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कुशा पर ना हो कंफ्यूज, पहचानना है बेहद आसान, बिना इसके नहीं पूरा होता श्राद्ध और पूजा - Identification Of Kusha

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : 2 hours ago

Updated : 2 hours ago

हिंदू शास्त्रों में कुश का बहुत महत्व है. श्राद्ध से लेकर पूजन-पाठ और शादी-ब्याह में कुशा का उपयोग होता है. इसके अलावा भी कुशा के आम जीवन में कई लाभकारी उपयोग होते हैं. अक्सर लोग कुशा की पहचान करने में कंफ्यूज हो जाते हैं, तो चलिए वनस्पति शास्त्र विशेषज्ञ डॉ विकास शर्मा से जानिए कुशा की पहचान कैसे करें.

IDENTIFICATION OF KUSHA
हिंदू धर्म में कुशा का बड़ा महत्व (ETV Bharat)

IDENTIFICATION OF KUSHA: पूजा-पाठ के साथ-साथ पितृमोक्ष में कुशा का महत्व विशेष बताया गया है. कुश, कुशा या दर्भ एक पवित्र घास है. सनातनी परिवारों में पूजा पाठ के लिए कुशा का प्रयोग किया जाता है, फिर भी कुशा की पहचान में काफी दिक्कत आती है. कुशा की पहचान कैसे करें, यह वनस्पति शास्त्र विशेषज्ञ डॉ विकास शर्मा बता रहे हैं.

क्या है कुशा, कैसे करें पहचान

धार्मिक कृत्यों और श्राद्ध आदि कर्मों में कुश का उपयोग होता है. ऐसी मान्यता है कि कुशा के बिना श्राद्ध कर्म पूरा ही नहीं हो सकता है. कुशा एक प्रकार की घास है. जो पोएसी कुल का सदस्य है. किंतु धार्मिक ग्रंथों में घास परिवार के 10 सदस्यों को कुशा की श्रेणी में रखा गया है. अलग-अलग क्षेत्र में उपलब्धता के आधार पर इन सभी का प्रयोग प्रचलन में है, लेकिन सबसे अच्छा कुशा को माना गया है, जिसका वैज्ञानिक नाम Desmostachya Bipinnata या Eragrostis Cynosuroides है. इसके कई और समानार्थी भी हैं. जो भी शंका का एक कारण है.

KUSHA USE IN WORSHIP
पूजा में उपयोग होने वाली कुशा (ETV BHarat)

10 प्रकार की होती है कुशा, इनसे पूजा करना शुभ

डॉ. विकास शर्मा ने बताया कि 'एक श्लोक में कहा गया है कि "कुशा: काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका: गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:"जिसका मतलब कुशा दस प्रकार की होती है. काशा, यवा, दूर्वा, उशीर, सकुंद, गोधूमा, ब्राह्मयो, मौंजा, दश, दर्भा. इनमें से जो भी मिल जाए, उसे पूजा के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं.

कुशा का संग्रहण करना कब शुभ होता है

कुशा का संग्रहण एक खास दिन किया जाता है. जिसे कुश गृहणी अमावस्या या पिठौरी अमावस्या कहते हैं. यह भादो मास की कृष्ण पक्ष को आने वाली अमावस्या है. इस दिन देवी दुर्गा की पूजा की जाती है. पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन माता पार्वती ने इंद्राणी को इस व्रत का महत्व बताया था. विवाहित स्त्रियों द्वारा संतान प्राप्ति एवं अपनी संतान के कुशल मंगल के लिए उपवास किया जाता है और देवी दुर्गा सहित सप्तमातृका व 64 अन्य देवियों की पूजा की जाती है.

सिर्फ धार्मिक नहीं, औषधि का भी करता है काम

वनस्पति शास्त्र के जानकार डॉ विकास शर्मा ने बताया कि 'कुशा की जड़ से मूत्र संबंधी रोग, पाचन संबंधी रोग और प्रदर रोग में लाभ होता है. कुशा की पवित्रता सिर्फ धार्मिक और पौराणिक नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक भी है. कुशा की जड़ डालकर रातभर के लिए रखा गया पानी सुबह पीने से मूत्र संबंधी रोगों में आराम मिलता है. इसकी जड़ों में जल शुद्धिकरण की कमाल की क्षमता पाई जाती है. Artificial Wetlands या Root Zone Technology विषय को पढ़कर इस मामले में जिज्ञासा शांत की जा सकती है.

KUSHA USE IN WORSHIP
पूजा में होता है कुशा का उपयोग (ETV Bharat)

पुराणों में मिलता है कुशा का जिक्र ये है कहानी

कुशा की शक्ति के विषय में धर्म ग्रंथों में भी पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं. रामायण में उल्लेख मिलता है कि सीता जी ने एक कुशा के तिनके से रावण को अपने निकट आने से रोक दिया था. आगे चलकर माता सीता ने अपने पुत्र का नाम कुश रखा. महाराज कुश के वंशज ही आगे चलकर कुशवाहा कहलाए ऐसी मान्यता है. प्राचीन दस्तावेजों में भी हिन्दूकुश पर्वत का उल्लेख मिलता है. संभवतः वहां कुशा वनस्पति की अधिकता रही होगी.

एक अन्य विवरण के अनुसार गरुड़ जी अपनी माता की दासत्व से मुक्ति के लिए स्वर्ग से अमृत कलश लाये थे, उसको उन्होंने कुशों पर रखा था. अमृत का संसर्ग होने से कुश को पवित्री कहा जाता है. इसलिए कुशा को पवित्र मानकर इसका प्रयोग धार्मिक व पूजन कार्यों में किया जाता है. ज्योतिष शास्त्र में ऐसी भी मान्यता है कि जब किसी भी जातक के जन्म कुंडली या लग्न कुण्डली में राहु महादशा की आती है, तो कुश को पानी में डालकर स्नान करने से राहु की कृपा प्राप्त होती है.

योग एवं ध्यान में कुशा है विशेष काम

योग साधना व पूजन कार्यों में कुशा की चटाई पर बैठना उत्तम माना जाता है. कुशा विद्युत की कुचालक होती है, तो योग व ध्यान के समय शरीर की ऊर्जा पृथ्वी में समाहित नहीं होती है. पुराने समय में राजा महाराजा व ऋषि मुनि भी कुशा के आसन पर बैठते व शैया पर शयन करते थे.

IDENTIFICATION OF KUSHA: पूजा-पाठ के साथ-साथ पितृमोक्ष में कुशा का महत्व विशेष बताया गया है. कुश, कुशा या दर्भ एक पवित्र घास है. सनातनी परिवारों में पूजा पाठ के लिए कुशा का प्रयोग किया जाता है, फिर भी कुशा की पहचान में काफी दिक्कत आती है. कुशा की पहचान कैसे करें, यह वनस्पति शास्त्र विशेषज्ञ डॉ विकास शर्मा बता रहे हैं.

क्या है कुशा, कैसे करें पहचान

धार्मिक कृत्यों और श्राद्ध आदि कर्मों में कुश का उपयोग होता है. ऐसी मान्यता है कि कुशा के बिना श्राद्ध कर्म पूरा ही नहीं हो सकता है. कुशा एक प्रकार की घास है. जो पोएसी कुल का सदस्य है. किंतु धार्मिक ग्रंथों में घास परिवार के 10 सदस्यों को कुशा की श्रेणी में रखा गया है. अलग-अलग क्षेत्र में उपलब्धता के आधार पर इन सभी का प्रयोग प्रचलन में है, लेकिन सबसे अच्छा कुशा को माना गया है, जिसका वैज्ञानिक नाम Desmostachya Bipinnata या Eragrostis Cynosuroides है. इसके कई और समानार्थी भी हैं. जो भी शंका का एक कारण है.

KUSHA USE IN WORSHIP
पूजा में उपयोग होने वाली कुशा (ETV BHarat)

10 प्रकार की होती है कुशा, इनसे पूजा करना शुभ

डॉ. विकास शर्मा ने बताया कि 'एक श्लोक में कहा गया है कि "कुशा: काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका: गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:"जिसका मतलब कुशा दस प्रकार की होती है. काशा, यवा, दूर्वा, उशीर, सकुंद, गोधूमा, ब्राह्मयो, मौंजा, दश, दर्भा. इनमें से जो भी मिल जाए, उसे पूजा के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं.

कुशा का संग्रहण करना कब शुभ होता है

कुशा का संग्रहण एक खास दिन किया जाता है. जिसे कुश गृहणी अमावस्या या पिठौरी अमावस्या कहते हैं. यह भादो मास की कृष्ण पक्ष को आने वाली अमावस्या है. इस दिन देवी दुर्गा की पूजा की जाती है. पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन माता पार्वती ने इंद्राणी को इस व्रत का महत्व बताया था. विवाहित स्त्रियों द्वारा संतान प्राप्ति एवं अपनी संतान के कुशल मंगल के लिए उपवास किया जाता है और देवी दुर्गा सहित सप्तमातृका व 64 अन्य देवियों की पूजा की जाती है.

सिर्फ धार्मिक नहीं, औषधि का भी करता है काम

वनस्पति शास्त्र के जानकार डॉ विकास शर्मा ने बताया कि 'कुशा की जड़ से मूत्र संबंधी रोग, पाचन संबंधी रोग और प्रदर रोग में लाभ होता है. कुशा की पवित्रता सिर्फ धार्मिक और पौराणिक नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक भी है. कुशा की जड़ डालकर रातभर के लिए रखा गया पानी सुबह पीने से मूत्र संबंधी रोगों में आराम मिलता है. इसकी जड़ों में जल शुद्धिकरण की कमाल की क्षमता पाई जाती है. Artificial Wetlands या Root Zone Technology विषय को पढ़कर इस मामले में जिज्ञासा शांत की जा सकती है.

KUSHA USE IN WORSHIP
पूजा में होता है कुशा का उपयोग (ETV Bharat)

पुराणों में मिलता है कुशा का जिक्र ये है कहानी

कुशा की शक्ति के विषय में धर्म ग्रंथों में भी पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं. रामायण में उल्लेख मिलता है कि सीता जी ने एक कुशा के तिनके से रावण को अपने निकट आने से रोक दिया था. आगे चलकर माता सीता ने अपने पुत्र का नाम कुश रखा. महाराज कुश के वंशज ही आगे चलकर कुशवाहा कहलाए ऐसी मान्यता है. प्राचीन दस्तावेजों में भी हिन्दूकुश पर्वत का उल्लेख मिलता है. संभवतः वहां कुशा वनस्पति की अधिकता रही होगी.

एक अन्य विवरण के अनुसार गरुड़ जी अपनी माता की दासत्व से मुक्ति के लिए स्वर्ग से अमृत कलश लाये थे, उसको उन्होंने कुशों पर रखा था. अमृत का संसर्ग होने से कुश को पवित्री कहा जाता है. इसलिए कुशा को पवित्र मानकर इसका प्रयोग धार्मिक व पूजन कार्यों में किया जाता है. ज्योतिष शास्त्र में ऐसी भी मान्यता है कि जब किसी भी जातक के जन्म कुंडली या लग्न कुण्डली में राहु महादशा की आती है, तो कुश को पानी में डालकर स्नान करने से राहु की कृपा प्राप्त होती है.

योग एवं ध्यान में कुशा है विशेष काम

योग साधना व पूजन कार्यों में कुशा की चटाई पर बैठना उत्तम माना जाता है. कुशा विद्युत की कुचालक होती है, तो योग व ध्यान के समय शरीर की ऊर्जा पृथ्वी में समाहित नहीं होती है. पुराने समय में राजा महाराजा व ऋषि मुनि भी कुशा के आसन पर बैठते व शैया पर शयन करते थे.

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