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आज भी इमामबाड़े की बाउली में छिपा है नवाबों का खजाना, जानिए क्या कहते हैं वंशज

Lucknow Imambara : 1784 में नवाब आसफ-उद-दौला के शासनकाल में हुआ था निर्माण. अंग्रेज भी नहीं ढूंढ पाए थे खजाना और नक्शा.

लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरें.
लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरें. (Photo Credit: ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 18, 2024, 6:01 PM IST

लखनऊ : ऐतिहासिक धरोहरों और नवाबी शानो-शौकत के लिए प्रसिद्ध लखनऊ आज भी कई रहस्यों को संजोए हुए है. इन्हीं में से एक है आसफी इमामबाड़ा के परिसर में स्थित शाही कुआं. जिसके बारे में कहा जाता है कि इसमें नवाबों का छिपा खजाना दफन है. नवाबों के वफादार खजांची मेवालाल रस्तोगी ने खजाने की चाबी और नक्शा लेकर इस शाही कुएं में कूद गए थे. बाउली की सबसे अनोखी बात यह है कि इसके प्रवेश द्वार पर जो भी व्यक्ति आता है, उसकी परछाई अंदर बैठे गार्ड को दिखाई देती है. यह तथ्य आज भी पर्यटकों के लिए अत्यंत रोमांचक है.

लखनऊ इमामबाड़ा.
लखनऊ इमामबाड़ा. (Video Credit : ETV Bharat Photo Credit: ETV Bharat)

इतिहास के अनुसार 1784 में नवाब आसफ-उद-दौला के शासनकाल में आसफी इमामबाड़ा का निर्माण हुआ. उसी समय बाउली (कुएं) का भी निर्माण कराया गया था. इस बाउली से जुड़ी कहानियां और किस्से लखनऊवासियों के जुबान पर आज भी हैं. कहा जाता है कि 1856 में अंग्रेज लखनऊ के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह को गिरफ्तार करके कोलकाता ले गए. इसके बाद अंग्रेजों ने उनके खजाने की तलाशी शुरू की, लेकिन खजाने का कोई सुराग नहीं मिला. मान्यता है कि नवाबों के वफादार खजांची रहे मेवालाल रस्तोगी खजाने की चाबी और नक्शा लेकर इस शाही बाउली में कूद गए थे. इसके बाद अंग्रेजों ने काफी प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिली.

लखनऊ इमामबाड़े की बाउली पर संवाददाता खुर्शीद अहमद की खास खबर. (Video Credit : ETV Bharat)


इतिहासकार रोशन तकी के अनुसार यह बाउली का निर्माण नवाब आसफ-उद-दौला के समय हुआ था. इसे सात मंजिला भी कहा जाता था. बाउली के प्रवेश द्वार पर ऊंची और सादी मेहराबें हैं और अंदर जाने पर सीढ़ियां पानी तक पहुंचती हैं. इसके बगल में तीन मंजिला मेहराबों की कतारें हैं, जो इसे और भी भव्य बनाती हैं.
यह भी कहा जाता है कि नवाब आसफ-उद-दौला ने इमामबाड़ा के साथ एक शाही ठंडा मेहमानखाना भी बनवाया था, जो इस बाउली से सटा हुआ था. गाइड इकबाल हसन ने ईटीवी भारत को बताया कि बाउली के भीतर से कई बार सिक्कों की खनक सुनाई देती है, लेकिन इसका कोई प्रमाण मौजूद नहीं है.




नवाबों के वंशज नवाब मसूद अब्दुल्ला ने बताया कि बाउली का निर्माण पानी सप्लाई के लिए किया गया था. बाउली पांच मंजिला है जो सीधे गोमती से मिलती है. बावली के संबंध में कई तरह की कहानियां हैं. इतिहास में कहीं भी इस तरह की बातें प्रमाणित नहीं है. अगर अंग्रेजों को खजाना ढूंढना ही होता तो वह बाउली में गोताखोरों को भेजते या और किसी तकनीक से चाबियां निकाल सकते थे. बहरहाल यह ऐतिहासिक बाउली आज प्रशासन की उपेक्षा का शिकार है. धीरे-धीरे खस्ताहाल होती बाउली का वजूद संकट में है. अगर इसे संरक्षित नहीं किया गया तो यह अनमोल धरोहर और उससे जुड़ी कहानियां खत्म हो जाएंगी.

यह भी पढ़ें : स्वतंत्रता संग्राम के वीरों की गाथाओं की गवाह हैं लखनऊ की ऐतिहासिक धरोहरें, आप भी जानिए इतिहास

यह भी पढ़ें : विश्व धरोहर सूची में शामिल नहीं हो पाईं लखनऊ की नायाब और ऐतिहासिक धरोहरें, जानें कारण

लखनऊ : ऐतिहासिक धरोहरों और नवाबी शानो-शौकत के लिए प्रसिद्ध लखनऊ आज भी कई रहस्यों को संजोए हुए है. इन्हीं में से एक है आसफी इमामबाड़ा के परिसर में स्थित शाही कुआं. जिसके बारे में कहा जाता है कि इसमें नवाबों का छिपा खजाना दफन है. नवाबों के वफादार खजांची मेवालाल रस्तोगी ने खजाने की चाबी और नक्शा लेकर इस शाही कुएं में कूद गए थे. बाउली की सबसे अनोखी बात यह है कि इसके प्रवेश द्वार पर जो भी व्यक्ति आता है, उसकी परछाई अंदर बैठे गार्ड को दिखाई देती है. यह तथ्य आज भी पर्यटकों के लिए अत्यंत रोमांचक है.

लखनऊ इमामबाड़ा.
लखनऊ इमामबाड़ा. (Video Credit : ETV Bharat Photo Credit: ETV Bharat)

इतिहास के अनुसार 1784 में नवाब आसफ-उद-दौला के शासनकाल में आसफी इमामबाड़ा का निर्माण हुआ. उसी समय बाउली (कुएं) का भी निर्माण कराया गया था. इस बाउली से जुड़ी कहानियां और किस्से लखनऊवासियों के जुबान पर आज भी हैं. कहा जाता है कि 1856 में अंग्रेज लखनऊ के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह को गिरफ्तार करके कोलकाता ले गए. इसके बाद अंग्रेजों ने उनके खजाने की तलाशी शुरू की, लेकिन खजाने का कोई सुराग नहीं मिला. मान्यता है कि नवाबों के वफादार खजांची रहे मेवालाल रस्तोगी खजाने की चाबी और नक्शा लेकर इस शाही बाउली में कूद गए थे. इसके बाद अंग्रेजों ने काफी प्रयास किया, लेकिन सफलता नहीं मिली.

लखनऊ इमामबाड़े की बाउली पर संवाददाता खुर्शीद अहमद की खास खबर. (Video Credit : ETV Bharat)


इतिहासकार रोशन तकी के अनुसार यह बाउली का निर्माण नवाब आसफ-उद-दौला के समय हुआ था. इसे सात मंजिला भी कहा जाता था. बाउली के प्रवेश द्वार पर ऊंची और सादी मेहराबें हैं और अंदर जाने पर सीढ़ियां पानी तक पहुंचती हैं. इसके बगल में तीन मंजिला मेहराबों की कतारें हैं, जो इसे और भी भव्य बनाती हैं.
यह भी कहा जाता है कि नवाब आसफ-उद-दौला ने इमामबाड़ा के साथ एक शाही ठंडा मेहमानखाना भी बनवाया था, जो इस बाउली से सटा हुआ था. गाइड इकबाल हसन ने ईटीवी भारत को बताया कि बाउली के भीतर से कई बार सिक्कों की खनक सुनाई देती है, लेकिन इसका कोई प्रमाण मौजूद नहीं है.




नवाबों के वंशज नवाब मसूद अब्दुल्ला ने बताया कि बाउली का निर्माण पानी सप्लाई के लिए किया गया था. बाउली पांच मंजिला है जो सीधे गोमती से मिलती है. बावली के संबंध में कई तरह की कहानियां हैं. इतिहास में कहीं भी इस तरह की बातें प्रमाणित नहीं है. अगर अंग्रेजों को खजाना ढूंढना ही होता तो वह बाउली में गोताखोरों को भेजते या और किसी तकनीक से चाबियां निकाल सकते थे. बहरहाल यह ऐतिहासिक बाउली आज प्रशासन की उपेक्षा का शिकार है. धीरे-धीरे खस्ताहाल होती बाउली का वजूद संकट में है. अगर इसे संरक्षित नहीं किया गया तो यह अनमोल धरोहर और उससे जुड़ी कहानियां खत्म हो जाएंगी.

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