अंबिकापुर: देशभर में राम नवमी की धूम हैं. राम जन्मोत्सव को लेकर सभी भक्ति में डूबे हुए हैं. अंबिकापुर में भी राम नवमी पर यहां के पश्चिम मुखी राम मंदिर में भव्य आयोजन किया गया है. सालों पुरानी परंपरा आज भी यहां निभाई जा रही है.
अंबिकापुर पैलेस का उत्तराधिकारी खोलता है मंदिर के पट: भगवान राम का मंदिर पश्चिम मुखी है. अमूमन राम मंदिर कभी भी पश्चिममुखी नहीं होते लेकिन अंबिकापुर के पश्चिम मुखी राम दरबार का रोचक इतिहास है. मंदिर के व्यवस्थापक स्वामी प्रणव मुनि ने बताया-"यहां पहले चित्रगुप्त मंदिर बन रहा था. फिर महारानी ने यहां प्रभु राम की प्रतिमा स्थापित करवाई. 1980 के करीब मंदिर को महाराज साहब ने कल्याण दास बाबा को दान कर दिया. बाबा ने 1992 में मंदिर का दोबारा जीर्णोद्धार कराया. 5 फरवरी को नई मूर्ति रखकर प्राणप्रतिष्ठा कराई.
राम नवमी के दिन भगवान के जन्म के बाद पैलेस का उत्तराधिकारी ही पहले पट खोलता है. उसके बाद आम लोगों के लिए दर्शन शुरू होता है.-स्वामी प्रणव मुनि, व्यवस्थापक, राम मंदिर
पश्चिम मुखी राम दरबार का इतिहास: सरगुजा के इतिहास के जानकार गोविंद शर्मा ने बताया " टीएस सिंहदेव के पिता महाराज मदनेश्वर शरण सिंहदेव का जन्म 1930 में हुआ था. इस मंदिर का निर्माण भी उसी के आस पास कराया गया. पहले यह चित्रगुप्त मंदिर बनाया जा रहा था. इसलिए यह पश्चिम मुखी मंदिर है. क्योंकि चित्रगुप्त मंदिर पश्चिम मुखी ही होते हैं. लेकिन उस समय राजमाता रही माई साहब ने सुझाव दिया कि पैलेस के सामने यम से जुड़े मंदिर बनाना ठीक नहीं होगा, इसलिए फिर इस मंदिर में भगवान राम की मूर्ति स्थापित की गई. कहीं भी शायद ही भगवान राम का मंदिर पश्चिम मुखी होगा."
अंधेरी बगीचा में बना चित्रगुप्त मंदिर: गोविंद शर्मा बताते हैं कि बाद में चित्रगुप्त मंदिर अंधेरी बगीचा में बनाया गया, जो आज गुदरी बाजार के रूप में जाना जाता है. 1982 में राम मंदिर में तपस्या करने वाले कल्याण दास बाबा को राजा माता देवेन्द्र कुमारी सिंहदेव के कहने पर महाराज साहब ने कल्याण बाबा को दे दिया. कल्याण बाबा इस मंदिर मे कठिन तपस्या करते थे. वो कड़कड़ाती ठंड में ठंडे पानी मे डूबे रहते थे. गर्मीयों में चारो तरफ आग जलाकर तपस्या करते थे. वो कभी बैठते या लेटते नही थे. एक पेड़ में रस्सी का झोला बनाये थे उसी में पेट के बल लटक कर सोना या आराम करना करते थे.