हाजीपुर: 2024 के लोकसभा चुनाव की जंग का आगाज हो चुका है और सियासतदानों ने जनता-जनार्दन के दरबार में चक्कर लगाना शुरू कर दिया है. जाहिर है जीत-हार के समीकरणों पर भी मंथन तेज हो चुका है. तो चलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं हाजीपुर लोकसभा सीट का इतिहास और ताजा सियासी समीकरण.
हाजीपुर लोकसभा सीट का इतिहासः 1977 से पहले तक हाजीपुर देश की उन लोकसभा सीटों में शामिल था, जिसकी कोई कभी खास चर्चा नहीं हुई लेकिन 1977 में हाजीपुर की जनता ने रामविलास पासवान पर ऐसा प्यार लुटाया कि इस सीट का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड में रिकॉर्ड हो गया. इमरजेंसी के बाद हुए इस चुनाव में कांग्रेस विरोध की लहर पर सवार रामविलास पासवान ने 4 लाख 69 हजार 7 वोट से जीत दर्ज कर सबसे अधिक वोट से जीत रिकॉर्ड बना डाला.
2009 से NDA का जलवाः वहीं पिछले 3 चुनावों की बात करें तो तीनों बार NDA प्रत्याशियों का ही जलवा रहा है जिसमें दो 2014 और 2019 में रामविलास पासवान के परिवार का ही कब्जा रहा है. जबकि 2009 में NDA के बैनर तले जेडीयू के रामसुंदर दास ने एलजेपी के रामविलास पासवान को हराकर पासवान परिवार का वर्चस्व खत्म किया था.
NDA Vs महागठबंधनः पिछले कई लोकसभा चुनावों की तरह इस बार भी पूरे बिहार में NDA बनाम महागठबंधन का मुकाबला है. हाजीपुर सीट पर भी दोनों गठबंधन ही आमने-सामने हैं.दोनों गठबंधन के सियासी पहलवान भी फाइनल हो चुके हैं. NDA ने जहां चिराग पासवान को अपने खानदान की विरासत और NDA की सीट बचाने की जिम्मेदारी दी है तो महागठबंधन ने एक बार फिर आरजेडी के शिवचंद्र राम को मैदान में उतार दिया है.
पासवान परिवार की परंपरागत सीटः हाजीपुर सीट को रामविलास पासवान के परिवार की परंपरागत सीट भी कहा जा सकता है. ऐसा इसलिए कि इस सीट से रामविलास पासवान ने 1977, 1980, 1989, 1996, 1998, 1999, 2004 और 2014 में जीत दर्ज की वहीं 2019 में उनके छोटे भाई पशुपति कुमार पारस ने महागठबंधन की चुनौती को ध्वस्त करते हुए विजय पताका लहराई.
दो बार हाजीपुर में हुई रामविलास की हारः हालांकि 1984 में कांग्रेस की लहर में रामविलास अपनी जीत की लय बरकरार नहीं रख पाए और कांग्रेस कैंडिडेट रामरतन राम से मात खा गये. इसके बाद हाजीपुर की जनता ने 2009 में भी रामविलास को नकार दिया और तब NDA के बैनर तले रामसुंदर दास ने रामविलास पासवान को हरा दिया. इसके अलावा 1991 में रामविलास पासवान ने हाजीपुर की जगह रोसड़ा से चुनाव लड़ा था.
हाजीपुर लोकसभा सीटःः2009 से अब तकः इस सीट पर 2009 में हुए चुनाव में NDA प्रत्याशी के तौर पर जेडीयू के रामसुंदर दास ने एलजेपी के रामविलास पासवान को हराकर जीत दर्ज की. वहीं 2014 में समीकरण उलट गये. इस बार एलजेपी NDA का हिस्सा थी और जेडीयू अकेले चुनाव लड़ रहा था. ऐसे में NDA के रामविलास पासवान ने कांग्रेस के संजीव प्रसाद टोनी को हराकर अपनी सियासी विरासत पर फिर से कब्जा कर लिया. इस चुनाव में जेडीयू के रामसुंदर दास तीसरे स्थान पर रहे. बात 2019 को करें तो इस बार रामविलास पासवान ने NDA के बैनर तले एलजेपी के टिकट पर अपने छोटे भाई पशुपति कुमार पारस को मैदान में उतारा और पारस ने आरजेडी के शिवचंद्र राम को मात देकर परिवार की विरासत को आगे बढ़ाने में सफलता प्राप्त की.
हाजीपुरः धार्मिक और ऐतिहासिक नगरीःगंगा और गंडक नदी के तट पर बसे इस शहर का धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्त्व है. पौराणिक कथाओं के अनुसार यही गज और ग्राह की लड़ाई हुई थी और गज को बचाने के लिए स्वयं भगवान विष्णु यहां पधारे थे. कोनहारा घाट के पास लगनेवाला कार्तिक पूर्णिमा का मेला पूरी दुनिया में विख्यात है. वहीं हाजीपुर केले के उत्पादन के लिए भी बेहद ही मशहूर है.
रामविलास ने हाजीपुर की सूरत बदलीः हाजीपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत हाजीपुर, लालगंज, महुआ, राजापाकर, राघोपुर और महनार ये 6 विधानसभी सीटें आती हैं. जिनमें दो सीटों पर NDA का और 4 सीटों पर महागठबंधन का कब्जा है. हाजीपुर की जनता ने रामविलास को जो प्यार दिया उसके बदले रामविलास पासवान ने भी शहर को कई बड़ी सौगात दीं. जिनमें पूर्व मध्य रेलवे का जोनल ऑफिस, CIPET और NIPER जैसे महत्वपूर्ण शामिल हैं.
अभी भी कई काम अधूरेः इसके अलावा पशुपति कुमार पारस ने भी नेशनल इंस्टीट्यूट आफ फूड एंड टेक्नोलॉजी के ऑफिस और हाजीपुर-सुगौली रेलखंड के लिए धन की व्यवस्था की. हालांकि जमीन की व्यवस्था नहीं होने से केंद्रीय विश्वविद्यालय का काम अधूरा है. साथ ही भगवानपुर महुआ ताजपुर रेल लाइन निर्माण का काम भी अधूरा है. और नमामि गंगे के गंडक किनारे हाजीपुर के घाटों का सौंदर्यीकरण भी नहीं हो सका है.
हाजीपुर में जातिगत समीकरण : हाजीपुर में 10 लाख 22 हजार 2 सौ 70 पुरुष वोटर्स हैं और 9 लाख 26 हजार 8 सौ 49 महिला वोटर्स हैं. जातिगत समीकरण बात करें तो एक अनुमान के मुताबिक यहां यादव वोटर्स की संख्या 3 लाख से अधिक है, वहीं राजपूत मतदाताओं की संख्या भी 3 लाख के आसपास है जबकि पासवान मतदाताओं की संख्या भी करीब 3 लाख है. इसके अलावा दो लाख के आसपास भूमिहार और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी 2 लाख के करीब है. जबकि ब्राह्मण 50 हजार के साथ-साथ महादलित ढाई लाख और बनिया, कुशवाहा, कुर्मी सहित अन्य जाति के मतदाता भी ढाई लाख के आसपास हैं.
क्या खानदान की विरासत बचा पाएंगे चिराग ?: हाजीपुर लोकसभा सीट पासवान परिवार की विरासत तो है ही NDA का मजबूत गढ़ भी है.पिछले 3 चुनावों से इस सीट पर NDA का विजय रथ निर्बाध गति से आगे बढ़ता आ रहा है.वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि इस बार हाजीपुर मोदीमय और चिरागमय हो गया है. लोगों का कहना है कि राममंदिर के भव्य निर्माण के कारण यहां एक लहर चल रही है.
रामविलास के अधूरे सपने कौन पूरे करेगा ? : साथ ही लोगों का मानना है कि चिराग पासवान ही रामविलास पासवान के अधूरे सपनों को पूरा कर सकते हैं. इसके अलावा पिछले दिनों चिराग पासवान और पशुपति कुमार पारस के बीच टिकट को लेकर चल रहा घमासान भी थम गया है और अब चाचा पशुपति पारस भी पूरी तरह NDA के साथ हैं. हालांकि कई लोग बदलाव की बात जरूर कर रहे हैं लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि फिलहाल हाजीपुर की लड़ाई में NDA आगे दिख रहा है.