लखनऊ : मिशन शक्ति अभियान और बालिका दिवस के मौके पर उत्तर प्रदेश राज्य बाल आयोग ने गुरुवार को चंदौली प्रीतपुर वनवासी बस्ती निवासी चंचल कुमारी को एक दिन का सदस्य बनाकर शिकायतें सुनने की जिम्मेदारी सौंपी. इस दौरान चंचल ने बाल आयोग में आईं चार शिकायतकर्ताओं को सुना और अपना फैसला सुनाया. चंचल 10वीं पास करने वाली अपने गांव की पहली लड़की भी है.
ईटीवी भारत से चंचल ने बताया कि हमारा गांव जंगल क्षेत्र में है. हमारे गांव में बाल विवाह की प्रथा अब भी प्रचलित है. संशाधनों के अभाव और घर की जरूरतें पूरी करने के लिए बड़े वर्ग को बाल श्रम करना पड़ता है. हम भी नौ बहन एक भाई हैं. गांव से स्कूल 7 से 10 किलोमीटर की दूर है. ऐसे में लोग बच्चों को स्कूल नहीं भेजते हैं.
मैं गांव की पहली लड़की हूं जो पढ़ाई कर रही हूं. चंचल ने बताया कि पिता का सपना है कि वह बड़े होकर डॉक्टर बने, लेकिन मैं अध्यापक बनना चाहती हूं. ताकि अपने जैसे बच्चों की जिंदगी में शिक्षा का उजियारा फैला सकूं. बालिका दिवस की मौके पर एक केस में बच्चे की पढ़ाई के लिए राइट टू एजुकेशन के तहत क्षेत्र के सरकारी और निजी स्कूल को आदेश किया है.
बाल आयोग की नियमित सदस्य सुचिता चतुर्वेदी ने बताया कि बालिका दिवस पर कुछ अलग करने के बाबत मानव संसाधन एवं महिला विकास संस्था ने संपर्क किया गया था. इसी क्रम में चंचल को एक दिन के लिए सदस्य बनाया गया. इस दौरान चंचल ने शिक्षा के मामले में बहुत ही अच्छा फैसला सुनाया. चंचल खुद ऐसे क्षेत्र से है, जहां पर उसे भली-भांति मालूम है कि जीवन में शिक्षा की अहमियत क्या होती है. चंचल के गांव में स्कूल नहीं है. इस गांव के अन्य बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी है, लेकिन चंचल ने हिम्मत नहीं हारी है. वह रोज 10 किलोमीटर दूर पढ़ाई करने के लिए जाती है.
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