लखनऊ : केंद्रीय मंत्री और अपना दल (एस) अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल ने मां कृष्णा पटेल के लिए विधानसभा चुनाव 2022 में सियासी त्याग दिया था. प्रतापगढ़ की सीट से कृष्णा पटेल की उम्मीदवारी सामने आते ही अनुप्रिया ने अपनी जीती हुई सीट से दूरी बना ली. लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 में अनुप्रिया के सामने उनकी छोटी बहन पल्लवी चुनौती बनने जा रही हैं. ऐसे में लोकसभा 2024 के चुनाव में यूपी की मिर्जापुर सीट काफी दिलचस्प हो सकती है.
बहन बनाम बहन होगा मिर्जापुर का मैदान : मिर्जापुर सीट से लगातार दो बार की सांसद अनुप्रिया पटेल तीसरी बार भी इसी लोक सभा सीट से चुनाव लड़ेंगी. इस बार यह चुनाव थोड़ा अलग हो सकता है, क्योंकि उनके सामने उनकी ही बड़ी बहन ताल ठोक सकती हैं. बीते दिनों अपना दल (कमेरवाद) ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया और इसमें एक सीट मिर्जापुर भी शामिल थीं. कयास लगाए जा रहे थे कि पल्लवी पटेल, जो खुद समाजवादी पार्टी से विधायक हैं वे फूलपुर से खुद या फिर अपनी पार्टी से किसी को चुनाव लड़ा सकती हैं. लेकिन मिर्जापुर सीट में चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद सियासी भूकंप आ गया. इस ऐलान से नाराज समाजवादी पार्टी ने भी मिर्जापुर सीट पर अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया और लोकसभा में अपना दल (कमेरावादी) से गठबंधन न होने की बात कही. अब कयास लगाए जा रहे हैं कि कृष्णा पटेल की पार्टी अपना दल कमेरावादी मिर्ज़ापुर में अनुप्रिया के खिलाफ पल्लवी पटेल को मैदान में उतार सकती है. यदि ऐसा होता है तो एक जून को मिर्ज़ापुर में होने वाला मतदान रोमांच पैदा करने वाला होगा.
मां के लिए बेटी अनुप्रिया ने किया था सियासी त्याग : आठ वर्ष पुरानी सोनेलाल पटेल के परिवार के इस झगड़े को खत्म करने की कई बार कोशिश हुई. वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में प्रतापगढ़ सदर की सीट अपना दल (एस) के हिस्से में आई और संगम लाल गुप्ता विधायक बने. लिहाजा 2022 के चुनाव में भी अपना दल एस को यह सीट बीजेपी ने ऑफर की थी. पार्टी ने अपना प्रत्याशी भी घोषित कर दिया, लेकिन अचानक उनकी मां और अपना दल कमेरावाद की अध्यक्ष कृष्णा पटेल ने इस सीट से लड़ने का ऐलान कर दिया. ऐसे में अनुप्रिया ने ऐलान किया कि मां के सम्मान में वो अब अपना प्रत्याशी इस सीट पर न उतारेंगी न ही प्रचार करेंगी. हालांकि पारिवारिक झगड़ा अब भी बरकरार है और अब पल्लवी मिर्जापुर में ताल ठोंकने को बेकरार हैं.
सोनेलाल पटेल के बाद अपना दल में शुरू हुआ विवाद : सोनेलाल पटेल ने 4 नवंबर 1995 को अपना दल की स्थापना की थी. सोनेलाल कुर्मी व पटेल बिरादरी का नेतृत्व करते थे. पटेल जाति का पूर्वांचल की कुछ सीटों पर दबदबा रहा है. वर्ष 2009 में सड़क हादसे में मृत्यु तक सोनेलाल पटेल अपनी पार्टी को खड़ा करने के लिए संघर्ष करते रहे. हालांकि इस दौरान उन्हें चुनावी सफलता नहीं मिल सकी, लेकिन संगठन को खड़ा करने के लिए कार्यकर्ताओं की एक लंबी सेना तैयार कर ली थी. सोनेलाल की पत्नी कृष्णा पटेल हैं, उनकी चार बेटियां पारुल, पल्लवी, अनुप्रिया और अमन पटेल हैं. सोनेलाल पटेल की मौत के बाद पार्टी की बागडोर पत्नी कृष्णा पटेल ने संभाल ली.
मां की मर्जी के बिना अनुप्रिया का लोकसभा चुनाव लड़ना बना विघटन का कारण : वर्ष 2009 में ही अनुप्रिया पटेल ने आशीष पटेल से शादी की. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपना दल के साथ गठबंधन किया. जिसमें अपना दल ने अनुप्रिया पटेल को वाराणसी की रोहनिया विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा और वह जीतने में कामयाब भी रहीं. दो वर्ष बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में भी अपना दल एनडीए के साथ रहा और इस बार कृष्णा पटेल मिर्जापुर सीट से चुनाव लड़ना चाह रही थीं. लेकिन अनुप्रिया पटेल अपनी मां कृष्णा पटेल की मर्जी के खिलाफ लोक मिर्जापुर सीट से चुनाव लड़ा और जीतने में कामयाब रहीं. बस इस चुनाव के बाद से ही सोनेलाल परिवार में मनमुटाव और विघटन शुरू हुआ.
अनुप्रिया पटेल पर हुए कार्रवाई की वजह : अक्टूबर 2014 को अपना दल की अध्यक्ष व सोनेलाल की पत्नी कृष्णा पटेल ने अपनी तीसरे नंबर की बेटी अनुप्रिया पटेल को पार्टी के राष्ट्रीय सचिव पद से हटा दिया. कृष्णा पटेल ने कहा कि अनुप्रिया पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त थीं, इसलिए उन्हें पद से हटाया गया है. हालांकि वो पार्टी में रहेंगी. कृष्णा पटेल ने प्रेस वार्ता कर आरोप लगाया कि अनुप्रिया ने लोकसभा चुनावों से पहले पार्टी की सहमति के बिना राष्ट्रीय समिति की घोषणा कर दी थी. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, कृष्णा पटेल की असल नाराजगी अनुप्रिया के पति आशीष पटेल से थी. वह सार्वजनिक तौर पर कह भी चुकी हैं कि आशीष पटेल उनके पारिवारिक मामले में अनुचित रूप से दखल देते हैं. कृष्णा पटेल ने अनुप्रिया को उनके पद से हटाते हुए पल्लवी पटेल को पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त कर दिया. मां का यह फैसला अनुप्रिया को ठीक नहीं लगा और इसके बाद अनुप्रिया ने अपनी अलग पार्टी अपना दल (सोनेलाल) बना ली.
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