चंडीगढ: हरियाणा की चुनावी राजनीति में कई दौर ऐसा आया जब पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया. 1966 में बने छोटे से राज्य हरियाणा में बड़े-बड़े चुनावी किस्से हुए हैं. हरियाणा की राजनीति करीब 20 साल पहले तक तीन लालों के इर्द-गिर्द घूमती रही है. बंसीलाल, भजन लाल और देवी लाल. इनके बाद इनके परिवार ने विरातस संभाल ली. विरासत की इस जंग में ऐसा भी हुआ जब भाई-भाई में चुनावी जंग हो गई.
बंसीलाल की सियासी विरासत पर जंग
तीनों लालों (बंसीलाल, भजन लाल, देवी लाल) के आखिरी दौर में उनके परिवारों के बीच विरासत की जंग भी देखी गई. कई मौके ऐसे आये जब अपनी सियासी महत्वाकांक्षा पूरा करने के लिए एक ही परिवार के सदस्य आमने-सामने हो गये. एक ही सीट पर चुनाव लड़ा और एक दूसरे को पटखनी देने के लिए पूरा जोर लगा दिया. ऐसा ही एक वाकया एक लोक सभा चुनाव में तब हुआ जब हरियाणा की राजनीति के धुरंधर बंसी लाल के दो बेटे एक ही सीट पर आपस में भिड़ गये.
एक सीट पर भिड़े बंसीलाल के दो बेटे
ये समय है लोकसभा चुनाव 1998 का. लोकसभा सीट थी भिवानी. वही भिवानी जो बंसीलाल का गढ़ कही जाती है. बंसी लाल के दो बेटे थे. बड़े बेटे रणवीर सिंह महेंद्रा और छोटे बेटे सुरेंदर सिंह. 1998 लोकसभा चुनाव में जब कैंडिडेट का ऐलान हुआ तो बंसीलाल की अपनी पार्टी हरियाणा विकास पार्टी से उनके छोटे बेटे सुरेंदर चुनावी मैदान में उतरे. तो वहीं कांग्रेस ने बंसीलाल के बड़े बेटे रणवीर महेंद्रा को टिकट देकर सुरेंद्र के खिलाफ खड़ा कर दिया. इस सीट पर हरियाणा लोकदल से तीसरे उम्मीदवार थे देवीलाल के पोते और ओपी चौटाला के बड़े अजय चौटाला.
चुनावी मैदान में छोटे भाई के खिलाफ बड़ा भाई
इस तरह एक ही लोकसभा सीट पर बंसीलाल के दो बेटों में चुनावी जंग छिड़ गई. दरअसल बंसीलाल ने 1991 में ही कांग्रेस छोड़कर हरियाणा विकास पार्टी बना ली थी. 1996 विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी की सरकार बनी और बंसीलाल मुख्यमंत्री बने. 1998 लोकसभा चुनाव के समय बंसीलाल खुद मुख्यमंत्री थे. लेकिन उनके सियासी विरासत पर उनके छोटे बेटे सुरेंदर का असर ज्यादा रहा. बंसीलाल के बाद हरियाणा विकास पार्टी का काम सुरेंदर ही देखते थे. सुरेंदर बंसीलाल के छोटे बेटे थे और रणबीर बड़े.
छोटे भाई ने बड़े भाई को दी पटखनी
भिवानी लोक सभा सीट से 1996 के चुनाव में बंसीलाल के छोटे बेटे सुरेंदर सिंह हरियाणा विकास पार्टी के टिकट पर पहली बार सांसद बने थे. 1998 का चुनाव आया तो दूसरी बार भी वो खुद मैदान में उतरे. उन्हें टक्कर देने के लिए कांग्रेस ने बंसीलाल के बड़े बेटे रणबीर सिंह महेंद्रा को मैदान में उतार दिया. इस चुनाव में छोटे भाई सुरेंदर ने बड़े भाई रणबीर को हरा दिया. सुरेंद्र ने ये चुनाव 9711 वोट के मामूली अंतर से जीत लिया. खास बात ये है कि बड़े भाई रणबीर तीसरे नंबर पर रहे. सुरेंद्र को हरियाणा लोकदल के उम्मीदवार और ओपी चौटाला के बेटे अजय चौटाला ने कड़ी टक्कर दी और दूसरे नंबर पर रहे. रणबीर महेंद्रा को महज 27789 वोट ही हासिल हुए.
महज एक बार चुनाव जीते रणबीर महेंद्रा
बताया जा रहा है कि बंसीलाल के रहते ही रणबीर महेंद्रा परिवार से दरकिनार हो गये थे. बंसीलाल की विरासत और हरियाणा विकास पार्टी का काम भी उनके छोटे भाई सुरेंदर ही देखते थे. रणबी महेंद्रा कई चुनाव लड़े लेकिन ज्यादातर में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. रणबीर केवल एक बार 2005 में मुंढाल खुर्द सीट से विधायक बन पाये. वो इसके अलावा वो 4 विधानसभा चुनाव लड़े लेकिन हार गये. 1998 के लोकसभा चुनाव में भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा. रणबीर महेंद्रा लंबे समय तक क्रिकेट से जुड़े रहे. वो भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.