कांकेर : छत्तीसगढ़ नित नए आयाम छू रहा है.लेकिन आज भी प्रदेश के कई इलाके ऐसे हैं जो विकास से कोसों दूर हैं. बुनियादी सुविधाओं की यदि बात की जाए तो इन इलाकों में बिजली,पानी और सड़क के लिए आज भी लोगों को संघर्ष करना पड़ रहा है. कांकेर जिले के आमाबेड़ा तहसील के अंतर्गत आने वाले गांव मानकोट की यही तस्वीर है.
डिजिटल युग का प्राचीन गांव : कहने को तो आज डिजिटल युग चल रहा है. लेकिन मानकोट के लोग प्राचीन युग में जी रहे हैं. अंधेरा होते ही जंगल के आगोश में ये गांव समा जाता है. सड़क नहीं होने से किसी बीमार को अस्पताल तक पहुंचाने में उसके प्राण पखेरु अधर में लटके रहते हैं.यही नहीं प्यास बुझाने के लिए गांव के लोगों को पारंपरिक स्त्रोतों के सहारे जीना पड़ता है. मानकोट गांव में 60 से ज्यादा परिवार के सैकड़ों की आबादी रहती है. शुद्ध पेयजल, सड़क और बिजली आज तक गांव में नहीं पहुंची है.ग्रामीण कई बार अपनी मांगों को कागजों में लिखकर सरकारी दफ्तर और जनप्रतिनिधियों तक पहुंचाते हैं.लेकिन आज तक कागजों में लिखी गई मांग धरातल में नहीं उतर सकी है.
कलेक्टर, विधायक- सांसद के पास कई बार आवेदन दिए हैं. 2000 में मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ बना तब से कांग्रेस की सरकार आई. इसके बाद बीजेपी की सरकार आई. तब हमारे जो प्रतिनिधि थे उनके पास हम लोग आवेदन लेकर गए थे. हमारे पास आवेदनों की एक पूरी फाइल बनी हुई है. 5 किलोमीटर गांव में पहुंचने के लिए हम लोगों ने जन सहयोग से सड़क बनाया है हर साल हम इसी तरह सड़क बनाते हैं. लेकिन बारिश में सड़क बह जाता है और यहां गांव पूरी तरीके से टापू में तब्दील हो जाता है - हरेंद्र कुमार कावड़े,ग्रामीण
नल जल योजना का बुरा हाल : मानकोट गांव में 2020-2021 में नल-जल योजना के तहत 80 लाख खर्च कर पानी टंकी और पाइप लाइन बिछाए गए. 2024 के आखिरी महीने में इसे शुरू किया गया. लेकिन मात्र 6 घरों में भी पानी उपलब्ध हो पा रहा है. बाकी बचे 56 घरों में पानी ही नही पहुंच रहा है. ग्रामीणों की माने तो ठेकेदार को इस कार्य के लिए 80 प्रतिशत भुगतान भी हो गया है. ग्रामीणों ने बताया कि 80 लाख में तो गांव के 20 घरों में बोर हो जाता.जिससे सभी घरों में पीने की पानी की समस्या खत्म हो जाती.
हमारे गांव में शुद्ध पेयजल की सुविधा नहीं है. इसीलिए हम लोग कुएं और झरिया का पानी पीते हैं कुएं का पानी बहुत मटमैला रहता है.लेकिन मजबूरी में हम लोगों को पीना पड़ता है. अपनी व्यवस्था से हर पास से साथ घर मिलकर एक झरिया बनाए हुए हैं. नल जल योजना के तहत पानी टंकी और पाइप लगाए गए थे. लेकिन टोटी लगाना भूल गए हैं. हम लोग गांव के बोर्ड में पढ़ते हैं कि 80 लाख रुपया से यहां नल जल योजना का टंकी लगाया गया है लेकिन मात्र 6 घर में पानी आता है बाकी घरों में कहीं भी पानी नहीं आता है- रमेश कुंजाम, ग्रामीण युवा
मटमैले कुएं के पानी से बुझा रहे ग्रामीण प्यास : बात सड़क की करें तो गांव तक पहुंचने के पगडंडीनुमा रास्ते में बड़े-बड़े पत्थर हर रोज ग्रामीणों के सब्र का इम्तिहान लेते हैं. बड़ी मुश्किल से दोपहिया वाहन गांव तक पहुंच पाते हैं. सड़क नहीं होने का दंश ग्रामीणों को इस कदर झेलना पड़ता है कि गंभीर स्वास्थ्य समस्या के वक्त मरीज को अगर अस्पताल ले जाना हो तो मरीज को खाट पर लाद कर 5 किलोमीटर दूर मुख्य सड़क तक ले जाना ही अंतिम विकल्प है. सैंकड़ों की आबादी पानी की हर जरूरत के लिए एकमात्र कुएं पर निर्भर है. वो कुआं भी बढ़ती गर्मी के साथ सूखता जाता है. एकमात्र कुएं से ग्रामीणों के लिए पानी की हर जरूरत पूरी नहीं हो पाती. बहरहाल, बड़ा सवाल यह होगा कि आजादी के अमृतकाल में भी मूलभूत समस्याओं के लिए तरस रहे यहां के ग्रामीणों को आखिर कब इन परेशानियों से निजात मिल पायेगा.
आजादी के बाद से नहीं आई बिजली,सड़क के लिए संघर्ष : वहीं ग्रामीणों का कहना है कि बिजली के लिए भी कई बार आवेदन दिया गया है लेकिन हो जाएगा बोलते हैं. लेकिन आज तक बिजली नहीं आई है.आजादी के कई दशक बीतने और छत्तीसगढ़ निर्माण के 24 साल बीतने के बाद भी मानकोट के ग्रामीण आज भी ढिबरी युग में जी रहे हैं. मानकोट गांव में बिजली का एक अदद पोल तक नहीं दिखता है. ग्रामीण मोबाइल और टॉर्च दूसरे गांव जाकर या सोलर से किसी प्रकार चार्ज करते हैं. पढ़ाई करने वाले स्कूली बच्चे सोलर से बैटरी चार्ज कर एलएडी टॉर्च लाइट जला कर पढ़ते हैं. स्कूली बच्चों को शिक्षा भी अच्छे से नहीं मिल पाता है. दिन के उजाले में तो पढ़ाई होती है.लेकिन रात के अंधेरे में पढ़ाई में दिक्कत होती है.सरपंच के मुताबिक जन समस्या शिविर में भी शिकायत हुई लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
गांव की समस्या को लेकर हम और ग्रामीण जहां भी जन समस्या शिविर लगता है वहां पर हम लोग आवेदन लेकर जाते हैं. सारे अधिकारी कहते हैं समस्या का समाधान हो जाएगा. लेकिन आज तक तो नहीं हुआ है. मैं जब से शादी होकर आई हूं 7 साल हो गया है ऐसी ही समस्या इस गांव में है.प्राइमरी स्कूल तो पास में है.लेकिन बड़े स्कूल के लिए दूसरी जगह जाना पड़ता है.जिसके कारण बच्चों को परेशानी होती है.क्योंकि आने जाने के लिए सड़क ही नही है - लक्ष्मी लता पदद्दा, सरपंच
प्रशासन ने समस्या दूर करने का दिया भरोसा : वहीं इस पूरे मामले को लेकर जिला पंचायत सीईओ हरेश मंडावी ने कहा कि आपके माध्यम से मामला संज्ञान में आया है. मताला पंचायत का आश्रित गांव है मानकोट जहां 60 परिवार निवास करते हैं. मूलभूत सुविधाओं की कमी है.खास कर के बिजली और पानी. इस संबंध में आपके माध्यम से संज्ञान में लाया गया है. मैंने अभी संबंधित अधिकारियों से भी बात किया है. जो भी मूलभूत सुविधा उपलब्ध कराने की आवश्यकता होगी कराया जाएगा. जैसे ही अचार संहिता हटेगा इस ओर हम आगे बढ़ेंगे.
प्रशासन को जब ईटीवी भारत ने मानकोट की तस्वीर दिखाई तो उन्होंने इस समस्या को जल्द सुधारने का दावा किया. निकाय और पंचायत चुनाव के कारण प्रदेश में आचार संहिता लगी हुई है.लेकिन सवाल ये है कि प्रदेश में निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव के पहले भी इस समस्या को लेकर कई बार ग्रामीणों ने सरकारी दफ्तर के चक्कर काटे. इस दौरान छत्तीसगढ़ बने 24 साल बीत गए बावजूद इसके ना तो 24 इंच सड़क बनीं और ना ही 24 मीटर की बिजली की लाइन डली.ग्रामीणों ने खुद मेहनत करके जैसे तैसे कामचलाउ पगडंडी को चलने लायक बनाया.अब ये ग्रामीण प्रशासन के दर पर एक बार फिर खड़े हैं इसी उम्मीद में की एक ना एक दिन उनकी भी पुकार सुनी जाएगी.
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