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डोंगरी में विराजमान मां सरई श्रृंगारिणी मंदिर, पर्यावरण और पेड़ों से इस देवी मां का गहरा नाता - Maa Sarai Shringarini Mata Temple - MAA SARAI SHRINGARINI MATA TEMPLE

जांजगीर चांर के बलौदा ब्लॉक के डोंगरी में मां सरई श्रृंगारिणी विराजमान हैं. यहां पेड़ों की कटाई वर्जित है. कहा जाता है कि यहां पेड़ काटने से मां नाराज हो जाती है. जानिए पेड़ों और पर्यावरण से इस मंदिर का क्या नाता है.

MAA SARAI SHRINGARINI MATA TEMPLE
मां सरई श्रृंगारिणी मंदिर
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Apr 10, 2024, 6:56 PM IST

जांजगीर चांपा: शक्ति की आराधना का पर्व यानी कि चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो गई है. नौ दिनों तक माता के विभिन्न रूपों की पूजा में भक्त लीन रहेंगे. देश भर के हर एक देवी मां के मंदिर को सजाया गया है. हर मंदिर में नवरात्र के दौरान भक्तों की भीड़ उमड़ रही है. इस बीच ईटीवी भारत आपको माता के ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहा है, जहां सरई से मां का श्रृंगार किया गया है. जी हां हम बात कर रहे हैं जांजगीर चांपा के बलौदा ब्लॉक के मां सरई श्रृंगारिनी मंदिर की. इस मंदिर में माता का श्रृंगार गगन चुम्बी पेड़-पौधों ने किया है. इन पेड़ों की रक्षा स्वयं माता रानी करती हैं. यही कारण है कि इस स्थान को लोग सरई श्रृंगार के रूप में जानते हैं.

सरई पेड़ों के बीच बसी माता सराई श्रृंगारिणी: जांजगीर चाम्पा जिला मुख्यालय से महज 30 किलो मीटर की दूरी पर बलौदा ब्लॉक में स्थित है मां सरई श्रृंगारिणी. इस मंदिर के चारों ओर विशालाकाय वृक्षों से सजा मां का दरबार है. इन पेड़ों के नीचे श्रद्धालुओं को ठंडक मिलती है. मां के प्रति श्रद्धालुओं का ऐसा विश्वास है कि यहां चैत्र और आश्विन नवरात्रि में श्रद्धालु एक हजार से भी अधिक मनोकामना ज्योति कलश प्रज्जवलित कराते हैं. साथ ही मंदिर के गर्भ गृह में 35 साल से अधिक समय से अखंड ज्योत जल रही है, जो कि यहां के भक्तों के आस्था की प्रतीक है.

यहां पेड़े की कटाई से डरते हैं लोग: इस मंदिर के बारे में पुजारी का कहना है कि, "सालों से माता यहां विराजमान हैं. एक समय की बात है, जब भिलाई गांव का एक व्यक्ति जंगल में लकड़ी काटने गया और सरई के पेड़ को काटने के बाद उसे ले जाने लगा. उस समय कटी हुई लकड़ी की तलाश की, तब पता चला कि जिस लकड़ी को काटा था वो फिर से पेड़ से जुड़ गया है. व्यक्ति ने फिर से उसे काटने का प्रयास किया और माता ने उसे अपनी उपस्थिति और लकड़ी नहीं काटने के सम्बन्ध में संकेत दिया. फिर भी उसने लकड़ी काटना बंद नहीं किया. इसके बाद उस व्यक्ति का पूरा परिवार भिलाई गांव में रहने लायक नहीं रहा. इस घटना के बाद से आसपास के लोग वन देवी की आराधना करने लगे. तब से पेड़ों की कटाई करने से यहां सब डरते हैं."

इस मंदिर के स्थान पर पहले झोपडीनुमा मंदिर था, लेकिन भक्तों की श्रद्धा और विश्वास के कारण इस स्थान में कई बड़े-बड़े मंदिरों का निर्माण हो चुका है. हालांकि एक भी पेड़ इसके लिए नहीं काटे गए हैं. यहां के पुजारी कोई पंडित नहीं बल्कि यादव समाज से हैं. बड़े ही श्रद्धा के साथ ये माता की पूजा करते हैं. लोगों की खुशहाली की कामना करते हैं. लोग अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए मंदिर परिसर के पेड़ों पर लाल कपड़े में नारियल बांधते हैं. साथ ही मनोकामना पूरी होने पर ज्योति कलश प्रज्ज्वलित करते हैं. -कमल किशोर ठाकुर, श्रद्धालु

अन्य राज्यों से भी आते हैं भक्त: बता दें कि जांजगीर चांपा जिले के बलौदा वन परिक्षेत्र में सरई श्रृंगार मंदिर का अपना अलग ही स्थान है. माता रानी के प्रभाव से इस क्षेत्र में पेड़ों की अवैध कटाई पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगा है.

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जांजगीर चांपा: शक्ति की आराधना का पर्व यानी कि चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो गई है. नौ दिनों तक माता के विभिन्न रूपों की पूजा में भक्त लीन रहेंगे. देश भर के हर एक देवी मां के मंदिर को सजाया गया है. हर मंदिर में नवरात्र के दौरान भक्तों की भीड़ उमड़ रही है. इस बीच ईटीवी भारत आपको माता के ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहा है, जहां सरई से मां का श्रृंगार किया गया है. जी हां हम बात कर रहे हैं जांजगीर चांपा के बलौदा ब्लॉक के मां सरई श्रृंगारिनी मंदिर की. इस मंदिर में माता का श्रृंगार गगन चुम्बी पेड़-पौधों ने किया है. इन पेड़ों की रक्षा स्वयं माता रानी करती हैं. यही कारण है कि इस स्थान को लोग सरई श्रृंगार के रूप में जानते हैं.

सरई पेड़ों के बीच बसी माता सराई श्रृंगारिणी: जांजगीर चाम्पा जिला मुख्यालय से महज 30 किलो मीटर की दूरी पर बलौदा ब्लॉक में स्थित है मां सरई श्रृंगारिणी. इस मंदिर के चारों ओर विशालाकाय वृक्षों से सजा मां का दरबार है. इन पेड़ों के नीचे श्रद्धालुओं को ठंडक मिलती है. मां के प्रति श्रद्धालुओं का ऐसा विश्वास है कि यहां चैत्र और आश्विन नवरात्रि में श्रद्धालु एक हजार से भी अधिक मनोकामना ज्योति कलश प्रज्जवलित कराते हैं. साथ ही मंदिर के गर्भ गृह में 35 साल से अधिक समय से अखंड ज्योत जल रही है, जो कि यहां के भक्तों के आस्था की प्रतीक है.

यहां पेड़े की कटाई से डरते हैं लोग: इस मंदिर के बारे में पुजारी का कहना है कि, "सालों से माता यहां विराजमान हैं. एक समय की बात है, जब भिलाई गांव का एक व्यक्ति जंगल में लकड़ी काटने गया और सरई के पेड़ को काटने के बाद उसे ले जाने लगा. उस समय कटी हुई लकड़ी की तलाश की, तब पता चला कि जिस लकड़ी को काटा था वो फिर से पेड़ से जुड़ गया है. व्यक्ति ने फिर से उसे काटने का प्रयास किया और माता ने उसे अपनी उपस्थिति और लकड़ी नहीं काटने के सम्बन्ध में संकेत दिया. फिर भी उसने लकड़ी काटना बंद नहीं किया. इसके बाद उस व्यक्ति का पूरा परिवार भिलाई गांव में रहने लायक नहीं रहा. इस घटना के बाद से आसपास के लोग वन देवी की आराधना करने लगे. तब से पेड़ों की कटाई करने से यहां सब डरते हैं."

इस मंदिर के स्थान पर पहले झोपडीनुमा मंदिर था, लेकिन भक्तों की श्रद्धा और विश्वास के कारण इस स्थान में कई बड़े-बड़े मंदिरों का निर्माण हो चुका है. हालांकि एक भी पेड़ इसके लिए नहीं काटे गए हैं. यहां के पुजारी कोई पंडित नहीं बल्कि यादव समाज से हैं. बड़े ही श्रद्धा के साथ ये माता की पूजा करते हैं. लोगों की खुशहाली की कामना करते हैं. लोग अपनी मनोकामना पूर्ति के लिए मंदिर परिसर के पेड़ों पर लाल कपड़े में नारियल बांधते हैं. साथ ही मनोकामना पूरी होने पर ज्योति कलश प्रज्ज्वलित करते हैं. -कमल किशोर ठाकुर, श्रद्धालु

अन्य राज्यों से भी आते हैं भक्त: बता दें कि जांजगीर चांपा जिले के बलौदा वन परिक्षेत्र में सरई श्रृंगार मंदिर का अपना अलग ही स्थान है. माता रानी के प्रभाव से इस क्षेत्र में पेड़ों की अवैध कटाई पर पूरी तरह प्रतिबन्ध लगा है.

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