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दिल्ली में जल संकटः ना ग्राउंड ज़ीरो पर होमवर्क, ना सूखे तालाबों की खबर, जानिए- सरकार और सिस्टम कहां फेल? - falling water level in water body

water bodies in delhi : दिल्ली में इस बार पानी की किल्लत ने हर दिल्लीवासी को सोचने के लिए मजबूर कर दिया कि दिल्ली में वॉटर बॉडीज में पानी की किल्लत का समाधान निकालने की सख्त जरूरत है. इस मुद्दे को लेकर हमारे संवाददाता भूपेंद्र पांचाल ने बात कि पर्यावरणविद एवं वैज्ञानिक डॉ. फैयाज ए. खुदसर से. आइए जानते हैं क्या है उनकी राय.

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Jul 6, 2024, 11:12 AM IST

Updated : Jul 7, 2024, 7:40 AM IST

घटते जलस्तर की समस्या दूर करने के लिए जान‍िए क्या कहते हैं विशेषज्ञ
घटते जलस्तर की समस्या दूर करने के लिए जान‍िए क्या कहते हैं विशेषज्ञ (ETV BHARAT REPORTER)

नई दिल्ली : दिल्ली में पीने के पानी की किल्लत को लेकर आमतौर पर हर बार गर्मियों में हाय तौबा रहती है. दिल्ली सरकार अपने स्तर पर पानी की पर्याप्त सप्लाई करने के प्रयास भी करती है. बावजूद इसके यह नाकाफी नजर आते हैं. सरकार पानी की कमी को पूरा करने के साथ-साथ दिल्ली को खूबसूरत शहर बनाने को लेकर दिल्ली की वॉटर बॉडीज (जल न‍िकायों/तालाबों) को रिवाइव करने की द‍िशा में भी काम कर रही है. नई वॉटर बॉडीज डेवल्‍प करने पर भी जोर है ज‍िससे क‍ि मॉनसून के वक्‍त बार‍िश के पानी को स्‍टोर क‍िया जा सके.

डॉ. फैयाज ए. खुदसर (पर्यावरणविद एवं वैज्ञानिक) ने ईटीवी भारत से इस मुद्दे पर बातचीत की. उन्‍होंने वॉटर बॉडीज को र‍िवाइव करने से लेकर पानी की क‍िल्‍लत, जलजमाव और अन्‍य कई दूसरी समस्‍याओं का समाधान न‍िकालने के सुझाव भी द‍िए. उन्‍होंने बताया क‍ि दिल्ली ऐतिहासिक तौर पर वाटर बॉडीज के लिए जानी जाती है. यमुना नदी दिल्ली से निकलती है और दिल्ली के बसने और बचने का आधार ही यमुना नदी है. इस लंबे समय के दौरान यह स्वाभाविक है कि कुछ वाटर बॉडीज का अतिक्रमण भी हुआ होगा. वर्तमान में कुछ वाटर बॉडीज बहुत अच्छी स्‍थ‍ित‍ि में हैं, कुछ पर काम भी हुआ है और कुछ पर काम चल भी रहा है.

यमुना के फ्लड प्लेन एरिया में वेटलैंड आईडेंटिफाई करना है जरूरी
पर्यावरण विद डॉक्टर फैयाज ने यह भी सुझाव दिया कि हमें पानी की किल्लत और जल जमाव की समस्या को दूर करने के लिए दोनों का समाधान ढूंढना जरूरी है. डॉ. फैयाज ने यह भी बताया कि यह देखना बहुत जरूरी है कि यमुना के फ्लड प्लेन एरिया में कितनी वेटलैंड (नम भूमि) सक्रिय है. इसको आईडेंटिफाई और चिन्हित करना जरूरी है और उसका रेस्टोरेशन करना आवश्‍यक है. उन्होंने बताया कि अगर हम ऐसा कर पाएं तो ऑफशोर रिजर्वायर (अतटीय जलाशय) बना सकते हैं और जो वेटलैंड है, वह ऑफशोर रिजर्वायर की तरह काम करेंगे. इसमें बाढ़ का बहुत सारा पानी जमा हो सकता है और जब दिल्ली को पानी की जरूरत होगी तो स्टोर वाटर का प्रयोग जरूरत के मुताबिक किया जा सकता है. वहीं, यह पानी बाद में फिल्टर होकर नदी में भी जा सकता है जो नदी की ताकत को बढ़ाने का काम भी करेगा.नॉर्मल ड्रेनेज पेटर्न का सिद्धांत है कि हम नदी से नीचे नहीं जाएं

बारिश से होने वाले जल जमाव या बाढ़ से होने वाली समस्या को लेकर कहा कि फ्लड प्लेन एर‍िया में वेटलैंड को पहचानना और उसको रिस्टोर करना है. उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि इंफ्रास्ट्रक्चर, स्ट्रक्चर में हमें बहुत सी चीजों को भी ध्यान में रखना जरूरी है. उन्होंने बताया कि जब भी कहीं से कोई नदी निकलती है तो वह उसे शहर, क्षेत्र और भूभाग का सबसे निचला स्‍तर होता है. उन्होंने बताया कि यह नॉर्मल ड्रेनेज पेटर्न का सिद्धांत है कि हम नदी से नीचे नहीं जाएं. अगर हम इसका ख्याल रखते हुए नेचुरल ड्रेनेज पेटर्न को चैनेलाइज करते हुए अवरोध पैदा न होने दें तो पानी की किल्लत और जल भराव की समस्या से लड़ा जा सकता है

नदी से नीचे जाकर कोई संरचना सस्टेनेबल नहीं
डॉ. फैयाज बताते हैं क‍ि नदी सबसे निचले स्तर पर बहती है और जब हम इस लेवल से नीचे जाकर कोई संरचना या स्ट्रक्चर होगा तो वह सस्टेनेबल नहीं होगा और उस पर लाभ से ज्यादा खर्च भी आएगा. सड़कों पर होने वाले जल जमाव और दूसरी समस्याओं के लिए कई स्तर पर काम किया जा सकता है. इसमें रेन वाटर हार्वेस्टिंग, स्ट्रोम वाटर स्ट्रक्चर और दूसरे कई स्तर पर और तेजी से काम करने की जरूरत है. मौजूदा समय में भी इन सभी स्तर पर काम किया जा रहा है. इसके लिए जरूरी है कि इस प्रोजेक्ट को महत्वाकांक्षी मानते हुए लंबे समय तक इस पर काम किया जा सके, तभी हम इन समस्याओं का कोई ठोस समाधान निकालने में सक्षम हो पाएंगे.

दिल्ली में वाटर बॉडीज की संख्या 893
केंद्र सरकार भी द‍िल्‍ली ही नहीं बल्‍क‍ि पूरे देश की वाटर बॉडीज को लेकर गंभीर है ज‍िसका बड़ा उदाहरण प‍िछले साल पहली बार क‍िया गया वाटर बॉडीज सेंसश (जल निकाय गणना) है ज‍िसने देश के सामने इसके आंकड़े पेश क‍िए. दरअसल, दिल्ली सरकार की द‍िल्‍ली पार्क एंड गार्डन सोसायटी के आंकड़े बताते हैं क‍ि राजधानी में कुल 1045 वाटर बॉडीज यानी जल निकाय हैं लेकिन केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की ओर से प‍िछले साल 2023 में करवाए गए जल निकाय गणना के दौरान दिल्ली में वाटर बॉडीज की संख्या 893 बताई गई है.

70 फ़ीसदी वाटर बॉडीज ज‍िनका क‍िसी तरह उपयोग नहीं हो रहा
इस गणना के बाद यह भी खुलासा हुआ क‍ि 70 फ़ीसदी वाटर बॉडीज ऐसी हैं ज‍िनका क‍िसी तरह से उपयोग नहीं हो रहा है. केंद्रीय मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में कुल 893 वाटर बॉडीज में से मात्र 237 वाटर बॉडीज ऐसे हैं ज‍िनका इस्‍तेमाल क‍िया जा रहा है. हैरान करने वाली बात यह है क‍ि इनमें से 656 वाटर बॉडीज ऐसी है जिनका इस्तेमाल किसी भी तरह से नहीं हो पा रहा है. माना जाता है कि दिल्ली की जो वाटर बॉडीज इस्तेमाल में नहीं हो पा रही हैं, उसके पीछे की खास वजह इंडस्ट्रियल कचरा और लोगों की तरफ से करवाए गए कंस्ट्रक्शन और दूसरे कारण हैं. इन आंकड़ों से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि दिल्ली में वाटर बॉडीज यानी तालाब दम तोड़ते जा रहे हैं जबकि दिल्ली सरकार इनको पुनर्जीव‍ित करने की द‍िशा में जुटी है.

300 एकड़ एरिया में 26 झीलों को किया जा रहा डेवलप
इस बीच देखा जाए तो दिल्ली सरकार की ओर से राजधानी में 26 झील और 380 वाटर बॉडी बनाने की योजना पर पिछले डेढ दो सालों से काम किया जा रहा है. इस योजना पर दिल्ली सरकार का काम करने का बड़ा मकसद दिल्ली की पानी की समस्या को कुछ हद तक दूर करने का है. साथ ही बार‍िश के पानी की बर्बादी ना हो, इसका संरक्षण एवं प्रबंधन क‍िया जा सके, इसको लेकर भी इस योजना पर काम क‍िया जा रहा है. साथ ही करीब 300 एकड़ एरिया में 26 लेक को डेवल्प करने का काम भी किया जा रहा है जिसमें दिल्ली का 230 एमसीडी ट्रीटेड वॉटर डाला जा सकेगा.

ट्रीटेड वॉटर को झीलों में डालकर बढ़ाया जा रहा ग्राउंडवाटर लेवल
इस ट्रीटेड वॉटर को झीलों में डालने का बड़ा फायदा यह होगा क‍ि इससे आसपास के कुछ किलोमीटर एरिया में ग्राउंडवाटर लेवल को रिचार्ज करने में मदद मिल सकेगी. पप्पन कलां झील इसका बड़ा उदाहरण है ज‍िसको बंजर भूमि पर दो ह‍िस्‍सों में बांट कर झील-1 सात एकड़ और झील-2 चार एकड़ भूमि पर व‍िकस‍ित की गई. पप्पन कलां सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में सीवेज ट्रीटमेंट के बाद पानी को पहले झील-1 और फिर झील-2 में छोड़ा जा रहा है. ज‍िससे सकारात्‍मक पर‍िणाम ग्राउंड वाटर लेवल के 6.25 मीटर बढ़ने के रूप में देखा गया. साथ ही झीलों में पानी होने की वजह से यह शहर की खूबसूरती को बढ़ाने का काम भी कर रही हैं. दिल्ली सरकार की ओर से बनाई जाने वाली 26 झीलों में से 16 कृत्रिम झीलें हैं जबकि नेचुरल लेक सिर्फ 10 ही हैं. इन नेचुरल लेक यानी प्राकृतिक झीलों का पानी पूरी तरीके से सूख चुका है और इनमें ज्यादातर गड्ढे ही रह गए हैं.

वर्तमान में वॉटर बॉडीज की संख्या आधे से भी कम हुई
पर्यावरण एवं जल संरक्षण की द‍िशा में काम करने एक्सपर्ट्स यह भी मानते हैं कि दिल्ली में 1000 से ज्यादा वाटर बॉडीज हुआ करती थी, लेकिन अब इनकी संख्या आधे से कम रह गई है. दिल्ली सरकार की ओर से 600 झीलों के पुनर्विकास के प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है, लेकिन अभी तक मात्र 50 से कम झीलों का ही जीर्णोद्धार किया जा सका है. यह शासन और प्रशासन की इस द‍िशा में क‍िए जाने वालों कार्यों में ज्‍यादा द‍िलचस्‍पी नहीं होने को ही दर्शाती हैं.

केंद्र के आदेश पर 2019 में बनायी गई थी वेटलैंड ऑथोर‍िटी
दूसरी तरफ देखा जाए तो केंद्र सरकार के पर्यावरण, वन, वन्‍यजीव एवं जलवायु पर‍िवर्तन मंत्रालय के आदेशों पर वेटलैंड (संरक्षण एवं प्रबंधन) न‍ियम-2017 के अनुपालन में 2019 में द‍िल्‍ली के उप-राज्‍यपाल के आदेशों पर द‍िल्‍ली के ल‍िए वेटलैंड ऑथोर‍िटी (आर्द्रभूम‍ि प्राध‍िकरण) का गठन भी क‍िया गया था. चीफ सेक्रेटरी की अध्‍यक्षता वाली इस 23 सदस्‍यीय ऑथोर‍िटी में डीडीए वाइस चेयरमैन सदस्य पदेन और पर्यावरण सेक्रेटरी पदेन सदस्‍य बनाए गए तो फॉरेस्‍ट कंजरवेटर/सीईओ (डीपीजीएस) को मैंबर सेक्रेटरी बनाया गया था.

वॉटर बॉडीज को पुनर्जीवित करने से पानी का हो पाएगा समुचित संचय
इसमें द‍िल्‍ली सरकार के कई अलग-अलग व‍िभागों डीजेबी, रेवन्‍यू, टूर‍िज्‍म, मत्‍स्‍य, शहरी व‍िकास, पीडब्‍ल्‍यूडी, व‍िकास के अलावा केंद्र सरकार, एमसीडी, द‍िल्‍ली छावनी बोर्ड के प्रमुख पदेन सदस्‍य के तौर पर शाम‍िल क‍िए गए थे. उस वक्‍त के द‍िल्‍ली सरकार में पर्यावरण सेक्रेटरी मधुप व्‍यास की ओर से वेटलैंड ऑथोर‍िटी का नोट‍िफ‍िकेशन जारी क‍िया गया था. इसके अलावा 23 सदस्‍यी ऑथोर‍िटी में 4 अन्‍य मैंबर एक्‍सपर्ट के तौर पर भी शाम‍िल क‍िए गए थे जोक‍ि इस द‍िशा में बेहतर काम करने में मदद कर सकें. इन वॉटर बॉडीज को पुनर्जीवित करने का एक बड़ा लक्ष्य यह भी है कि बारिश के पानी को संचय किया जा सके. लेकिन कुछ सलाहकार यह भी मानते हैं कि दिल्ली में अक्सर बारिश 15 से 20 दिन के लिए ही होती है और जो वाटर बॉडीज और झील हैं, वह उस तरह से नहीं है कि बारिश का पानी उनमें पहुंच सके.

ये भी पढ़ें : दिल्ली के संगम विहार में जरा सी बारिश के बाद गड्ढों में तब्दील हुई सड़क, राहगीरों की मुसीबत बढ़ी

द‍िल्‍ली में मौजूदा समय में डीडीए के 7 जैव विविधता पार्क
दिल्ली में बायोडायवर्सिटी पार्कों की बात की जाए तो वर्तमान में डीडीए के 7 जैव विविधता पार्क हैं. इनमें यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क, अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क, नीला हौज बायोडायवर्सिटी पार्क, नॉर्थ रिज (कमला नेहरू रिज), तिलपथ घाटी बायोडायवर्सिटी पार्क, तुगलकाबाद बायोडायवर्सिटी पार्क और काल‍िंदी बायोडायवर्सिटी पार्क प्रमुख रूप से शामिल हैं. इन सभी बायोडायवर्सिटी पार्क की अलग-अलग खास‍ियत और गुण हैं. माना जा रहा है क‍ि यमुना नदी को उसके पुर्नरुत्थान और फ्लड प्‍लेन रेस्टोरेशन के ल‍िए डीडीए के यह पार्क कारगर साब‍ित होंगे.

ये भी पढ़ें : पीडब्ल्यूडी मंत्री आतिशी ने सेंट्रलाइज्ड मानसून कंट्रोल रूम का किया दौरा, मांगी जलभराव संबंधित रिपोर्ट

नई दिल्ली : दिल्ली में पीने के पानी की किल्लत को लेकर आमतौर पर हर बार गर्मियों में हाय तौबा रहती है. दिल्ली सरकार अपने स्तर पर पानी की पर्याप्त सप्लाई करने के प्रयास भी करती है. बावजूद इसके यह नाकाफी नजर आते हैं. सरकार पानी की कमी को पूरा करने के साथ-साथ दिल्ली को खूबसूरत शहर बनाने को लेकर दिल्ली की वॉटर बॉडीज (जल न‍िकायों/तालाबों) को रिवाइव करने की द‍िशा में भी काम कर रही है. नई वॉटर बॉडीज डेवल्‍प करने पर भी जोर है ज‍िससे क‍ि मॉनसून के वक्‍त बार‍िश के पानी को स्‍टोर क‍िया जा सके.

डॉ. फैयाज ए. खुदसर (पर्यावरणविद एवं वैज्ञानिक) ने ईटीवी भारत से इस मुद्दे पर बातचीत की. उन्‍होंने वॉटर बॉडीज को र‍िवाइव करने से लेकर पानी की क‍िल्‍लत, जलजमाव और अन्‍य कई दूसरी समस्‍याओं का समाधान न‍िकालने के सुझाव भी द‍िए. उन्‍होंने बताया क‍ि दिल्ली ऐतिहासिक तौर पर वाटर बॉडीज के लिए जानी जाती है. यमुना नदी दिल्ली से निकलती है और दिल्ली के बसने और बचने का आधार ही यमुना नदी है. इस लंबे समय के दौरान यह स्वाभाविक है कि कुछ वाटर बॉडीज का अतिक्रमण भी हुआ होगा. वर्तमान में कुछ वाटर बॉडीज बहुत अच्छी स्‍थ‍ित‍ि में हैं, कुछ पर काम भी हुआ है और कुछ पर काम चल भी रहा है.

यमुना के फ्लड प्लेन एरिया में वेटलैंड आईडेंटिफाई करना है जरूरी
पर्यावरण विद डॉक्टर फैयाज ने यह भी सुझाव दिया कि हमें पानी की किल्लत और जल जमाव की समस्या को दूर करने के लिए दोनों का समाधान ढूंढना जरूरी है. डॉ. फैयाज ने यह भी बताया कि यह देखना बहुत जरूरी है कि यमुना के फ्लड प्लेन एरिया में कितनी वेटलैंड (नम भूमि) सक्रिय है. इसको आईडेंटिफाई और चिन्हित करना जरूरी है और उसका रेस्टोरेशन करना आवश्‍यक है. उन्होंने बताया कि अगर हम ऐसा कर पाएं तो ऑफशोर रिजर्वायर (अतटीय जलाशय) बना सकते हैं और जो वेटलैंड है, वह ऑफशोर रिजर्वायर की तरह काम करेंगे. इसमें बाढ़ का बहुत सारा पानी जमा हो सकता है और जब दिल्ली को पानी की जरूरत होगी तो स्टोर वाटर का प्रयोग जरूरत के मुताबिक किया जा सकता है. वहीं, यह पानी बाद में फिल्टर होकर नदी में भी जा सकता है जो नदी की ताकत को बढ़ाने का काम भी करेगा.नॉर्मल ड्रेनेज पेटर्न का सिद्धांत है कि हम नदी से नीचे नहीं जाएं

बारिश से होने वाले जल जमाव या बाढ़ से होने वाली समस्या को लेकर कहा कि फ्लड प्लेन एर‍िया में वेटलैंड को पहचानना और उसको रिस्टोर करना है. उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि इंफ्रास्ट्रक्चर, स्ट्रक्चर में हमें बहुत सी चीजों को भी ध्यान में रखना जरूरी है. उन्होंने बताया कि जब भी कहीं से कोई नदी निकलती है तो वह उसे शहर, क्षेत्र और भूभाग का सबसे निचला स्‍तर होता है. उन्होंने बताया कि यह नॉर्मल ड्रेनेज पेटर्न का सिद्धांत है कि हम नदी से नीचे नहीं जाएं. अगर हम इसका ख्याल रखते हुए नेचुरल ड्रेनेज पेटर्न को चैनेलाइज करते हुए अवरोध पैदा न होने दें तो पानी की किल्लत और जल भराव की समस्या से लड़ा जा सकता है

नदी से नीचे जाकर कोई संरचना सस्टेनेबल नहीं
डॉ. फैयाज बताते हैं क‍ि नदी सबसे निचले स्तर पर बहती है और जब हम इस लेवल से नीचे जाकर कोई संरचना या स्ट्रक्चर होगा तो वह सस्टेनेबल नहीं होगा और उस पर लाभ से ज्यादा खर्च भी आएगा. सड़कों पर होने वाले जल जमाव और दूसरी समस्याओं के लिए कई स्तर पर काम किया जा सकता है. इसमें रेन वाटर हार्वेस्टिंग, स्ट्रोम वाटर स्ट्रक्चर और दूसरे कई स्तर पर और तेजी से काम करने की जरूरत है. मौजूदा समय में भी इन सभी स्तर पर काम किया जा रहा है. इसके लिए जरूरी है कि इस प्रोजेक्ट को महत्वाकांक्षी मानते हुए लंबे समय तक इस पर काम किया जा सके, तभी हम इन समस्याओं का कोई ठोस समाधान निकालने में सक्षम हो पाएंगे.

दिल्ली में वाटर बॉडीज की संख्या 893
केंद्र सरकार भी द‍िल्‍ली ही नहीं बल्‍क‍ि पूरे देश की वाटर बॉडीज को लेकर गंभीर है ज‍िसका बड़ा उदाहरण प‍िछले साल पहली बार क‍िया गया वाटर बॉडीज सेंसश (जल निकाय गणना) है ज‍िसने देश के सामने इसके आंकड़े पेश क‍िए. दरअसल, दिल्ली सरकार की द‍िल्‍ली पार्क एंड गार्डन सोसायटी के आंकड़े बताते हैं क‍ि राजधानी में कुल 1045 वाटर बॉडीज यानी जल निकाय हैं लेकिन केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की ओर से प‍िछले साल 2023 में करवाए गए जल निकाय गणना के दौरान दिल्ली में वाटर बॉडीज की संख्या 893 बताई गई है.

70 फ़ीसदी वाटर बॉडीज ज‍िनका क‍िसी तरह उपयोग नहीं हो रहा
इस गणना के बाद यह भी खुलासा हुआ क‍ि 70 फ़ीसदी वाटर बॉडीज ऐसी हैं ज‍िनका क‍िसी तरह से उपयोग नहीं हो रहा है. केंद्रीय मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि दिल्ली में कुल 893 वाटर बॉडीज में से मात्र 237 वाटर बॉडीज ऐसे हैं ज‍िनका इस्‍तेमाल क‍िया जा रहा है. हैरान करने वाली बात यह है क‍ि इनमें से 656 वाटर बॉडीज ऐसी है जिनका इस्तेमाल किसी भी तरह से नहीं हो पा रहा है. माना जाता है कि दिल्ली की जो वाटर बॉडीज इस्तेमाल में नहीं हो पा रही हैं, उसके पीछे की खास वजह इंडस्ट्रियल कचरा और लोगों की तरफ से करवाए गए कंस्ट्रक्शन और दूसरे कारण हैं. इन आंकड़ों से सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि दिल्ली में वाटर बॉडीज यानी तालाब दम तोड़ते जा रहे हैं जबकि दिल्ली सरकार इनको पुनर्जीव‍ित करने की द‍िशा में जुटी है.

300 एकड़ एरिया में 26 झीलों को किया जा रहा डेवलप
इस बीच देखा जाए तो दिल्ली सरकार की ओर से राजधानी में 26 झील और 380 वाटर बॉडी बनाने की योजना पर पिछले डेढ दो सालों से काम किया जा रहा है. इस योजना पर दिल्ली सरकार का काम करने का बड़ा मकसद दिल्ली की पानी की समस्या को कुछ हद तक दूर करने का है. साथ ही बार‍िश के पानी की बर्बादी ना हो, इसका संरक्षण एवं प्रबंधन क‍िया जा सके, इसको लेकर भी इस योजना पर काम क‍िया जा रहा है. साथ ही करीब 300 एकड़ एरिया में 26 लेक को डेवल्प करने का काम भी किया जा रहा है जिसमें दिल्ली का 230 एमसीडी ट्रीटेड वॉटर डाला जा सकेगा.

ट्रीटेड वॉटर को झीलों में डालकर बढ़ाया जा रहा ग्राउंडवाटर लेवल
इस ट्रीटेड वॉटर को झीलों में डालने का बड़ा फायदा यह होगा क‍ि इससे आसपास के कुछ किलोमीटर एरिया में ग्राउंडवाटर लेवल को रिचार्ज करने में मदद मिल सकेगी. पप्पन कलां झील इसका बड़ा उदाहरण है ज‍िसको बंजर भूमि पर दो ह‍िस्‍सों में बांट कर झील-1 सात एकड़ और झील-2 चार एकड़ भूमि पर व‍िकस‍ित की गई. पप्पन कलां सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में सीवेज ट्रीटमेंट के बाद पानी को पहले झील-1 और फिर झील-2 में छोड़ा जा रहा है. ज‍िससे सकारात्‍मक पर‍िणाम ग्राउंड वाटर लेवल के 6.25 मीटर बढ़ने के रूप में देखा गया. साथ ही झीलों में पानी होने की वजह से यह शहर की खूबसूरती को बढ़ाने का काम भी कर रही हैं. दिल्ली सरकार की ओर से बनाई जाने वाली 26 झीलों में से 16 कृत्रिम झीलें हैं जबकि नेचुरल लेक सिर्फ 10 ही हैं. इन नेचुरल लेक यानी प्राकृतिक झीलों का पानी पूरी तरीके से सूख चुका है और इनमें ज्यादातर गड्ढे ही रह गए हैं.

वर्तमान में वॉटर बॉडीज की संख्या आधे से भी कम हुई
पर्यावरण एवं जल संरक्षण की द‍िशा में काम करने एक्सपर्ट्स यह भी मानते हैं कि दिल्ली में 1000 से ज्यादा वाटर बॉडीज हुआ करती थी, लेकिन अब इनकी संख्या आधे से कम रह गई है. दिल्ली सरकार की ओर से 600 झीलों के पुनर्विकास के प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है, लेकिन अभी तक मात्र 50 से कम झीलों का ही जीर्णोद्धार किया जा सका है. यह शासन और प्रशासन की इस द‍िशा में क‍िए जाने वालों कार्यों में ज्‍यादा द‍िलचस्‍पी नहीं होने को ही दर्शाती हैं.

केंद्र के आदेश पर 2019 में बनायी गई थी वेटलैंड ऑथोर‍िटी
दूसरी तरफ देखा जाए तो केंद्र सरकार के पर्यावरण, वन, वन्‍यजीव एवं जलवायु पर‍िवर्तन मंत्रालय के आदेशों पर वेटलैंड (संरक्षण एवं प्रबंधन) न‍ियम-2017 के अनुपालन में 2019 में द‍िल्‍ली के उप-राज्‍यपाल के आदेशों पर द‍िल्‍ली के ल‍िए वेटलैंड ऑथोर‍िटी (आर्द्रभूम‍ि प्राध‍िकरण) का गठन भी क‍िया गया था. चीफ सेक्रेटरी की अध्‍यक्षता वाली इस 23 सदस्‍यीय ऑथोर‍िटी में डीडीए वाइस चेयरमैन सदस्य पदेन और पर्यावरण सेक्रेटरी पदेन सदस्‍य बनाए गए तो फॉरेस्‍ट कंजरवेटर/सीईओ (डीपीजीएस) को मैंबर सेक्रेटरी बनाया गया था.

वॉटर बॉडीज को पुनर्जीवित करने से पानी का हो पाएगा समुचित संचय
इसमें द‍िल्‍ली सरकार के कई अलग-अलग व‍िभागों डीजेबी, रेवन्‍यू, टूर‍िज्‍म, मत्‍स्‍य, शहरी व‍िकास, पीडब्‍ल्‍यूडी, व‍िकास के अलावा केंद्र सरकार, एमसीडी, द‍िल्‍ली छावनी बोर्ड के प्रमुख पदेन सदस्‍य के तौर पर शाम‍िल क‍िए गए थे. उस वक्‍त के द‍िल्‍ली सरकार में पर्यावरण सेक्रेटरी मधुप व्‍यास की ओर से वेटलैंड ऑथोर‍िटी का नोट‍िफ‍िकेशन जारी क‍िया गया था. इसके अलावा 23 सदस्‍यी ऑथोर‍िटी में 4 अन्‍य मैंबर एक्‍सपर्ट के तौर पर भी शाम‍िल क‍िए गए थे जोक‍ि इस द‍िशा में बेहतर काम करने में मदद कर सकें. इन वॉटर बॉडीज को पुनर्जीवित करने का एक बड़ा लक्ष्य यह भी है कि बारिश के पानी को संचय किया जा सके. लेकिन कुछ सलाहकार यह भी मानते हैं कि दिल्ली में अक्सर बारिश 15 से 20 दिन के लिए ही होती है और जो वाटर बॉडीज और झील हैं, वह उस तरह से नहीं है कि बारिश का पानी उनमें पहुंच सके.

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द‍िल्‍ली में मौजूदा समय में डीडीए के 7 जैव विविधता पार्क
दिल्ली में बायोडायवर्सिटी पार्कों की बात की जाए तो वर्तमान में डीडीए के 7 जैव विविधता पार्क हैं. इनमें यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क, अरावली बायोडायवर्सिटी पार्क, नीला हौज बायोडायवर्सिटी पार्क, नॉर्थ रिज (कमला नेहरू रिज), तिलपथ घाटी बायोडायवर्सिटी पार्क, तुगलकाबाद बायोडायवर्सिटी पार्क और काल‍िंदी बायोडायवर्सिटी पार्क प्रमुख रूप से शामिल हैं. इन सभी बायोडायवर्सिटी पार्क की अलग-अलग खास‍ियत और गुण हैं. माना जा रहा है क‍ि यमुना नदी को उसके पुर्नरुत्थान और फ्लड प्‍लेन रेस्टोरेशन के ल‍िए डीडीए के यह पार्क कारगर साब‍ित होंगे.

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Last Updated : Jul 7, 2024, 7:40 AM IST
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