रोहतासः 2024 के लोकसभा चुनाव की तारीखों का एलान कभी भी हो सकता है, ऐसे में सभी सियासी दल पूरे जोरशोर से चुनावी तैयारियों में जुटे हुए हैं लेकिन रोहतास जिले के करीब 12 गांवों के लोगों ने इस बार रोड नहीं तो वोट नहीं का नारा बुलंद किया है. लोगों का कहना है कि इलाके के लोग करीब 30 सालों से खस्ताहाल सड़क से परेशान हैं. ऐसे में जबतक सड़कें नहीं बन जातीं, वे लोग वोट नहीं डालेंगे.
"नेताओं को गांव में नहीं घुसने देंगेः" जिले के डेहरी इलाके के भलुआडी पंचायत सहित तकरीबन दर्जन भर गांव के लोग पिछले 30 सालों से 12 किमी लंबी खस्ताहाल सड़क से परेशान हैं.इनका कहना है कि "इस सड़क को लेकर कई बार सांसद और विधायक से भी शिकायत की गई लेकिन माननीयों को कोई फर्क नहीं पड़ता.ऐसे में इस बार हमलोगों ने भी ठान लिया है कि जब तक इस सड़क का निर्माण नहीं हो जाता है तब तक नेताओं को गांव में घुसने नहीं देंगे."
बारिश में तो निकलना हो जाता है मुश्किलःग्रामीणों ने बताया कि "पिछले सालों में कई लोकसभा और विधान सभा के चुनाव हुए और उन्होंने जमकर मतदान किया. उन्हें लगा कि हमारे गांवों में विकास के कुछ काम होंगे, लेकिन उसके बाद छले गए हैं. विकास कार्यों का फायदा उन्हें नहीं मिल रहा है. उनके गांव को शहर से जोड़ने वाली सड़क जर्जर है और बरसात में तो निकलना मुश्किल हो जाता है. फिलहाल तो उबड़-खाबड़ सड़क जानलेवा साबित हो रही है."
कई गांवों के लोग जर्जर सड़क से परेशानः भलुआडी के साथ-साथ नहर रोड से इलाके के मीठोपुर, पितांबर पुर, भलुआड़ी, दुर्गापुर, नावाडीह और लेवड़ा गांव सहित दर्जन भर गांव के लोग इस सड़क पर निर्भर हैं. सड़क जर्जर होने के कारण इन गांव के लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.बरसात के दिनों में बाजार नहीं जा पाने के कारण किसानों की सब्जियां सड़ जाती हैं.
इस बार रोड नहीं तो वोट नहींः गांववालों का कहना है कि "कई साल पहले नहर और उनके गांव की सड़क ठीक थी लेकिन नहर निर्माण कार्य के दौरान ध्वस्त होने के बाद से कोई देखने वाला नहीं है. विगत 30 सालों से ये समस्या हम सभी गांववाले झेल रहे हैं. इसलिए हमने इस बार फैसला लिया है कि चुनाव के दौरान अधिकारियों और नेताओं को गांव में घुसने नहीं देंगे."
क्या निकलेगा समाधान ?: लोकतंत्र में जनता ही जनार्दन होती है. जनता के मत से ही कोई सत्ता का सिंहासन हासिल करता है तो अर्श से फर्श पर आ जाता है. जनप्रतिनिधियों का ये दायित्व बनता है कि अपने इलाके के लोगों की जरूरतों को समझें और उनके अनुसार कार्य करें. जिस तरह से इस बार गांववालों ने रोड नहीं तो वोट नहीं का एलान किया है, ये देखनेवाली बात होगी कि नेता इसे कितनी गंभीरता से लेते हैं.
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