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रावण वध से पहले भगवान राम ने की थी इस देवी की आराधना, प्राप्त की थीं सिद्धियां

मनवांछित फल प्राप्ति के लिए करें मां अपराजिता की पूजा. रावण वध से पहले भगवान राम ने भी की थी आराधना.

SHARADIYA NAVRATRI 2024
भगवान राम ने की थी इस देवी की आराधना (ETV BHARAT Bikaner)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Oct 10, 2024, 9:21 AM IST

Updated : Oct 10, 2024, 9:38 AM IST

बीकानेर : शारदीय नवरात्र में नौ दिनों तक देवी दुर्गा के अलग-अलग स्वरूप की पूजा होती है. साथ ही 10वें दिन यानी दशमी को दशांश हवन होता है. इसके अलावा विजयादशमी को ही नौ स्वरूपों से मिलकर प्रकट हुई मां अपराजिता की भी पूजा होती है. खैर, आप नहीं जानते होंगे कि क्यों इस दिन मां अपराजिता की पूजा होती है, चलिए आपको बताते हैं.

माता प्रदान करती हैं सिद्धियां : मनवांछित फल की कामना और सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए मंगल जीवन की अभिलाषा से शारदीय नवरात्र में नौ दिन देवी के विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है. नौ दिन की पूजा-अर्चना के बाद विजयादशमी को दशांश हवन के साथ ही अनुष्ठान पूरा होता है. इस दिन माता अपराजिता की पूजा की जाती है. इससे प्रसन्न होकर देवी शक्ति और सिद्धियां प्रदान करती हैं.

इसे भी पढ़ें - नवरात्र के आठवें दिन देवी महागौरी की होती पूजा, इस भोग से माता होती हैं प्रसन्न

रावण वध से पहले भगवान राम ने की पूजा : पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि वैसे तो नाम से ही आभास हो जाता है कि अपराजिता का अर्थ है जिसकी कभी पराजय न हो. उन्होंने बताया कि शत्रु दमन, किसी प्रकार की अड़चन और वर्तमान चुनाव में विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से भी मां अपराजिता की पूजा होती है. उन्होंने बताया कि सात्विक तरीके से षोडशोपचार के साथ देवी अपराजिता की पूजा करने का विशेष महत्व है. भगवान राम ने रावण का वध करने से पहले विजयादशमी के दिन देवी अपराजिता की पूजा की थी और रावण पर विजय प्राप्त की थी. इसका जिक्र मार्कंडेय पुराण, देवी भागवत में भी मिलता है.

मां को अतिप्रिय है अपराजिता का पुष्प : पंडित किराडू ने बताया कि अपराजिता नाम से पुष्प भी होते हैं, जिन्हें विष्णुक्रांता और शंखपुष्पी भी कहा जाता है. उन्होंने बताया कि देवी अपराजिता की पूजा-अर्चना में इन पुष्पों का अर्चन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. अपराजिता के साथ ही भगवान विष्णु और भगवान शंकर को भी अपराजिता के पुष्प काफी प्रिय है. इसका जिक्र हमारे शास्त्रों में भी मिलता है.

उड़द से बने मिठाई का लगाएं भोग : उन्होंने बताया कि देवी अपराजिता को उड़द से बनी मिठाई और लापसी का भोग लगाया जाता है. देवी अपराजिता 10 भुजाएं धारण किए हुए हैं और उनके हाथ में विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र होते हैं. देवी अपराजिता सिंह की सवारी करती हैं.

इसे भी पढ़ें - बंगाल की तर्ज पर पहली बार बाड़मेर में दुर्गा पूजा, मिट्टी से बनी 9 फीट ऊंची है मां दुर्गा की प्रतिमा

विजयादशमी के दिन पूजन का खास महत्व : पंडित किराडू ने बताया कि देवी अपराजिता की पूजा भगवान राम ने विजयादशमी के दिन की थी और इस दिन उनकी पूजा का खास महत्व है. वे कहते हैं कि देवी अपराजिता की पूजा करने से काम, क्रोध, लोभ, मोह और अलग-अलग प्रकार के विकार नष्ट होते हैं. उन्होंने कहा कि कुछ लोग वैशाख शुक्ल अष्टमी को मां बगलामुखी के अवतरण दिवस पर भी देवी अपराजिता की पूजा करते है. उन्होंने बताया कि दक्षिण भारत में देवी अपराजिता की पूजा आमतौर पर साधक लोग करते हैं.

बीकानेर : शारदीय नवरात्र में नौ दिनों तक देवी दुर्गा के अलग-अलग स्वरूप की पूजा होती है. साथ ही 10वें दिन यानी दशमी को दशांश हवन होता है. इसके अलावा विजयादशमी को ही नौ स्वरूपों से मिलकर प्रकट हुई मां अपराजिता की भी पूजा होती है. खैर, आप नहीं जानते होंगे कि क्यों इस दिन मां अपराजिता की पूजा होती है, चलिए आपको बताते हैं.

माता प्रदान करती हैं सिद्धियां : मनवांछित फल की कामना और सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए मंगल जीवन की अभिलाषा से शारदीय नवरात्र में नौ दिन देवी के विभिन्न स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है. नौ दिन की पूजा-अर्चना के बाद विजयादशमी को दशांश हवन के साथ ही अनुष्ठान पूरा होता है. इस दिन माता अपराजिता की पूजा की जाती है. इससे प्रसन्न होकर देवी शक्ति और सिद्धियां प्रदान करती हैं.

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रावण वध से पहले भगवान राम ने की पूजा : पञ्चांगकर्ता पंडित राजेंद्र किराडू ने बताया कि वैसे तो नाम से ही आभास हो जाता है कि अपराजिता का अर्थ है जिसकी कभी पराजय न हो. उन्होंने बताया कि शत्रु दमन, किसी प्रकार की अड़चन और वर्तमान चुनाव में विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से भी मां अपराजिता की पूजा होती है. उन्होंने बताया कि सात्विक तरीके से षोडशोपचार के साथ देवी अपराजिता की पूजा करने का विशेष महत्व है. भगवान राम ने रावण का वध करने से पहले विजयादशमी के दिन देवी अपराजिता की पूजा की थी और रावण पर विजय प्राप्त की थी. इसका जिक्र मार्कंडेय पुराण, देवी भागवत में भी मिलता है.

मां को अतिप्रिय है अपराजिता का पुष्प : पंडित किराडू ने बताया कि अपराजिता नाम से पुष्प भी होते हैं, जिन्हें विष्णुक्रांता और शंखपुष्पी भी कहा जाता है. उन्होंने बताया कि देवी अपराजिता की पूजा-अर्चना में इन पुष्पों का अर्चन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. अपराजिता के साथ ही भगवान विष्णु और भगवान शंकर को भी अपराजिता के पुष्प काफी प्रिय है. इसका जिक्र हमारे शास्त्रों में भी मिलता है.

उड़द से बने मिठाई का लगाएं भोग : उन्होंने बताया कि देवी अपराजिता को उड़द से बनी मिठाई और लापसी का भोग लगाया जाता है. देवी अपराजिता 10 भुजाएं धारण किए हुए हैं और उनके हाथ में विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र होते हैं. देवी अपराजिता सिंह की सवारी करती हैं.

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विजयादशमी के दिन पूजन का खास महत्व : पंडित किराडू ने बताया कि देवी अपराजिता की पूजा भगवान राम ने विजयादशमी के दिन की थी और इस दिन उनकी पूजा का खास महत्व है. वे कहते हैं कि देवी अपराजिता की पूजा करने से काम, क्रोध, लोभ, मोह और अलग-अलग प्रकार के विकार नष्ट होते हैं. उन्होंने कहा कि कुछ लोग वैशाख शुक्ल अष्टमी को मां बगलामुखी के अवतरण दिवस पर भी देवी अपराजिता की पूजा करते है. उन्होंने बताया कि दक्षिण भारत में देवी अपराजिता की पूजा आमतौर पर साधक लोग करते हैं.

Last Updated : Oct 10, 2024, 9:38 AM IST
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