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लोकसभा चुनाव 2024: मैनपुरी संसदीय सीट पर 28 साल से कायम है समाजवादी पार्टी, भाजपा के लिए चुनौती - Lok Sabha Elections 2024

मैनपुरी संसदीय सीट के लिए तीसरे चरण में होने वाले चुनाव के लिए सपा-भाजपा सहित सभी दलों ने प्रचार अभियान तेज कर दिया है. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए यह सीट विगत 28 वर्षों से अजेय रही है.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Apr 27, 2024, 5:11 PM IST

मैनपुरी लोकसभा सीट.
मैनपुरी लोकसभा सीट.

लखनऊ : मैनपुरी संसदीय सीट के लिए तीसरे चरण में होने वाले चुनाव के लिए सपा-भाजपा सहित सभी दलों ने प्रचार अभियान तेज कर दिया है. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए यह सीट विगत 28 वर्षों से अजेय रही है. इस दौरान लगातार समाजवादी पार्टी यहां से जीतती रही है, फिर चाहे उम्मीदवार कोई भी क्यों न हो. हालांकि ज्यादातर समय इस सीट पर मुलायम सिंह यादव या उनके परिवार के लोगों का ही कब्जा रहा है. मुलायम सिंह के निधन के बाद रिक्त हुई इस सीट पर 2022 में जब उप चुनाव हुआ, तो उनकी बहू डिंपल यादव को जीत हासिल हुई. वह इस सीट से लोकसभा चुनाव जीतने वाली पहली महिला हैं और दूसरी बार चुनाव मैदान में उतरी हैं. वहीं भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री जयवीर सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि बसपा से शिव प्रसाद यादव चुनाव मैदान में हैं.

मैनपुरी लोकसभा सीट.
मैनपुरी लोकसभा सीट.

बसपा सरकार में मंत्री रहे हैं भाजपा प्रत्याशी जयवीर सिंह

यदि प्रत्याशियों के प्रोफाइल की बात करें, तो इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी जयवीर सिंह 2022 के विधानसभा चुनावों में मैनपुरी विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे और सरकार में पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री बनाए गए थे. 66 साल के जयवीर सिंह को लंबा राजनीतिक अनुभव रहा है. वह प्रदेश के ऐसे गिने-चुने नेताओं में शुमार हैं, जिन्होंने ग्राम प्रधान के रूप में अपनी राजनीति शुरू की और प्रदेश के कैबिनेट मंत्री बने. वह जिला सहकारी बैंक फिरोजाबाद के अध्यक्ष भी रहे हैं. 2002 में वह पहली बार मैनपुरी जिले की घिघोर सीट से चुनकर विधानसभा पहुंचे थे. 2003 में उन्होंने प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री के रूप में शपथ ली. 2007 में बनी बसपा सरकार में भी वह स्वतंत्र प्रभार के मंत्री रहे. उन्हें 2012 और 2018 में विधान परिषद का सदस्य भी बनाया गया. उनकी पत्नी लोकसभा की सदस्य रही हैं, जबकि उनके बेटे भी राजनीति में सक्रिय हैं. जयवीर सिंह ने राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से की थी, लेकिन बाद में वह बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए. बसपा का दौर समाप्त होता देख उन्होंने भाजपा का दामन थामा और उनका राजनीतिक कद भी बढ़ता गया.

मैनपुरी लोकसभा सीट.
मैनपुरी लोकसभा सीट.

चौथी बार लोकसभा चुनाव लड़ रहीं डिंपल

सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की बड़ी बहू और पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी 46 वर्षी डिंपल यादव चौथी बार लोकसभा चुनाव के मैदान में हैं. उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 2009 में की थी. तब उन्होंने फिरोजाबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे फिल्म अभिनेता राज बब्बर के खिलाफ चुनाव लड़ा और उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था. इसके बाद 2012 में कन्नौज लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में उन्हें सफलता हासिल हुई थी. 2014 के आम चुनावों में भी उन्होंने इसी सीट पर जीत हासिल की, लेकिन 2019 में कन्नौज की जनता ने उन्हें नकार दिया और भाजपा प्रत्याशी सुब्रत पाठक को जिताकर संसद भेजा. वाणिज्य में स्नातक डिंपल यादव के पिता सेना में कर्नल थे, इस कारण उनकी आरंभिक पढ़ाई सैनिक स्कूलों में ही हुई. उनकी दो बेटियां और एक बेटा है. वहीं यदि बसपा प्रत्याशी शिव प्रसाद यादव की बात करें, तो वह मूल रूप से इटावा के निवासी हैं. वह 2007 में भरथना विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं. बाद में वह कुछ दिन भाजपा में रहे. इसके बाद उन्होंने अपनी सर्वजन सुखाय पार्टी बना ली. ऐन चुनाव के मौके पर वह बसपा में फिर लौट आए हैं.

सपा प्रत्याशी डिंपल यादव और भाजपा प्रत्याशी जयवीर सिंह.
सपा प्रत्याशी डिंपल यादव और भाजपा प्रत्याशी जयवीर सिंह.

कई बार कांग्रेस रही काबिज, 28 वर्षों से सपा कायम

मैनपुरी संसदीय सीट के इतिहास की बात करें, तो सबसे पहले 1952 में इस सीट से कांग्रेस नेता बादशाह गुप्ता लोकसभा के लिए चुने गए थे. 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के बंशीदास धनगर, 1962 में एक बार फिर कांग्रेस के टिकट पर बादशाह गुप्ता चुनाव जीते थे. 1967 और 1971 में भी इस सीट पर कांग्रेस पार्टी का का कब्जा रहा और महाराज सिंह संसद पहुंचे. 1977 और 1980 में इस सीट से रघुनाथ सिंह वर्मा पहले जनता दल और जनता पार्टी से लोकसभा के लिए चुने गए. 1984 में एक बार फिर इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा हुआ और बलराम सिंह यादव को जीत हासिल हुई. 1989 और 1991 में उदय प्रताप सिंह इस सीट पर पहले जनता दल और फिर जनता पार्टी के सांसद चुने गए. 19996 से अब तक हुए सभी चुनावों और उप चुनावों में इस सीट पर सपा अजेय बनी हुई है. 1996 में मुलायम सिंह यादव, 1998 और 1999 में बलराम सिंह यादव, 2004, 2009, 2014 और 2019 में मुलायम सिंह यादव यहां से जीत कर संसद पहुंचे थे. उनके निधन के बाद 2022 में डिंपल यादव इस सीट से संसद पहुंची थीं. संसदीय सीट की पांच विधानसभा सीटों में दो पर भाजपा और तीन पर सपा का कब्जा है.

मुलायम सिंह के निधन के बाद डिंपल ने जीता चुनाव

पिछले चुनावों की बात करें, तो 2014 में मुलायम सिंह यादव ने भाजपा के शत्रुघ्न सिंह चौहान को 3,64,666 मतों से पराजित किया था. इस चुनाव में सपा को 5,95,918 वोट मिले थे, जबकि दूसरे स्थान पर रहे, भाजपा उम्मीदवार को 2,31,252 वोटों से संतोष करना पड़ा था. वहीं बसपा नेता डॉ संघमित्रा मौर्य को 1,42,833 मत प्राप्त हुए थे. बाद में इस सीट पर हुए उपचुनाव में सपा नेता तेज प्रताप सिंह यादव को जीत हासिल हुई थी. 2019 में मुलायम सिंह यादव ने भाजपा प्रत्याशी प्रेम सिंह शाक्य को 94,389 मतों से पराजित किया था. इस चुनाव में मुलायम सिंह यादव को 5,24,926 मत प्राप्त हुए थे, जबकि भाजपा के प्रेम सिंह शाक्य को 4,30,537 वोट मिले थे. वहीं मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद हुए उपचुनाव में इस सीट पर डिंपल यादव को 2,88,461 वोटों से जीत हासिल हुई थी.

चौंकाने वाले हो सकते हैं परिणाम
जातीय समीकरणों की चर्चा करें, तो इस सीट पर सबसे ज्यादा लगभग साढ़े तीन लाख यादव मतदाता हैं. वहीं लगभग पौने दो लाख ठाकुर, डेढ़ लाख जाटव, सवा लाख से ज्यादा ब्राह्मण, एक लाख से अधिक लोध, एक लाख कुर्मी और करीब एक-एक लाख वैश्य और मुस्लिम मतदाता हैं. दलित मतदाताओं की तादाद बहुत अधिक नहीं हैं, लेकिन यहां ओबीसी मतदाता ही निर्णायक साबित होते हैं. सपाई गढ़ वाली इस सीट पर भाजपा ने जयवीर सिंह के रूप में एक मजबूत उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारा है. जयवीर सिंह ठाकुर हैं और जिले की राजनीति में बहुत लंबा अनुभव रखते हैं. क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ भी मानी जाती है. वहीं सपा को अपनी इस परंपरागत सीट पर भरोसा है कि यहां के मतदाता उसे निराश नहीं करेंगे. कुल मिलाकर देखा जाए, तो जयवीर सिंह के आने से यह चुनाव रोचक बन गया है. यदि बसपा उम्मीदवार शिव प्रसाद यादव ने अच्छा प्रदर्शन किया, तो इस सीट के परिणाम चौंकाने वाले भी हो सकते हैं.

यह भी पढ़ें : 8 के फेर में फंसी BJP-BSP, पिछले चुनाव में 8 सीटों पर 8 % तक था जीत का अंतर, इस बार 8 फीसदी वोटिंग कम - Lok Sabha Election 2024

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मैनपुरी लोकसभा सीट.
मैनपुरी लोकसभा सीट.

लखनऊ : मैनपुरी संसदीय सीट के लिए तीसरे चरण में होने वाले चुनाव के लिए सपा-भाजपा सहित सभी दलों ने प्रचार अभियान तेज कर दिया है. सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के लिए यह सीट विगत 28 वर्षों से अजेय रही है. इस दौरान लगातार समाजवादी पार्टी यहां से जीतती रही है, फिर चाहे उम्मीदवार कोई भी क्यों न हो. हालांकि ज्यादातर समय इस सीट पर मुलायम सिंह यादव या उनके परिवार के लोगों का ही कब्जा रहा है. मुलायम सिंह के निधन के बाद रिक्त हुई इस सीट पर 2022 में जब उप चुनाव हुआ, तो उनकी बहू डिंपल यादव को जीत हासिल हुई. वह इस सीट से लोकसभा चुनाव जीतने वाली पहली महिला हैं और दूसरी बार चुनाव मैदान में उतरी हैं. वहीं भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री जयवीर सिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि बसपा से शिव प्रसाद यादव चुनाव मैदान में हैं.

मैनपुरी लोकसभा सीट.
मैनपुरी लोकसभा सीट.

बसपा सरकार में मंत्री रहे हैं भाजपा प्रत्याशी जयवीर सिंह

यदि प्रत्याशियों के प्रोफाइल की बात करें, तो इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी जयवीर सिंह 2022 के विधानसभा चुनावों में मैनपुरी विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे और सरकार में पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री बनाए गए थे. 66 साल के जयवीर सिंह को लंबा राजनीतिक अनुभव रहा है. वह प्रदेश के ऐसे गिने-चुने नेताओं में शुमार हैं, जिन्होंने ग्राम प्रधान के रूप में अपनी राजनीति शुरू की और प्रदेश के कैबिनेट मंत्री बने. वह जिला सहकारी बैंक फिरोजाबाद के अध्यक्ष भी रहे हैं. 2002 में वह पहली बार मैनपुरी जिले की घिघोर सीट से चुनकर विधानसभा पहुंचे थे. 2003 में उन्होंने प्रदेश सरकार में राज्यमंत्री के रूप में शपथ ली. 2007 में बनी बसपा सरकार में भी वह स्वतंत्र प्रभार के मंत्री रहे. उन्हें 2012 और 2018 में विधान परिषद का सदस्य भी बनाया गया. उनकी पत्नी लोकसभा की सदस्य रही हैं, जबकि उनके बेटे भी राजनीति में सक्रिय हैं. जयवीर सिंह ने राजनीति की शुरुआत कांग्रेस से की थी, लेकिन बाद में वह बहुजन समाज पार्टी में शामिल हो गए. बसपा का दौर समाप्त होता देख उन्होंने भाजपा का दामन थामा और उनका राजनीतिक कद भी बढ़ता गया.

मैनपुरी लोकसभा सीट.
मैनपुरी लोकसभा सीट.

चौथी बार लोकसभा चुनाव लड़ रहीं डिंपल

सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की बड़ी बहू और पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव की पत्नी 46 वर्षी डिंपल यादव चौथी बार लोकसभा चुनाव के मैदान में हैं. उन्होंने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत 2009 में की थी. तब उन्होंने फिरोजाबाद लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे फिल्म अभिनेता राज बब्बर के खिलाफ चुनाव लड़ा और उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था. इसके बाद 2012 में कन्नौज लोकसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में उन्हें सफलता हासिल हुई थी. 2014 के आम चुनावों में भी उन्होंने इसी सीट पर जीत हासिल की, लेकिन 2019 में कन्नौज की जनता ने उन्हें नकार दिया और भाजपा प्रत्याशी सुब्रत पाठक को जिताकर संसद भेजा. वाणिज्य में स्नातक डिंपल यादव के पिता सेना में कर्नल थे, इस कारण उनकी आरंभिक पढ़ाई सैनिक स्कूलों में ही हुई. उनकी दो बेटियां और एक बेटा है. वहीं यदि बसपा प्रत्याशी शिव प्रसाद यादव की बात करें, तो वह मूल रूप से इटावा के निवासी हैं. वह 2007 में भरथना विधानसभा सीट से विधायक रह चुके हैं. बाद में वह कुछ दिन भाजपा में रहे. इसके बाद उन्होंने अपनी सर्वजन सुखाय पार्टी बना ली. ऐन चुनाव के मौके पर वह बसपा में फिर लौट आए हैं.

सपा प्रत्याशी डिंपल यादव और भाजपा प्रत्याशी जयवीर सिंह.
सपा प्रत्याशी डिंपल यादव और भाजपा प्रत्याशी जयवीर सिंह.

कई बार कांग्रेस रही काबिज, 28 वर्षों से सपा कायम

मैनपुरी संसदीय सीट के इतिहास की बात करें, तो सबसे पहले 1952 में इस सीट से कांग्रेस नेता बादशाह गुप्ता लोकसभा के लिए चुने गए थे. 1957 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के बंशीदास धनगर, 1962 में एक बार फिर कांग्रेस के टिकट पर बादशाह गुप्ता चुनाव जीते थे. 1967 और 1971 में भी इस सीट पर कांग्रेस पार्टी का का कब्जा रहा और महाराज सिंह संसद पहुंचे. 1977 और 1980 में इस सीट से रघुनाथ सिंह वर्मा पहले जनता दल और जनता पार्टी से लोकसभा के लिए चुने गए. 1984 में एक बार फिर इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा हुआ और बलराम सिंह यादव को जीत हासिल हुई. 1989 और 1991 में उदय प्रताप सिंह इस सीट पर पहले जनता दल और फिर जनता पार्टी के सांसद चुने गए. 19996 से अब तक हुए सभी चुनावों और उप चुनावों में इस सीट पर सपा अजेय बनी हुई है. 1996 में मुलायम सिंह यादव, 1998 और 1999 में बलराम सिंह यादव, 2004, 2009, 2014 और 2019 में मुलायम सिंह यादव यहां से जीत कर संसद पहुंचे थे. उनके निधन के बाद 2022 में डिंपल यादव इस सीट से संसद पहुंची थीं. संसदीय सीट की पांच विधानसभा सीटों में दो पर भाजपा और तीन पर सपा का कब्जा है.

मुलायम सिंह के निधन के बाद डिंपल ने जीता चुनाव

पिछले चुनावों की बात करें, तो 2014 में मुलायम सिंह यादव ने भाजपा के शत्रुघ्न सिंह चौहान को 3,64,666 मतों से पराजित किया था. इस चुनाव में सपा को 5,95,918 वोट मिले थे, जबकि दूसरे स्थान पर रहे, भाजपा उम्मीदवार को 2,31,252 वोटों से संतोष करना पड़ा था. वहीं बसपा नेता डॉ संघमित्रा मौर्य को 1,42,833 मत प्राप्त हुए थे. बाद में इस सीट पर हुए उपचुनाव में सपा नेता तेज प्रताप सिंह यादव को जीत हासिल हुई थी. 2019 में मुलायम सिंह यादव ने भाजपा प्रत्याशी प्रेम सिंह शाक्य को 94,389 मतों से पराजित किया था. इस चुनाव में मुलायम सिंह यादव को 5,24,926 मत प्राप्त हुए थे, जबकि भाजपा के प्रेम सिंह शाक्य को 4,30,537 वोट मिले थे. वहीं मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद हुए उपचुनाव में इस सीट पर डिंपल यादव को 2,88,461 वोटों से जीत हासिल हुई थी.

चौंकाने वाले हो सकते हैं परिणाम
जातीय समीकरणों की चर्चा करें, तो इस सीट पर सबसे ज्यादा लगभग साढ़े तीन लाख यादव मतदाता हैं. वहीं लगभग पौने दो लाख ठाकुर, डेढ़ लाख जाटव, सवा लाख से ज्यादा ब्राह्मण, एक लाख से अधिक लोध, एक लाख कुर्मी और करीब एक-एक लाख वैश्य और मुस्लिम मतदाता हैं. दलित मतदाताओं की तादाद बहुत अधिक नहीं हैं, लेकिन यहां ओबीसी मतदाता ही निर्णायक साबित होते हैं. सपाई गढ़ वाली इस सीट पर भाजपा ने जयवीर सिंह के रूप में एक मजबूत उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारा है. जयवीर सिंह ठाकुर हैं और जिले की राजनीति में बहुत लंबा अनुभव रखते हैं. क्षेत्र में उनकी अच्छी पकड़ भी मानी जाती है. वहीं सपा को अपनी इस परंपरागत सीट पर भरोसा है कि यहां के मतदाता उसे निराश नहीं करेंगे. कुल मिलाकर देखा जाए, तो जयवीर सिंह के आने से यह चुनाव रोचक बन गया है. यदि बसपा उम्मीदवार शिव प्रसाद यादव ने अच्छा प्रदर्शन किया, तो इस सीट के परिणाम चौंकाने वाले भी हो सकते हैं.

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