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शिक्षा के लिए खतरे में जान, उफनता नाला पार कर रहे बच्चे - Overflowing drain - OVERFLOWING DRAIN

Life in danger for education कांकेर जिले के कोयलीबेड़ा गांव में एक खतरनाक तस्वीर सामने आई है.यहां के एक गांव में पुल ना होने के कारण बारिश के मौसम में ग्रामीण समेत बच्चे जान जोखिम में डालते हैं.कई बार नाले के ऊपर पुल बनाने की मांग की गई,लेकिन सिवाय आश्वासन के कुछ नहीं मिला. children crossing overflowing drain

Life in danger for education
शिक्षा के लिए खतरे में जान (ETV Bharat Chhattisgarh)
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By ETV Bharat Chhattisgarh Team

Published : Oct 2, 2024, 3:46 PM IST

Updated : Oct 2, 2024, 7:47 PM IST

कांकेर : कांकेर के एक गांव से बच्चों की जान जोखिम में डालकर स्कूल जाने की तस्वीर सामने आई है. इस तस्वीर में बच्चे एक साथ उफनते नाले को पार कर रहे हैं. इस नाले को पार करने की मजबूरी इसलिए भी है,क्योंकि बच्चों का स्कूल नाले के उस पार है.लिहाजा बच्चों को बारिश के मौसम में इसी तरह से उफनते नाले को पार करके स्कूल आना पड़ता है.

कहां की है ये तस्वीर ?: बच्चों समेत ग्रामीणों के नाला पार करने की ये तस्वीर कोयलीबेड़ा ब्लॉक के आलोर गांव की है. जहां पर 30 परिवार रहता है. यहां रह रहे लोगों की माने तो वो 60 साल से इस गांव में रह रहे हैं.कई बार जनप्रतिनिधियों और गांव के पंच सरपंच को नाले के ऊपर पुल बनाने के लिए कहा,लेकिन किसी ने भी नहीं सुना. ग्रामीणों की माने तो जब भी बारिश का मौसम आता है और नदी नाले उफान पर होते हैं तो उनका गांव टापू बन जाता है.पानी कम होने पर गांव वाले और बच्चे अपनी जान जोखिम में डालकर नाला पार करते हैं.

शिक्षा के लिए खतरे में जान (ETV Bharat Chhattisgarh)

'हम करीब 60 साल से इस जगह पर रह रहे हैं लेकिन किसी ने भी अब तक इस समस्या का समाधान नहीं किया.अधिकारियों से लेकर सरपंच तक को अपनी परेशानी बता चुके हैं,लेकिन अभी तक पुल का निर्माण नहीं हो सका है.जिससे सभी को इसी तरह से जान जोखिम में डालकर नाला पार करना पड़ रहा है.'- शीला,ग्रामीण महिला

शवों को नहीं नसीब होता श्मशान : ग्रामीणों का कहना हैं कि जीते जी तो हम बहुत तकलीफ में हैं. मरने के बाद में परेशानियां कम नहीं होती. क्योंकि नाले पर पुलिया ना होने के कारण शवों को श्मशान तक नहीं ले जाया जा सकता. जिसके कारण ग्रामीणों को मजबूरन अपने खेतों में शवों का अंतिम संस्कार करना पड़ता हैं.शवों को शमशान तक नसीब नहीं होता. ग्रामीणों ने कई बार सरपंच - सचिव सहित जिला कलेक्टर तक को पुलिया के लिए आवेदन दिया.लेकिन आवेदन सिर्फ कागज का टुकड़ा बनकर रह गया. वहीं प्रशासन ने जल्द ही नाले पर पुल बनाने की बात कही है.

''क्षेत्र में अभी छोटे पुल-पुलिया की स्वीकृति मिली है. अधिकतर छोटे पुल-पुलिया के काम चालू भी हो गया है. आलोर के पुलिया का प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है स्वीकृति मिलते ही काम चालू कराया जाएगा.''- नीलेश कुमार क्षीरसागर, कलेक्टर

कलेक्टर ने भले ही ये दावा किया हो कि आने वाले दिनों में पुल का काम शुरु हो जाएगा.लेकिन तब तक क्या ग्रामीणों और स्कूली बच्चों को इसी तरह से जान जोखिम में डालकर नाला पार करना होगा.ये एक बड़ा सवाल है.

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यहां मुर्दा चला रहा ट्रैक्टर, परिवार को मिला कागज तो उड़ गए होश

कांकेर : कांकेर के एक गांव से बच्चों की जान जोखिम में डालकर स्कूल जाने की तस्वीर सामने आई है. इस तस्वीर में बच्चे एक साथ उफनते नाले को पार कर रहे हैं. इस नाले को पार करने की मजबूरी इसलिए भी है,क्योंकि बच्चों का स्कूल नाले के उस पार है.लिहाजा बच्चों को बारिश के मौसम में इसी तरह से उफनते नाले को पार करके स्कूल आना पड़ता है.

कहां की है ये तस्वीर ?: बच्चों समेत ग्रामीणों के नाला पार करने की ये तस्वीर कोयलीबेड़ा ब्लॉक के आलोर गांव की है. जहां पर 30 परिवार रहता है. यहां रह रहे लोगों की माने तो वो 60 साल से इस गांव में रह रहे हैं.कई बार जनप्रतिनिधियों और गांव के पंच सरपंच को नाले के ऊपर पुल बनाने के लिए कहा,लेकिन किसी ने भी नहीं सुना. ग्रामीणों की माने तो जब भी बारिश का मौसम आता है और नदी नाले उफान पर होते हैं तो उनका गांव टापू बन जाता है.पानी कम होने पर गांव वाले और बच्चे अपनी जान जोखिम में डालकर नाला पार करते हैं.

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'हम करीब 60 साल से इस जगह पर रह रहे हैं लेकिन किसी ने भी अब तक इस समस्या का समाधान नहीं किया.अधिकारियों से लेकर सरपंच तक को अपनी परेशानी बता चुके हैं,लेकिन अभी तक पुल का निर्माण नहीं हो सका है.जिससे सभी को इसी तरह से जान जोखिम में डालकर नाला पार करना पड़ रहा है.'- शीला,ग्रामीण महिला

शवों को नहीं नसीब होता श्मशान : ग्रामीणों का कहना हैं कि जीते जी तो हम बहुत तकलीफ में हैं. मरने के बाद में परेशानियां कम नहीं होती. क्योंकि नाले पर पुलिया ना होने के कारण शवों को श्मशान तक नहीं ले जाया जा सकता. जिसके कारण ग्रामीणों को मजबूरन अपने खेतों में शवों का अंतिम संस्कार करना पड़ता हैं.शवों को शमशान तक नसीब नहीं होता. ग्रामीणों ने कई बार सरपंच - सचिव सहित जिला कलेक्टर तक को पुलिया के लिए आवेदन दिया.लेकिन आवेदन सिर्फ कागज का टुकड़ा बनकर रह गया. वहीं प्रशासन ने जल्द ही नाले पर पुल बनाने की बात कही है.

''क्षेत्र में अभी छोटे पुल-पुलिया की स्वीकृति मिली है. अधिकतर छोटे पुल-पुलिया के काम चालू भी हो गया है. आलोर के पुलिया का प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है स्वीकृति मिलते ही काम चालू कराया जाएगा.''- नीलेश कुमार क्षीरसागर, कलेक्टर

कलेक्टर ने भले ही ये दावा किया हो कि आने वाले दिनों में पुल का काम शुरु हो जाएगा.लेकिन तब तक क्या ग्रामीणों और स्कूली बच्चों को इसी तरह से जान जोखिम में डालकर नाला पार करना होगा.ये एक बड़ा सवाल है.

ईटीवी भारत की खबर का असर, बांस बल्ली की जगह बनेगा पक्का पुल, प्रशासन ने लिया संज्ञान

फोर्स के खाली कैंप संवार रहे आने वाला कल, स्कूल और आश्रम में पढ़ रहे आदिवासी बच्चे

यहां मुर्दा चला रहा ट्रैक्टर, परिवार को मिला कागज तो उड़ गए होश

Last Updated : Oct 2, 2024, 7:47 PM IST
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