आगरा : अंधकार में से निकली प्रकाश की एक किरण श्रीकृष्ण. सृष्टि के एकमात्र पुरुष याेगेश्वर श्रीकृष्ण. ये गूंजता संवाद..... और पात्र तो इतिहासों के मृत हैं. लौट नहीं वे आएंगे नष्ट− भ्रष्ट भी कर दो इनको, आपत्ति नहीं जताएंगे. किंतु हर पात्र संदेश देता है. वर्तमान युग के चक्रव्यूह से निकलने का. आज भी जीवंत है अभिमन्यु, आज भी रचा जा रहा है चक्रव्यूह कुरुक्षेत्र का. आगरा के सूरसदन प्रेक्षागृह में रविवार शाम जीवंत हुआ. द्वापर का वो क्षण जब अपनों ने ही वध किया था अपने ही वंश का. हरिद्वार में कुष्ठ रोगियों एवं अन्य सेवा प्रकल्पों को समर्पित दिव्य प्रेम सेवा मिशन की ओर से आयोजित महानाट्य चक्रव्यूह का आगरा में मंचन हुआ.
सूरसदन सभागार में चक्रव्यूह का शुभारंभ राष्ट्रगान एवं मां भारती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलन से हुआ. संस्थापक अध्यक्ष आशीष गौतम, डॉ प्रमोद शर्मा, संजय चतुर्वेदी, केंद्र राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल, सांसद राजकुमार चाहर, राज्यसभा सांसद नवीन जैन, कैबिनेट मंत्री बेबी रानी माैर्य, उप्र लघु उद्योग निगम के अध्यक्ष राकेश गर्ग, मंडलायुक्त रितु माहेश्वरी, जिलाधिकारी जे. रविंद्र गौड़, दीपक ऋषि, सोम कुमार मित्तल, संजीव माहेश्वरी, संजय अग्रवाल, प्रमोद सारस्वत, उमेश गर्ग ने दीप प्रज्ज्वलित किया.
जीवंत हुआ कुरुक्षेत्र का मैदान : महानाट्य के सूत्रधार स्वयं चक्रधारी श्रीकृष्ण थे. श्रीकृष्ण की छवि को जीवंत करके नितीश भारद्वाज अपने छंदमय संवाद से हर दर्शक को स्तब्ध कर दिया. अभिमन्यु के वध के मार्मिक दृश्यों ने दर्शकों के नेत्र सजल कर दिए. गर्भवती उत्तरा की वेदना को विराम देकर श्रीकृष्ण ने जब कहा कि तू अभिमन्यु की अर्धागिंनी है. तुझे अंधकार नहीं छलता है. श्रीकृष्ण ने कहा कि कर्म बंधन और स्वयं के निर्णय ही चक्रव्यूह की रचना करते हैं. स्वयं भगवान भी जीवन में होने वाले महाभारत को नहीं रोक सकते हैं.
महानाट्य चक्रव्यूह के लेखक एवं निर्देशक अतुल सत्य कौशिक किया. उन्होंने कहा कि महानाट्य को श्रीकृष्ण के दृष्टिकोण से लिखा गया है. अब तक देशभर में 100 से भी अधिक बार इसका मंचन हो चुका है. महानाट्य में अभिमन्यु साहिल छावड़ा और अर्जुन की पत्नी उत्तरा भूमिका में सुषमिता मेहता ने दर्शकों का मन जीत लिया. अभिमन्यु के वध के बाद जब उनकी पत्नी उत्तरा सास से पूछती है कि अभिमन्यु लौटेगा कि नहीं? बताओ मां लौटेगा कि नहीं? तब पूरा सभागार सन्न रह गया. मां, पुत्र के वीरगति पाने पर गौरव करती है और कहती है कि इसी दिन की खातिर पुत्र पाते हैं हम.
महानाट्य का सार : महानाट्य चक्रव्यूह के माध्यम से संदेश दिया गया कि चक्रव्यूह केवल एक युद्ध कला तक ही सीमित नहीं है बल्कि संपूर्ण जीवन दर्शन के स्तर को समझने की ओर प्रेरित करता है. नाटक में कुरुक्षेत्र की रक्त रंजित धरा को संबोधित करते हुए संदेश देने का कार्य किया गया है. नाटक में उत्तरा, अर्जुन, द्रोपदी और अन्य परिजनों के मन में श्रीकृष्ण से पूछे जाने वाले प्रश्नों का उत्तर रखा गया. अंततः श्रीकृष्ण का शाश्वत सत्य संदेश कि कोई भी अपने कर्मों में रचे गए स्वयं के चक्रव्यूह से कभी मुक्त नहीं हो सकता है.
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