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महाकुंभ 2025; आकर्षण का केंद्र बनीं सतयुग से कलयुग की डिजिटल झांकियां, जानें क्या है खास? - MAHA KUMBH MELA 2025

ब्रह्माकुमारीज की सेवादार प्राची बहन ने 'ईटीवी भारत' को दी विशेष जानकारी.

आकर्षण का केंद्र बनीं झाकियां
आकर्षण का केंद्र बनीं झाकियां (Photo credit: ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 25, 2025, 4:29 PM IST

प्रयागराज (महाकुंभनगर) : महाकुंभ में ब्रह्माकुमारी संस्थान की तरफ से बड़ा सा शिविर लगाया गया है. इस शिविर में कलयुग से सतयुग तक झांकियां दिखाई गई हैं. डिजिटल माध्यम से बेहद आकर्षक तरीके से इन दृश्यों को दर्शाने का प्रयास किया गया है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु ब्रह्मकुमारी आश्रम में इसका दीदार करने पहुंच रहे हैं. यह झांकियां लोगों को काफी आकर्षित कर रही हैं. ब्रह्माकुमारीज की सेवादार प्राची बहन ने इस युग परिवर्तन दिव्य दर्शन के बारे में 'ईटीवी भारत' को विशेष जानकारी दी.


ईटीवी भारत संवाददाता ने ब्रह्माकुमारीज की सेवादार प्राची बहन से की बातचीत (Video credit: ETV Bharat)



ब्रह्माकुमारीज की सेवादार बहन प्राची ने बताया कि महाकुंभ में इस बार ब्रह्माकुमारी संस्थान की तरफ से बड़ा सा शिविर लगाया गया है. जिसमें एक परिवर्तन के रूप में दिखाया गया है. इसके अंदर सबसे पहले कलयुगी कांटों का जंगल दिखाया गया है जिसमें यह दर्शाया गया है कि आज के समय में समाज में रहने वाला मनुष्य दिखने में तो मनुष्य है, लेकिन उसके अंदर के जो विकार हैं.

उसकी जो विकृत मनोवृत्तियां हैं जिन मनोवृतियों के कारण आज वह पशु के समान व्यवहार कर रहा है. चाहे वह लोभवृति है, चाहे अहंकार के कारण उसकी वृत्ति है तो यह सारी चीज मनुष्य के जीवन को किस तरह से पतन की तरफ ले जा रही हैं. समय की मांग ये भी यह है कि हमें अगर इस कलयुगी जंगल को बदलना है तो उसके लिए सबसे पहले हमें अपने अंदर की इन दूषित मनोवृतियों को खत्म करना पड़ेगा.

ब्रह्माकुमारी संस्थान की तरफ से लगाई गई झांकियां
ब्रह्माकुमारी संस्थान की तरफ से लगाई गई झांकियां (Photo credit: ETV Bharat)

उन्होंने बताया कि उन दूषित मनोवृतियों को खत्म करने के लिए जिसे हम सामाजिक बुराई के रूप में देख रहे हैं कि मनुष्य, मनुष्य को किस तरह से बिना किसी संवेदना के मार रहा है. मरने वाला भी मनुष्य है और जो मार रहा है वह भी मनुष्य है, लेकिन किसी के अंदर कोई भी संवेदना नहीं है. संवेदनहीन मनुष्य आज कैसे गिरावट की ओर इस समाज को लेकर जा रहा है. हम सब इस समाज के मनुष्य हैं और हमारी हर एक की ड्यूटी है कि हम अपने समाज को बदलना चाहते हैं तो इसके लिए शुरुआत अपने परिवर्तन से करनी पड़ेगी, क्योंकि मनुष्य को समाज की एक इकाई कहा जाता है.

अगर हम अपने से परिवर्तन शुरू करेंगे तो हम अपने समाज का, अपने देश का और सारे विश्व का परिवर्तन कर सकते हैं. भगवान हमें जो सिखाते हैं वह संस्कार परिवर्तन से संसार का परिवर्तन है. यानि पहले हम अपने संस्कारों को बदलें फिर दूसरे संस्कारों को बदलना होगा. उसकी जगह पर हमें अपने अंदर की दिव्यता को डिवाइन वैल्यूज को, मोरल वैल्यूज को लाना पड़ेगा.

महाकुंभ में आकर्षण का केंद्र बनीं झाकियां
महाकुंभ में आकर्षण का केंद्र बनीं झाकियां (Photo credit: ETV Bharat)

उन्होंने बताया कि वह हमें कहीं बाहर से नहीं मिलेगी. उसके लिए परमात्मा ने हमें जो आध्यात्मिक ज्ञान दिया हुआ है जो हमें स्वयं की पहचान दी हुई है, जब हम अपने आप को जान लेते हैं अपनी वास्तविकता को पहचान लेते हैं तो हम अपने अवगुणों को सहज रीति से छोड़ पाते हैं. फिर जो हम अपने जीवन में बदलाव लाते हैं उससे हमारे आसपास का वायुमंडल है जो संबंध हैं उनमें भी परिवर्तन आता है.

उस परिवर्तन के लिए भगवान हमें आध्यात्मिक ज्ञान दे रहा है. जब हम परिवर्तित होंगे तो हम युग का परिवर्तन कर सकते हैं और जब युग परिवर्तन होगा तो हम नकारात्मक से सकारात्मक की ओर जाएंगे. कलयुग से सतयुग में प्रवेश कर सकते हैं. दुनिया तो बाद में बनेगी पहले हमें अपने आप को सतयुगी बनाने की जरूरत है. हमें सतयुगी संस्कार सतयुगी गुण अपने जीवन में धारण करने की आवश्यकता है.


महाकुंभ में लगी झांकियां
महाकुंभ में लगी झांकियां (Photo credit: ETV Bharat)

उन्होंने बताया कि जैसे एक बाल्टी में गंदा पानी होना और उस बाल्टी के गंदे पानी को हटाने की हमारे अंदर कैपेसिटी नहीं है तो इसका बहुत सिंपल फार्मूला है कि कंटीन्यूअस में अगर साफ़ पानी डालते हो तो उसमें से गंदा पानी अपने आप निकल जाता है. एक समय पर वह अपने आप खत्म हो जाता है. इसी तरह हमें अपनी बुराइयों को छोड़ने की आदत डालनी है.

हम अपने जीवन में आध्यात्मिकता को लाते हैं तो ऑटोमेटिक धीरे-धीरे हमारी मनोवृत्तियां और जो विकार हैं वह हमारे से निकलते चले जाते हैं. इस पूरे मेले के अंदर यही चीज दिखाई गई है कि अभी जरूरत है समय की मांग है, मनुष्य के जीवन की आवश्यकता है कि हमें अपने आप को बदलना है.

यह भी पढ़ें : महाकुंभ में लेजर शो: देवताओं को अमृत कलश पीते और समुद्र मंथन को देख गदगद हुए लोग - LASER SHOW IN MAHA KUMBH MELA

प्रयागराज (महाकुंभनगर) : महाकुंभ में ब्रह्माकुमारी संस्थान की तरफ से बड़ा सा शिविर लगाया गया है. इस शिविर में कलयुग से सतयुग तक झांकियां दिखाई गई हैं. डिजिटल माध्यम से बेहद आकर्षक तरीके से इन दृश्यों को दर्शाने का प्रयास किया गया है. बड़ी संख्या में श्रद्धालु ब्रह्मकुमारी आश्रम में इसका दीदार करने पहुंच रहे हैं. यह झांकियां लोगों को काफी आकर्षित कर रही हैं. ब्रह्माकुमारीज की सेवादार प्राची बहन ने इस युग परिवर्तन दिव्य दर्शन के बारे में 'ईटीवी भारत' को विशेष जानकारी दी.


ईटीवी भारत संवाददाता ने ब्रह्माकुमारीज की सेवादार प्राची बहन से की बातचीत (Video credit: ETV Bharat)



ब्रह्माकुमारीज की सेवादार बहन प्राची ने बताया कि महाकुंभ में इस बार ब्रह्माकुमारी संस्थान की तरफ से बड़ा सा शिविर लगाया गया है. जिसमें एक परिवर्तन के रूप में दिखाया गया है. इसके अंदर सबसे पहले कलयुगी कांटों का जंगल दिखाया गया है जिसमें यह दर्शाया गया है कि आज के समय में समाज में रहने वाला मनुष्य दिखने में तो मनुष्य है, लेकिन उसके अंदर के जो विकार हैं.

उसकी जो विकृत मनोवृत्तियां हैं जिन मनोवृतियों के कारण आज वह पशु के समान व्यवहार कर रहा है. चाहे वह लोभवृति है, चाहे अहंकार के कारण उसकी वृत्ति है तो यह सारी चीज मनुष्य के जीवन को किस तरह से पतन की तरफ ले जा रही हैं. समय की मांग ये भी यह है कि हमें अगर इस कलयुगी जंगल को बदलना है तो उसके लिए सबसे पहले हमें अपने अंदर की इन दूषित मनोवृतियों को खत्म करना पड़ेगा.

ब्रह्माकुमारी संस्थान की तरफ से लगाई गई झांकियां
ब्रह्माकुमारी संस्थान की तरफ से लगाई गई झांकियां (Photo credit: ETV Bharat)

उन्होंने बताया कि उन दूषित मनोवृतियों को खत्म करने के लिए जिसे हम सामाजिक बुराई के रूप में देख रहे हैं कि मनुष्य, मनुष्य को किस तरह से बिना किसी संवेदना के मार रहा है. मरने वाला भी मनुष्य है और जो मार रहा है वह भी मनुष्य है, लेकिन किसी के अंदर कोई भी संवेदना नहीं है. संवेदनहीन मनुष्य आज कैसे गिरावट की ओर इस समाज को लेकर जा रहा है. हम सब इस समाज के मनुष्य हैं और हमारी हर एक की ड्यूटी है कि हम अपने समाज को बदलना चाहते हैं तो इसके लिए शुरुआत अपने परिवर्तन से करनी पड़ेगी, क्योंकि मनुष्य को समाज की एक इकाई कहा जाता है.

अगर हम अपने से परिवर्तन शुरू करेंगे तो हम अपने समाज का, अपने देश का और सारे विश्व का परिवर्तन कर सकते हैं. भगवान हमें जो सिखाते हैं वह संस्कार परिवर्तन से संसार का परिवर्तन है. यानि पहले हम अपने संस्कारों को बदलें फिर दूसरे संस्कारों को बदलना होगा. उसकी जगह पर हमें अपने अंदर की दिव्यता को डिवाइन वैल्यूज को, मोरल वैल्यूज को लाना पड़ेगा.

महाकुंभ में आकर्षण का केंद्र बनीं झाकियां
महाकुंभ में आकर्षण का केंद्र बनीं झाकियां (Photo credit: ETV Bharat)

उन्होंने बताया कि वह हमें कहीं बाहर से नहीं मिलेगी. उसके लिए परमात्मा ने हमें जो आध्यात्मिक ज्ञान दिया हुआ है जो हमें स्वयं की पहचान दी हुई है, जब हम अपने आप को जान लेते हैं अपनी वास्तविकता को पहचान लेते हैं तो हम अपने अवगुणों को सहज रीति से छोड़ पाते हैं. फिर जो हम अपने जीवन में बदलाव लाते हैं उससे हमारे आसपास का वायुमंडल है जो संबंध हैं उनमें भी परिवर्तन आता है.

उस परिवर्तन के लिए भगवान हमें आध्यात्मिक ज्ञान दे रहा है. जब हम परिवर्तित होंगे तो हम युग का परिवर्तन कर सकते हैं और जब युग परिवर्तन होगा तो हम नकारात्मक से सकारात्मक की ओर जाएंगे. कलयुग से सतयुग में प्रवेश कर सकते हैं. दुनिया तो बाद में बनेगी पहले हमें अपने आप को सतयुगी बनाने की जरूरत है. हमें सतयुगी संस्कार सतयुगी गुण अपने जीवन में धारण करने की आवश्यकता है.


महाकुंभ में लगी झांकियां
महाकुंभ में लगी झांकियां (Photo credit: ETV Bharat)

उन्होंने बताया कि जैसे एक बाल्टी में गंदा पानी होना और उस बाल्टी के गंदे पानी को हटाने की हमारे अंदर कैपेसिटी नहीं है तो इसका बहुत सिंपल फार्मूला है कि कंटीन्यूअस में अगर साफ़ पानी डालते हो तो उसमें से गंदा पानी अपने आप निकल जाता है. एक समय पर वह अपने आप खत्म हो जाता है. इसी तरह हमें अपनी बुराइयों को छोड़ने की आदत डालनी है.

हम अपने जीवन में आध्यात्मिकता को लाते हैं तो ऑटोमेटिक धीरे-धीरे हमारी मनोवृत्तियां और जो विकार हैं वह हमारे से निकलते चले जाते हैं. इस पूरे मेले के अंदर यही चीज दिखाई गई है कि अभी जरूरत है समय की मांग है, मनुष्य के जीवन की आवश्यकता है कि हमें अपने आप को बदलना है.

यह भी पढ़ें : महाकुंभ में लेजर शो: देवताओं को अमृत कलश पीते और समुद्र मंथन को देख गदगद हुए लोग - LASER SHOW IN MAHA KUMBH MELA

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