रायपुर : छत्तीसगढ़ में 11 लोकसभा सीटों में से 4 सीटें ऐसी थी जहां पर लोकल उम्मीदवार के बजाए पार्टी ने दूसरे जिलों के नेताओं पर भरोसा जताया था.ये भरोसा आखिरकार पार्टी को महंगा पड़ा.अकेले दुर्ग जिले से ही 4 उम्मीदवारों को अपने क्षेत्र से बाहर जाकर चुनाव लड़ने का मौका मिला.लेकिन चारों ही कैंडिडेट्स को लोकल कार्यकर्ताओं के विरोध का सामना करना पड़ा.इस विरोध से छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी अछूते नहीं रहे.राजनांदगांव सीट से भूपेश बघेल को एक मजबूत दावेदार माना जा रहा था.लेकिन जब रिजल्ट आए तो वो भी पार्टी कार्यकर्ताओं और संगठन के आगे मजबूर दिखे.
भूपेश बघेल - भूपेश बघेल को राजनांदगांव की जनता ने लोकसभा चुनाव में नकार दिया है.बीजेपी के संतोष पाण्डेय के साथ हुई टक्कर में भूपेश बघेल ने एड़ी चोटी का जोर लगाया था.लेकिन कार्यकर्ताओं का साथ और अपनों का विरोध बघेल की लुटिया ले डूबा.चुनाव प्रचार के दौरान भूपेश बघेल को स्थानीय कार्यकर्ताओं के विरोध का सामना करना पड़ा.यही नहीं राजनांदगांव में जो भी भूपेश बघेल के खिलाफ बोला,उसे पार्टी ने या तो शोकॉज नोटिस थमाया या फिर अनुशासनहीनता का आरोप लगाकर कार्रवाई की.कुल मिलाकर जिस मैजिक की उम्मीद कांग्रेस भूपेश बघेल से कर रही थी,वो मैजिक राजनांदगांव में हो ना सका. संतोष पाण्डेय ने 44 हजार से ज्यादा मतों से पूर्व सीएम भूपेश बघेल को पटखनी दे दी.
देवेंद्र यादव - भिलाई नगर विधायक देवेंद्र यादव की लोकसभा चुनाव में अग्नि परीक्षा थी.इस अग्निपरीक्षा में देवेंद्र यादव पूर्णाहूति देने में नाकाम रहे.बिलासपुर लोकसभा सीट पर देवेंद्र यादव को तोखन साहू से करारी हार मिली. देवेंद्र यादव को तोखन साहू ने एक लाख 50 हजार से ज्यादा वोट से हराया.बिलासपुर लोकसभा सीट पर बीजेपी प्रत्याशी तोखन साहू को 7,15,517 वोट मिले. तोखन साहू ने देवेंद्र यादव पर कुल 1लाख 60 हजार 660 की लीड बनाई. देवेंद्र यादव को 5,54,857 वोट मिले. बिलासपुर में भी देवेंद्र यादव को शुरुआती दिनों में बाहरी होने का टैग झेलना पड़ा. बिलासपुर के स्थानीय नेताओं ने देवेंद्र यादव के खिलाफ मोर्चा खोला था.भूपेश बघेल समेत प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट को भी इस मामले में दखल देना पड़ा.तब कहीं जाकर देवेंद्र का विरोध कम हुआ.लेकिन यही विरोध देवेंद्र पर भारी पड़ा.
ताम्रध्वज साहू- दुर्ग ग्रामीण से विधानसभा में प्रत्याशी रहे पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू को इस बार कांग्रेस ने लोकसभा टिकट दिया. महासमुंद लोकसभा क्षेत्र में साहू वोटर्स की अधिकता को देखते हुए कांग्रेस ने अपने सबसे बड़े लीडर ताम्रध्वज साहू को मैदान में उतारा. लेकिन चुनावी नतीजों ने ये साफ किया कि महासमुंद का रण सिर्फ किसी समाज को साधकर नहीं जीता जा सकता.कभी कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाली ये सीट अब बीजेपी के पाले में हैं.वो भी तब जब विधानसभा चुनाव में महासमुंद बेल्ट से कांग्रेस को काफी ज्यादा वोट मिले थे.लेकिन लोकसभा चुनाव आते-आते महासमुंद की जनता का भरोसा कांग्रेस के नेताओं से उठ गया.यही वजह रही कि मोदी के गारंटी के मुकाबले ताम्रध्वज साहू को जनता ने हाथों हाथ नहीं लिया. बीजेपी की युवा लीडर रूपकुमारी चौधरी के आगे ताम्रध्वज साहू के झंडे ठंडे हो गए. महासमुंद लोकसभा सीट से बीजेपी की रूप कुमारी चौधरी ने कांग्रेस के दिग्गज नेता ताम्रध्वज साहू को 1 लाख 45 हजार 456 से हराया.
सरोज पाण्डेय- अपने क्षेत्र से बाहर जाकर चुनाव लड़ने में सिर्फ कांग्रेस के नेता ही फेल नहीं हुए,बल्कि बीजेपी की फायर ब्रांड नेता सरोज पाण्डेय भी इस लिस्ट में हैं.सरोज पाण्डेय को बीजेपी ने कोरबा लोकसभा सीट से उतारा था.लेकिन कोरबा में भी सरोज पाण्डेय को स्थानीय कार्यकर्ताओं का विरोध झेलना पड़ा.सरोज के मुकाबले ज्योत्सना महंत ने हर जगह यही प्रचार किया कि सरोज यदि जीतती हैं तो वो दिल्ली चली जाएंगी.सरोज पाण्डेय लाख ये कहती रहीं कि ऐसा नहीं होगा,फिर भी जनता नहीं मानी आखिरकार कड़े मुकाबले में सरोज पाण्डेय को ज्योत्सना महंत के हाथों 43 हजार वोटों से हार का सामना करना पड़ा.
''दुर्ग जिले के प्रत्याशियों को घर से बाहर जाकर चुनाव लड़ना भारी पड़ा है. बाहरी होने का टैग लगा,जिसके कारण स्थानीय मुद्दों और कार्यकर्ताओं को साधने में दिक्कत हुई.''रामवतार तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार
कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है कि यदि दिग्गजों को उनके घर या आसपास के क्षेत्र से चुनाव लड़ाया जाता तो कहीं ना कहीं ये परिणाम दूसरे देखने को मिलते.