पन्ना। गर्मी के इस मौसम में पन्ना जिले के जंगल महुआ के फूलों की गंध से महक रहे हैं. ग्रामीण रोजना सुबह 5 बजे से महुआ बीनने के लिये जंगल की ओर निकल जाते हैं. वन क्षेत्र के आस-पास रहने वाले आदिवासियों के लिये तो महुआ का सीजन किसी उत्सव से कम नहीं होता है. सुबह के समय यहां शीतल हवाओं व सफेद रस भरे महुआ फूलों की महक से वातावरण में मादकता इस कदर घुल जाती है कि गहरी सांस लेने भर से मन प्रफुल्लित और मदहोश हो जाता है. आदिवासी समाज के लिये महुआ के फूल रोजी-रोटी का जरिया हैं, इस मौसम में आदिवासियों का पूरा कुनबा महुआ का फूल चुनने में लगा रहता है.
आदिवासियों के लिए खास है गर्मी का यह मौसम
जिले के उत्तर वन मंडल एवं दक्षिण वन मण्डल के अन्तर्गत आने वाले रहुनिया, पनागर, मनकी कल्दा पठार के जंगल में महुआ वृक्षों की भरमार है. महुआ के अलावा भी यहां के जंगल में हर्र, बहेरा, आंवला, चिरौंजी का प्रचुर मात्रा में उत्पादन होता है. गर्मी का यह मौसम मार्च से लेकर मई तक आदिवासियों के लिये बहुत अहम होता है, क्योंकि इसी सीजन में महुआ के वृक्षों से सफेद रसभरे फूल टपकते हैं. इन महुआ के फूलों को एकत्र कर आदिवासी सुखाते हैं, जिससे उन्हें इतनी आय हो जाती है कि पूरे वर्ष भर उनका गुजारा हो जाता है.
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सुबह 5 बजे उठकर जाते हैं जंगल
जैव विविधता से परिपूर्ण पन्ना के जंगल में महुआ के वृक्ष बहुतायत से पाये जाते हैं, नतीजतन यह इलाका महुआ फूल व गोही के उत्पादन में अग्रणी है. इन दिनों सुबह 5 बजे से ही आदिवासी बांस की टोकरियां लेकर कुनबा सहित महुआ फूल चुनने के लिये जंगल में निकल जाते हैं और दिन ढलने तक वृक्षों से टपकने वाले महुआ के फूलों का संग्रहण करते हैं.