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मीराबाई करती थीं इस मंदिर में पूजा, जन्माष्टमी पर जानें गिरधर गोपाल की अनसुनी कहानी - Janmashtami 2024

शिवराजपुर में मीराबाई की स्मृति में गिरधर गोपाल का मंदिर बना हुआ है. हालांकि चूने राखी से बने खूबसूरत मंदिर गिरकर खंडहर बन गया है. इसको देखकर अनुमान लगाया जा सकता है कि शिवराजपुर कितना सुदंर था. इसका गंगा तटवर्ती शिवराजपुर का पुराणों में धर्म नगरी के रूप में उल्लेख है.

जन्माष्टमी पर जानें गिरधर गोपाल की अनसुनी कहानी
जन्माष्टमी पर जानें गिरधर गोपाल की अनसुनी कहानी (Photo Credit: ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Aug 25, 2024, 7:21 PM IST

फतेहपुर: उत्तर प्रदेश के फतेहपुर स्थित मलवां विकास खण्ड का शिवराजपुर गांव अपने अंदर आध्यात्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक अतीत की कहानी संजोए हुए है. शिवराजपुर का बखान शिव पुराण में भी मिलता है. पहले गंगा नदी गिरधर गोपाल मंदिर की सीढ़ियों से बहती थी. ऋषि लोग यहां तपस्या करते थे. इस स्थान में महत्त्वपूर्ण प्रागैतिहासिक काल के अवशेष भी विद्यमान है, जो ताम्रयुगीन बताये जाते हैं.

यहां प्राचीन मंदिरों की संख्या अधिक होने के कारण इस स्थान को तीर्थ रूप में मान्यता प्राप्त है. यह स्थान चरणदासी संप्रदाय का केन्द्र था. सौ वर्ष प्राचीन एक हस्तलिखित ग्रंथ से पती चलती है कि प्रसिद्ध भक्त कवयित्री मीराबाई इस स्थान पर आई थीं. इस ग्रंथ में शिवराजपुर का माहात्मय वर्णित है. शिवराजपुर में मीराबाई की स्मृति में गिरधर गोपाल का मंदिर बना हुआ है. हालांकि, चूने राखी से बना खूबसूरत मंदिर गिरकर खंडहर बन गया है. एक समय शिवराजपुर कितना सुदंर था. गंगा तटवर्ती शिवराजपुर का पुराणों में धर्म नगरी के रूप में उल्लेख है.

बता दें कि जनपद के मलवां विकास खण्ड स्थित शिवराजपुर में पूरे वर्ष श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त मीराबाई के हाथों स्थापित गिरधर गोपाल के दर्शन को भक्त आते रहते हैं. आज ये उपेक्षा का शिकार है. छोटी काशी नाम से मशहूर शिवराजपुर पौराणिक महत्व का विस्तृत वर्णन ब्रह्मपुराण के उन्नीसवें अध्याय में है. पार्वती व मीराबाई की तपोस्थली शिवराजपुर को गौरी कुमारिका क्षेत्र भी कहा जाता है. स्वतंत्रता संग्राम में भी इस स्थल का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. भक्तिकाल में संपूर्ण भारत में चर्चा का विषय बनी मीरा ने इस मूर्ति को चित्तौड़गढ़ से लाकर तपोस्थली शिवराजपुर में स्थापित किया था. यहां स्थापित गिरधर गोपाल की मूर्ति अलौकिक है.

कहा जाता है कि शिवराजपुर में भक्त शिरोमणि मीराबाई द्वारा स्थापित गिरधर गोपाल की यह प्रतिमा मनोवांछित फल देने के साथ ही भव्य आकर्षण के साथ अपनी अलग छटा बिखेरने वाली है. आज उपेक्षा के शिकार हुए शिवराजपुर में समय समय पर ऋषियों का पदार्पण होता रहा है. इस पौराणिक स्थल के महत्व को जानकर 1872 में आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने एक वर्ष रहकर साधना की थी. आज पूरे प्रदेश से श्रद्धालु यहां आते हैं.

मान्यता है कि, मीरा शिवराजपुर में कार्तिक पूर्णिमा के भव्य मेले के समय आई थीं. उत्तर प्रदेश के गजेटियर में 16 मेले के नाम दर्ज हैं. उसमें से एक शिवराजपुर का मेला भी है. इस धरती में मीरा के गिरधर गोपाल विराजमान हैं. वहीं, रसिक बिहारी जी का भव्य मंदिर है. कार्तिक पूर्णिमा के मेले में ही 15वीं शताब्दी में शिवराजपुर में मीरा का पदार्पण हुआ था. मीरा 3 दिन तक यहां ठहरी थीं और अपने गिरधर गोपाल को यहीं स्थापित कर बनारस चली गईं थीं.

बताते है कि शिवराजपुर लघु बंदरगाह के बाद तहसील व थाना भी था. यहां नाव से जब व्यापार होता था, तब तक यहां की रौनक देखते ही बनती थी. समय के अनुसार उपेक्षा का शिकार होते गए इस स्थल को अभी तक पर्यटन स्थल बनाए जाना तो दूर रहा. आज यह प्राचीन धरोहर उपेक्षा की शिकार है. मंदिर की व्यवस्था ग्रामीणों के सहयोग से एक ही परिवार पुरातन काल से करता चला आ रहा है.


मंदिर के पुजारी बड़कू महाराज बताते हैं कि यह मंदिर उपेक्षा का शिकार है, जिससे दिन प्रतिदिन जीर्णशीर्ण होता जा रहा है. हालांकि, यहां भक्त श्रद्धा भाव से हमेशा आते जाते रहते हैं और गिरधर गोपाल की अलौकिक मूर्ति के दर्शन करते हैं.

यह भी पढ़ें: इस बार बनारस में इको फ्रेंडली जन्माष्टमी पर जोर, जरकन ड्रेस में भगवान कृष्ण देंगे दर्शन

यह भी पढ़ें: WATCH: बृज में जन्माष्टमी की धूम, श्रद्धालुओं ने ढोल नगाड़े के साथ निकाली शोभायात्रा, सुरक्षा में तीन हजार जवान रहेंगे तैनात



फतेहपुर: उत्तर प्रदेश के फतेहपुर स्थित मलवां विकास खण्ड का शिवराजपुर गांव अपने अंदर आध्यात्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक अतीत की कहानी संजोए हुए है. शिवराजपुर का बखान शिव पुराण में भी मिलता है. पहले गंगा नदी गिरधर गोपाल मंदिर की सीढ़ियों से बहती थी. ऋषि लोग यहां तपस्या करते थे. इस स्थान में महत्त्वपूर्ण प्रागैतिहासिक काल के अवशेष भी विद्यमान है, जो ताम्रयुगीन बताये जाते हैं.

यहां प्राचीन मंदिरों की संख्या अधिक होने के कारण इस स्थान को तीर्थ रूप में मान्यता प्राप्त है. यह स्थान चरणदासी संप्रदाय का केन्द्र था. सौ वर्ष प्राचीन एक हस्तलिखित ग्रंथ से पती चलती है कि प्रसिद्ध भक्त कवयित्री मीराबाई इस स्थान पर आई थीं. इस ग्रंथ में शिवराजपुर का माहात्मय वर्णित है. शिवराजपुर में मीराबाई की स्मृति में गिरधर गोपाल का मंदिर बना हुआ है. हालांकि, चूने राखी से बना खूबसूरत मंदिर गिरकर खंडहर बन गया है. एक समय शिवराजपुर कितना सुदंर था. गंगा तटवर्ती शिवराजपुर का पुराणों में धर्म नगरी के रूप में उल्लेख है.

बता दें कि जनपद के मलवां विकास खण्ड स्थित शिवराजपुर में पूरे वर्ष श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त मीराबाई के हाथों स्थापित गिरधर गोपाल के दर्शन को भक्त आते रहते हैं. आज ये उपेक्षा का शिकार है. छोटी काशी नाम से मशहूर शिवराजपुर पौराणिक महत्व का विस्तृत वर्णन ब्रह्मपुराण के उन्नीसवें अध्याय में है. पार्वती व मीराबाई की तपोस्थली शिवराजपुर को गौरी कुमारिका क्षेत्र भी कहा जाता है. स्वतंत्रता संग्राम में भी इस स्थल का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. भक्तिकाल में संपूर्ण भारत में चर्चा का विषय बनी मीरा ने इस मूर्ति को चित्तौड़गढ़ से लाकर तपोस्थली शिवराजपुर में स्थापित किया था. यहां स्थापित गिरधर गोपाल की मूर्ति अलौकिक है.

कहा जाता है कि शिवराजपुर में भक्त शिरोमणि मीराबाई द्वारा स्थापित गिरधर गोपाल की यह प्रतिमा मनोवांछित फल देने के साथ ही भव्य आकर्षण के साथ अपनी अलग छटा बिखेरने वाली है. आज उपेक्षा के शिकार हुए शिवराजपुर में समय समय पर ऋषियों का पदार्पण होता रहा है. इस पौराणिक स्थल के महत्व को जानकर 1872 में आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने एक वर्ष रहकर साधना की थी. आज पूरे प्रदेश से श्रद्धालु यहां आते हैं.

मान्यता है कि, मीरा शिवराजपुर में कार्तिक पूर्णिमा के भव्य मेले के समय आई थीं. उत्तर प्रदेश के गजेटियर में 16 मेले के नाम दर्ज हैं. उसमें से एक शिवराजपुर का मेला भी है. इस धरती में मीरा के गिरधर गोपाल विराजमान हैं. वहीं, रसिक बिहारी जी का भव्य मंदिर है. कार्तिक पूर्णिमा के मेले में ही 15वीं शताब्दी में शिवराजपुर में मीरा का पदार्पण हुआ था. मीरा 3 दिन तक यहां ठहरी थीं और अपने गिरधर गोपाल को यहीं स्थापित कर बनारस चली गईं थीं.

बताते है कि शिवराजपुर लघु बंदरगाह के बाद तहसील व थाना भी था. यहां नाव से जब व्यापार होता था, तब तक यहां की रौनक देखते ही बनती थी. समय के अनुसार उपेक्षा का शिकार होते गए इस स्थल को अभी तक पर्यटन स्थल बनाए जाना तो दूर रहा. आज यह प्राचीन धरोहर उपेक्षा की शिकार है. मंदिर की व्यवस्था ग्रामीणों के सहयोग से एक ही परिवार पुरातन काल से करता चला आ रहा है.


मंदिर के पुजारी बड़कू महाराज बताते हैं कि यह मंदिर उपेक्षा का शिकार है, जिससे दिन प्रतिदिन जीर्णशीर्ण होता जा रहा है. हालांकि, यहां भक्त श्रद्धा भाव से हमेशा आते जाते रहते हैं और गिरधर गोपाल की अलौकिक मूर्ति के दर्शन करते हैं.

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