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Special : अंग्रेजों के जमाने की लाइब्रेरी आज भी है कुचामन की शान, 100 साल बाद भी रौनक बरकरार - Kuchaman Library - KUCHAMAN LIBRARY

कुचामनसिटी के श्री कुचामन पुस्तकालय के 100 साल हो गए, इसके बाद भी यहां रौनक बरकरार है. सोशल मीडिया और इंटरनेट युग में भी यह पुस्तकालय शहर में अपनी धाक जमाए हुए है. रियासत काल में बने इस पुस्तकालय ने कई दौर देखे लेकिन पाठकों से विमुख नहीं हो पाया. पढ़िए हमारी यह खास रिपोर्ट.

100 YEARS OF KUCHAMAN LIBRARY
श्री कुचामन पुस्तकालय के 100 साल (Photo : Etv Bharat)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Jul 2, 2024, 12:23 PM IST

श्री कुचामन पुस्तकालय के 100 साल (Video : Etv Bharat)

कुचामनसिटी. जमाना भले ही सोशल मीडिया और इंटरनेट का आ गया हो, लेकिन पुस्तकालय आज भी किताबों के जरिए अध्ययन का केंद्र बने हुए हैं. ऐसा ही एक पुस्तकालय कुचामन सिटी में स्थित है, जिसने अब 100 साल की उम्र पूरी कर ली. श्री कुचामन पुस्तकालय सोशल मीडिया और इंटरनेट के इस दौर में भी पाठकों को अपनी ओर खींच रहा है. आइए इस रिपोर्ट में जानते हैं एक सदी पुराने इस रियासत कालीन पुस्तकालय की पूरी दास्तां.

कहीं पढ़ाई में तल्लीन युवा, तो कहीं अखबार पढ़ने में मशगूल बुजुर्ग, ये नजारा डीडवाना कुचामन जिले के कुचामन सिटी में स्थित श्री कुचामन पुस्तकालय का है. इस पुस्तकालय की शुरुआत साल 1924 में हुई थी. स्थापना के 100 साल पूरे होने के बाद भी इस पुस्तकालय की अहमियत बरकरार हैं. रोजाना सैकड़ों लोग लाइब्रेरी में पहुंचकर अपनी अपनी रुचि के मुताबिक किताबें ,अखबार और प्रतियोगी परीक्षाओं से जुड़ी पुस्तकों की पढ़ाई करते हैं. इस अंग्रेजों के जमाने की लाइब्रेरी में आज भी पुस्तकों और पुस्तकालयों से लोगों का मोह भंग नहीं हुआ है. पुस्तकालय के शुरुआती दिनों में कुचामन के दूसरे लोगों की तरह महाराजा हरि सिंह भी यहां से किताबें पढ़ने के लिए ले जाते थे.

1924 में हुई थी स्थापना : कुचामन सिटी में 100 वर्ष पहले भी शहरवासी शिक्षा का महत्व समझते थे. यहीं कारण रहा कि कुचामन नवयुवक मंडल ने श्री कुचामन पुस्तकालय की स्थापना की थी. आज पुस्तकालय 100 वर्ष का हो गया. पुस्तकालय अध्यक्ष नटवर वक्ता के अनुसार वर्ष 1924 में शहर के नवयुवकों ने शाहजी की धर्मशाला में ‘कुचामन नवयुवक लाइब्रेरी’ के नाम से पुस्तकालय की शुरुआत की. उस समय समाचार पत्र मुश्किल से उपलब्ध होते थे. कोलकता, अहमदाबाद, मुम्बई, नागपुर से आने वाले प्रवासी वहां से अपने साथ पुराने अखबार लाकर पुस्तकालय को उपलब्ध कराते थे. उन समाचार पत्रों को लोग बढ़ी रुचि से पढ़ते थे.

लालटेन की रोशनी में पुस्तकें पढ़ते थे लोग : वर्ष 1930 में पुरानी धान मण्डी के एक कमरे से इस पुस्तकालय का नाम बदलकर संचालन शुरू किया गया. उस दौर में मनोरंजन के कोई साधन नहीं थे और दिन में लोग काम करते थे, ऐसे में रात में लालटेन की रोशनी में शहरवासी कुचामन पुस्तकालय में पुस्तकें और अखबार पढ़ने आते थे. पुराना बस स्टैण्ड पर स्थित इस कुचामन पुस्तकालय की स्थापना 1930 में बसंत पंचमी के दिन हुई थी. उस समय तत्कालीन राजा हरि सिंह ने शहर के झूतालाल बायतू, मदनलाल सेवदा, शाह गोरधनलाल काबरा, सदासुख काबरा, रामजीवन झंवर सहित अन्य लोगों के सहयोग से पुस्तकालय का शुभारम्भ किया था. उस समय पूरे देश में स्वतंत्रता आन्दोलन का बिगुल बजा हुआ था. जिसके चलते किताबों और पत्रिकाओं के माध्यम से लोगों में राष्ट्रप्रेम की भावना जागृत करने और स्वतंत्रता आन्दोलन की प्रत्येक जानकारियां लेने के लिए इस पुस्तकालय का आगाज किया गया था. धीरे-धीरे समय के बदलाव के साथ अन्य किताबों का संग्रहण भी किया जाने लगा और पुस्तकालय की सुविधाओं में भी विस्तार होने लगा. 1970 के दशक में यहां दिन में तीन बार रेडियो व लाउडस्पीकर से समाचार प्रसारण की व्यवस्था की गई. वर्तमान पुस्तकालय भवन की दूसरी मंजिल का निर्माण 1991 में भामाशाहों के जरिए कराया गया जहां एक हॉल बनाया गया है, जिसमें पुस्तकालय से जुड़े विभिन्न कार्यक्रम आयोजित होते हैं.

इसे भी पढ़ें : पर्यावरण संरक्षण की अद्भुत नजीर अजमेर का पदमपुरा गांव, 700 सालों से नीम ही नारायण, कभी नहीं चली कुल्हाड़ी - Special Report

स्टूडेंट कॉर्नर मुहिम से जुड़ रहें युवा : लंबे समय से चली आ रही मनुष्य व पुस्तकों के बीच बनी मित्रता को कायम रखने में कहीं न कहीं कुचामन के इस रियासतकालीन पुस्तकालय का योगदान भी बहुत बड़ा है. हालांकि बीते कुछ वर्षों में इंटरनेट का अत्यधिक चलन होने के कारण बदलते परिवेश में लोगों का पुस्तकों के प्रति लगाव कम हो रहा है, लेकिन शिक्षा नगरी कुचामन में इस रियासतकालीन पुस्तकालय के प्रति आज भी लोगों का स्नेह बरकरार है. यही वजह है कि आज भी यहां सैकड़ों पाठक नियमित रूप से पुस्तकालय आते हैं. दैनिक अखबारों के साथ मैगजीन, प्रतियोगी पुस्तकें और धार्मिक पुस्तके पढ़ते हैं. युवा पीढ़ी को पुस्तकालय से जोड़ने के लिए वर्तमान पुस्तकालय कार्यकारिणी ने स्टूडेंट कॉर्नर नाम से एक मुहिम चलाई है, जिसमें संस्था प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवाओं को उपयुक्त वातावरण, जरूरी किताबें और संसाधन नि:शुल्क उपलब्ध करा रही है.

30 हजार किताबें हैं पुस्तकालय में : श्री कुचामन पुस्तकालय में 30 हजार से ज्यादा पुस्तकों का संग्रह है. पुस्तकालय में दुर्लभ ग्रंथों की पांडुलिपियां, रामकृष्ण साहित्य, विवेकानन्द साहित्य, संस्कृत के हस्तलिखित ग्रंथ, ज्योतिष आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथ, दीनदयाल उपाध्याय के ग्रंथ, गायत्री परिवार की पुस्तकें, ओशो साहित्य, हस्तलिखित ग्रंथ सहित सैकड़ों-हजारों वर्ष पुरानी किताबें और ग्रंथ उपलब्ध है. श्री कुचामन पुस्तकालय का संचालन लंबे समय से ट्रस्ट के सदस्य क्षेत्र के प्रवासियों और भामाशाहों की मदद से कर रहे हैं. पुस्तकालय में विभिन्न गतिविधियों का आयोजन कराने के साथ वर्ष में चार बड़े पर्व भी मनाए जाते हैं, जिनमें हिन्दी दिवस, गीता जयंती, विवेकानन्द जयंती और पुस्तक दिवस शामिल हैं.

श्री कुचामन पुस्तकालय के 100 साल (Video : Etv Bharat)

कुचामनसिटी. जमाना भले ही सोशल मीडिया और इंटरनेट का आ गया हो, लेकिन पुस्तकालय आज भी किताबों के जरिए अध्ययन का केंद्र बने हुए हैं. ऐसा ही एक पुस्तकालय कुचामन सिटी में स्थित है, जिसने अब 100 साल की उम्र पूरी कर ली. श्री कुचामन पुस्तकालय सोशल मीडिया और इंटरनेट के इस दौर में भी पाठकों को अपनी ओर खींच रहा है. आइए इस रिपोर्ट में जानते हैं एक सदी पुराने इस रियासत कालीन पुस्तकालय की पूरी दास्तां.

कहीं पढ़ाई में तल्लीन युवा, तो कहीं अखबार पढ़ने में मशगूल बुजुर्ग, ये नजारा डीडवाना कुचामन जिले के कुचामन सिटी में स्थित श्री कुचामन पुस्तकालय का है. इस पुस्तकालय की शुरुआत साल 1924 में हुई थी. स्थापना के 100 साल पूरे होने के बाद भी इस पुस्तकालय की अहमियत बरकरार हैं. रोजाना सैकड़ों लोग लाइब्रेरी में पहुंचकर अपनी अपनी रुचि के मुताबिक किताबें ,अखबार और प्रतियोगी परीक्षाओं से जुड़ी पुस्तकों की पढ़ाई करते हैं. इस अंग्रेजों के जमाने की लाइब्रेरी में आज भी पुस्तकों और पुस्तकालयों से लोगों का मोह भंग नहीं हुआ है. पुस्तकालय के शुरुआती दिनों में कुचामन के दूसरे लोगों की तरह महाराजा हरि सिंह भी यहां से किताबें पढ़ने के लिए ले जाते थे.

1924 में हुई थी स्थापना : कुचामन सिटी में 100 वर्ष पहले भी शहरवासी शिक्षा का महत्व समझते थे. यहीं कारण रहा कि कुचामन नवयुवक मंडल ने श्री कुचामन पुस्तकालय की स्थापना की थी. आज पुस्तकालय 100 वर्ष का हो गया. पुस्तकालय अध्यक्ष नटवर वक्ता के अनुसार वर्ष 1924 में शहर के नवयुवकों ने शाहजी की धर्मशाला में ‘कुचामन नवयुवक लाइब्रेरी’ के नाम से पुस्तकालय की शुरुआत की. उस समय समाचार पत्र मुश्किल से उपलब्ध होते थे. कोलकता, अहमदाबाद, मुम्बई, नागपुर से आने वाले प्रवासी वहां से अपने साथ पुराने अखबार लाकर पुस्तकालय को उपलब्ध कराते थे. उन समाचार पत्रों को लोग बढ़ी रुचि से पढ़ते थे.

लालटेन की रोशनी में पुस्तकें पढ़ते थे लोग : वर्ष 1930 में पुरानी धान मण्डी के एक कमरे से इस पुस्तकालय का नाम बदलकर संचालन शुरू किया गया. उस दौर में मनोरंजन के कोई साधन नहीं थे और दिन में लोग काम करते थे, ऐसे में रात में लालटेन की रोशनी में शहरवासी कुचामन पुस्तकालय में पुस्तकें और अखबार पढ़ने आते थे. पुराना बस स्टैण्ड पर स्थित इस कुचामन पुस्तकालय की स्थापना 1930 में बसंत पंचमी के दिन हुई थी. उस समय तत्कालीन राजा हरि सिंह ने शहर के झूतालाल बायतू, मदनलाल सेवदा, शाह गोरधनलाल काबरा, सदासुख काबरा, रामजीवन झंवर सहित अन्य लोगों के सहयोग से पुस्तकालय का शुभारम्भ किया था. उस समय पूरे देश में स्वतंत्रता आन्दोलन का बिगुल बजा हुआ था. जिसके चलते किताबों और पत्रिकाओं के माध्यम से लोगों में राष्ट्रप्रेम की भावना जागृत करने और स्वतंत्रता आन्दोलन की प्रत्येक जानकारियां लेने के लिए इस पुस्तकालय का आगाज किया गया था. धीरे-धीरे समय के बदलाव के साथ अन्य किताबों का संग्रहण भी किया जाने लगा और पुस्तकालय की सुविधाओं में भी विस्तार होने लगा. 1970 के दशक में यहां दिन में तीन बार रेडियो व लाउडस्पीकर से समाचार प्रसारण की व्यवस्था की गई. वर्तमान पुस्तकालय भवन की दूसरी मंजिल का निर्माण 1991 में भामाशाहों के जरिए कराया गया जहां एक हॉल बनाया गया है, जिसमें पुस्तकालय से जुड़े विभिन्न कार्यक्रम आयोजित होते हैं.

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स्टूडेंट कॉर्नर मुहिम से जुड़ रहें युवा : लंबे समय से चली आ रही मनुष्य व पुस्तकों के बीच बनी मित्रता को कायम रखने में कहीं न कहीं कुचामन के इस रियासतकालीन पुस्तकालय का योगदान भी बहुत बड़ा है. हालांकि बीते कुछ वर्षों में इंटरनेट का अत्यधिक चलन होने के कारण बदलते परिवेश में लोगों का पुस्तकों के प्रति लगाव कम हो रहा है, लेकिन शिक्षा नगरी कुचामन में इस रियासतकालीन पुस्तकालय के प्रति आज भी लोगों का स्नेह बरकरार है. यही वजह है कि आज भी यहां सैकड़ों पाठक नियमित रूप से पुस्तकालय आते हैं. दैनिक अखबारों के साथ मैगजीन, प्रतियोगी पुस्तकें और धार्मिक पुस्तके पढ़ते हैं. युवा पीढ़ी को पुस्तकालय से जोड़ने के लिए वर्तमान पुस्तकालय कार्यकारिणी ने स्टूडेंट कॉर्नर नाम से एक मुहिम चलाई है, जिसमें संस्था प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले युवाओं को उपयुक्त वातावरण, जरूरी किताबें और संसाधन नि:शुल्क उपलब्ध करा रही है.

30 हजार किताबें हैं पुस्तकालय में : श्री कुचामन पुस्तकालय में 30 हजार से ज्यादा पुस्तकों का संग्रह है. पुस्तकालय में दुर्लभ ग्रंथों की पांडुलिपियां, रामकृष्ण साहित्य, विवेकानन्द साहित्य, संस्कृत के हस्तलिखित ग्रंथ, ज्योतिष आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथ, दीनदयाल उपाध्याय के ग्रंथ, गायत्री परिवार की पुस्तकें, ओशो साहित्य, हस्तलिखित ग्रंथ सहित सैकड़ों-हजारों वर्ष पुरानी किताबें और ग्रंथ उपलब्ध है. श्री कुचामन पुस्तकालय का संचालन लंबे समय से ट्रस्ट के सदस्य क्षेत्र के प्रवासियों और भामाशाहों की मदद से कर रहे हैं. पुस्तकालय में विभिन्न गतिविधियों का आयोजन कराने के साथ वर्ष में चार बड़े पर्व भी मनाए जाते हैं, जिनमें हिन्दी दिवस, गीता जयंती, विवेकानन्द जयंती और पुस्तक दिवस शामिल हैं.

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