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प्रिंसली स्टेटों में शामिल रही टिहरी रियासत आज भी विकास से दूर, जानें भारत में विलय की कहानी - independence day 2024

independence day 2024 आज गुरुवार को पूरे भारत में 78वां स्वतंत्रता दिवस बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाएगा. इस मौके पर हम आपको प्रिंसली स्टेटों में शामिल रही टिहरी रियासत और उसके भारत विलय की कहानी के बारे में अवगत करा रहे हैं.

independence day 2024
टिहरी रियासत और भारत विलय की कहानी (photo- ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Aug 15, 2024, 3:02 PM IST

Updated : Aug 15, 2024, 3:08 PM IST

जानें उत्तराखंड के टिहरी रियासत की भारत में विलय होने की कहानी (photo- ETV Bharat)

देहरादून: 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ था. उस वक्त देश का 40 फीसदी हिस्सा ऐसा था, जो कि रियासतों के अंतर्गत आता था और पूरे देश में तकरीबन 565 प्रिंसली स्टेट थे, जिसमें उत्तराखंड की टिहरी रियासत भी शामिल थी. टिहरी रियासत की स्थापना 1816 में हुई थी. महाराज सुदर्शन शाह ने टिहरी शहर को बसाया था. आज के टिहरी गढ़वाल और उत्तरकाशी को मिलाकर बनने वाली टिहरी रियासत में कई प्रतापी राजा हुए. 1 अगस्त 1949 को टिहरी रियासत का भारत में विलय हुआ था.

हिमालय क्षेत्र की सभी रियासतों में सबसे बड़ी थी टिहरी रियासत: वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत ने बताया कि देश की आजादी के वक्त और उससे पहले भारत में 1935 का गवर्नर ऑफ इंडिया एक्ट से सभी रियासतें गबन होती थी. यह 26 जनवरी 1950 तक चला और उसके बाद स्वतंत्र भारत का नया संविधान बना. पूरे देश में उस समय तकरीबन 565 प्रिंसली स्टेट थे, जिनकी संप्रभुता यानी पैरामाउंटसी अंग्रेजों के हाथ में थी. देश की आजादी के वक्त सबसे बड़ी रियासत निजाम की हैदराबाद रियासत थी, जिसका 41 तोपों की सलामी का स्टेटस था. उन्होंने कहा कि ग्वालियर सहित कई अन्य बड़ी प्रिंसली स्टेट को 21 तोपों के इस्लामी का स्टेटस था, जबकि टिहरी के राजा को सात तोपों की सलामी का स्टेटस प्राप्त था. यही नहीं टिहरी रियासत के राजा केवल अपनी रियासत के नहीं, बल्कि हिमालय बेल्ट में पड़ने वाले 35 स्टेट, जिसमें हिमाचल सहित कई अन्य रियासतें थी. उनका नेतृत्व टिहरी के राजा करते थे, इसलिए टिहरी के राजा को महाराज का दर्जा दिया जाता था.

शुरुआत में टिहरी रियासत के राजा ने भारत विलय में नहीं दिखाई रूचि: 15 अगस्त 1947 का जो इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 आया, तो उसमें सभी प्रिंसली स्टेट के लिए प्रावधान किया गया कि वह स्वतंत्र हैं और अपनी इच्छा के अनुसार वह भारत विलय का फैसला ले सकतें हैं. आजादी के वक्त केंद्रीय गृहमंत्री के रूप में सरदार वल्लभभाई पटेल और उनके सेक्रेटरी पीपी मेनन ने सभी रियासतों और राज्यों के एकीकरण की जिम्मेदारी उठाई. बताया जाता है कि शुरुआत में टिहरी रियासत के राजा ने भारत विलय में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई, लेकिन टिहरी रियासत के लोगों ने देश को मिली आजादी को एक बेहतर मौका समझते हुए राजशाही के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया.इस आंदोलन में परिपूर्णानंद पैनोली महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. तमाम आंदोलन चले और जनता ने एक जवाबदेय सरकार की मांग की.

1 अगस्त 1949 को टिहरी रियासत का भारत में विलय: टिहरी राज परिवार के सदस्य ठाकुर भवानी प्रताप सिंह ने बताया कि 1 अगस्त 1949 को टिहरी रियासत का भारत में विलय हुआ था. जब विलय हुआ तो उस समय सभी दस्तावेज तैयार किए गए. उन्होंने कहा कि प्रिंसली स्टेट द्वारा सभी तरह की जानकारी भारत सरकार के साथ साझा की गई. किसी भी तरह का निवेश और राजस्व भारत सरकार से नहीं छुपाया गया और उस समय के तत्कालीन एडमिनिस्ट्रेटिव अधिकारी ज्योति प्रसाद के नेतृत्व में यह मर्जर साइन किया गया.

सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा टिहरी रियासत वाला इलाका: ठाकुर भवानी प्रताप सिंह ने बताया कि जब टिहरी रियासत का भारत सरकार में विलय हुई, तो उस समय विलय के दस्तावेजों में यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि इस क्षेत्र के जंगल जमीन और जल पर क्षेत्रीय लोगों का अधिकार होगा. उन्होंने कहा कि बाद में भारत सरकार के कई नियमों के बाद आज भले ही उत्तराखंड के लोग अपने क्षेत्रीय अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन यहां की लोगों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति आज भी उतनी रफ्तार से आगे नहीं बढ़ पाई है, जितनी रफ्तार से पूरा देश आगे बढ़ा है.

टिहरी के राजा प्रजा को शिक्षित नहीं होने देना चाहता था: वरिष्ठ लेखक और जानकार सुरेंद्र सिंह साजवान ने बताया कि देश का जो हिस्सा ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन था, वहां पर अंग्रेजों ने काफी विकास किया और शिक्षा के क्षेत्र समेत अन्य सभी क्षेत्रों में वहां के लोग आगे बढ़े, लेकिन टिहरी रियासत के अंतर्गत आने वाले लोग राजशाही के हुकूमत के नीचे दबे रहे. राजा कभी नहीं चाहता था कि उसकी प्रजा शिक्षित हो और उसके खिलाफ आवाज उठाएं, लेकिन आखिरकार देश के स्वाधीनता आंदोलन के साथ-साथ टिहरी रियासत की प्रजा ने भी अपनी आवाज उठाई और राजा की सत्ता पलट दी. जिसके बाद राजा को अपनी सत्ता छोड़नी पड़ी और आखिरकार टिहरी रियासत का भारत में विलय हुआ. डेढ़ सौ साल की राजशाही और तानाशाही के बीच भी आज के टिहरी और उत्तरकाशी जिले के वर्तमान इलाके अपने सामाजिक ताने-बाने को बुनते रहे. राजशाही ने विकास को लगाम लगाई, लेकिन इस क्षेत्र की संस्कृति में उत्तराखंड के इतिहास में अपनी अलग जगह बनाई.

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जानें उत्तराखंड के टिहरी रियासत की भारत में विलय होने की कहानी (photo- ETV Bharat)

देहरादून: 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ था. उस वक्त देश का 40 फीसदी हिस्सा ऐसा था, जो कि रियासतों के अंतर्गत आता था और पूरे देश में तकरीबन 565 प्रिंसली स्टेट थे, जिसमें उत्तराखंड की टिहरी रियासत भी शामिल थी. टिहरी रियासत की स्थापना 1816 में हुई थी. महाराज सुदर्शन शाह ने टिहरी शहर को बसाया था. आज के टिहरी गढ़वाल और उत्तरकाशी को मिलाकर बनने वाली टिहरी रियासत में कई प्रतापी राजा हुए. 1 अगस्त 1949 को टिहरी रियासत का भारत में विलय हुआ था.

हिमालय क्षेत्र की सभी रियासतों में सबसे बड़ी थी टिहरी रियासत: वरिष्ठ पत्रकार जयसिंह रावत ने बताया कि देश की आजादी के वक्त और उससे पहले भारत में 1935 का गवर्नर ऑफ इंडिया एक्ट से सभी रियासतें गबन होती थी. यह 26 जनवरी 1950 तक चला और उसके बाद स्वतंत्र भारत का नया संविधान बना. पूरे देश में उस समय तकरीबन 565 प्रिंसली स्टेट थे, जिनकी संप्रभुता यानी पैरामाउंटसी अंग्रेजों के हाथ में थी. देश की आजादी के वक्त सबसे बड़ी रियासत निजाम की हैदराबाद रियासत थी, जिसका 41 तोपों की सलामी का स्टेटस था. उन्होंने कहा कि ग्वालियर सहित कई अन्य बड़ी प्रिंसली स्टेट को 21 तोपों के इस्लामी का स्टेटस था, जबकि टिहरी के राजा को सात तोपों की सलामी का स्टेटस प्राप्त था. यही नहीं टिहरी रियासत के राजा केवल अपनी रियासत के नहीं, बल्कि हिमालय बेल्ट में पड़ने वाले 35 स्टेट, जिसमें हिमाचल सहित कई अन्य रियासतें थी. उनका नेतृत्व टिहरी के राजा करते थे, इसलिए टिहरी के राजा को महाराज का दर्जा दिया जाता था.

शुरुआत में टिहरी रियासत के राजा ने भारत विलय में नहीं दिखाई रूचि: 15 अगस्त 1947 का जो इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 आया, तो उसमें सभी प्रिंसली स्टेट के लिए प्रावधान किया गया कि वह स्वतंत्र हैं और अपनी इच्छा के अनुसार वह भारत विलय का फैसला ले सकतें हैं. आजादी के वक्त केंद्रीय गृहमंत्री के रूप में सरदार वल्लभभाई पटेल और उनके सेक्रेटरी पीपी मेनन ने सभी रियासतों और राज्यों के एकीकरण की जिम्मेदारी उठाई. बताया जाता है कि शुरुआत में टिहरी रियासत के राजा ने भारत विलय में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई, लेकिन टिहरी रियासत के लोगों ने देश को मिली आजादी को एक बेहतर मौका समझते हुए राजशाही के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया.इस आंदोलन में परिपूर्णानंद पैनोली महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. तमाम आंदोलन चले और जनता ने एक जवाबदेय सरकार की मांग की.

1 अगस्त 1949 को टिहरी रियासत का भारत में विलय: टिहरी राज परिवार के सदस्य ठाकुर भवानी प्रताप सिंह ने बताया कि 1 अगस्त 1949 को टिहरी रियासत का भारत में विलय हुआ था. जब विलय हुआ तो उस समय सभी दस्तावेज तैयार किए गए. उन्होंने कहा कि प्रिंसली स्टेट द्वारा सभी तरह की जानकारी भारत सरकार के साथ साझा की गई. किसी भी तरह का निवेश और राजस्व भारत सरकार से नहीं छुपाया गया और उस समय के तत्कालीन एडमिनिस्ट्रेटिव अधिकारी ज्योति प्रसाद के नेतृत्व में यह मर्जर साइन किया गया.

सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा टिहरी रियासत वाला इलाका: ठाकुर भवानी प्रताप सिंह ने बताया कि जब टिहरी रियासत का भारत सरकार में विलय हुई, तो उस समय विलय के दस्तावेजों में यह स्पष्ट रूप से कहा गया था कि इस क्षेत्र के जंगल जमीन और जल पर क्षेत्रीय लोगों का अधिकार होगा. उन्होंने कहा कि बाद में भारत सरकार के कई नियमों के बाद आज भले ही उत्तराखंड के लोग अपने क्षेत्रीय अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं, लेकिन यहां की लोगों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति आज भी उतनी रफ्तार से आगे नहीं बढ़ पाई है, जितनी रफ्तार से पूरा देश आगे बढ़ा है.

टिहरी के राजा प्रजा को शिक्षित नहीं होने देना चाहता था: वरिष्ठ लेखक और जानकार सुरेंद्र सिंह साजवान ने बताया कि देश का जो हिस्सा ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन था, वहां पर अंग्रेजों ने काफी विकास किया और शिक्षा के क्षेत्र समेत अन्य सभी क्षेत्रों में वहां के लोग आगे बढ़े, लेकिन टिहरी रियासत के अंतर्गत आने वाले लोग राजशाही के हुकूमत के नीचे दबे रहे. राजा कभी नहीं चाहता था कि उसकी प्रजा शिक्षित हो और उसके खिलाफ आवाज उठाएं, लेकिन आखिरकार देश के स्वाधीनता आंदोलन के साथ-साथ टिहरी रियासत की प्रजा ने भी अपनी आवाज उठाई और राजा की सत्ता पलट दी. जिसके बाद राजा को अपनी सत्ता छोड़नी पड़ी और आखिरकार टिहरी रियासत का भारत में विलय हुआ. डेढ़ सौ साल की राजशाही और तानाशाही के बीच भी आज के टिहरी और उत्तरकाशी जिले के वर्तमान इलाके अपने सामाजिक ताने-बाने को बुनते रहे. राजशाही ने विकास को लगाम लगाई, लेकिन इस क्षेत्र की संस्कृति में उत्तराखंड के इतिहास में अपनी अलग जगह बनाई.

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Last Updated : Aug 15, 2024, 3:08 PM IST
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