लखनऊ : बच्चों को काजल लगाने से आंख बड़ी नहीं होती है. बल्कि आंखों का संक्रमण हो सकता है. इसका फर्क रोशनी पर पड़ सकती है. धीरे-धीरे बच्चे की नजर भी कमजोर हो सकती है. यह जानकारी लोहिया संस्थान में बाल रोग विभाग की अध्यक्ष डॉ. दीप्ति अग्रवाल ने दी. वह सोमवार को संस्थान प्रेक्षाग्रृह में प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण विषय पर दो दिवसीय कार्यशाला को संबोधित कर रही थीं.
डॉ. दीप्ति अग्रवाल ने कहा कि शिशुओं को काजल न लगाएं. क्योंकि काजल में नुकसानदेह तत्व होते हैं. जो नाजुक आंखों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. शिशुओं की नाभि में माताएं तेल या पाउडर आदि लगाती हैं. यह भी नुकसानदेह है. नाभि को सूखा रखें. इससे काफी हद तक बच्चों को संक्रमण से बचा सकते हैं. बच्चे को ऊनी कपड़ों के नीचे सूती कपड़ों की एक परत पहनाएं. मालिश के स्थान पर हल्के हाथों से तेल लगाएं.
चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव पार्थ सारथी सेन शर्मा ने कहा कि प्रशिक्षण के माड्यूल की सफलता तभी संभव है. जब नर्सिग संवर्ग का भी पूर्णत योगदान हो. क्योंकि वह चिकित्सक एवं अभिभावकों के बीच पूल की भंति काम करती है. जिनका काम बच्चों की सेवा एवं ध्यान रखना होता है. केजीएमयू बाल रोग विभाग के डॉ. अशोक कुमार गुप्ता ने कहा कि नवजात शिशुओं की सेहत के लिए अच्छी नींद बहुत जरूरी है. शिशुओं में आरामदायक नींद को बढ़ावा देने के लिए कम रोशनी रखें. कम शोर के स्तर को बनाए रखने की आवश्यकता है. त्वचा की त्वचा का संपर्क सुरक्षित नींद को बढ़ावा देता है.
डॉ. शालिनी त्रिपाठी ने कहा कि नवजात शिशु में दर्द और तनाव के संकेतों को पहचानना महत्वपूर्ण है. नवजात शिशुओं में भूख के समय हाथ से मुंह दबाता है. शिशु के अकेले आरामदायक होने पर कंबल लपेटना, उंगली और पैर दबाना नवजात का स्व-नियामक व्यवहार है. जिसे समझना आवश्यक है. कार्यक्रम में केजीएमयू बाल रोग विभाग के डॉ. एसएन सिंह, लोहिया संस्थान के डीन डॉ. प्रद्ययुमन सिंह, एनएचएम की निदेशक पिंकी जोवेल, डॉ. रतन पाल सिंह समेत अन्य डॉक्टर मौजूद रहे.
सामान्य बीमारियों में एंटीबायोटिक के इस्तेमाल से बचें
सामान्य बीमारियों में एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल से बचना चाहिए. खासतौर पर बिना डॉक्टर की सलाह पर एंटीबायोटिक दवाएं नहीं लेनी चाहिए. यह सलाह केजीएमयू माइक्रोबायोलॉजी विभाग की डॉ. शीतल वर्मा ने दी. वह सोमवार को विश्व एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस जागरूकता सप्ताह को संबोधित कर रही थीं. डॉ. शीतल वर्मा ने कहा कि एंटीबायोटिक दवाएं सीमित हैं. लिहाजा इलाज में एंटीबायोटिक का चुनाव बहुत सोच समझकर करना चाहिए. मेडिकल स्टोर से बिना डॉक्टर की सलाह पर एंटीबायोटिक दवा नहीं लेनी चाहिए. उन्होंने बताया कि अधूरी डोज या बिना डॉक्टर की सलाह के एंटीबायोटिक के इस्तेमाल से मरीज में रेजिस्टेंट हो सकता है. नतीजतन बाद में यह दवा मरीज में बेअसर साबित हो सकती है.
डॉ. शीतल वर्मा ने बताया कि जागरुकता कार्यक्रम के तहत प्रतिज्ञा अभियान और एएमआर-थीम आधारित फोटो बूथ स्थापित किए गए हैं. जो छात्रों, संकायों और समुदाय को जागरूकता फैलाने में शामिल करने के लिए हैं. ये बूथ ओपीडी, कलाम सेंटर और ट्रॉमा सेंटर में लगाए गए हैं। 18 से 24 नवंबर तक सुबह 9 से शाम चार बजे तक खुले रहेंगे. माइक्रोबायोलॉजी विभाग की अध्यक्ष डॉ. अमिता जैन ने कहा कि इस तरह की रचनात्मक गतिविधियों के माध्यम से हमारा लक्ष्य एएमआर जागरूकता को सभी के लिए रोचक और प्रभावशाली बनाना है.
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