जयपुर. राजधानी की 224 साल पुरानी परंपरा मंगलवार को फिर साकार होगी. भगवान विष्णु के चौथे अवतार नृसिंह खंबा फाड़कर प्रकट होंगे. व्यास परिवार के सदस्य तंत्र विद्या से तैयार भगवान नृसिंह के सवा मण (लगभग 51 किलो) स्वरूप को धारण कर भक्तों को दर्शन देंगे और शहर की सड़कों पर लीला दिखाएंगे. खास बात ये है कि ये स्वरूप चांदी और सोने के वर्क से तैयार किया गया है. इसी तरह 90 किलो वजन के वराह स्वरूप भी धरती चीर कर प्रकट होंगे.
224 साल से हो रहा है आयोजन : जयपुर के प्राचीन ताड़केश्वर महादेव मंदिर के सामने एक बार फिर नृसिंह लीला और वराह लीला का मंचन होगा. इससे पहले 224 वर्षों पुराने नृसिंह और वराह स्वरूप मुखोटों की गुप्त रूप से पूजा शुरू हुई. खास बात ये है कि साल में एक बार ही इन मुखौटों को गर्भगृह से बाहर निकाल कर श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए लाया जाता है. ताड़केश्वर महादेव मंदिर परिवार के पंडित प्रशांत पाराशर ने बताया कि उनके पूर्वज बख्क्षीराम और कनीराम जयपुर राजघराने से जुड़े हुए थे. उनकी तत्कालीन महाराजा सवाई राम सिंह से धार्मिक वार्तालाप होती थी. एक बार उनके पूर्वज को सपने में नृसिंह भगवान ने दर्शन दिए, जिसका जिक्र उन्होंने महाराजा सवाई राम सिंह से किया. इस पर सवाई राम सिंह ने विद्वानों की मदद से तंत्र विद्या से भगवान नृसिंह और वराह स्वरूप को तैयार कराया. तभी से नृसिंह लीला और वराह लीला का दौर भी शुरू हुआ, जो आज 224 साल बाद भी जारी है. उन्होंने बताया कि इन स्वरूपों की विधि-विधान से पूजा होती है. हर वर्ष वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को नृसिंह जयंती पर इन मुखौटों को निकाल कर पूजा की जाती है और व्यास परिवार का ही कोई सदस्य इसे धारण कर भक्तों के बीच पहुंचता है. उन्होंने बताया कि इन स्वरूपों पर चांदी और सोने का वर्क हो रहा है, उनकी हर वर्ष साज-संभाल की जाती है.
खंबे को चीरते हुए प्रकट होते हैं नृसिंह : वहीं, ताड़केश्वर नवयुवक मंडल के अध्यक्ष पंडित अखिलेश शर्मा ने बताया कि नृसिंह भगवान का स्वरूप सवा मण लगभग 51 किलो और वराह भगवान का स्वरूप लगभग 90 किलो का है. ताड़केश्वर महादेव मंदिर के सामने एक स्टेज बनाया जाता है, जिसमें खंभे को फाड़ते हुए नृसिंह भगवान और धरती को चीरते हुए वराह भगवान प्रकट होते हैं. उन्होंने बताया कि यहां जयपुर की सबसे बड़ी नृसिंह लीला का आयोजन होता है और जमकर आतिशबाजी की जाती है. मंदिर के सामने से त्रिपोलिया गेट, त्रिपोलिया बाजार, गोपाल जी का रास्ता होते हुए दोबारा मंदिर पहुंचते हैं और यहां सभी भक्तों को मंदिर की छत से दर्शन देते हैं.
मान्यता है कि व्यास परिवार का जो सदस्य नृसिंह और वराह अवतार स्वरुप धारण करता है, उसमें वही भाव आ जाते हैं. वहीं, श्रद्धालु नृसिंह और वराह अवतार से निकली जटा को अपने साथ लेकर जाते हैं और घर के बच्चों को ताबीज के तौर पर धारण भी करवाते हैं. बता दें कि जयपुर में इस समय पारा 45 डिग्री के पार जा पहुंचा है. ऐसे में 51 और 90 किलो के स्वरूप को धारण करने वाले व्यास परिवार के सदस्यों के सामने गर्मी भी एक बड़ी चुनौती होगी. वहीं, जानकारों ने बताया कि इन मुखौटे से सिर्फ मुंह के स्थान से दिखाई देता है. यही वजह है कि लीला दिखाते समय इन अवतारों के सामने एक व्यक्ति टॉर्च लेकर चलता है और एक व्यक्ति पंखे से हवा करते हुए चलता है, ताकि गर्मी और देखने में समस्या ना आए.