अजमेर. लोकसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों ने सियासी बिसात बिछानी शुरू कर दी है. भाजपा ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए राजस्थान में 15 चुनावी योद्धा मैदान में उतार दिए हैं. इसके बाद अब सभी की निगाहें कांग्रेस पर टिकी हुई है. इस बीच हर लोकसभा सीट पर सियासी हलचल धीरे-धीरे चरम पर पहुंचती नजर आ रही है. राजनीतिक हलचल के बीच हम अजमेर लोकसभा सीट के जमीनी हाल को देखें तो यहां पर कांग्रेस ने जहां ज्यादातर बाहरी प्रत्याशियों को अब तक तवज्जो दी है तो भाजपा ने स्थानीय नेताओं पर भी ज्यादा भरोसा जताया है.
अजमेर लोकसभा सीट से बाहरी प्रत्याशियों को मैदान में उतारना कांग्रेस के लिए कोई नई बात नहीं है. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस और भाजपा दोनों ही पार्टियों ने बाहरी उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था. 2009 के इस चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार सचिन पायलट ने भाजपा की उम्मीदवार किरण माहेश्वरी को शिकस्त दी थी. 2014 में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार सचिन पायलट दोबारा मैदान में उतरे, लेकिन वह अपनी जीत को बरकरार नही रख पाए. बीजेपी के स्थानीय उम्मीदवार सांवर लाल जाट ने सचिन पायलट को करारी शिकस्त दी थी.
कांग्रेस ने बाहरी प्रत्याशी पर खेला ज्यादा दांव : अजमेर में बाहरी प्रत्याशियों पर कांग्रेस ने कई बार दांव खेला है. बाहरी प्रत्याशियों की बात करें तो, 1980 में आचार्य भगवान देव जीते, 1984 में विष्णु मोदी जीते, 1991 में जगदीप धनखड़ हारे, 2004 में हबीबुर्रहमान हारे ,2009 में सचिन पायलट जीते और 2019 में उद्योगपति रिजु झुनझुनवाला चुनाव हारे.
1989 के बाद पलटी फ़िजा : अजमेर लोकसभा सीट पर 1989 से पहले कांग्रेस का ही दबदबा था, लेकिन इसके बाद से अजमेर लोकसभा सीट की राजनीतिक फिजा बदल गई. 1989 से 2019 तक दस लोकसभा चुनाव और 2 उप चुनाव में कांग्रेस को मात्र तीन बार ही जीत मिली है, जबकि भाजपा यहां से 7 बार जीतकर आई है, इसलिए फिलहाल अजमेर लोकसभा सीट को भाजपा का गढ़ माना जाता है. 1977 में अजमेर लोकसभा सीट से बीजेपी से उम्मीदवार श्रीकरण शारदा चुनाव जीते थे. इसके बाद 1989 से 1998 तक तीन बार हुए लोकसभा चुनाव में रासा सिंह रावत तीनों चुनाव जीते. 12वें लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से डॉ प्रभा ठाकुर ने जीत दर्ज की. एक वर्ष बाद ही 1999 में हुए चुनाव में रासासिंह रावत ने इस सीट पर फिर से वापसी की. 2004 में हुए चुनाव में भी रावत ने भाजपा का परचम फहराया.
2009 में कांग्रेस ने अजमेर से सचिन पायलट को मैदान में उतारा. वहीं, बीजेपी ने किरण माहेश्वरी को प्रत्याशी बनाया. पायलट ने इस चुनाव में 76 हजार मतों से जीत हासिल की थी. 15वीं लोकसभा चुनाव जीतने के बाद तत्कालीन यूपीए सरकार में सचिन पायलट को मंत्रिमंडल में संचार एवं सूचना प्रौद्योगियों की मंत्री बनाया गया. 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सचिन पायलट का मुकाबला स्थानीय बीजेपी उम्मीदवार सांवरलाल जाट से हुआ. इस चुनाव में पायलट को करारी हार का सामना करना पड़ा था. 2017 में सांवरलाल जाट के निधन के बाद कांग्रेस ने उपचुनाव में सीट पर वापसी की. कांग्रेस के प्रत्याशी रघु शर्मा ने जीत दर्ज की.
वर्तमान सियासी हाल : अजमेर लोकसभा क्षेत्र में आठ विधानसभा सीट आती हैं. इनमें अजमेर उत्तर, अजमेर दक्षिण, दूदू, मसूदा, नसीराबाद, पुष्कर, केकड़ी सीट पर भाजपा का कब्जा है, जबकि किशनगढ़ विधानसभा सीट पर कांग्रेस ने कब्जा जमाया है. किशनगढ़ विधानसभा सीट पर बीजेपी ने लोकसभा सांसद भागीरथ चौधरी को उम्मीदवार बनाया गया था, लेकिन भागीरथ चुनाव हार गए. वो तीसरे स्थान पर रहे थे.
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बीजेपी और कांग्रेस से दावेदार : अजमेर सीट से दोनों पार्टियों के उम्मीदवारों की बात करें तो, बीजेपी से सांसद भागीरथ चौधरी, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनियां, डॉ दीपक भाकर, सरिता गैना, ऋतु चौहान, मिथिलेश गौतम, केकड़ी विधायक शत्रुघ्न गौतम, बीजेपी के प्रदेश महामंत्री ओमप्रकाश भडाणा, अजमेर नगर निगम के पूर्व मेयर धर्मेंद्र गहलोत समेत कई दावेदार हैं. वहीं, कांग्रेस से सचिन पायलट, डॉ रघु शर्मा, परबतसर विधायक राम निवास गावरिया के नाम की चर्चा है. इनके अलावा किशनगढ़ से कांग्रेस विधायक विकास चौधरी, सरस डेयरी अध्यक्ष रामचंद्र चौधरी, पूर्व विधायक महेंद्र गुर्जर, शहर अध्यक्ष विजय जैन, नोरत गुर्जर, धर्मेंद्र शर्मा भी कांग्रेस की तरफ से दावेदार हैं.
जातिगत समीकरण : अजमेर लोकसभा सीट जाट बाहुल्य सीट है. यहां पर गुर्जर, ब्राह्मण, रावत, मुस्लिम, एससी वर्ग के मतदाताओं की संख्या भी अधिक है. राजनीतिक पार्टियां जातिगत राजनीति न करने के कितने भी दावे करें, लेकिन दोनों ही पार्टियां टिकट का निर्धारण जातिगत आधार पर ही करती हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि कांग्रेस और बीजेपी के प्रत्याशी जाट, गुर्जर या ब्राह्मण वर्ग से हो सकते हैं.