जयपुर : 7 दिसंबर 1971 भारतीय सेना ने पाकिस्तान के सिंध प्रांत के छाछरो क्षेत्र पर कब्जा किया. ब्रिगेडियर महाराजा भवानी सिंह के नेतृत्व में प्राप्त विजय को प्रतिवर्ष 'छाछरो दिवस' के रूप में मनाया जाता है. यह मौका उस वक्त आया जब भारत ने आधी रात को पाकिस्तान के छाछरो तक पहुंच बना ली थी. जयपुर के पूर्व महाराजा और ब्रिगेडियर स्वर्गीय भवानी सिंह के अदम्य साहस और युद्ध कौशल के नेतृत्व में भारत की सेना 100 किलोमीटर तक पाकिस्तान में अंदर घुसकर भारत जिंदाबाद के नारे लगाती हुई आगे बढ़ रही थी. तब पाकिस्तान की सेना उल्टे पांव दौड़ते हुए जान बचाकर भागती नजर आई. भारत की सेना मीरपुरखास को पार कर छाछरो की ओर बढ़ रही थी. सिंध इलाके में गांव-गांव में यह पता चल गया कि भारत की सेना आ गई है. थल सेना की कमान संभाल रहे ब्रिगेडियर भवानी सिंह ने बाड़मेर के बलवंत सिंह बाखासर और अन्य जाबांजोंं के साथ मिलकर पाकिस्तान को परास्त किया, जिसकी कल्पना पाक को भी नहीं थी.
रात को पहुंच गए छाछरो : छाछरो पाकिस्तान का बड़ा कस्बा है, जिसका मतलब सिंध फतेह से लगाया जाता है. बताया जाता है कि करीब आधी रात को भारतीय सेनाएं छाछरो पहुंच गई थी और 100 किमी अंदर तक पाकिस्तान की करीब 80 हजार वर्ग किमी की जमीन भारत के कब्जे में हुई थी. भारत-पाक 1971 का युद्ध 3 दिसंबर को शुरू हुआ और बाखासर के रण से यह कमान ब्रिगेडियर भवानी सिंह के पास थी. सेना के लिए यहां जरूरी था कि छाछरों तक फतेह करना है, तो रास्ता कौन सा हो और आगे कैसे बढ़ें? ब्रिगेडियर भवानी सिंह ने यहां बाखासर के बलवंत सिंह के पास पहुंचे, जो छाछरी तक उस समय डकैती के लिए जाने जाते थे. दिसंबर 1971 की 5 तारीख को बिग्रेडियर भवानी सिंह ने सेना और बलवत सिंह के साथ कूच किया और छाछरों में तिरंगा लहरा दिया था. अक्टूबर 1972 में शिमला समझौता हुआ, तब तक यह जमीन भारत के कब्जे में रही.
स्वागत में उमड़ पड़ा था जयपुर: पाकिस्तान की सीमा में सैकड़ों किलोमीटर दूर दुश्मन के हौसले पस्त कर देने और कई शहरों को कब्जे में कर लेने के बाद छुट्टी मनाने जब पूर्व महाराजा सवाई भवानी सिंह जयपुर लौटे, तो सारा शहर उन्हें धन्यवाद देने खड़ा हो गया था. इतिहासकार जितेंद्र सिंह शेखावत के अनुसार उस दोपहर सांगानेर हवाई अड्डे से आमेर तक का सफर तय करने में इन्हें आधे दिन से ज्यादा समय लग गया. आमेर पहुंचकर पर उन्होंने शिला देवी के मंदिर में प्रार्थना कर आशीर्वाद प्राप्त किया था. जयपुर के पूर्व नरेश भवानी सिंह ने भारतीय सेना में सेकंड लेफ्टिनेंट के पद से सेवा आरंभ की थी और बटालियन के कमांडर पद से रिटायर हुए थे. इस लड़ाई में उन्हें शौर्य, पराक्रम और नेतृत्व के लिए सरकार ने महावीर चक्र में सुशोभित किया था. 22 अक्टूबर 1931 को जन्मे भवानी सिंह को ब्रिगेडियर का ओहदा भी सरकार ने प्रदान किया.
" छाछरो दिवस" पर उन सभी वीर सैनिकों को कोटि-कोटि नमन जिन्होंने 7 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के सिंध प्रांत के छाछरो कस्बे पर विजय प्राप्त कर मां भारती का मस्तक गर्व से ऊंचा किया।
— Diya Kumari (@KumariDiya) December 7, 2024
यह गौरवशाली जीत भारतीय सेना की 10वीं पैरा बटालियन ने मेरे प्रेरणापुंज पिताश्री, महावीर चक्र से सम्मानित… pic.twitter.com/ZYNq6GjoiQ
दीया कुमारी ने भी किया पोस्ट : पूर्व महाराजा ब्रिगेडियर भवानी सिंह की पुत्री और उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी ने भी इस खास मौके को याद किया और एक पर एक पोस्ट की. इसमें उन्होंने लिखा कि छाछरो दिवस पर उन सभी वीर सैनिकों को कोटि-कोटि नमन, जिन्होंने 7 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के सिंध प्रांत के छाछरो कस्बे पर विजय प्राप्त कर मां भारती का मस्तक गर्व से ऊंचा किया.