अररिया: बिहार के अररिया में तीसरे चरण में 7 मई को चुनाव होना है. राजनीतिक पार्टियों के नेताओं ने चुनावी तैयारी भी शुरू कर दी है. अररिया लोकसभा सीट से सभी पार्टियों बीजेपी, जदयू, राजद और कांग्रेस को राज करने का मौका मिला.
अररिया सीट का इतिहास: 1967 से पहले अररिया, पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा हुआ करता था. परिसीमन के बाद 1967 में अररिया पृथक लोकसभा क्षेत्र बना. 1967 से 2009 तक अररिया लोकसभा एससी आरक्षित सीट थी. सामान्य सीट होने के बाद हुए 2009 के चुनाव में यहां से भाजपा के प्रदीप सिंह सांसद बने.
सीट पर कब किसका कब्जा: 2009 के चुनाव में प्रदीप सिंह ने करीबी मुक़ाबले में लोजपा के जाकिर हुसैन ख़ान को हराया था. वहीं, 2014 के चुनाव में पहली बार तस्लीमुद्दीन ने अररिया से लोकसभा चुनाव लड़ा और प्रदीप सिंह को हराने में कामयाब रहे. सांसद रहते 17 सितंबर, 2017 को तस्लीमुद्दीन का निधन हो गया. 2018 में हुए उपचुनाव में यहां स्वर्गीय तस्लीमउद्दीन के पुत्र सरफराज आलम राजद के टिकट पर चुनाव लड़े और जीते. 2019 के आम लोकसभा चुनाव में प्रदीप सिंह ने सीमांचल के नेता मो.तस्लीमुद्दीन के बेटे को 1,37,241 वोटों के बड़े अंतर से शिकस्त दी थी और अररिया के सांसद बने.
इस बार NDA Vs इंडिया: इस बार एनडीए वर्सेस इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी की सीधी टक्कर मानी जा रही थी. लेकिन निर्दलीय उम्मीदवार ने फाइट को दिलचस्प बना दिया है.अररिया में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में शत्रुघ्न सुमन के मैदान में आने से बीजेपी के प्रदीप सिंह और आरजेडी के शाहनवाज आलम के साथ त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल सकता है.
"2014 के पहले भारत कहां था और अब देखिए कितना विकास हुआ है. हमारे पास नरेंद्र मोदी जी जैसा नेता है और बीजेपी के कार्यकर्ता हैं तो फिर कोई दिक्कत कहां है. एमपी बाद में भाजपा का कार्यकर्ता पहले हूं."- प्रदीप सिंह, बीजेपी सांसद, अररिया
अररिया सीट पर जातिगत समीकरण: अररिया लोकसभा क्षेत्र में मुस्लिम समुदाय के लोगों की आबादी लगभग 45 प्रतिशत है. बाकी हिन्दू समुदाय के लोग हैं. चुनाव में मुस्लिम समुदाय अपना बेहतर प्रदर्शन करता है. इसके बाद, पिछड़ा, अत्यंत पिछड़ा, दलित महादलित समुदायों के संख्या अधिक है. लोकसभा चुनाव में जातीय समीकरण बहुत मायने रखता है, लेकिन इनके बावजूद इस सीट पर भाजपा का कब्जा रहा है.
1967 से 1977 कांग्रेस का कब्जा: भौगोलिक दृष्टिकोण से अररिया उत्तरी बिहार का सबसे अंतिम जिला है. अररिया के उत्तर में नेपाल, दक्षिण में पूर्णिया, पूरब में किशनगंज और पश्चिम में सुपौल स्थित है. अररिया जिले के बाद नेपाल की सीमा शुरू हो जाती है. 1967 के आम चुनाव में अररिया से कांग्रेस के प्रत्याशी तुलमोहन राम ने बीजेएस के टिकट पर चुनाव लड़े और जे. राम को 70,649 वोटों से हराया. इस चुनाव में तुलमोहन राम को 1,19,954 वोट और उनके निकटतम प्रतिद्वंदी जे.राम को 49,305 वोट हासिल हुए.
1971 के अगले लोकसभा चुनाव में भी तुलमोहन राम ने जीत का सिलसिला जारी रखा. इस चुनाव में भी तुलमोहन, कांग्रेस की टिकट पर जीते. उन्होंने डुमर लाल बैठा को 83,185 मतों से शिकस्त दी. चुनाव में तुलमोहन राम को 1,34,162 वोट मिले. वहीं, उनके प्रतिद्वंद्वी डुमर लाल बैठा को 50,977 मत प्राप्त हुए थे. 1967 से 1977 तक अररिया सीट पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का कब्जा रहा.
1977 में कांग्रेस के हाथ से फिसल गई सीट: 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को यह सीट गंवानी पड़ी. इस चुनाव में भारतीय लोक दल के उम्मीदवार महेंद्र नारायण सरदार ने कांग्रेस के तत्कालीन सांसद डुमर लाल बैठा को 1,08,534 मतों के अंतर से हराकर पहला गैर-कांग्रेसी सांसद बनने का गौरव प्राप्त किया.
जेपी लहर का हुआ था असर: उल्लेखनीय है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1975 में पूरे देश में आपातकाल घोषित कर दिया था, जिससे कांग्रेस के प्रति लोगों में काफी नाराजगी थी. लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ पूरे देश में आंदोलन हुआ, हजारों लोग जेल भेजे गए. 1977 का लोकसभा चुनाव आपातकाल के इर्द-गिर्द ही लड़ा गया था. इस लोकसभा चुनाव में जेपी-लहर के कारण कांग्रेस को बुरी हार का सामना करना पड़ा था.
बीजेपी की राह नहीं होगी आसान: राजनीतिक पार्टी भारतीय लोक दल को इस चुनाव में शानदार कामयाबी मिली थी. पार्टी पूरे देश से 295 सीटें जीती थीं. भारतीय लोक दल अररिया से भी जीतने में सफल रहा. कांग्रेस ने 1980 के लोकसभा चुनाव में अररिया से जीत कर सीट वापस अपने नाम किया. पिछले चुनाव में हारने वाले उम्मीदवार डुमर लाल बैठा को फिर से कांग्रेस ने टिकट दिया था. चुनाव में डुमर लाल बैठा ने नवल किशोर भारती को 62,824 वोटों के अंतर से मात दी.
डुमर लाल बैठा ने 1984 के अगले लोकसभा चुनाव में भी इस सीट को जीत कर कांग्रेस के झोली में डाल दिया था. डुमर लाल को इस चुनाव में 2,94,582 मत प्राप्त हुए और उन्होंने महेंद्र नारायण सरदार को 1,98,886 वोटों के बहुत बड़े अंतर से शिकस्त दी. कांग्रेस सांसद डुमर लाल बैठा को 1989 लोकसभा चुनाव में जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़ रहे सुकदेव पासवान ने 72,655 मतों से हराया. इस चुनाव में सुकदेव पासवान को 2,45,693 वोट प्राप्त हुए और वहीं कांग्रेस प्रत्याशी डुमर लाल बैठा को 1,73,038 मत प्राप्त हुए.
2004 तक अररिया एक सुरक्षित (एससी) सीट: बता दें कि 2004 तक अररिया एक सुरक्षित (एससी) सीट के तौर पर रही. परिसीमन के बाद 2009 में इस सीट को सामान्य श्रेणी में डाल दिया गया. 2009 के आम चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार प्रदीप कुमार सिंह ने लोजपा की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले ज़ाकिर हुसैन खान को 22,502 वोटों के छोटे अंतर से हराने में कामयाबी हासिल की. इस चुनाव में कांग्रेस नेता डॉ. शकील अहमद खान को 49,649 मत प्राप्त हुए.
पहली बार 2014 में मुस्लिम उम्मीदवार की जीत: डॉ. शकील अहमद खान वर्तमान में कटिहार जिले के कदवा विधानसभा क्षेत्र से विधायक और बिहार विधानसभा में कांग्रेस के नेता हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार कोई मुस्लिम उम्मीदवार जीतने में कामयाब हुआ. राष्ट्रीय जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़कर सीमांचल के कद्दावर नेता मो.तस्लीमुद्दीन ने भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह को 1,46,504 वोटों के बड़े अंतर से हराया.
तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज आलम ने मारी बाजी: मो.तस्लीमुद्दीन के देहांत के बाद अररिया लोकसभा सीट रिक्त हो गयी थी, तो 2018 में उप-चुनाव हुआ. इसमें मो. तस्लीमुद्दीन के बेटे सरफराज़ आलम ने बाज़ी मारी. उप-चुनाव में राजद की टिकट पर चुनाव लड़कर सरफराज़ आलम ने भाजपा के उम्मीदवार प्रदीप कुमार सिंह को 61,788 मतों से हराया, लेकिन अगले ही वर्ष हुए आम लोकसभा चुनाव 2019 में प्रदीप कुमार सिंह अररिया सीट से वापस जीतने में कामयाब रहे. भाजपा के प्रदीप कुमार सिंह ने राजद के सरफराज आलम को 1,37,241 के बड़े अंतर से शिकस्त दी. प्रदीप कुमार सिंह को चुनाव में 6,18,434 और सरफराज़ आलम को 4,81,193 वोट हासिल हुए.
अररिया में कुल वोटरों की संख्या: अररिया जिले की आबादी 2011 के जनगणना के अनुसार 2811569 है. लेकिन जानकारी के अनुसार अब 30 लाख से अधिक हो गई है. यहां कुल मतदाता 1985549 हैं, जिनमें पुरुषों की संख्या कुल 1034015 है. महिला मतदाता 951445 है. अन्य मतदाता कुल 89 हैं. ये मतदाताओं की संख्या 2024 में जिला प्रशासन ने प्रकाशित की है. इस वर्ष 2024 में नए मतदाताओं की संख्या 31209 जुड़ी है. कुल मतदाताओं में 18 से 19 वर्ष के युवा मतदाताओं की संख्या 19574 है.
अररिया लोकसभा सीट के अंतर्गत 6 विधानसभा: अररिया लोकसभा सीट के अन्तर्गत छह विधानसभा क्षेत्र हैं जिनमें अररिया, जोकीहाट, फारबिसगंज, नरपतगंज, रानीगंज और सिकटी आते हैं.
क्या चाहते हैं वोटर्स? : 2024 में होने वाले चुनाव को लेकर लोगों ने विभिन्न प्रक्रिया दी है. किसी ने कहा कि हमारा सांसद ऐसा हो जो जाति धर्म से उठकर अररिया लोकसभा में विकास का कार्य करें. वही शिक्षा से जुड़े छात्रों का कहना है कि अररिया जिले में कोई भी उच्च शिक्षा की बेहतर इंतजाम नहीं है. सांसद ऐसा हो जो शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करे.
"हमारा जो भी नेता हो उसका क्षेत्र से जुड़ाव होना चाहिए. विकास के लिए उसमें जज्बा और जुनून होना चाहिए. अमन चैन बरकरार रखे. क्षेत्र के भाईचारे को बरकरार रखने वाला सांसद हमें चाहिए. सत्ता किसी की भी हो हमारा संसद लोकसभा में हमारे मुद्दों को पुरजोर तरीके से रखे."- कमाल हक, पूर्व वार्ड पार्षद, अररिया
अररिया सीट का सियासी मुद्दा: अगर इस सीट को लेकर अहम सियासी मुद्दों की बात करें तो, बाढ़ है. महानंदा बेसिन परियोजना बरसो से लंबित पड़ी है. इस परियोजना को जल्द पूरा करने से लोगों को बाढ़ से काफी हद तक राहत मिल सकती है. दूषित जल भी यहां का बड़ा मुद्दा है.
"निस्वार्थ भावना से हमारा जनप्रतिनिधि काम करे. भाईचारे को ध्यान में रखकर विकास किया जाए. मुस्लिम बहुल क्षेत्र होने के बावजूद परिणाम पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. यहां सभी धर्म के लोग मिलकर रहते हैं. सबको लेकर चलने वाला नेता चाहिए."- नंदमोहन मिश्र, सामाजिक कार्यकर्ता, अररिया
'धर्म से ज्यादा जातीय समीकरण हावी': वहीं स्थानीय निवासी इंतखाब आलम ने कहा कि विद्यार्थियों को पढ़ने लिखने में परेशानी होती है. कोचिंग स्कूल की समस्या है.सांसद पढ़ाई लिखाई के बारे में सोचे. सामाजिक कार्यकर्ता जगदीश झा गुड्डू ने कहा कि यहां धर्म से ज्यादा जातीय समीकरण इलेक्शन को प्रभावित करता है. ओबीसी पर सबकी नजर रहेगी. भाजपा के लिए यहां से जीत दर्ज करना आसान नहीं होगा.
"स्वच्छ ईमानदार कर्मठ सांसद की हमें तलाश है. हमें लूट खसोट वाला नेता नहीं चाहिए. सांसद सेवा के भाव से काम करे."-संजय अकेला, सामाजिक कार्यकर्ता, अररिया
'जातीय गोलबंदी करेगी काम': वहीं वरिष्ठ पत्रकार सह सामाजिक कार्यकर्ता परवेज आलम ने कहा कि इस सीट पर धर्म से ज्यादा जातीय समीकरण काम करता है. हमेशा से यहां जाति हावी रही है. ओबीसी वोट बहुत महत्वपूर्ण है और परिणाम में निर्णायक भूमिका निभाते हैं. जमीनी हकीकत यह है कि अररिया लोकसभा सीट किसी भी पार्टी के लिए आसान नहीं होगी. बहुत बड़े अंतर से हार जीत नहीं होगी. अंतर कम रहेगा.
ये भी पढ़ें-
Ujiarpur Lok Sabha Seat पर किसका रहा है कब्जा, कैसे रहे समीकरण, जानें सियासी इतिहास
Samastipur Lok Sabha Seat पर किसका रहा है कब्जा, कैसे रहे समीकरण, जानें सियासी इतिहास