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दिगंबर अणि अखाड़ा; साधु-संतों के एक हाथ में माला दूसरे में रहता भाला, कहलाते हैं बैरागी

Mahakumbh 2025: वैष्णव सम्प्रदाय वाले निर्वाणी अणि, निर्मोही अणि और दिगम्बर अणि अखाड़े के इष्टदेव के साथ ही सभी परंपराएं भी एक समान ही हैं.

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दिगंबर अणि अखाड़े के साधु-संतों के एक हाथ में माला दूसरे में रहता भाला. (Photo Credit; ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Dec 11, 2024, 10:47 AM IST

Updated : Dec 11, 2024, 12:02 PM IST

प्रयागराज: देश में चार स्थानों पर महाकुम्भ मेले का आयोजन होता है, जिसमें 13 अखाड़े शामिल होते हैं. ये अखाड़े महाकुम्भ की शान कहे जाते हैं. 13 अखाड़ों में तीन सम्प्रदाय के साधु संत आते हैं, जिसमें शैव वैष्णव और उदासीन सम्प्रदाय के साधु संत शामिल रहते हैं. ईटीवी भारत की खास पेशकश में हमने आपको शैव और उदासीन परंपरा वाले अखाड़ों के बारे में विस्तार से बताया है.

अब आपको वैष्णव सम्प्रदाय वाले निर्वाणी अणि, निर्मोही अणि और दिगम्बर अणि अखाड़े के बारे में विस्तार से बताते हैं. इन्हीं अखाड़े के साधु संतों को बैरागी भी कहा जाता है. इन तीनों अखाड़ों के इष्टदेव के साथ ही सभी परंपराएं भी एक समान ही हैं. धर्म की रक्षा के लिए अणि अखाड़े के साधु संत महात्मा एक हाथ मे माला और दूसरे हाथ में भाला लेकर सनातन धर्म और मठ मंदिरों की रक्षा के लिए युद्ध लड़ चुके हैं.

दिगंबर अणि अखाड़े के इतिहास के बारे में बताते महंत राम शरण दास शास्त्री. (Video Credit; ETV Bharat)

सनातन धर्म की रक्षा करने वाले अखाड़ों में शैव और उदासीन अखाड़ों की तरह ही वैष्णव सम्प्रदाय के अखाड़ों का भी गौरवशाली इतिहास रहा है. सनातन धर्म की रक्षा के लिए मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक से मुकबला कर धर्म की रक्षा की है और उस दौरान हजारों साधुओं ने अपने प्राणों की आहुति दी है.

दिगम्बर अणि अखाड़े के श्री महंत राम शरण दास शास्त्री महाराज ने बताया कि वैष्णव सम्प्रदाय के तीन प्रमुख अखाड़े हैं, जिनका नाम श्री निर्मोही अणि अखाड़ा, श्री निर्वाणी अणि अखाड़ा और श्री दिगम्बर अणि अखाड़ा है. इन तीन अखाड़ों के 18 उप अखाड़े भी हैं, जिन्हें उनकी शाखाएं भी कहा जा सकता है. जिसमें निर्मोही अणि अखाड़े की 9 और निर्वाणी अणि अखाड़े की 7 जबकि दिगम्बर अणि अखाड़े की दो उप शाखाएं या उप अखाड़े हैं.

इन तीनों अणि अखाड़ों की परंपराएं और ईष्ट देव एक ही हैं. इन अखाड़ों के सभी साधु संत के ईष्ट देव हनुमान हैं और ये लोग विष्णु अवतार भगवान श्री राम और श्री कृष्ण की उपासना करते हैं. इनकी धर्मध्वजा में बजरंग बली का चित्र बना रहता है. जिसमें दिगंबर अणि अखाड़े की धर्मध्वजा पंचरंगी होती है, जिसमें लाल, पीला, हरा, सफेद समेत पांच रंग रहते हैं.

वैष्णव सम्प्रदाय के अखाड़ों को बैरागी क्यों कहते हैं: भगवान विष्णु के स्वरूप श्री राम और श्री कृष्ण के उपासक वैष्णव संन्यासियों के चार संप्रदाय मिलते हैं. जिसमें श्री संप्रदाय या रामानुज संप्रदाय, ब्रह्म संप्रदाय या माधव संप्रदाय, रुद्र संप्रदाय या वल्लभ संप्रदाय और कुमार संप्रदाय या निंबार्क संप्रदाय है. वैष्णव सम्प्रदाय के प्रवर्तक रामानंदाचार्य हैं, जिन्होंने कबीर और रहीम के साथ ही तुलसीदास का उपदेश भी दिया है. वैष्णव संप्रदाय के संत महंत बैराग्य को अपना मूल लक्ष्य मानते हैं. इसलिए इन संतों को बैरागी भी कहा जाता है. इस सम्प्रदाय के संत सफेद कपड़े ही पहनते हैं और उनके आचार्य महामंडलेश्वर भगवा से मिलता हुआ पीला कपड़ा पहनते हैं.

वैष्णव अखाड़ों में रुद्राक्ष की जगह तुलसी की प्रधानता: शैव अखाड़ों में भगवान शिव की उपासना मुख्य रूप से की जाती है. नागाओं को शिव समान कहा भी जाता है. इसी कारण वो सभी लोग रुद्राक्ष को मुख्य रूप से धारण करते हैं, जबकि वैष्णव सम्प्रदाय के संत रुद्राक्ष की जगह तुलसी की माला को धारण करते हैं. साथ ही लोग विष्णु स्वरूप श्री राम और भगवान कृष्ण की ज्यादातर उपासना करते हैं.

इतना ही नहीं ये लोग एक दूसरे का अभिवादन करने के लिए भी विष्णु भगवान के अवतारों के ही नाम का सम्बोधन करते हैं. हालांकि विष्णु अवतार के साथ ही ये लोग शिव समेत अन्य देवी देवताओं की पूजा उपासना भी करते रहते हैं. पंद्रहवीं शताब्दी के मठ, मंदिरों और धर्म गुरुओं की रक्षा के लिए हजारों वैष्णवी साधुओं की सेना होने के प्रमाण चतुःसंप्रदायदिग्दर्शन समेत अन्य पुष्तकों में विवरण मिलते हैं.

एक हाथ में माला दूसरे में भाला लेकर युद्ध लड़ चुके हैं वैष्णव अखाड़े: अणि अखाड़े की स्थापना 15वीं शताब्दी से पहले सन 1475 की बताई जाती है. श्री दिगंबर अणि अखाड़े के महंत राम शरण दास महाराज ने बताया कि अणि अखाड़ों की स्थापना करीब 7 सौ साल पहले की है. 13वीं 14वीं शताब्दी के बीच में अणि अखाड़े की स्थापना की गई थी. बालानंदाचार्य मठ की परंपरा जगतगुरु राममनन्दाचार्य से प्रारंभ हुई है.

स्वामी भावानन्दाचार्य, अनुभवनंदाचार्य, बल्लभानंदाचार्य, श्रीब्रह्मानंदाचार्य ने इस सम्प्रदाय का विस्तार और बहुत सारे मठ मंदिरों का विस्तार किया. यही नहीं अणि अखाड़े के संतों को एक हाथ में माला एक में भाला लेकर चलने की शिक्षा दी गई. जिसके बाद अणि अखाड़े से जुड़े संतों को एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में भला लेकर धर्म की रक्षा करने के लिए युद्ध लड़ने का कौशल सिखाया गया.

उसके बाद अणि अखाड़ों के वैष्णव संतों की सेना भी मुगल आक्रांताओं से लेकर अंग्रेजी सेना तक से सनातन धर्म और हिन्दू मठ मंदिरों की रक्षा के लिए युद्ध के मैदान में कूदी और विजय हासिल करने के साथ ही हजारों साधुओं की प्राणों की आहुति भी दी. अणि अखाड़े के इन्हीं साधु संतों को रामापंथी या रामादल भी कहा जाता है.

पंचायती व्यवस्था से चलता है अखाड़ा: दिगम्बर अणि अखाड़े के महंत रामशरण दास शास्त्री महाराज बताते हैं कि उनके अखाड़े में पंचायती व्यवस्था चलती है. उसी के तहत अखाड़े का संचालन होता है. अखाड़े में जगतगुरु के अलावा 2 महंत और 2 मंत्री होते हैं. जिसमें पंच परमेश्वर होते हैं. पंच परमेश्वर ही सब कुछ संभालते हैं. उनकी देखरेख में ही अखाड़े से जुड़ी सभी प्रकार की व्यवस्था संचालित की जाती है. इस अखाड़े की शाखाएं देश के अलग-अलग राज्यों में हैं, जबकि मुख्य शाखाएं अयोध्या, चित्रकूट, वृंदावन, उज्जैन, जगन्नाथपुरी और नासिक में हैं.

ये भी पढ़ेंः महाकुंभ 2025: 13 में से कौन है पहला अखाड़ा, जानिए क्या है दावा और मान्यता?

प्रयागराज: देश में चार स्थानों पर महाकुम्भ मेले का आयोजन होता है, जिसमें 13 अखाड़े शामिल होते हैं. ये अखाड़े महाकुम्भ की शान कहे जाते हैं. 13 अखाड़ों में तीन सम्प्रदाय के साधु संत आते हैं, जिसमें शैव वैष्णव और उदासीन सम्प्रदाय के साधु संत शामिल रहते हैं. ईटीवी भारत की खास पेशकश में हमने आपको शैव और उदासीन परंपरा वाले अखाड़ों के बारे में विस्तार से बताया है.

अब आपको वैष्णव सम्प्रदाय वाले निर्वाणी अणि, निर्मोही अणि और दिगम्बर अणि अखाड़े के बारे में विस्तार से बताते हैं. इन्हीं अखाड़े के साधु संतों को बैरागी भी कहा जाता है. इन तीनों अखाड़ों के इष्टदेव के साथ ही सभी परंपराएं भी एक समान ही हैं. धर्म की रक्षा के लिए अणि अखाड़े के साधु संत महात्मा एक हाथ मे माला और दूसरे हाथ में भाला लेकर सनातन धर्म और मठ मंदिरों की रक्षा के लिए युद्ध लड़ चुके हैं.

दिगंबर अणि अखाड़े के इतिहास के बारे में बताते महंत राम शरण दास शास्त्री. (Video Credit; ETV Bharat)

सनातन धर्म की रक्षा करने वाले अखाड़ों में शैव और उदासीन अखाड़ों की तरह ही वैष्णव सम्प्रदाय के अखाड़ों का भी गौरवशाली इतिहास रहा है. सनातन धर्म की रक्षा के लिए मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक से मुकबला कर धर्म की रक्षा की है और उस दौरान हजारों साधुओं ने अपने प्राणों की आहुति दी है.

दिगम्बर अणि अखाड़े के श्री महंत राम शरण दास शास्त्री महाराज ने बताया कि वैष्णव सम्प्रदाय के तीन प्रमुख अखाड़े हैं, जिनका नाम श्री निर्मोही अणि अखाड़ा, श्री निर्वाणी अणि अखाड़ा और श्री दिगम्बर अणि अखाड़ा है. इन तीन अखाड़ों के 18 उप अखाड़े भी हैं, जिन्हें उनकी शाखाएं भी कहा जा सकता है. जिसमें निर्मोही अणि अखाड़े की 9 और निर्वाणी अणि अखाड़े की 7 जबकि दिगम्बर अणि अखाड़े की दो उप शाखाएं या उप अखाड़े हैं.

इन तीनों अणि अखाड़ों की परंपराएं और ईष्ट देव एक ही हैं. इन अखाड़ों के सभी साधु संत के ईष्ट देव हनुमान हैं और ये लोग विष्णु अवतार भगवान श्री राम और श्री कृष्ण की उपासना करते हैं. इनकी धर्मध्वजा में बजरंग बली का चित्र बना रहता है. जिसमें दिगंबर अणि अखाड़े की धर्मध्वजा पंचरंगी होती है, जिसमें लाल, पीला, हरा, सफेद समेत पांच रंग रहते हैं.

वैष्णव सम्प्रदाय के अखाड़ों को बैरागी क्यों कहते हैं: भगवान विष्णु के स्वरूप श्री राम और श्री कृष्ण के उपासक वैष्णव संन्यासियों के चार संप्रदाय मिलते हैं. जिसमें श्री संप्रदाय या रामानुज संप्रदाय, ब्रह्म संप्रदाय या माधव संप्रदाय, रुद्र संप्रदाय या वल्लभ संप्रदाय और कुमार संप्रदाय या निंबार्क संप्रदाय है. वैष्णव सम्प्रदाय के प्रवर्तक रामानंदाचार्य हैं, जिन्होंने कबीर और रहीम के साथ ही तुलसीदास का उपदेश भी दिया है. वैष्णव संप्रदाय के संत महंत बैराग्य को अपना मूल लक्ष्य मानते हैं. इसलिए इन संतों को बैरागी भी कहा जाता है. इस सम्प्रदाय के संत सफेद कपड़े ही पहनते हैं और उनके आचार्य महामंडलेश्वर भगवा से मिलता हुआ पीला कपड़ा पहनते हैं.

वैष्णव अखाड़ों में रुद्राक्ष की जगह तुलसी की प्रधानता: शैव अखाड़ों में भगवान शिव की उपासना मुख्य रूप से की जाती है. नागाओं को शिव समान कहा भी जाता है. इसी कारण वो सभी लोग रुद्राक्ष को मुख्य रूप से धारण करते हैं, जबकि वैष्णव सम्प्रदाय के संत रुद्राक्ष की जगह तुलसी की माला को धारण करते हैं. साथ ही लोग विष्णु स्वरूप श्री राम और भगवान कृष्ण की ज्यादातर उपासना करते हैं.

इतना ही नहीं ये लोग एक दूसरे का अभिवादन करने के लिए भी विष्णु भगवान के अवतारों के ही नाम का सम्बोधन करते हैं. हालांकि विष्णु अवतार के साथ ही ये लोग शिव समेत अन्य देवी देवताओं की पूजा उपासना भी करते रहते हैं. पंद्रहवीं शताब्दी के मठ, मंदिरों और धर्म गुरुओं की रक्षा के लिए हजारों वैष्णवी साधुओं की सेना होने के प्रमाण चतुःसंप्रदायदिग्दर्शन समेत अन्य पुष्तकों में विवरण मिलते हैं.

एक हाथ में माला दूसरे में भाला लेकर युद्ध लड़ चुके हैं वैष्णव अखाड़े: अणि अखाड़े की स्थापना 15वीं शताब्दी से पहले सन 1475 की बताई जाती है. श्री दिगंबर अणि अखाड़े के महंत राम शरण दास महाराज ने बताया कि अणि अखाड़ों की स्थापना करीब 7 सौ साल पहले की है. 13वीं 14वीं शताब्दी के बीच में अणि अखाड़े की स्थापना की गई थी. बालानंदाचार्य मठ की परंपरा जगतगुरु राममनन्दाचार्य से प्रारंभ हुई है.

स्वामी भावानन्दाचार्य, अनुभवनंदाचार्य, बल्लभानंदाचार्य, श्रीब्रह्मानंदाचार्य ने इस सम्प्रदाय का विस्तार और बहुत सारे मठ मंदिरों का विस्तार किया. यही नहीं अणि अखाड़े के संतों को एक हाथ में माला एक में भाला लेकर चलने की शिक्षा दी गई. जिसके बाद अणि अखाड़े से जुड़े संतों को एक हाथ में माला और दूसरे हाथ में भला लेकर धर्म की रक्षा करने के लिए युद्ध लड़ने का कौशल सिखाया गया.

उसके बाद अणि अखाड़ों के वैष्णव संतों की सेना भी मुगल आक्रांताओं से लेकर अंग्रेजी सेना तक से सनातन धर्म और हिन्दू मठ मंदिरों की रक्षा के लिए युद्ध के मैदान में कूदी और विजय हासिल करने के साथ ही हजारों साधुओं की प्राणों की आहुति भी दी. अणि अखाड़े के इन्हीं साधु संतों को रामापंथी या रामादल भी कहा जाता है.

पंचायती व्यवस्था से चलता है अखाड़ा: दिगम्बर अणि अखाड़े के महंत रामशरण दास शास्त्री महाराज बताते हैं कि उनके अखाड़े में पंचायती व्यवस्था चलती है. उसी के तहत अखाड़े का संचालन होता है. अखाड़े में जगतगुरु के अलावा 2 महंत और 2 मंत्री होते हैं. जिसमें पंच परमेश्वर होते हैं. पंच परमेश्वर ही सब कुछ संभालते हैं. उनकी देखरेख में ही अखाड़े से जुड़ी सभी प्रकार की व्यवस्था संचालित की जाती है. इस अखाड़े की शाखाएं देश के अलग-अलग राज्यों में हैं, जबकि मुख्य शाखाएं अयोध्या, चित्रकूट, वृंदावन, उज्जैन, जगन्नाथपुरी और नासिक में हैं.

ये भी पढ़ेंः महाकुंभ 2025: 13 में से कौन है पहला अखाड़ा, जानिए क्या है दावा और मान्यता?

Last Updated : Dec 11, 2024, 12:02 PM IST
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