कोरबा : छत्तीसगढ़ में पहली बार हाथी रिजर्व या अभ्यारण की मांग 2005 में उठी थी. तत्कालीन अजीत जोगी की सरकार ने विधानसभा में प्रस्ताव पारित किया था. तब से यह लगातार टलता रहा. क्षेत्रफल को घटाने बढ़ाने, इस क्षेत्र में प्रस्तावित कोल ब्लॉक और तमाम विवादों के बाद अब अंतिम नोटिफिकेशन जारी हो चुका है. इस हाथी रिजर्व का कुल क्षेत्रफल लगभग 2000 स्क्वायर किलोमीटर है.
हाथी मानव संघर्ष एक बड़ी समस्या : छत्तीसगढ़ में हाथी मानव संघर्ष एक बड़ी समस्या है. हाथियों के हमले से जनहानि और फसलों को नुकसान पहुंच रहा है. दूसरी तरफ हाथियों की मौजूदगी भी पर्यावरण और बायोडायवर्सिटी के लिए बेहद जरूरी है. छत्तीसगढ़ जैसे वनांचल क्षेत्र में ग्रामीण बड़े पैमाने पर अपनी आजीविका के लिए जंगलों पर आश्रित हैं. इस लिहाज से यह बेहद जरूरी हो जाता है कि यहां हाथी और मानव मिलजुल कर एक दूसरे के साथ रहना सीख लें.
तीन जिलों में फैला है लेमरू हाथी रिजर्व : हाथियों को चारा और पानी नहीं मिलने पर ही वह रिहायशी इलाकों की तरफ आते हैं. लेमरू हाथी रिजर्व को बनाने का मकसद जंगली हाथियों को उपयुक्त प्राकृतिक रहवास उपलब्ध कराना है. ताकि हाथी मानव संघर्ष को कम कर बेहतर वन्यजीव प्रबंधन किया जाए. लेमरू हाथी रिजर्व का क्षेत्रफल कोरबा, सरगुजा और रायगढ़ जिले तक फैला हुआ है. इसमें कोरबा, कटघोरा, धरमजयगढ़ जैसे वन मंडल शामिल हैं. इसका कुल क्षेत्रफल 1995 वर्ग किलोमीटर का है.
लेमरू हाथी रिजर्व का अंतिम नोटिफिकेशन शासन स्तर से जारी किया जा चुका है. पूरा इलाका लगभग 2000 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है. इस इलाके में लोगों की जनसंख्या कम है और घने जंगल हैं. हाथियों के प्रबंधन में बेहतर काम हो, इसलिए इस इलाके को चुना गया है : प्रभात मिश्रा, मुख्य वन संरक्षक, बिलासपुर संभाग
हाथियों की मौत भी चिंता का विषय : दूसरी तरफ हाथियों की मौत भी चिंता का विषय है. नियमित अंतरालों पर हाथियों के मौत भी हुई है. हाल ही में कोरबा जिले के कटघोरा वनमंडल में एक हैरान करने वाला मामला सामने आया था. जिसमें ग्रामीणों ने करंट लगाकर एक हाथी को मौत के घाट उतार दिया था. ऐसा करने वाले ग्रामीणों के खिलाफ वैधानिक कार्रवाई भी की गई थी. पिछले 5 से 6 वर्षों में हाथियों के मौत के अधिक मामले सामने आए हैं.
पिछले कुछ समय से हाथी और मानव में संघर्ष भी देखने को मिला है. जनहानि पहले ज्यादा होती थी, जिनकी संख्या अब घटी है. हाथियों के चारा और पानी के लिए बेहतर इंतजाम किए जा रहे हैं. ताकि हाथियों को एक इलाके तक ही सीमित करके रखा जाए और वह रिहायशी इलाकों की तरफ न जाएं. हाथियों की मॉनिटरिंग के साथ कई कारगर कदम उठाए गए हैं : प्रभात मिश्रा, मुख्य वन संरक्षक, बिलासपुर संभाग
350 हाथियों का स्थाई रहवास बना छत्तीसगढ़ : वन विभाग के मुताबिक, छत्तीसगढ़ में लगभग 400 से 500 हाथी मौजूद हैं. कटघोरा और कोरबा के जंगल में हाथियों का सबसे पसंदीदा इलाका है. अभी कटघोरा वनमंडल में भी लगभग 60 हाथियों का एक दल लगातार विचरण कर रहा है. हाथी अब कोरबा के साथ ही बलौदाबाजार, गरियाबंद, महासमुंद और सारंगढ़ की तरफ भी विचरण करने लगे हैं.
छत्तीसगढ़ लगभग 350 हाथियों का स्थाई रहवास बन चुका है. जबकि 150 हाथी माइग्रेट होकर यहां आते रहते हैं और फिर वापस लौट जाते हैं. लेमरू हाथी रिजर्व का इलाका हाथियों के लिए सबसे उपयुक्त है. हाथी अब कोरबा, कटघोरा तक सीमित न रहकर गरियाबंद, महासमुंद जैसे इलाकों तक भी जा रहे हैं. झारखंड की तरफ से भी हाथी लेमरू के जंगलों में पहुंच रहे हैं. यहां का जंगल उनके लिए काफी बड़ा है. इसीलिए इन क्षेत्रों में ज्यादातर हाथी विचरण करते हैं : प्रभात मिश्रा, मुख्य वन संरक्षक, बिलासपुर संभाग
एक दशक में विकराल हुआ हाथी मानव संघर्ष : वन विभाग के मुताबिक, पिछले एक दशक में छत्तीसगढ़ में हाथी मानव संघर्ष अपने चरम पर पहुंच चुका है. हालांकि, वन विभाग लगातार इसे कम करने और हाथी मानवों के बीच बेहतर सामंजस्य बिठाने के दावे जरूर करता है, लेकिन आंकड़ों की मानें तो पिछले 11 सालों से नवंबर 2024 तक की स्थिति में हाथियों के हमले से 595 लोगों की मौत हुई है.
हाथी मानव संघर्ष रोकने के प्रयास जारी : बिलासपुर संभाग के मुख्य वन संरक्षक (सीसीएफ) प्रभात मिश्रा का कहना है कि हाथी मानव संघर्ष को कम किया जाए, इस दिशा में लगातार काम हो रहे हैं. वन विभाग के शीर्ष अधिकारियों का दावा है कि लेमरू हाथी रिजर्व के अस्तित्व में आने के बाद कई कारगर कदम उठाए गए हैं. जिसके परिणाम भी सामने आए हैं. आने वाले समय में तस्वीर और भी बेहतर होगी. आने वाले समय में और भी बेहतर परिणाम सामने आएंगे.