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लखनवी चिकनकारी ; नवाबों की ऐसी धरोहर जो दुनिया को भी बना रही दीवाना, विदेशी भी सीख रहे हुनर - CHIKANKARI ART IN LUCKNOW

Chikankari Art in Lucknow : कढ़ाई का खूबसूरत अनोखा अंदाज सीखने के लिए अंग्रेजों के अलावा कई देशों से लोग हर साल लखनऊ आते हैं.

लखनऊ की अनोखी कढ़ाई कला चिकनकारी.
लखनऊ की अनोखी कढ़ाई कला चिकनकारी. (Photo Credit : ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Nov 27, 2024, 1:36 PM IST

लखनऊ : नवाबी तहजीब और अनूठी कला-परंपरा के लिए लखनऊ की पहचान विश्वभर में है. ऐसी ही विशेष कला है लखनऊ की चिकनकारी (कढ़ाई कला). यह कला न केवल देश के विभिन्न हिस्सों में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बना चुकी है. खूबसूरत कढ़ाई का अंदाज लखनऊ की धरोहरों में खास है. यह ऐसी धरोहर है जो अपनी बारीकी और सुंदरता से सभी को मंत्रमुग्ध कर कर रही है.

लखनवी चिकनकारी पर संवादादाता खुर्शीद अहमद की खास खबर. (Video Credit : ETV Bharat Photo Credit : ETV Bharat)

विदेशियों में बढ़ रही दीवानगी : नवाब मसूद अब्दुल्ला के अनुसार बीते वर्षों में अमेरिका, इंग्लैंड, और फ्रांस से हजारों लोग चिकनकारी का हुनर सीखने लखनऊ आए हैं. इन विदेशी लोगों को चिकनकारी सिखाने के लिए विशेष वर्कशॉप आयोजित की जाती हैं. सुई, धागा, और डिजाइन किट के जरिए ये लोग अपने-अपने देशों में जाकर इस कला को आगे बढ़ा रहे हैं. इंग्लैंड की शीला पेन ने 1980 के दशक में चिकनकारी पर पहली किताब लिखी थी. नवाब मसूद अब्दुल्ला बताते हैं कि हमारे पिता नियर अब्दुल्ला के पास इंग्लैंड में रहने वाली महिला शीला पेन ने 3 साल तक चिकनकारी सीखी और उसके बाद उन्होंने चिकनकारी पर पहली पुस्तक लिखी थी.

चिकन के कुछ मशहूर परिधान.
चिकन के कुछ मशहूर परिधान. (Photo Credit : ETV Bharat)



क्यों सीख रहे अंग्रेज लखनवी चिकनकारी : नवाब मसूद अब्दुल्ला बताते हैं कि अब तक के हजारों की संख्या में अंग्रेजों को चिकनकारी सिखा चुका हूं. जब अंग्रेज लखनऊ में घूमने आते हैं तो शौकिया तौर पर वह लखनवी चिकनकारी भी सीखते हैं. सबसे पहले चिकनकारी पर लेक्चर के जरिए बताया जाता है कि चिकनकारी की क्या बारीकी है. इसका क्या इतिहास है और इसे क्यों पसंद किया जाता है. इसके बाद उन्हें सुई धागा डिजाइन किए हुए कपड़े और कार्यक्रम के जरिए चिकनकारी के गुर सिखाए जाते हैं.

लखनऊ में चिकनकारी का इतिहास.
लखनऊ में चिकनकारी का इतिहास. (Photo Credit : ETV Bharat)


नवाब मसूद अब्दुल्ला बताते हैं कि कई ऐसे अंग्रेज हैं जिन्होंने चिकनकारी सीख कर विदेशों में अपना बिजनेस शुरू कर दिया है, हालांकि कई ऐसे अंग्रेज हैं जिन्होंने चिकनकारी सिर्फ शौकिया तौर पर सीखी है. वह लखनऊ के धरोहरों के बारे में जानना चाहते हैं और उस से मनोरंजन और कला के तौर पर रुचि रखते हैं. नवाब मसूद अब्दुल्ला के मुताबिक लखनऊ चिकनकारी में अंग्रेजों को सबसे ज्यादा कुर्ता और कुर्ती पसंद आता है. साथ ही शेरवानी को लेकर भी काफी क्रेज रहता है.

नवाबों के वंशज नवाब मसूद अबदुल्ला की राय.
नवाबों के वंशज नवाब मसूद अबदुल्ला की राय. (Photo Credit : ETV Bharat)





नवाब मसूद अब्दुल्ला बताते हैं कि सन 2000 में चिकनकारी के कुछ कारीगर हमारी बेगम अलमास के पास आए और काम की मांग कर रहे थे. बेगम ने चिकनकारी का काम शुरू किया और काम देना शुरू किया. धीरे-धीरे मेरी रुचि भी बढ़ी और हमने अल अलमसूद क्रिएशन सोसाइटी बनाई. सोसाइटी के जरिए अब देश के साथ ही विदेशों में भी चिकनकारी की प्रदर्शनी लगते हैं. 2012 में न्यूयॉर्क में लखनवी चिकनकारी की प्रदर्शनी लगाई थी. 2014 में चेन्नई में चिकनकारी प्रदर्शनी लगा करके उत्तर प्रदेश की नुमाइंदीगी की थी. 2013 में मुंबई में चिकनकारी का प्रदर्शनी लगााई. हमारा मकसद लोगों को कम देना और लखनऊ के धरोहर को बचाना है.





फनकारी की बारीकियां और प्रक्रिया : चिकनकारी के कार्य की शुरुआत कपड़ों पर डिज़ाइन तैयार करने से होती है. लकड़ी के ब्लॉक्स से बनाए गए डिजाइनों पर सुई और धागे से कढ़ाई की जाती है. इसके बाद कपड़ों की धुलाई होती है और वे बिक्री के लिए तैयार किए जाते हैं. चिकनकारी के 32 विशेष डिजाइन होते हैं, जिनमें 'टैंक' और 'हारी' जैसे जटिल पैटर्न भी शामिल हैं. इन डिजाइनों पर काम करने वाले कारीगर अब दुर्लभ हो रहे हैं. यह कला पहले पुरुषों तक सीमित थी, लेकिन धीरे-धीरे महिलाओं ने इसे अपनाया और रोजगार का एक सशक्त माध्यम बनाया.

यह भी पढ़ें : संतरे के छिलके और बांस के कपड़ों पर भी चिकनकारी, महिलाओं के लिए तैयार हो रहीं खास साड़ियां व कुर्ते, पढ़िए डिटेल - Chikankari in Lucknow

यह भी पढ़ें : आईआईएम इंदौर लखनऊ की चिकनकारी को करेगा प्रमोट, ई-मार्केटिंग से कारीगरों को होंगे यह लाभ

लखनऊ : नवाबी तहजीब और अनूठी कला-परंपरा के लिए लखनऊ की पहचान विश्वभर में है. ऐसी ही विशेष कला है लखनऊ की चिकनकारी (कढ़ाई कला). यह कला न केवल देश के विभिन्न हिस्सों में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी अलग पहचान बना चुकी है. खूबसूरत कढ़ाई का अंदाज लखनऊ की धरोहरों में खास है. यह ऐसी धरोहर है जो अपनी बारीकी और सुंदरता से सभी को मंत्रमुग्ध कर कर रही है.

लखनवी चिकनकारी पर संवादादाता खुर्शीद अहमद की खास खबर. (Video Credit : ETV Bharat Photo Credit : ETV Bharat)

विदेशियों में बढ़ रही दीवानगी : नवाब मसूद अब्दुल्ला के अनुसार बीते वर्षों में अमेरिका, इंग्लैंड, और फ्रांस से हजारों लोग चिकनकारी का हुनर सीखने लखनऊ आए हैं. इन विदेशी लोगों को चिकनकारी सिखाने के लिए विशेष वर्कशॉप आयोजित की जाती हैं. सुई, धागा, और डिजाइन किट के जरिए ये लोग अपने-अपने देशों में जाकर इस कला को आगे बढ़ा रहे हैं. इंग्लैंड की शीला पेन ने 1980 के दशक में चिकनकारी पर पहली किताब लिखी थी. नवाब मसूद अब्दुल्ला बताते हैं कि हमारे पिता नियर अब्दुल्ला के पास इंग्लैंड में रहने वाली महिला शीला पेन ने 3 साल तक चिकनकारी सीखी और उसके बाद उन्होंने चिकनकारी पर पहली पुस्तक लिखी थी.

चिकन के कुछ मशहूर परिधान.
चिकन के कुछ मशहूर परिधान. (Photo Credit : ETV Bharat)



क्यों सीख रहे अंग्रेज लखनवी चिकनकारी : नवाब मसूद अब्दुल्ला बताते हैं कि अब तक के हजारों की संख्या में अंग्रेजों को चिकनकारी सिखा चुका हूं. जब अंग्रेज लखनऊ में घूमने आते हैं तो शौकिया तौर पर वह लखनवी चिकनकारी भी सीखते हैं. सबसे पहले चिकनकारी पर लेक्चर के जरिए बताया जाता है कि चिकनकारी की क्या बारीकी है. इसका क्या इतिहास है और इसे क्यों पसंद किया जाता है. इसके बाद उन्हें सुई धागा डिजाइन किए हुए कपड़े और कार्यक्रम के जरिए चिकनकारी के गुर सिखाए जाते हैं.

लखनऊ में चिकनकारी का इतिहास.
लखनऊ में चिकनकारी का इतिहास. (Photo Credit : ETV Bharat)


नवाब मसूद अब्दुल्ला बताते हैं कि कई ऐसे अंग्रेज हैं जिन्होंने चिकनकारी सीख कर विदेशों में अपना बिजनेस शुरू कर दिया है, हालांकि कई ऐसे अंग्रेज हैं जिन्होंने चिकनकारी सिर्फ शौकिया तौर पर सीखी है. वह लखनऊ के धरोहरों के बारे में जानना चाहते हैं और उस से मनोरंजन और कला के तौर पर रुचि रखते हैं. नवाब मसूद अब्दुल्ला के मुताबिक लखनऊ चिकनकारी में अंग्रेजों को सबसे ज्यादा कुर्ता और कुर्ती पसंद आता है. साथ ही शेरवानी को लेकर भी काफी क्रेज रहता है.

नवाबों के वंशज नवाब मसूद अबदुल्ला की राय.
नवाबों के वंशज नवाब मसूद अबदुल्ला की राय. (Photo Credit : ETV Bharat)





नवाब मसूद अब्दुल्ला बताते हैं कि सन 2000 में चिकनकारी के कुछ कारीगर हमारी बेगम अलमास के पास आए और काम की मांग कर रहे थे. बेगम ने चिकनकारी का काम शुरू किया और काम देना शुरू किया. धीरे-धीरे मेरी रुचि भी बढ़ी और हमने अल अलमसूद क्रिएशन सोसाइटी बनाई. सोसाइटी के जरिए अब देश के साथ ही विदेशों में भी चिकनकारी की प्रदर्शनी लगते हैं. 2012 में न्यूयॉर्क में लखनवी चिकनकारी की प्रदर्शनी लगाई थी. 2014 में चेन्नई में चिकनकारी प्रदर्शनी लगा करके उत्तर प्रदेश की नुमाइंदीगी की थी. 2013 में मुंबई में चिकनकारी का प्रदर्शनी लगााई. हमारा मकसद लोगों को कम देना और लखनऊ के धरोहर को बचाना है.





फनकारी की बारीकियां और प्रक्रिया : चिकनकारी के कार्य की शुरुआत कपड़ों पर डिज़ाइन तैयार करने से होती है. लकड़ी के ब्लॉक्स से बनाए गए डिजाइनों पर सुई और धागे से कढ़ाई की जाती है. इसके बाद कपड़ों की धुलाई होती है और वे बिक्री के लिए तैयार किए जाते हैं. चिकनकारी के 32 विशेष डिजाइन होते हैं, जिनमें 'टैंक' और 'हारी' जैसे जटिल पैटर्न भी शामिल हैं. इन डिजाइनों पर काम करने वाले कारीगर अब दुर्लभ हो रहे हैं. यह कला पहले पुरुषों तक सीमित थी, लेकिन धीरे-धीरे महिलाओं ने इसे अपनाया और रोजगार का एक सशक्त माध्यम बनाया.

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