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MP में कांग्रेस का गढ़ छिंदवाड़ा बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती, फिर होगी दो 'कमल' की टक्कर क्या है 2024 का चक्कर - बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती छिंदवाड़ा

Chhindwara big challenge BJP : मध्यप्रदेश में क्लीन स्वीप करने में बीजेपी के सामने सबसे बड़ी बाधा छिंदवाड़ा लोकसभा सीट है. यहां दो 'कमल' के बीच टक्कर होती है. लोकसभा चुनाव 2024 में इस बार दोनों 'कमल' यहां जीत को लेकर क्यों सशंकित हैं. पढ़ें बदले राजनीतिक समीकरण को बयां करती ये रिपोर्ट.

Chhindwara big challenge BJP
MP में कांग्रेस का गढ़ छिंदवाड़ा बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Feb 29, 2024, 2:30 PM IST

छिंदवाड़ा। छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर कांग्रेस अंगद की तरह पैर जमाकर बैठी है. हर बार बीजेपी को यहां से मात खानी पड़ती है. सिर्फ एक उपचुनाव को छोड़ दिया जाए तो यहां पर कभी भी बीजेपी का कमल नहीं खिला. 1980 से लगातार कांग्रेस का 'कमल' जनता के दिलों पर राज कर रहा है. आपातकाल के बाद 1977 में जब देश में आम चुनाव हुए, उस दौरान खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव हार गई थीं. सेंट्रल इंडिया में भी कांग्रेस सभी सीटों पर चुनाव हारी लेकिन एकमात्र छिंदवाड़ा लोकसभा सीट ऐसी थी, जहां पर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रहा. यहां से नागपुर के रहने वाले गार्गी शंकर मिश्रा सांसद बने थे. उसके बाद से 1980 में कमलनाथ ने छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और 2019 तक छिंदवाड़ा के सांसद रहे.

9 बार कमलनाथ जीते, केवल एक बार हारे, अब बेटे के हाथ कमान

साल 1980 में पहली बार छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से कमलनाथ मैदान में उतरे. फिर उन्होंने राजनीतिक रास्ते में पीछे पलट कर नहीं देखा. वह लगातार 9 बार सांसद और बड़े मंत्रालय में मंत्री रहे. एक बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे. कांग्रेस यहां पर 1997 में सिर्फ एक लोकसभा उपचुनाव हारी. 2019 से उनके बेटे नकुलनाथ छिंदवाड़ा सांसद हैं. 1996 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान कमलनाथ का नाम हवाला कांड में आने की वजह से कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया. कमलनाथ ने अपनी पत्नी अलका नाथ को यहां से चुनाव लड़ाया. अलका नाथ चौधरी चंद्रभान सिंह को चुनाव हराकर सांसद बनी. हालांकि 1 साल के भीतर ही कमलनाथ ने अपनी पत्नी से इस्तीफा दिलवा दिया और फिर यहां से उपचुनाव में कमलनाथ खुद मैदान में उतरे. लेकिन इस बार कमलनाथ को पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के सामने हार का सामना करना पड़ा. हालांकि इसके बाद सुंदरलाल पटवा चुनाव हार गए थे.

अब 2024 में डगमगा रही नैया, बदल सकते हैं समीकरण

2019 तक छिंदवाड़ा में कमलनाथ और कांग्रेस को शिकस्त देना बीजेपी के लिए चुनौती भरा रहा है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह और भाजपा के कई बड़े दिग्गजों ने यहां पर प्रचाार किया लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. हालांकि 2019 के चुनाव में जीत का मार्जिन बीजेपी ने काफी कम कर दिया था, जो उनके लिए आशा की एक किरण है. राजनीतिक विश्लेषक मनीष तिवारी का कहना है "कमलनाथ का अपना एक राजनीतिक कद है. अगर 2024 में वे चुनाव लड़ते हैं तो बीजेपी के लिए फिर चुनौती साबित हो सकते हैं. लेकिन उनके बेटे और वर्तमान सांसद नकुलनाथ ही अगर मैदान में रहेंगे तो इस बार मोदी लहर उनके लिए खतरनाक साबित हो सकती है."

छिंदवाड़ा लोकसभा सीट का ये है इतिहास

छिंदवाड़ा लोकसभा सीट के चुनाव नतीजों पर नजर डालें तो 1952 से लेकर 2019 तक यहां पर कांग्रेस ने कब्जा जमाए रखा. इस दौरान 1 साल के लिए 1997 के उपचुनाव में भाजपा को जनता ने मौका दिया था. 1952 के आम चुनाव में छिंदवाड़ा से कांग्रेस के रायचंद भाई शाह लोकसभा सदस्य बने. उसके बाद 1957 में नारायण राव वाडिवा सांसद रहे. इसके बाद 1957 और 1962 में भिखुलाल लक्ष्मी चंद और 1967 से गार्गी शंकर मिश्रा लगातार 1977 तक छिंदवाड़ा लोकसभा से सांसद रहे. फिर 1980 के चुनाव के बाद से कमलनाथ लगातार नौ बार सांसद रहे. 1996 में उनकी पत्नी अलकानाथ और 2019 कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ सांसद चुने गए.

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छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र पर समग्र नजर

  • छिंदवाड़ा लोकसभा सीट सामान्य श्रेणी की है. इसमें छिंदवाड़ा और पांढुर्ना जिला शामिल हैं
  • छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र की साक्षरता दर 61.9% है
  • एससी मतदाताओं की संख्या लगभग 167,085 है, जो 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 11.1% है
  • एसटी मतदाताओं की संख्या लगभग 544,907 है, जो 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 36.2% है
  • मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 71,152 है, जो मतदाता सूची विश्लेषण के अनुसार लगभग 4.7% है
  • ग्रामीण मतदाताओं की संख्या लगभग 1,133,466 है, जो 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 75.3% है
  • शहरी मतदाता लगभग 371,801 हैं, जो 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 24.7% है
  • 2019 के संसदीय चुनाव के अनुसार छिंदवाड़ा संसदीय सीट के कुल मतदाता हैं 1505267
  • 2019 के संसदीय चुनाव के अनुसार छिंदवाड़ा संसदीय सीट के मतदान केंद्रों की संख्या है 1943
  • 2019 के संसदीय चुनाव में छिंदवाड़ा संसदीय सीट पर मतदाताओं का मतदान 82.3%

छिंदवाड़ा। छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर कांग्रेस अंगद की तरह पैर जमाकर बैठी है. हर बार बीजेपी को यहां से मात खानी पड़ती है. सिर्फ एक उपचुनाव को छोड़ दिया जाए तो यहां पर कभी भी बीजेपी का कमल नहीं खिला. 1980 से लगातार कांग्रेस का 'कमल' जनता के दिलों पर राज कर रहा है. आपातकाल के बाद 1977 में जब देश में आम चुनाव हुए, उस दौरान खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी रायबरेली से चुनाव हार गई थीं. सेंट्रल इंडिया में भी कांग्रेस सभी सीटों पर चुनाव हारी लेकिन एकमात्र छिंदवाड़ा लोकसभा सीट ऐसी थी, जहां पर कांग्रेस का कब्जा बरकरार रहा. यहां से नागपुर के रहने वाले गार्गी शंकर मिश्रा सांसद बने थे. उसके बाद से 1980 में कमलनाथ ने छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा और 2019 तक छिंदवाड़ा के सांसद रहे.

9 बार कमलनाथ जीते, केवल एक बार हारे, अब बेटे के हाथ कमान

साल 1980 में पहली बार छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से कमलनाथ मैदान में उतरे. फिर उन्होंने राजनीतिक रास्ते में पीछे पलट कर नहीं देखा. वह लगातार 9 बार सांसद और बड़े मंत्रालय में मंत्री रहे. एक बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे. कांग्रेस यहां पर 1997 में सिर्फ एक लोकसभा उपचुनाव हारी. 2019 से उनके बेटे नकुलनाथ छिंदवाड़ा सांसद हैं. 1996 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान कमलनाथ का नाम हवाला कांड में आने की वजह से कांग्रेस ने उन्हें टिकट नहीं दिया. कमलनाथ ने अपनी पत्नी अलका नाथ को यहां से चुनाव लड़ाया. अलका नाथ चौधरी चंद्रभान सिंह को चुनाव हराकर सांसद बनी. हालांकि 1 साल के भीतर ही कमलनाथ ने अपनी पत्नी से इस्तीफा दिलवा दिया और फिर यहां से उपचुनाव में कमलनाथ खुद मैदान में उतरे. लेकिन इस बार कमलनाथ को पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा के सामने हार का सामना करना पड़ा. हालांकि इसके बाद सुंदरलाल पटवा चुनाव हार गए थे.

अब 2024 में डगमगा रही नैया, बदल सकते हैं समीकरण

2019 तक छिंदवाड़ा में कमलनाथ और कांग्रेस को शिकस्त देना बीजेपी के लिए चुनौती भरा रहा है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर अमित शाह और भाजपा के कई बड़े दिग्गजों ने यहां पर प्रचाार किया लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. हालांकि 2019 के चुनाव में जीत का मार्जिन बीजेपी ने काफी कम कर दिया था, जो उनके लिए आशा की एक किरण है. राजनीतिक विश्लेषक मनीष तिवारी का कहना है "कमलनाथ का अपना एक राजनीतिक कद है. अगर 2024 में वे चुनाव लड़ते हैं तो बीजेपी के लिए फिर चुनौती साबित हो सकते हैं. लेकिन उनके बेटे और वर्तमान सांसद नकुलनाथ ही अगर मैदान में रहेंगे तो इस बार मोदी लहर उनके लिए खतरनाक साबित हो सकती है."

छिंदवाड़ा लोकसभा सीट का ये है इतिहास

छिंदवाड़ा लोकसभा सीट के चुनाव नतीजों पर नजर डालें तो 1952 से लेकर 2019 तक यहां पर कांग्रेस ने कब्जा जमाए रखा. इस दौरान 1 साल के लिए 1997 के उपचुनाव में भाजपा को जनता ने मौका दिया था. 1952 के आम चुनाव में छिंदवाड़ा से कांग्रेस के रायचंद भाई शाह लोकसभा सदस्य बने. उसके बाद 1957 में नारायण राव वाडिवा सांसद रहे. इसके बाद 1957 और 1962 में भिखुलाल लक्ष्मी चंद और 1967 से गार्गी शंकर मिश्रा लगातार 1977 तक छिंदवाड़ा लोकसभा से सांसद रहे. फिर 1980 के चुनाव के बाद से कमलनाथ लगातार नौ बार सांसद रहे. 1996 में उनकी पत्नी अलकानाथ और 2019 कमलनाथ के बेटे नकुलनाथ सांसद चुने गए.

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  • छिंदवाड़ा लोकसभा सीट सामान्य श्रेणी की है. इसमें छिंदवाड़ा और पांढुर्ना जिला शामिल हैं
  • छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र की साक्षरता दर 61.9% है
  • एससी मतदाताओं की संख्या लगभग 167,085 है, जो 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 11.1% है
  • एसटी मतदाताओं की संख्या लगभग 544,907 है, जो 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 36.2% है
  • मुस्लिम मतदाताओं की संख्या लगभग 71,152 है, जो मतदाता सूची विश्लेषण के अनुसार लगभग 4.7% है
  • ग्रामीण मतदाताओं की संख्या लगभग 1,133,466 है, जो 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 75.3% है
  • शहरी मतदाता लगभग 371,801 हैं, जो 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 24.7% है
  • 2019 के संसदीय चुनाव के अनुसार छिंदवाड़ा संसदीय सीट के कुल मतदाता हैं 1505267
  • 2019 के संसदीय चुनाव के अनुसार छिंदवाड़ा संसदीय सीट के मतदान केंद्रों की संख्या है 1943
  • 2019 के संसदीय चुनाव में छिंदवाड़ा संसदीय सीट पर मतदाताओं का मतदान 82.3%
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