नई फसलों पर भी जोर दे रहे हैं. इसके लिए सरकार से भी उन्हें सहयोग मिल रहा है. इसकी वजह से कश्मीर और हिमाचल में होने वाली फसलें अब यूपी के खेतों में भी लहलहाने लगीं हैं. पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से जल्द ही पूरे पूर्वांचल को बड़ी सौगात मिलने वाली है. यहां से पहली बार यूपी सरकार मखाने की खेती को प्रमोट करने जा रही है. इस मामले में यूपी अब सीधे बिहार को टक्कर देगा. इसके तहत पूर्वांचल के किसानों को बिहार में प्रशिक्षण दिया जाएगा.

यूपी के कई जिलों में मखाने की खेती की शुरुआत पहले ही हो चुकी है, लेकिन पूर्वांचल में इसका विस्तार नहीं हो पाया था. इस खेती को बढ़ावा देने के लिए उद्यान विभाग पूर्वांचल के किसानों को पहली बार तैयार करने जा रहा है. पूरे भारत में मखाने की खेती का लगभग 80% हिस्सा तैयार करने वाले बिहार के दरभंगा जिले में यूपी के 25 किसानों को विशेष ट्रेनिंग के लिए भेजने की तैयारी है. यानी यूपी के कुछ शहरों में ही होने वाली मखाने की खेती को अब पूर्वांचल में विस्तारित किया जाएगा.

दरभंगा में सबसे ज्यादा होती है मखाने की खेती : जिला उद्यान विभाग के वरिष्ठ उद्यान निरीक्षक ज्योति कुमार सिंह ने बताया कि बिहार का दरभंगा और उससे सटे कुछ जिले मखाने की खेती के लिए सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं. भारत में सबसे ज्यादा मखाने की खेती होती है. इसकी लगभग 80% खेती अकेले बिहार के दरभंगा में की जाती है. यहां के ट्रेंड किसान और तालाबों की मौजूदगी इस खेती के लिए सबसे उपयोगी साबित होती है. अभी प्रोफेशनली तरीके से यूपी के किसी भी जिले में मखाने की खेती नहीं होती है. देवरिया, हरदोई के कुछ किसान मखाने की खेती के लिए प्रयास कर चुके हैं. यूपी में करीब 5 से 7 प्रतिशत ही अभी मखाने की पैदावार हो रही है.

सरकार ने मखाने की पैदावार बढ़ाने के लिए खास रणनीति तैयार की है.
सरकार ने मखाने की पैदावार बढ़ाने के लिए खास रणनीति तैयार की है. (Photo Credit; ETV Bharat)

अब किसानों के पास होंगे दो विकल्प : उत्तर प्रदेश में भी बीते कुछ सालों में तालाबों में मछली पालन करने वाले किसानों की संख्या काफी तेजी से बढ़ी है. मत्स्य पालन की तरफ अग्रसर हो रहे किसानों के सामने एक बड़ा संकट यह रहता है कि मानसून के दौरान जनवरी-फरवरी तक तालाबों के भरने के पश्चात किसान बेहतर काम कर पाते हैं, लेकिन गर्मी आने पर इनके सूखने की वजह से स्थिति बिगड़ने लगती है और गर्मी में किसानों का फायदा नुकसान में बदल जाता है, लेकिन अब किसानों के सामने एक साथ दो विकल्प हैं. वे मछली पालन के साथ मखाने की खेती भी कर सकते हैं.

सरकार प्रति हेक्टेयर इतना देगी अनुदान : ज्योति कुमार सिंह ने बताया कि यूपी के कुछ जिलों में मखाने की खेती अपने स्तर पर किसानों ने शुरू की थी, लेकिन सरकारी सहयोग का प्रावधान उस समय नहीं था. पहली बार यूपी में सरकार की तरफ से 40 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर के हिसाब से अनुदान राशि देने का फैसला किया गया है. किसानों को यह बताया जा रहा है कि मखाने की खेती का कितना बड़ा फायदा है. बिहार के अलावा असम, मेघालय और ओडिशा राज्यों में भी मखाने की खेती होती है, लेकिन बिहार इनमें नंबर वन है.

पूर्वांचल के किसान ट्रेनिंग के लिए जाएंगे दरभंगा : ज्योति कुमार सिंह का कहना है कि इसके लिए एक हेक्टेयर या उससे ज्यादा तालाब की जरूरत होगी. कोई भी किसान जो मखाने की खेती करना चाहता है, वह अपने संबंधित जिले के उद्यान विभाग से संपर्क कर सकता है. इसके अलावा सिंघाड़े की खेती पर भी हम जोर दे रहे हैं. यह पहला मौका है जब सरकार मखाने की खेती को प्रमोट करने जा रही है. अभी तक मखाने की खेती बिहार के दरभंगा जिले में सबसे ज्यादा होता चला आ रहा है. यहां के किसान कई सालों से मोटा मुनाफा कमा रहे हैं. यही वजह है कि हमने पूर्वांचल के 25 किसानों को तैयार किया है. इनके चयन की प्रक्रिया लगभग पूरी हो गई है. सिंतबर में उन्हें दरभंगा में विशेष ट्रेनिंग के लिए भेजा जा सकता है. ट्रेनिंग का पूरा खर्च उद्यान विभाग उठाएगा.

धान की तरह मखाने के पौधे की भी रोपाई की जाती है.
धान की तरह मखाने के पौधे की भी रोपाई की जाती है. (Photo Credit; ETV Bharat)

सिंघाड़े की खेती पर भी जोर : किसान यहां मखाने की खेती के तरीके और उत्तम लाभ पाने के लिए किन तरीकों को अपनाना होगा, इन सबके बारे में प्रशिक्षण लेंगे. प्रशिक्षित होने के बाद किसान दूसरे किसानों को भी जागरूक कर सकते हैं. इसके लिए सरकार अनुदान राशि तो देगी साथ ही साथ सिंघाड़े की खेती के लिए भी 30000 रुपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से अनुदान राशि दी जाएगी. इस खेती के लिए किसान भी रुचि दिखा रहे हैं.

किसानों की आय होगी चार गुना : एडवांस टेक्नोलॉजी के संग खेती बारी करने वाले पवन सिंह का कहना है कि यह एक अच्छा प्रयास है. गेहूं, जौ, बाजरा या फिर सब्जियों से अलग अगर मखाने और सिंघाड़े की खेती को सरकार प्रमोट कर रही है तो किसानों की आय दोगनी नहीं चौगुनी होगी. सबसे बढ़िया बात यह है कि हम मत्स्य पालन के साथ ही यह कार्य कर सकते हैं. मछली पालने के साथ अगर इस तालाब में मखाने की खेती की जाएगी तो मछलियों को ऑर्गेनिक व प्राकृतिक भोजन भी मिलेगा और हमारा डबल फायदा होगा.

यह है खेती का तरीका : उद्यान निरीक्षक ने बताया कि पहले खेत में ही धान की तरह मखाने की नर्सरी तैयार की जाती है. चिकनी एवं चिकनी दोमट मिट्टी इसके लिए सही रहती है. नर्सरी नवंबर से दिसंबर तक की जाती है. जनवरी से फरवरी महीने में भी यह प्रक्रिया की जाती है. नर्सरी डालने से पूर्व 2 से 3 बार खेत की गहरी जुताई करनी जरूरी है. खेत में करीब डेढ़ से दो फीट तक पानी भरना रहता है. अप्रैल तक पौधों की रोपाई की डाती है. मखाने का पौधा जब प्लेट जैसा नजर आने लगे तो इसे रोपाई के लिए उपयुक्त माना जाता है. स्वस्थ पौधे की जड़ को मिट्टी के अंदर दबाया जाता है. कली को पानी के अंदर होना चाहिए. रोपाई में पंक्ति से पंक्ति और पौधों से पौधों के बीच की दूरी करीब 1.20 जरूरी है.

पांच महीने में तैयारी हो जाती है फसल.
पांच महीने में तैयारी हो जाती है फसल. (Photo Credit; ETV Bharat)

इसकी फसल करीब 5 महीने में तैयार होती है. प्रति हेक्टेयर करीब 80 किलोग्राम मखाने के बीज की बुवाई की जाती है. फल आने से पहले नील कमल खिल जाता है. इसके बाद यह दो महीने में यह फलों में बदल जाता है. हर फल में करीब 20 बीज निकलते हैं. इसके बाद करीब 40 दिन बाद फल पक कर फूट जाता है. इसके बाद गुरिया नीचे बैठ जाते हैं. फिर बीज की कटाई की जाती है. बीज को गर्म करने के बाद इसे ठंडा किया जाता है. इसमें एक से दो दिन लगते हैं. इसके बाद गुरिया से यह मखाना बन जाता है.

मखाना में होते हैं ये पोषक तत्व : मखाना सेहतमंद बनाने में काफी कारगर माना जाता है. मखाने में फाइबर सबसे अधिक होता है. सोडियम कम मात्रा में होता है. पोटेशियम, मैंगनीज, थियामिन, प्रोटीन और मैग्नीशियम के अलावा फास्फोरस भी होता है. हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार रोजाना मखाना खाने से डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर के अलावा दिल संबंधी बीमारियों में भी राहत मिलती है. कई मामलों में यह दवा का काम करता है. वजन और स्वास्थ्य के कंडीशन के मद्देनजर चिकित्सक की सलाह से इसका सेवन काफी फायदेमंद साबित हो सकता है.

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