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परिवारवाद का दाग न लगे इसलिए बिहार की राजनीति में आया नया ट्रेंड, छोटे दलों से मंत्री लड़ा रहे 'घर के चिराग' - Lok Sabha Election 2024 - LOK SABHA ELECTION 2024

Bihar Politics:2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार के राजनीतिक दलों ने राजनीति का एक नया ट्रेंड शुरू किया है. दलों के बड़े नेताओं ने अकोमोडेशन पॉलिटिक्स का सहारा लिया है. परिवारवाद के आरोपों से बचने के लिए राजनेता किसी दल में रहते हैं लेकिन अपने बेटे-बेटी को दूसरे दल से टिकट दिलवा देते हैं और ऐसा करने में वह कामयाब भी हो रहे हैं.

बिहार की राजनीति में नया ट्रेंड, अकोमोडेशन पॉलिटिक्स का माध्यम बने छोटे दल
बिहार की राजनीति में नया ट्रेंड, अकोमोडेशन पॉलिटिक्स का माध्यम बने छोटे दल
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Apr 6, 2024, 8:29 PM IST

बिहार की राजनीति में नया ट्रेंड

पटना: बिहार के 40 लोकसभा सीट के लिए राजनीतिक दल जोर आजमाइश कर रहे हैं. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने उम्मीदवार की घोषणा भी कर दी है और महागठबंधन की ओर से भी उम्मीदवारों का ऐलान किया जा रहा है. बिहार के सियासत में राजनीति के नए रंग देखने को मिल रहे हैं. परिवारवाद के आरोपों से बचने के लिए राजनेताओं ने बीच का रास्ता निकाला है.

बिहार की राजनीति में नया ट्रेंड: बिहार की सियासत में परिवारवाद एक राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और इंडिया गठबंधन परिवारवाद को लेकर एक दूसरे को कटघरे में खड़े कर रहे हैं. परिवारवाद के आरोपों से बचने के लिए बिहार में राजनेताओं ने अकोमोडेशन पॉलिटिक्स की शुरुआत की है. राजनेता किसी दल में रहते हैं लेकिन अपने परिजन को दूसरे दल से टिकट दिलवा देते हैं और ऐसा करने में वह कामयाब भी हो रहे हैं.

"बिहार की सियासत में यह नई परिपाटी की शुरुआत है. परिवारवाद से बचने के लिए छोटे दलों को राजनेता लॉन्चिंग पैड के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके उदाहरण अखिलेश सिंह अशोक चौधरी और महेश्वर हजारी हैं, जो अपने परिजनों को चुनाव के मैदान में उतरने की तैयारी कर चुके हैं. निश्चित तौर पर इस परिपाटी से कार्यकर्ताओं में निराशा का भाव आएगा."- डॉक्टर संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

नेताओं के बच्चों को राजनीति में लॉन्च: बिहार सरकार के दो मंत्रियों ने अपने बच्चों को राजनीति में लॉन्च किया है और दोनों पहली बार लोकसभा चुनाव के मैदान में हैं. बिहार सरकार के मंत्री और जदयू नेता अशोक चौधरी ने अपनी बेटी शांभवी चौधरी को लोकसभा चुनाव के मैदान में उतारा है. शांभवी चौधरी का कोई राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं रहा है. शांभवी चौधरी लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास की टिकट पर समस्तीपुर से उम्मीदवार हैं. अपनी पुत्री के लिए अशोक चौधरी ने चुनाव प्रचार अभियान की कमान भी संभाल रखी है.

सन्नी हजारी और शांभवी चौधरी के बीच होगा मुकाबला!: एक अन्य मंत्री महेश्वर हजारी के पुत्र भी लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. सन्नी हजारी को समस्तीपुर लोकसभा सीट से टिकट मिला है. मिल रही जानकारी के मुताबिक सन्नी हजारी कांग्रेस पार्टी की टिकट पर समस्तीपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवार होंगे. महेश्वर हजारी लंबे समय से लालू प्रसाद यादव के संपर्क में थे और लालू प्रसाद यादव की बदौलत ही उनके पुत्र को समस्तीपुर लोकसभा से टिकट मिलना मुमकिन हो सका है.

महेश्वर हजारी के लिए धर्म संकट जैसी स्थिति: आपको बता दें कि महेश्वर हजारी स्वर्गीय रामविलास पासवान के रिश्ते में भाई हैं और टिकट के लिए वह चिराग पासवान के संपर्क में भी थे. महेश्वर हजारी भले ही एनडीए में हैं लेकिन अगर उनके पुत्र चुनाव के मैदान में उतरते हैं तो अपने पुत्र को जीतने के लिए वह पूरी ताकत झोंक देंगे. महेश्वर हजारी के लिए धर्म संकट जैसी स्थिति होगी एक ओर उन्हें दल के प्रति निष्ठा दिखानी होगी तो दूसरी तरफ पुत्र का राजनीतिक भविष्य दांव पर होगा.

चेतन आनंद ने संभाला मोर्चा: आनंद मोहन के पुत्र चेतन आनंद राष्ट्रीय जनता दल की पार्टी से विधायक हैं. हालांकि पिछले दिनों उन्होंने बगावत किया था और एनडीए खेमे में आ गए थे. चेतन आनंद की माताजी लवली आनंद शिवहर लोकसभा सीट से जदयू की उम्मीदवार हैं और चेतन आनंद ने अपनी माता लवली आनंद के लिए चुनाव प्रचार अभियान की कमान संभाल रखी है.

आकाश सिंह भी लड़ सकते हैं चुनाव: कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह भी अपने पुत्र को टिकट दिलवाना चाहते हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश सिंह ने अपने पुत्र को रालोसपा से टिकट दिलवाया था और वह मोतिहारी लोकसभा सीट से उम्मीदवार थे. इस बार भी आकाश सिंह चुनाव लड़ने की तैयारी में है. मिल रही जानकारी के मुताबिक आकाश सिंह मुकेश सहनी की पार्टी के टिकट पर मोतिहारी से उम्मीदवार हो सकते हैं. अखिलेश सिंह भले ही कांग्रेस में हैं लेकिन उन्हें वोट वीआईपी पार्टी के लिए मांगना होगा. बात दीगर है कि दोनों इंडिया गठबंधन का हिस्सा है.

"चुनाव अब आम लोगों के पहुंच से बाहर है. महंगे चुनाव होने के चलते अब आम लोग चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकते. इसका फायदा बड़े राजनेता उठा रहे हैं. धन बल और अपनी पहुंच के बदौलत राजनेता अपने बेटे बेटियों को टिकट दूसरे दलों से दिलवा रहे हैं. निश्चित तौर पर लोकतंत्र के लिए यह शुभ संकेत नहीं है."- रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार

इसे भी पढ़ें- क्या समस्तीपुर में JDU के दो मंत्रियों की होगी भिड़ंत! सन्नी हजारी के कांग्रेस ज्वाइन करने पर उठने लगे सवाल- शांभवी को देंगे टक्कर? - lok sabha election

बिहार की राजनीति में नया ट्रेंड

पटना: बिहार के 40 लोकसभा सीट के लिए राजनीतिक दल जोर आजमाइश कर रहे हैं. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने उम्मीदवार की घोषणा भी कर दी है और महागठबंधन की ओर से भी उम्मीदवारों का ऐलान किया जा रहा है. बिहार के सियासत में राजनीति के नए रंग देखने को मिल रहे हैं. परिवारवाद के आरोपों से बचने के लिए राजनेताओं ने बीच का रास्ता निकाला है.

बिहार की राजनीति में नया ट्रेंड: बिहार की सियासत में परिवारवाद एक राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और इंडिया गठबंधन परिवारवाद को लेकर एक दूसरे को कटघरे में खड़े कर रहे हैं. परिवारवाद के आरोपों से बचने के लिए बिहार में राजनेताओं ने अकोमोडेशन पॉलिटिक्स की शुरुआत की है. राजनेता किसी दल में रहते हैं लेकिन अपने परिजन को दूसरे दल से टिकट दिलवा देते हैं और ऐसा करने में वह कामयाब भी हो रहे हैं.

"बिहार की सियासत में यह नई परिपाटी की शुरुआत है. परिवारवाद से बचने के लिए छोटे दलों को राजनेता लॉन्चिंग पैड के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके उदाहरण अखिलेश सिंह अशोक चौधरी और महेश्वर हजारी हैं, जो अपने परिजनों को चुनाव के मैदान में उतरने की तैयारी कर चुके हैं. निश्चित तौर पर इस परिपाटी से कार्यकर्ताओं में निराशा का भाव आएगा."- डॉक्टर संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक

नेताओं के बच्चों को राजनीति में लॉन्च: बिहार सरकार के दो मंत्रियों ने अपने बच्चों को राजनीति में लॉन्च किया है और दोनों पहली बार लोकसभा चुनाव के मैदान में हैं. बिहार सरकार के मंत्री और जदयू नेता अशोक चौधरी ने अपनी बेटी शांभवी चौधरी को लोकसभा चुनाव के मैदान में उतारा है. शांभवी चौधरी का कोई राजनीतिक बैकग्राउंड नहीं रहा है. शांभवी चौधरी लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास की टिकट पर समस्तीपुर से उम्मीदवार हैं. अपनी पुत्री के लिए अशोक चौधरी ने चुनाव प्रचार अभियान की कमान भी संभाल रखी है.

सन्नी हजारी और शांभवी चौधरी के बीच होगा मुकाबला!: एक अन्य मंत्री महेश्वर हजारी के पुत्र भी लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. सन्नी हजारी को समस्तीपुर लोकसभा सीट से टिकट मिला है. मिल रही जानकारी के मुताबिक सन्नी हजारी कांग्रेस पार्टी की टिकट पर समस्तीपुर लोकसभा सीट से उम्मीदवार होंगे. महेश्वर हजारी लंबे समय से लालू प्रसाद यादव के संपर्क में थे और लालू प्रसाद यादव की बदौलत ही उनके पुत्र को समस्तीपुर लोकसभा से टिकट मिलना मुमकिन हो सका है.

महेश्वर हजारी के लिए धर्म संकट जैसी स्थिति: आपको बता दें कि महेश्वर हजारी स्वर्गीय रामविलास पासवान के रिश्ते में भाई हैं और टिकट के लिए वह चिराग पासवान के संपर्क में भी थे. महेश्वर हजारी भले ही एनडीए में हैं लेकिन अगर उनके पुत्र चुनाव के मैदान में उतरते हैं तो अपने पुत्र को जीतने के लिए वह पूरी ताकत झोंक देंगे. महेश्वर हजारी के लिए धर्म संकट जैसी स्थिति होगी एक ओर उन्हें दल के प्रति निष्ठा दिखानी होगी तो दूसरी तरफ पुत्र का राजनीतिक भविष्य दांव पर होगा.

चेतन आनंद ने संभाला मोर्चा: आनंद मोहन के पुत्र चेतन आनंद राष्ट्रीय जनता दल की पार्टी से विधायक हैं. हालांकि पिछले दिनों उन्होंने बगावत किया था और एनडीए खेमे में आ गए थे. चेतन आनंद की माताजी लवली आनंद शिवहर लोकसभा सीट से जदयू की उम्मीदवार हैं और चेतन आनंद ने अपनी माता लवली आनंद के लिए चुनाव प्रचार अभियान की कमान संभाल रखी है.

आकाश सिंह भी लड़ सकते हैं चुनाव: कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश सिंह भी अपने पुत्र को टिकट दिलवाना चाहते हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश सिंह ने अपने पुत्र को रालोसपा से टिकट दिलवाया था और वह मोतिहारी लोकसभा सीट से उम्मीदवार थे. इस बार भी आकाश सिंह चुनाव लड़ने की तैयारी में है. मिल रही जानकारी के मुताबिक आकाश सिंह मुकेश सहनी की पार्टी के टिकट पर मोतिहारी से उम्मीदवार हो सकते हैं. अखिलेश सिंह भले ही कांग्रेस में हैं लेकिन उन्हें वोट वीआईपी पार्टी के लिए मांगना होगा. बात दीगर है कि दोनों इंडिया गठबंधन का हिस्सा है.

"चुनाव अब आम लोगों के पहुंच से बाहर है. महंगे चुनाव होने के चलते अब आम लोग चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकते. इसका फायदा बड़े राजनेता उठा रहे हैं. धन बल और अपनी पहुंच के बदौलत राजनेता अपने बेटे बेटियों को टिकट दूसरे दलों से दिलवा रहे हैं. निश्चित तौर पर लोकतंत्र के लिए यह शुभ संकेत नहीं है."- रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार

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