कोरबा: मानसून जल्द ही खत्म हो जाएगी. इस बीच किसानों को फसल में "माहू" या "माहो" का डर सता रहा है, इससे किसान परेशान हैं. जानकारों की माने तो ये मौसम फसल में "माहू" और नुकसान पहुंचाने वाले अन्य कीड़े के पनपने का सबसे अनुकूल मौसम होता है. ऐसे में "माहू" लगते ही फसल में दवा का छिड़काव या जैविक तरीके से फसल का इलाज किया जाना बेहद जरूरी है.
इससे फसल बर्बाद होने का रहता है खतरा: जानकारी के मुताबिक "माहू" ज्यादा फैला तो फसल को अधिक नुकसान पहुंच सकता है. ऐसे में किसानों को खड़ी फसल के बर्बाद होने का खतरा रहता है. इसे लेकर कृषि विभाग ने भी अपने मैदानी अमले को सक्रिय रहने की बात कही है. "माहू" से बचने के लिए किसानों को वित्तीय सहायता भी मिलती है.
40 हेक्टेयर से अधिक खेत पर असर: पखवाड़े भर तक हुई झमाझम बारिश के कारण लंबे समय से खेत में पानी भर गया था. अब धूप निकलते ही खेतों से पानी उतरने के बाद धान के फसल में "माहू", झुलसा और तनाछेदक बीमारी का असर देखा जा रहा है. करतला, बुंदेली, भिलाई बाजार, जमनीपाली, चोरभठ्ठी आदि स्थानों 40 हेक्टेयर से भी अधिक रकबा में व्याप्त बीमारी से किसानों की परेशानी बढ़ गई है. फसलों में कीट रोग निवारण के लिए राष्ट्रीय खाद्यान्न सुरक्षा मिशन के तहत 500 रूपये प्रति हेक्टेयर की दर से प्रदान करने की योजना है. हालांकि, कीटनाशक दवाओं की बढ़ती कीमत को देखते हुए अनुदान राशि भी पर्याप्त नहीं है. बारिश और धूप एक साथ मिलने से धान की फसल में बीमारी तेजी से बढ़ रही है.
दवा छिड़काव से कुछ राहत: किसानों से बात करने पर यह पता चला कि वर्तमान समय में फसल पर "माहू" को प्रकोप है. कोरबा के किसान फूल सिंह कंवर ने कहा, "फसल में माहो लगने के बाद कुछ दिन पहले ही मैंने दवा का छिड़काव किया था. दवा को दुकान से खरीद कर लाए थे, जिसने 24 घंटे में अपना असर दिखना शुरू कर दिया है. फिलहाल फसल कुछ ठीक है."
""माहू" लगने के बाद तत्काल ही इसका इलाज करना पड़ता है. यदि ज्यादा समय तक "माहू" फसल में रह गए तो,धान की बाली नहीं फूटती और फसल ठीक से नहीं उग पाते. "माहू" पूरे खेत को भी बर्बाद कर सकते हैं. इसलिए तत्काल इलाज करना जरूरी है. आसपास के किसान भी "माहू" के प्रकोप से परेशान हैं. सभी कुछ ना कुछ उपाय कर रहे हैं." -किसान
अधिकारियों को दिए गए निर्देश: इस संबंध में कृषि अधिकारी डीपीएस कंवर ने कहा, " मौसम बदलने के साथ ही जब बारिश कम हुई है. बदली का आना–जाना लगा हुआ है. इसी मौसम फसल में "माहू" के साथ ही अन्य प्रकार के कीड़े भी लगने की समस्या आ रही है. इसके लिए हम रियायती दर पर कीटनाशक उपलब्ध कराते हैं. किसान यदि इसका देयक भी प्रस्तुत करते हैं, तो उन्हें डीबीटी के माध्यम से कीटनाशक के पैसे सीधे खातों में ट्रांसफर किए जाते हैं. चूंकि यह मौसम "माहू" के लिए अनुकूल होता है, इसलिए किसानों को पहले तो जैविक खाद और जैविक तरीके से ही इन्हें दूर करने के उपाय सुझाए जाते हैं."
""माहू" का अत्यधिक प्रकोप होने की स्थिति में ही केमिकल युक्त कीटनाशक का उपयोग करने की सलाह दी जाती है. ग्रामीण क्षेत्र में काम करने वाले ग्रामीण कृषि विकास विस्तार अधिकारियों को भी हमने निर्देश दिए हैं. वह सतत निगरानी बनाकर रखें. किसान भाइयों से भी यह अपील है कि वह अपने फसल की नियमित तौर पर जांच करते रहें. किसी भी तरह की समस्या आने पर स्थानीय कृषि अधिकारी से संपर्क कर सकते हैं. सीधे कृषि विभाग से भी संपर्क कर सकते हैं." -डीपीएस कंवर, कृषि अधिकारी, कोरबा
फसल रोग के लक्षण और निदान: वर्तमान में पनप रहे झुलसा रोग के बारे में विभागीय अधिकारी ने जानकारी दी, "माहू", तनाछेदक और झुलसा के नाम से जाना जाने वाले रोग के कई लक्षण हैं, जिसमें धान के फसल का पीला पड़ना, धान के पौधे में गोलई आकार का छेद होना. ऊपरी परत से पत्तियों का सूखना शामिल है. रोग निदान के लिए बावेस्टिन या हिनोशान की छिड़काव की जा सकती है. प्रति हेक्टेयर 250 से 300 ग्राम छिड़काव करना रोग को ठीक करने के लिए पर्याप्त है.