सरगुजा: आदिवासी बेल्ट के रुप में गिने जाने वाले सरगुजा लोकसभा सीट पर इस बार बीजेपी और कांग्रेस के महामुकाबला होने वाला है. आदिवासी वोटरों का झुकाव जिस ओर होता है जीत उसी पार्टी की होती है. सरगुजा लोकसभा सीट पर हमेशा से आदिवासी वोटर हार और जीत के फैक्टर में निर्णायक साबित होते रहे हैं. सरगुजा लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है. विधानसभा चुनाव 2023 में भारतीय जनता पार्टी ने यहां से कांग्रेस का सूपड़ा साफ कर दिया. पूरे सरगुजा में सिर्फ कमल खिला. सरगुजा लोकसभा सीट को बीजेपी की परंपरागत सीटों में गिना जाता है.
सरगुजा लोकसभा सीट में 8 विधानसभा सीटें हैं: सरगुजा लोकसभा सीट छत्तीसगढ़ के लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक सीट है. सरगुजा लोकसभा सीट में प्रेमनगर, भटगांव, प्रतापपुर, रामानुजगंज, सामरी, लुंड्रा, अंबिकापुर, सीतापुर समेत 8 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं. सरगुजा लोकसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट है. सरगुजा लोकसभा सीट पर हमेशा से मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच रहा है.
2019 में रेणुका सिंह ने मारी थी बाजी: 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की रेणुका सिंह ने वोटों के बड़े अंतर से कांग्रेस को हराकर बीजेपी को जीत दिलाई थी. रेणुका सिंह को सरगुजा में पचास फीसदी से ज्यादा वोट प्रतिशत मिले थे. 2019 में रेणुका सिंह का मुकाबला कांग्रेस के खेलसाय सिंह हुआ था. साल 2014 में सरगुजा सीट से बीजेपी के कमलभान सिंह मराबी ने जीत दर्ज की थी. बीजेपी को यहां पचास फीसदी के करीब वोट मिले थे. कुल मिलाकर सरगुजा लोकसभा सीट पर हमेशा से बीजेपी का दबदबा रहा है.
सरगुजा में क्या हैं बड़े मुद्दे: सरगुजा में बढ़ती बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है. बड़ी संख्या में युवा यहां रोजगार के लिए भटक रहे हैं. मतदान के दौरान युवा जब पोलिंग बूथों तक जाएगा तो रोजगार के मुद्दे पर ही वोट करेगा. बेरोजगारी के अलावे पेयजल की समस्या लंबे समय से यहां रही है. साफ पानी की किल्लत सालों से यहां के दूर दराज के इलाकों में है. पीने के पानी के लिए अभी भी यहां के लोग कई कई किमी की दूरी तय करते हैं. शिक्षा के लिए अच्छे स्कूल और कॉलेज की भी कमी है. तकनीकी और उच्च शिक्षा के लिए लोगों को रायपुर और दूसरे राज्यों का रुख करना पड़ता है.
सरगुजा का क्या है सियासी मिजाज: साल 1952 में सरगुजा लोकसभा सीट अपने अस्तित्व में आया. शुरुआत में कांग्रेस पार्टी का यहां पर काफी दबदबा रहा है. साल 1971 तक लगातार यहां से कांग्रेस जीतती रही. कांग्रेस के जीत का सिलसिला 1977 में तब टूटा जब जनता पार्टी ने यहां से जीत दर्ज की. साल 2004 से यहां पर बीजेपी का कब्जा बना हुआ है. बीजेपी के इस गढ़ में सेंध लगाने की कोशिश कई बार कांग्रेस ने की लेकिन सफलता नहीं मिली.
कौन हैं चिंतामणि महाराज: कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थामने वाले चिंतामणि महाराज छत्तीसगढ़ के संत गहिरा गुरु के परिवार से हैं और उनके बेटे हैं. सरगुजा संभाग में बड़ी संख्या में संत गहिरा गुरु के अनुयायी रहते हैं. संत गहिरा गुरु का प्रभाव अंबिकापुर, लुंड्रा, सामरी, पत्थलगांव, कुनकुरी, बिलासपुर, जशपुर और रायगढ़ जैसे इलाकों में है. प्रदेश भर में इस समाज से जुड़े लोगों के अनुयायी रहते हैं. बीजेपी में उनके आने से और उनको टिकट देने से पार्टी मजबूत भी हुई है उसका जनाधार भी बढ़ा है ऐसा बीजेपी के नेताओं का मानना है. चिंतामणि महाराज के चुनाव मैदान में उतरने से कांग्रेस जरुर बैकफुट पर है.
कौन हैं शशि सिंह: कांग्रेस पार्टी ने चिंतामणि महाराज के सामने तेज तर्रार युवा नेत्री शशि सिंह को मैदान में उतारा है. शशि सिंह तब चर्चा में आईं जब वो राहुल गांधी की न्याय यात्रा से छत्तीसगढ़ में जुड़ीं. शशि सिंह के पिता तुलेश्वर सिंह कांग्रेस की सरकार में मंत्री पद पर रह चुके हैं. राजनीति शशि सिंह को विरासत में मिली है. शशि सिंह की पहचान क्षेत्र में युवा और तेज तर्रार नेताओं में किया जाता है. जमीनी कार्यकर्ताओं के साथ जुड़कर उनको काम करने की आदत है. शशि सिंह को पार्टी ने जब टिकट दिया तो खुद कांग्रेस पार्टी के कई नेता और पदाधिकारी हैरान रह गए थे.