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कुमाऊं मंडल में बैठकी होली शुरू, होल्यार जबरदस्त राग गाकर लूट रहे महफिल - KUMAONI HOLI IN HALDWANI

हर साल बैठकी होली पौष महीने के पहले रविवार से शुरू होती है. होली गायन की खुशबू बसंत पंचमी के दिन तक महकती है.

Kumaoni Holi in Haldwani
हल्द्वानी में शुरू हुई बैठकी होली (Photo-ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Dec 23, 2024, 10:17 AM IST

हल्द्वानी: उत्तराखंड में होली का अपना अलग ही महत्व है. कुमाऊं में पौष मास से होली की फिजा में गूंजने लगी है. पौष मास से शुरू होली गायन फागुन मास में यह पूरे शबाब पर होती है.कुमाऊंनी होली पूरे देश दुनिया में अपनी खास पहचान रखती है. भारी ठंड के बीच कुमाऊं मंडल के अलग-अलग जगहों में इन रातों में निर्वाण का होली गायन चल रही है. जिन्हें विभिन्न रागों में गाया जाता है.

मान्यता है कि कुमाऊं में बैठकी होली की परंपरा 15वीं शताब्दी से शुरू हुई.चंद वंश के शासनकाल से होली गायन की परंपरा शुरू हुई. काली कुमाऊं, गुमदेश व सुई से शुरू होकर यह धीरे-धीरे सभी जगह फैल गई. आज पूरे कुमाऊं पर इसका रंग चढ़ गया है. होली गायन गणेश पूजन से शुरू होकर पशुपतिनाथ शिव की आराधना के साथ-साथ ब्रज के राधाकृष्ण की हंसी-ठिठोली से सराबोर होता है. शास्त्रीय रागों पर आधारित बैठकी होली घरों और मंदिरों में गाई जाती है.

कुमाऊं मंडल में बैठकी होली शुरू (Photo-ETV Bharat)

दिसंबर में सर्दी का मौसम चरम पर होता है, ऐसे में सर्द रातों को काटने के लिए सुरीली महफिलें जमा करती थीं, जिसमें हारमोनियम व तबले की थाप पर राग-रागिनियों का दौर शुरू हो जाता था. आज भी कुमाऊं में यह परंपरा जीवित है. और जगह-जगह बैठकी होली देखने को मिल रही है. वहीं हल्द्वानी में हिमालय संगीत शोध समिति द्वारा बैठकी होली का आयोजन किया. जिसमें विभिन्न रागों में होली गायन किया गया. "भव भंजन गुन गाऊं, मैं अपने राम को रिझाऊं" से होली गायन की शुरुआत हुई और "क्या जिन्दगी का ठिकाना, फिरते मन क्यों रे भुलाना, कहां गये भीम कहां दुर्योधन, कहां पार्थ बलवाना,"गणपति को भेज लीजे, रसिक वह तो आदि कहावे" का गायन किया किया. होली गायन में बड़ी संख्या में बुजुर्ग, युवा और बच्चे शामिल हुए.
पढ़ें-पहाड़ में अबीर-गुलाल नहीं, शास्त्रीय गीतों से मनाई जाती है होली, सजती है ठुमरियों और राग-रागनियों की महफिल

हल्द्वानी: उत्तराखंड में होली का अपना अलग ही महत्व है. कुमाऊं में पौष मास से होली की फिजा में गूंजने लगी है. पौष मास से शुरू होली गायन फागुन मास में यह पूरे शबाब पर होती है.कुमाऊंनी होली पूरे देश दुनिया में अपनी खास पहचान रखती है. भारी ठंड के बीच कुमाऊं मंडल के अलग-अलग जगहों में इन रातों में निर्वाण का होली गायन चल रही है. जिन्हें विभिन्न रागों में गाया जाता है.

मान्यता है कि कुमाऊं में बैठकी होली की परंपरा 15वीं शताब्दी से शुरू हुई.चंद वंश के शासनकाल से होली गायन की परंपरा शुरू हुई. काली कुमाऊं, गुमदेश व सुई से शुरू होकर यह धीरे-धीरे सभी जगह फैल गई. आज पूरे कुमाऊं पर इसका रंग चढ़ गया है. होली गायन गणेश पूजन से शुरू होकर पशुपतिनाथ शिव की आराधना के साथ-साथ ब्रज के राधाकृष्ण की हंसी-ठिठोली से सराबोर होता है. शास्त्रीय रागों पर आधारित बैठकी होली घरों और मंदिरों में गाई जाती है.

कुमाऊं मंडल में बैठकी होली शुरू (Photo-ETV Bharat)

दिसंबर में सर्दी का मौसम चरम पर होता है, ऐसे में सर्द रातों को काटने के लिए सुरीली महफिलें जमा करती थीं, जिसमें हारमोनियम व तबले की थाप पर राग-रागिनियों का दौर शुरू हो जाता था. आज भी कुमाऊं में यह परंपरा जीवित है. और जगह-जगह बैठकी होली देखने को मिल रही है. वहीं हल्द्वानी में हिमालय संगीत शोध समिति द्वारा बैठकी होली का आयोजन किया. जिसमें विभिन्न रागों में होली गायन किया गया. "भव भंजन गुन गाऊं, मैं अपने राम को रिझाऊं" से होली गायन की शुरुआत हुई और "क्या जिन्दगी का ठिकाना, फिरते मन क्यों रे भुलाना, कहां गये भीम कहां दुर्योधन, कहां पार्थ बलवाना,"गणपति को भेज लीजे, रसिक वह तो आदि कहावे" का गायन किया किया. होली गायन में बड़ी संख्या में बुजुर्ग, युवा और बच्चे शामिल हुए.
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