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राजस्थान के इस मंदिर में भगवान वेंकटेश को पहनाई जाती है उतरी माला, जानें क्या है इस दिव्यधाम का साउथ कनेक्शन - ALWAR VENKATESH BALAJI DIVYA DHAM

अलवर के इस मंदिर में भगवान वेंकटेश को पहनाई जाती है उतरी माला, जानें इस प्रथा का साउथ कनेक्शन.

Alwar Venkatesh Balaji Divya Dham
अलवर का अनोखा दिव्य मंदिर (ETV BHARAT ALWAR)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Dec 14, 2024, 6:03 AM IST

अलवर : ऐसे तो जिले में सैकड़ों मंदिर हैं, जिनमें अलग-अलग परंपराओं से भगवान का शृंगार, महोत्सव व अनुष्ठान के आयोजन होते हैं, लेकिन आज हम एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे, जहां भगवान को उतरी माला पहनाई जाती है. इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां हर साल एक माह तक इसी प्रथा के अनुरुप भगवान की पूजा-अर्चना होती है. अलवर के रामकिशन कॉलोनी स्थित वेंकटेश बालाजी दिव्यधाम मंदिर में हर साल एक माह का गोदांबा महोत्सव आयोजित होता है. इस आयोजन के दौरान भगवान वेंकटेश को गोदांबा जी की प्रतिमा से उतारी माला पहनाई जाती है. सुनने में यह प्रथा जरूर अटपटी लग रही होगी, लेकिन इस प्रथा के तार दक्षिण भारत से जुड़े हैं.

इस महोत्सव के दौरान बड़ी संख्या में भक्त मंदिर परिसर में आकर अपनी मन्नत पूरी होने की कामना करते हैं. मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष स्वामी सुदर्शनाचार्य महाराज बताते हैं कि इस महोत्सव के दौरान जिन युवक व युवतियों की शादी नहीं हो पा रही होती है, वो बड़ी संख्या में यहां आकर शीश नवाते हैं.

अलवर का वेंकटेश बालाजी दिव्यधाम मंदिर (ETV BHARAT ALWAR)

इसे भी पढ़ें - ठाकुर जी को सर्दी से बचाने के जतन, बांके बिहारी ने धारण किए गर्म वस्त्र - SRI BANKE BIHARI TEMPLE

वेंकटेश बालाजी दिव्य धाम ट्रस्ट के अध्यक्ष स्वामी सुदर्शनाचार्य ने बताया कि मंदिर में हर साल 16 दिसंबर से गोदांबा महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जो एक माह तक चलता है. आयोजन के दौरान मंदिर में सुबह मंगला आरती की जाती है और फिर सुबह गौ माता भगवान गोविंद को दर्शन देती हैं. उसके बाद से भक्तों की ओर से भजन कीर्तन किए जाते है. साथ ही कई धार्मिक अनुष्ठान भी आयोजित होते हैं.

सात्तूमुरा पूजा विधि : स्वामी सुदर्शनाचार्य ने बताया कि महोत्सव के दौरान रोजाना भगवान वेंकटेश की 16 वस्तुओं से पूजा-अर्चना की जाती है. साथ ही भगवान को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है. इस विधि को दक्षिण भारत में सात्तूमुरा पूजा विधि कहा जाता है. उन्होंने बताया कि रामानुज (वैष्णव) संप्रदाय के मंदिरों में गोदांबा महोत्सव की प्रथा है.

इसलिए पड़ा गोदांबा नाम : स्वामी सुदर्शनाचार्य ने बताया कि गोदांबा जी को कलियुग में राधा रानी का प्रत्यक्ष अवतार बताया गया है. जिस तरह सीता हल के अग्र भाग से उत्पन हुई थी, इसलिए उनका नाम सीता पड़ा. उसी तरह तुलसी के बगीचे की गुड़ाई करते हुए प्रकट होने से इनका नाम गोदांबा रखा गया.

इसे भी पढ़ें - भगवान विष्णु के 8 स्वयंभू क्षेत्रों में से एक है पुष्कर का वराह मंदिर, झेल चुका है कई बार विदेशी आक्रांताओं के हमले - VARAHA TEMPLE IN PUSHKAR

गोदांबा जी ने रखा था 30 दिन व्रत : स्वामी सुदर्शनाचार्य ने बताया कि कलियुग के 98वें वर्ष पूर्ण होने पर दक्षिण भारत के श्रीविल्लीपुत्तूर में विष्णुचित्त के घर में तुलसी के वन में कमल के पुष्प पर एक देवी के रूप में गोदांबा जी प्रकट हुई थी. माता-पिता से मिले संस्कारों के चलते वो बाल्यावस्था से ही रोजाना भगवान की कथा सुनती थी. इससे उन्हें भगवान के प्रति ऐसा अनुराग हुआ कि वे मन ही मन सोचने लगी कि प्रभु ही मेरे पति बने. इस भाव के साथ गोदांबा जी ने 30 दिन का व्रत रखा था.

पिता की बनाई माला को पहनते थी गोदांबा : स्वामी सुदर्शनाचार्य ने कहा कि गोदांबा जी के पिता भगवान रंगनाथ के भक्त थे. वो रोजाना भगवान के लिए माला बनाकर रखते थे. उस माला को छुपकर गोदांबा पहनकर शीशे में भगवान की फोटो को साथ लेकर निहारती थी. एक दिन उनके पिता ने उन्हें अपनी उतरी हुई माला भगवान को पहनाते हुए देखकर डांट लगाई कि भगवान के लिए बनाई हुई माला नहीं पहननी चाहिए. इस से भगवान नाराज होते हैं. यह कोई प्रसाद नहीं है. इस पर गोदांबा जी ने कहा कि वह अपनी भक्ति के प्रभाव से कहती है कि इस माला को भगवान जरूर धारण करेंगे.

इसे भी पढ़ें - तिरुपति मंदिर में शुद्ध प्रसाद के लिए 'पथमेड़ा' ने भेजा पत्र, गौशाला सेवा में सहयोग करने को तैयार - TIRUMALA TEMPLE

आकाशवाणी कर भगवान ने कही शादी की बात : स्वामी सुदर्शनाचार्य ने कहा कि गोदांबा जी की भक्ति से भगवान प्रसन्न हुए और उन्होंने उसी समय आकाशवाणी कर गोदांबा जी के पिता से कहा कि वे अपनी बेटी की शादी की तैयारी करें. मैं स्वयं प्रकट होकर इस माला को धारण करूंगा. उन्होंने बताया कि भगवान 16 वर्षीय राजकुमार के रूप में प्रतिमा से निकले और गोदांबा जी का हाथ पकड़कर अपने श्रीविग्रह में समाहित हो गए, तभी से यह नियम चला आ रहा है कि 16 दिसंबर से 14 जनवरी तक गोदांबा जी की प्रतिमा के गले से माला उतार कर विष्णु के स्वरूप वेंकटेश भगवान को माला पहनाई जाती है.

धूमधाम से होता है आयोजन : स्वामी सुदर्शनाचार्य ने कहा कि एक माह तक चलने वाले इस आयोजन को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इसमें शामिल होने के लिए अलवर ही नहीं, बल्कि दूर-दूर से भक्त आते हैं. साथ ही दक्षिण से भी कई संत व महात्मा को निमंत्रण देकर बुलाया जाता है.

अलवर : ऐसे तो जिले में सैकड़ों मंदिर हैं, जिनमें अलग-अलग परंपराओं से भगवान का शृंगार, महोत्सव व अनुष्ठान के आयोजन होते हैं, लेकिन आज हम एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे, जहां भगवान को उतरी माला पहनाई जाती है. इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां हर साल एक माह तक इसी प्रथा के अनुरुप भगवान की पूजा-अर्चना होती है. अलवर के रामकिशन कॉलोनी स्थित वेंकटेश बालाजी दिव्यधाम मंदिर में हर साल एक माह का गोदांबा महोत्सव आयोजित होता है. इस आयोजन के दौरान भगवान वेंकटेश को गोदांबा जी की प्रतिमा से उतारी माला पहनाई जाती है. सुनने में यह प्रथा जरूर अटपटी लग रही होगी, लेकिन इस प्रथा के तार दक्षिण भारत से जुड़े हैं.

इस महोत्सव के दौरान बड़ी संख्या में भक्त मंदिर परिसर में आकर अपनी मन्नत पूरी होने की कामना करते हैं. मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष स्वामी सुदर्शनाचार्य महाराज बताते हैं कि इस महोत्सव के दौरान जिन युवक व युवतियों की शादी नहीं हो पा रही होती है, वो बड़ी संख्या में यहां आकर शीश नवाते हैं.

अलवर का वेंकटेश बालाजी दिव्यधाम मंदिर (ETV BHARAT ALWAR)

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वेंकटेश बालाजी दिव्य धाम ट्रस्ट के अध्यक्ष स्वामी सुदर्शनाचार्य ने बताया कि मंदिर में हर साल 16 दिसंबर से गोदांबा महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जो एक माह तक चलता है. आयोजन के दौरान मंदिर में सुबह मंगला आरती की जाती है और फिर सुबह गौ माता भगवान गोविंद को दर्शन देती हैं. उसके बाद से भक्तों की ओर से भजन कीर्तन किए जाते है. साथ ही कई धार्मिक अनुष्ठान भी आयोजित होते हैं.

सात्तूमुरा पूजा विधि : स्वामी सुदर्शनाचार्य ने बताया कि महोत्सव के दौरान रोजाना भगवान वेंकटेश की 16 वस्तुओं से पूजा-अर्चना की जाती है. साथ ही भगवान को खिचड़ी का भोग लगाया जाता है. इस विधि को दक्षिण भारत में सात्तूमुरा पूजा विधि कहा जाता है. उन्होंने बताया कि रामानुज (वैष्णव) संप्रदाय के मंदिरों में गोदांबा महोत्सव की प्रथा है.

इसलिए पड़ा गोदांबा नाम : स्वामी सुदर्शनाचार्य ने बताया कि गोदांबा जी को कलियुग में राधा रानी का प्रत्यक्ष अवतार बताया गया है. जिस तरह सीता हल के अग्र भाग से उत्पन हुई थी, इसलिए उनका नाम सीता पड़ा. उसी तरह तुलसी के बगीचे की गुड़ाई करते हुए प्रकट होने से इनका नाम गोदांबा रखा गया.

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गोदांबा जी ने रखा था 30 दिन व्रत : स्वामी सुदर्शनाचार्य ने बताया कि कलियुग के 98वें वर्ष पूर्ण होने पर दक्षिण भारत के श्रीविल्लीपुत्तूर में विष्णुचित्त के घर में तुलसी के वन में कमल के पुष्प पर एक देवी के रूप में गोदांबा जी प्रकट हुई थी. माता-पिता से मिले संस्कारों के चलते वो बाल्यावस्था से ही रोजाना भगवान की कथा सुनती थी. इससे उन्हें भगवान के प्रति ऐसा अनुराग हुआ कि वे मन ही मन सोचने लगी कि प्रभु ही मेरे पति बने. इस भाव के साथ गोदांबा जी ने 30 दिन का व्रत रखा था.

पिता की बनाई माला को पहनते थी गोदांबा : स्वामी सुदर्शनाचार्य ने कहा कि गोदांबा जी के पिता भगवान रंगनाथ के भक्त थे. वो रोजाना भगवान के लिए माला बनाकर रखते थे. उस माला को छुपकर गोदांबा पहनकर शीशे में भगवान की फोटो को साथ लेकर निहारती थी. एक दिन उनके पिता ने उन्हें अपनी उतरी हुई माला भगवान को पहनाते हुए देखकर डांट लगाई कि भगवान के लिए बनाई हुई माला नहीं पहननी चाहिए. इस से भगवान नाराज होते हैं. यह कोई प्रसाद नहीं है. इस पर गोदांबा जी ने कहा कि वह अपनी भक्ति के प्रभाव से कहती है कि इस माला को भगवान जरूर धारण करेंगे.

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आकाशवाणी कर भगवान ने कही शादी की बात : स्वामी सुदर्शनाचार्य ने कहा कि गोदांबा जी की भक्ति से भगवान प्रसन्न हुए और उन्होंने उसी समय आकाशवाणी कर गोदांबा जी के पिता से कहा कि वे अपनी बेटी की शादी की तैयारी करें. मैं स्वयं प्रकट होकर इस माला को धारण करूंगा. उन्होंने बताया कि भगवान 16 वर्षीय राजकुमार के रूप में प्रतिमा से निकले और गोदांबा जी का हाथ पकड़कर अपने श्रीविग्रह में समाहित हो गए, तभी से यह नियम चला आ रहा है कि 16 दिसंबर से 14 जनवरी तक गोदांबा जी की प्रतिमा के गले से माला उतार कर विष्णु के स्वरूप वेंकटेश भगवान को माला पहनाई जाती है.

धूमधाम से होता है आयोजन : स्वामी सुदर्शनाचार्य ने कहा कि एक माह तक चलने वाले इस आयोजन को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है. इसमें शामिल होने के लिए अलवर ही नहीं, बल्कि दूर-दूर से भक्त आते हैं. साथ ही दक्षिण से भी कई संत व महात्मा को निमंत्रण देकर बुलाया जाता है.

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