रांचीः करम या करमा पर्व झारखंड के आदिवासियों और मूलवासियों की संस्कृति से जुड़ा लोक पर्व है. यह भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक माना जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार भादो मास की एकादशी में मनाया जाने वाला पर्व करम आदिवासी परंपरा में खास महत्व रखता है. इस दिन आदिवासी पुरुष और महिलाएं मिलकर करम देवता की पूजा करते हैं. इस मौके पर सभी पारंपरिक परिधान लाल पाड़ के साथ सफेद रंग की साड़ी और धोती में जगह-जगह लोक नृत्य करते नजर आते हैं. आदिवासियों के साथ-साथ सनातन धर्म प्रेमी भी इस पर्व में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं.
करम पर्व की पूर्व संध्या से ही आदिवासी समाज इसकी तैयारी में लग जाते हैं. इस पर्व का आदिवासी समुदाय बड़ी बेसब्री से इंतजार करते हैं, क्योंकि करम पर्व के बाद से ही आदिवासी समाज में शादी और शुभ कार्य की शुरुआत की जाती है. आदिवासी समाज के लोग अपने घरों के आंगन में करम वृक्ष की डाल को लगाते हैं. वहीं आदिवासी महिलाएं करम डाल की पूजा कर पारंपरिक तरीके से इसके चारों ओर नृत्य करती हैं. जिससे उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो सके. हर वर्ष भाद्र पद मास के शुक्ल पक्ष के एकादशी तिथि को करम पूजा की जाती है. सनातन धर्म में इस तिथि को करम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है.
करम डाल की पूजा
इस दिन करम डाली (करम डाइर) की पूजा की जाती है. आदि परंपरा के अनुसार करम की डाली को पूरे रीति-रिवाज के साथ आदिवासियों के धार्मिक स्थल अखरा में लगाया जाता है. जिसके बाद इसकी पूजा रात में की जाती है. करम पर्व में जावा का महत्व काफी होता है. तीज त्योहार के दूसरे दिन पूजा के लिए लड़कियां घर-घर घूमकर चावल, गेहूं, मक्का जैसे अलग-अलग तरह के अनाज इकट्ठा करती हैं और एक टोकरी में जावा बनाती हैं. पूजा के बाद इसे सभी लोगों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है. इस प्रसाद रूपी जावा को लोग एक-दूसरे के बाल में या फिर कान में लगाकर करम पर्व की शुभकामनाएं देते हैं.
भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक
करम पूजा के दौरान करमा और धरमा नाम के दो भाइयों की कहानी भी सुनाई जाती है. जिसका सार करम के महत्व को समझाता है. इस कहानी को सुने बिना करम पूजा अधूरी मानी जाती है. ऐसा माना जाता है कि इस पर्व को मनाने से गांव में खुशहाली आती है. करम के दिन घर घर में कई प्रकार के पारंपरिक व्यंजन भी बनाए जाते हैं. करम भाई-बहन के प्यार को दर्शाता है. महिलाएं खासकर अपने भाइयों की लंबी उम्र और अच्छे भविष्य के लिए व्रत रखती हैं.
ये है कहानी
आदिवासी किवदंतियों और दंतकथाओं के अनुसार यह भी कहा जाता है सदियों वर्ष पूर्व करमा और धरमा दो भाई थे उन्हीं से यह कहानी बनी है. जिसमें करमा और धर्मा की रक्षा के लिए उनकी बहन ने करमा की डाली की पूजा की थी. जिसके बाद से ही यह पूजा अनवरत जारी है. करमा और धरमा दो भाई थे. करमा का विवाह ऐसी स्त्री के साथ हुआ जो अधर्मी थी. वह हर किसी को परेशान करती थी. इससे दुखी होकर करमा घर से निकल गया. उसके घर छोड़ते ही सभी के भाग्य फूट गए. लोग दुखी रहने लगे. धरमा से लोगों की परेशानी नहीं देखी गई और वह अपने भाई को खोजने निकल पड़ा. धरमा को प्यास लगी पर आसपास कही पानी नहीं था. दूर एक नदी दिखी वहां जाने पर देखा की उसमें पानी नहीं है. इसी बीच नदी ने धरमा से कहा जबसे करमा भाई यहां से गए हैं, तबसे हमारा कर्म फूट गया है. यहां का पानी सुख गया है, अगर वे मिले तो उनसे कहा देना. कुछ दूर जाने पर एक आम का पेड़ मिला उसके सारे फल सड़े हुए थे, उसने भी धरमा से कहा जब से करमा गए हैं तब से हमारे फल ऐसे ही बर्बाद हो जाते हैं, अगर वे मिले तो उनसे कह देना और उपाय पूछ के बताना. धरमा वहां से आगे बढ़ गया आगे उसे एक वृद्ध व्यक्ति मिला, उन्होंने बताया कि जबसे करमा यहां से गया है उनके सिर के बोझ तबतक नहीं उतरते जब तक 3-4 लोग मिलकर न उतारे, कर्मा से बताकर इसके निवारण के उपाय बताना.
दोनों भाई वापस घर चले गए
धरमा वहां से भी आगे बढ़ गया आगे उसे एक महिला मिली उसने बताई की करमा से पूछकर बताना कि जबसे वो गए हैं खाना बनाने के बाद बर्तन हाथ से चिपक जाते हैं क्यों, उपाय बताना. धरमा चलते-चलते एक रेगिस्तान में जा पहुंचा. वहां उसने देखा कि करमा धूप और गर्मी से परेशान है. उसके शरीर पर फोड़े पड़े हैं. धरमा से उसकी हालत देखी नहीं गई और उसने करमा से आग्रह किया की वो घर वापस चले, तो करमा ने कहा कि वो उस घर कैसे जाए जहां उसकी पत्नी जमीन पर माड़ फेंक देती है. तब धरमा ने वचन दिया कि आज के बाद कोई भी महिला जमीन पर माड़ नहीं फेंकेगी. फिर दोनों भाई वापस घर की ओर चले.
ऐसे हल हुई समस्या
घर जाने के दौरान उसे सबसे पहले वह महिला मिली उससे करमा ने कहा कि तुमने किसी भूखे को खाना नहीं खिलाया था, इसी लिए तुम्हारे साथ ऐसा हुआ. आगे कभी ऐसा मत करना सब ठीक हो जाएगा. आखिर में नदी मिला तो करमा ने कहा कि तुमने किसी प्यासे को साफ पानी नहीं दिया आगे कभी किसी को गंदा पानी मत पिलाना. इस तरह उसने सबको उसका कर्म बताते हुए घर आया और पोखर में करम का डाल लगाकर पूजा की. उसके बाद से पूरे इलाके में खुशहाली लोट आई और सभी खुशी से रहने लगे. तब से करम पर्व की मान्यता चली आ रही है.
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